Thursday, January 31, 2013

!!..लोग कहेते है की मुस्लिम को आतंकवादी नजरो से नहीं देखा जाता ....ये पोस्ट उनलोगों के मूह पे तमाचा है वो भी थूक लगा के ....!!







!!..लोग कहेते है की मुस्लिम को आतंकवादी नजरो से नहीं देखा जाता ....ये पोस्ट उनलोगों के मूह पे तमाचा है वो भी थूक लगा के ....!!

उत्तर प्रदेश के शहर देवबंद के सुप्रसिद्ध मदरसे के एक मौलाना के बारे में पिछले दिनों यह ख़बर लगभग हर समाचार पत्र में थी कि कथित तौर पर विमान को उड़ाने की बात कहने के आरोप में मौलाना नूरुल हुदा को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया था, बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया.
बीबीसी की संवाददाता ख़दीजा आरिफ़ ने देवबंद में मौलाना नूरूल हुदा से बातचीत की:
सबसे पहले आप ये बताइए कि जब आप विमान में सवार हो गए और जब विमान उड़ने वाला था तो क्या हुआ?
मैं एमिरेट्स एयरलाइन की अपनी सीट पर बैठ गया. मेरी पास वाली सीट पर एक लड़की बैठी थी.
जहाज़ में और लोग भी फ़ोन पर बात कर रहे थे और वह लड़की भी फ़ोन पर बातें कर रही थी.
उस लड़की ने भी अपने रिश्तेदारों से बातें की. वह हिंदी और अंग्रेज़ी में बातें कर रही थी तो उससे मुझे अंदाज़ा हुआ कि वह हिंदुस्तानी है.
मैंने भी अपनी पत्नी और अपने बेटे से फ़ोन पर बात की.
मेरा बेटा मुझे एयरपोर्ट छोड़ने आया था. उसने मुझे फ़ोन किया और पूछा कि अब्बू आप जहाज़ में बैठ गए तो मैंने उससे कहा कि जहाज़ में बैठ गया हूं और बस 15 मिनट में जहाज़ उड़ने वाला है. उसके बाद मैंने कोई और बात नहीं की.

मैंने किसी राजनीतिक पार्टी से संपर्क नहीं किया. मुझे पूरी तरह से मालूमात भी नहीं मिली. मेरा पूरा सामान ज़ब्त था. तो मैं किसी से संपर्क कर भी नहीं सकता था.

मौलाना नूरुल हुदा
लेकिन जहाज़ समय पर नहीं उड़ा. बल्कि काफ़ी देर हो गई. इसी बीच मैंने महसूस किया कि वह लड़की भी अपनी सीट से उठ कर चली गई है.
थोड़ी देर बाद एक कर्मचारी मेरे पास आया और मेरा पासपोर्ट मांगा और उसके बाद उसने कहा अपना सामान उठा लीजिए और मेरे साथ चलिए, उस लड़की को भी जहाज़ से उतार लिया गया.
उस लड़की से मेरे सामने तो कोई पूछताछ नहीं की गई लेकिन कर्मचारी ने मुझे बताया कि उस लड़की ने उन्हें बताया है कि मैं जहाज़ को उड़ाने की बात कर रहा था.
मैंने कहा मैं तो आलिम (आध्यात्मिक) आदमी हूं. मदरसे से मेरा ताल्लुक़ है और पढ़ने-पढ़ाने का काम करता हूं.
हम तो यह सीख देते हैं कि किसी को नुक़सान न पहुंचाइए. मैंने उनसे कहा कि मेरी फ़ोन पर यह बात हुई है और आप चाहें तो कंप्यूटर से पता करलें कि फ़ोन पर क्या बात हुई है.
उन्होंने मेरे सामान की तलाशी ली और कई बार तलाशी ली. कोई चीज़ उनको नहीं मिली.
उनको चाहिए था कि वो फिर मुझे जाने देते. मुझे बाद में पता चला कि दूसरी फ़्लाइट से उस लड़की को भेज दिया गया.
लेकिन बार बार अलग अलग अधिकारी एक-एक करके या गुट बना कर आते रहे और मुझ से जहाज़ को उड़ाने वाली बात करते रहे.
मैंने उनसे कहा कि ये बताएं कि ट्रेन को कहते हैं चलने वाली है. गाड़ी के बारे में कहते हैं चल रही है क्योंकि ये सब चलती हैं.
जहाज़ के बारे में ये भी कहा जाता है कि उड़ने वाला है. अगर नहीं तो आप मुझे इसका मोतबादिल (पर्याय) बता दें कि अगर जहाज़ उड़ता नहीं तो क्या करता है?
एक साहब ने कहा कि मुझे अंग्रेज़ी में कहना चाहिए था कि जहाज़ उड़ने वाला है.
मैंने कहा मैं हिंदुस्तानी हूं और हिंदी बोलता हूं. इसके बाद वो मेरे साथ इज़्ज़त से पेश आए.
उसके बाद मुझे ये अंदाज़ा हुआ कि हर विभाग में अच्छे और बुरे लोग होते हैं. लेकिन जो मानसिक तकलीफ़ मुझे हुई उससे मुझे अभी तक परेशानी है.
अधिकारियों ने मेरे साथ कोई बदतमीज़ी नहीं की.
देवबंद मदरसे के बच्चे
देवबंद का मदरसा दारुल उलूम दुनिया भर में इस्लामी शिक्षा के लिए मशहूर है
किन लोगों से आपने मदद के लिए संपर्क किया?
मेरे साथ मेरा बेटा था जो मुझे एयरपोर्ट छोड़ने आया था. ज़िंदगी में मेरे ख़ानदान के किसी आदमी के साथ ऐसी दुर्घटना नहीं हुई. मेरा 18 साल का लड़का और बाद में मेरा भाई वहां पहुंच गया.
किसी राजनीतिक पार्टी ने आपकी मदद की?
मैंने किसी राजनीतिक पार्टी से संपर्क नहीं किया. मुझे पूरी तरह से कोई जानकारी भी नहीं थी. मेरा पूरा सामान ज़ब्त था. तो मैं किसी से संपर्क कर भी नहीं सकता था.
मुझे जब थाने ले गए तो मैंने अपने बेटे को फ़ोन किया और उसे पूरी स्थिति बताई.
पिछले 10 वर्षों पर नज़र दौ़ड़ाएं तो इस प्रकार की घटना कोई नई बात नहीं है!
मैं आपको ये बताऊँ कि जहाज़ उड़ने वाला है ये कोई ऐसा वाक्य नहीं है जिसकी पकड़ की जाए.
मुसलमान होना जुर्म, टोपी कुर्ता पहनना जुर्म, लगता है उसी की सज़ा दी जाने की कोशिश की जा रही है.
किसी भी तरह से आलिमों का जुर्म साबित नहीं हो सका, हम मदरसे वाले हैं,
हम अपराध के लिए पैदा नहीं हुए हैं हम तो शांति की शिक्षा देते हैं.
अब आपने क्या सोचा है, सरकार के सामने अपना प्रतिरोध दर्ज करेंगे?
मैं तो रात ही दिल्ली से देवबंद पहुंचा हूं और अभी मैंने कुछ सोचा नहीं है.
कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि ऐमिरेट्स को आपको हर्जाना देना चाहिए.
अगर उन्होंने ऐसा कहा है तो मैं उनको मुबारकबाद देता हूं.....

Tuesday, January 29, 2013

औरंगज़ेब आलमगीर







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तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।

पुस्‍तक: ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘

लेखक: प्रो. बी. एन पाण्डेय, भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा, राज्यसभा के सदस्य, इलाहाबाद नगरपालिका के चेयरमैन एवं इतिहासकार
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जब में इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई. से 1953 ई. तक) तो मेरे सामने दाखिल-खारिज का एक मामला लाया गया। यह मामला सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर से संबंधित जायदाद के बारे में था। मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे। एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज़ दाखिल किये जो उसके खानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे। इन दस्तावेज़ों में शहंशाह औरंगज़ेब के फ़रमान भी थे। औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था। मैंने सोचा कि ये फ़रमान जाली होंगे। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोडने के लिए प्रसिद्ध है, वह एक मन्दिर को यह कह कर जागीर दे सकता हे यह जागीर पूजा और भोग के लिए दी जा रही है। आखि़र औरंगज़ेब कैस बुतपरस्ती के साथ अपने को शरीक कर सकता था। मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली हैं, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डा. सर तेज बहादुर सप्रु से राय लेना उचित समझा। वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। मैंने दस्तावेज़ें उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि औरंगजे़ब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं। इसके बाद उन्होंने अपने मुन्शी से बनारस के जंगमबाडी शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा। यह मुक़दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था। जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मन्दिर को जागीर दी गई थी।

इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की, उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया। डाक्टर सप्रू की सलाह पर मैंने भारत के पिभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतो के पास पत्र भेजकर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उन मन्दिरों को जागीरें दी गई हों तो वे कृपा करके उनकी फोटो-स्टेट कापियां मेरे पास भेज दें। अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई। उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई। यह फ़रमान 1065 हि. से 1091 हि., अर्थात 1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे। हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाण्ति हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रूख सामने लाया गया है। भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं। यदि सही ढ़ंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाऐंगे जिनसे औरंगज़ेब का गै़र-मुस्लिमों के प्रति उदार व्यवहार का पता चलेगा। औरंगज़ेब के फरमानों की जांच-पड़ताल के सिलसिले में मेरा सम्पर्क श्री ज्ञानचंद और पटना म्यूजियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डा. पी एल. गुप्ता से हुआ। ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृस्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे। मुझे खुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता भी सच्चाई को तलाश करने में व्यस्त हैं और काफ़ी बदनाम औरंगज़ेब की तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे हैं। औरंगज़ेब, जिसे पक्षपाती इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हकूमत का प्रतीक मान रखा है। उसके बारें में वे क्या विचार रखते हैं इसके विषय में यहां तक कि ‘शिबली’ जैसे इतिहास गवेषी कवि को कहना पड़ाः

तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।

औरंगज़ेब पर हिन्दू-दुश्मनी के आरोप के सम्बन्ध में जिस फरमान को बहुत उछाला गया है, वह ‘फ़रमाने-बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह फ़रमान बनारस के मुहल्ला गौरी के एक ब्राहमण परिवार से संबंधित है। 1905 ई. में इसे गोपी उपाघ्याय के नवासे मंगल पाण्डेय ने सिटि मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था। एसे पहली बार ‘एसियाटिक- सोसाइटी’ बंगाल के जर्नल (पत्रिका) ने 1911 ई. में प्रकाशित किया था। फलस्वरूप रिसर्च करनेवालों का ध्यान इधर गया। तब से इतिहासकार प्रायः इसका हवाला देते आ रहे हैं और वे इसके आधार पर औरंगज़ेब पर आरोप लगाते हैं कि उसने हिन्दू मन्दिरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि इस फ़रमान का वास्तविक महत्व उनकी निगाहों से आझल रह जाता है। यह लिखित फ़रमान औरंगज़ेब ने 15 जुमादुल-अव्वल 1065 हि. (10 मार्च 1659 ई.) को बनारस के स्थानिय अधिकारी के नाम भेजा था जो एक ब्राहम्ण की शिकायत के सिलसिले में जारी किया गया था। वह ब्राहमण एक मन्दिर का महंत था और कुछ लोग उसे परेशान कर रहे थे। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘अबुल हसन को हमारी शाही उदारता का क़ायल रहते हुए यह जानना चाहिए कि हमारी स्वाभाविक दयालुता और प्राकृतिक न्याय के अनुसार हमारा सारा अनथक संघर्ष और न्यायप्रिय इरादों का उद्देश्य जन-कल्याण को बढ़ावा देना है और प्रत्येक उच्च एवं निम्न वर्गों के हालात को बेहतर बनाना है। अपने पवित्र कानून के अनुसार हमने फैसला किया है कि प्राचीन मन्दिरों को तबाह और बर्बाद नहीं किया जाएँ, अलबत्ता नए मन्दिर न बनए जाएँ। हमारे इस न्याय पर आधारित काल में हमारे प्रतिष्ठित एवं पवित्र दरबार में यह सूचना पहुंची है कि कुछ लोग बनारस शहर और उसके आस-पास के हिन्दू नागरिकों और मन्दिरों के ब्राहम्णों-पुरोहितों को परेशान कर रहे हैं तथा उनके मामलों में दख़ल दे रहे हैं, जबकि ये प्राचीन मन्दिर उन्हीं की देख-रेख में हैं। इसके अतिरिक्त वे चाहते हैं कि इन ब्राहम्णों को इनके पुराने पदों से हटा दें। यह दखलंदाज़ी इस समुदाय के लिए परेशानी का कारण है। इसलिए यह हमारा फ़रमान है कि हमारा शाही हुक्म पहुंचते ही तुम हिदायत जारी कर दो कि कोई भी व्यक्ति ग़ैर-कानूनी रूप से दखलंदाजी न करे और न उन स्थानों के ब्राहम्णों एवं अन्य हिन्दु नागरिकों को परेशान करे। ताकि पहले की तरह उनका क़ब्ज़ा बरक़रार रहे और पूरे मनोयोग से वे हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के लिए प्रार्थना करते रहें। इस हुक्म को तुरन्त लागू किया जाये।’’

इस फरमान से बिल्कुल स्पष्ट हैं कि औरंगज़ेब ने नए मन्दिरों के निर्माण के विरूद्ध कोई नया हुक्म जारी नहीं किया, बल्कि उसने केवल पहले से चली आ रही परम्परा का हवाला दिया और उस परम्परा की पाबन्दी पर ज़ोर दिया। पहले से मौजूद मन्दिरों को ध्वस्त करने का उसने कठोरता से विरोध किया। इस फ़रमान से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह हिन्दू प्रजा को सुख-शान्ति से जीवन व्यतीत करने का अवसर देने का इच्छुक था। यह अपने जैसा केवल एक ही फरमान नहीं है। बनारस में ही एक और फरमान मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि औरंगज़ेब वास्तव में चाहता था कि हिन्दू सुख-शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। यह फरमान इस प्रकार हैः ‘‘रामनगर (बनारस) के महाराजाधिराज राजा रामसिंह ने हमारे दरबार में अर्ज़ी पेश की हैं कि उनके पिता ने गंगा नदी के किनारे अपने धार्मिक गुरू भगवत गोसाईं के निवास के लिए एक मकान बनवाया था। अब कुछ लोग गोसाईं को परेशान कर रहे हैं। अतः यह शाही फ़रमान जारी किया जाता है कि इस फरमान के पहुंचते ही सभी वर्तमान एवं आने वाले अधिकारी इस बात का पूरा ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति गोसाईं को परेशान एवं डरा-धमका न सके, और न उनके मामलें में हस्तक्षेप करे, ताकि वे पूरे मनोयोग के साथ हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए प्रार्थना करते रहें। इस फरमान पर तुरं अमल गिया जाए।’’ (तीरीख-17 बबी उस्सानी 1091 हिजरी) जंगमबाड़ी मठ के महंत के पास मौजूद कुछ फरमानों से पता चलता है कि

औरंगज़ैब कभी यह सहन नहीं करता था कि उसकी प्रजा के अधिकार किसी प्रकार से भी छीने जाएँ, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। वह अपराधियों के साथ सख़्ती से पेश आता था। इन फरमानों में एक जंगम लोंगों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) की ओर से एक मुसलमान नागरिक के दरबार में लाया गया, जिस पर शाही हुक्म दिया गया कि बनारस सूबा इलाहाबाद के अफ़सरों को सूचित किया जाता है कि पुराना बनारस के नागरिकों अर्जुनमल और जंगमियों ने शिकायत की है कि बनारस के एक नागरिक नज़ीर बेग ने क़स्बा बनारस में उनकी पांच हवेलियों पर क़ब्जा कर लिया है। उन्हें हुक्म दिया जाता है कि यदि शिकायत सच्ची पाई जाए और जायदा की मिल्कियत का अधिकार प्रमानिण हो जाए तो नज़ीर बेग को उन हवेलियों में दाखि़ल न होने दया जाए, ताकि जंगमियों को भविष्य में अपनी शिकायत दूर करवाने के लिएए हमारे दरबार में ने आना पडे। इस फ़रमान पर 11 शाबान, 13 जुलूस (1672 ई.) की तारीख़ दर्ज है। इसी मठ के पास मौजूद एक-दूसरे फ़रमान में जिस पर पहली नबीउल-अव्वल 1078 हि. की तारीख दर्ज़ है, यह उल्लेख है कि ज़मीन का क़ब्ज़ा जंगमियों को दया गया। फ़रमान में है- ‘‘परगना हवेली बनारस के सभी वर्तमान और भावी जागीरदारों एवं करोडियों को सूचित किया जाता है कि शहंशाह के हुक्म से 178 बीघा ज़मीन जंगमियों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) को दी गई। पुराने अफसरों ने इसकी पुष्टि की थी और उस समय के परगना के मालिक की मुहर के साथ यह सबूत पेश किया है कि ज़मीन पर उन्हीं का हक़ है। अतः शहंशाह की जान के सदक़े के रूप में यह ज़मीन उन्हें दे दी गई। ख़रीफ की फसल के प्रारम्भ से ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा बहाल किया जाय और फिर किसीप्रकार की दखलंदाज़ी न होने दी जाए, ताकि जंगमी लोग(शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) उसकी आमदनी से अपने देख-रेख कर सकें।’’ इस फ़रमान से केवल यही ता नहीं चलता कि औरंगज़ेब स्वभाव से न्यायप्रिय था, बल्कि यह भी साफ़ नज़र आता है कि वह इस तरह की जायदादों के बंटवारे में हिन्दू धार्मिक सेवकों के साथ कोई भेदभाव नहीं बरता था। जंगमियों को 178 बीघा ज़मीन संभवतः स्वयं औरंगज़ेब ही ने प्रदान की थी, क्योंकि एक दूसरे फ़रमान (तिथि 5 रमज़ान, 1071 हि.) में इसका स्पष्टीकरण किया गया है कि यह ज़मीन मालगुज़ारी मुक्त है।

औरंगज़ेब ने एक दूसरे फरमान (1098 हि.) के द्वारा एक-दूसरी हिन्दू धार्मिक संस्था को भी जागीर प्रदान की। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘बनारस में गंगा नदी के किनारे बेनी-माधो घाट पर दो प्लाट खाली हैं एक मर्क़जी मस्जिद के किनारे रामजीवन गोसाईं के घर के सामने और दूसरा उससे पहले। ये प्लाट बैतुल-माल की मिल्कियत है। हमने यह प्लाट रामजीवन गोसाईं और उनके लड़के को ‘इनाम’ के रूप में प्रदान किया, ताकि उक्त प्लाटों पर बाहम्णें एवं फ़क़ीरों के लिए रिहायशी मकान बनाने के बाद वे खुदा की इबादत और हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए दूआ और प्रार्थना कने में लग जाएं। हमारे बेटों, वज़ीरों, अमीरों, उच्च पदाधिकारियों, दरोग़ा और वर्तमान एवं भावी कोतवालों के अनिवार्य है कि वे इस आदेश के पालन का ध्यान रखें और उक्त प्लाट, उपर्युक्त व्यक्ति और उसके वारिसों के क़ब्ज़े ही मे रहने दें और उनसे न कोई मालगुज़ारी या टैक्स लिया जसए और न उनसे हर साल नई सनद मांगी जाए।’’ लगता है औरंगज़ेब को अपनी प्रजा की धार्मिक भावनाओं के सम्मान का बहुत अधिक ध्यान रहता था।

हमारे पास औरंगज़ेब का एक फ़रमान (2 सफ़र, 9 जुलूस) है जो असम के शह गोहाटी के उमानन्द मन्दिर के पुजारी सुदामन ब्राहम्ण के नाम है। असम के हिन्दू राजाओं की ओर से इस मन्दिर और उसके पुजारी को ज़मीन का एक टुकड़ा और कुछ जंगलों की आमदनी जागीर के रूप में दी गई थी, ताकि भोग का खर्च पूरा किया जा सके और पुजारी की आजीविका चल सके। जब यह प्रांत औरंगजेब के शासन-क्षेत्र में आया, तो उसने तुरंत ही एक फरमान के द्वारा इस जागीर को यथावत रखने का आदेश दिया। हिन्दुओं और उनके धर्म के साथ औरंगज़ेब की सहिष्ण्ता और उदारता का एक और सबूत उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर के पुजारियों से मिलता है। यह शिवजी के प्रमुख मन्दिरों में से एक है, जहां दिन-रात दीप प्रज्वलित रहता है। इसके लिए काफ़ी दिनों से पतिदिन चार सेर घी वहां की सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाथा था और पुजारी कहते हैं कि यह सिलसिला मुगल काल में भी जारी रहा। औरंगजेब ने भी इस परम्परा का सम्मान किया। इस सिलसिले में पुजारियों के पास दुर्भाग्य से कोई फ़रमान तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु एक आदेश की नक़ल ज़रूर है जो औरंगज़ब के काल में शहज़ादा मुराद बख़्श की तरफ से जारी किया गया था। 5 शव्वाल 1061 हि. को यह आदेश शहंशाह की ओर से शहज़ादा ने मन्दिर के पुजारी देव नारायण के एक आवेदन पर जारी किया था। वास्तविकता की पुष्टि के बाद इस आदेश में कहा गया हैं कि मन्दिर के दीप के लिए चबूतरा कोतवाल के तहसीलदार चार सेर अकबरी घी प्रतिदिन के हिसाब से उपल्ब्ध कराएँ। इसकी नक़ल मूल आदेश के जारी होने के 93 साल बाद (1153 हिजरी) में मुहम्मद सअदुल्लाह ने पुनः जारी की। साधारण्तः इतिहासकार इसका बहुत उल्लेख करते हैं कि अहमदाबाद में नागर सेठ के बनवाए हुए चिन्तामणि मन्दिर को ध्वस्त किया गया, परन्तु इस वास्तविकता पर पर्दा डाल देते हैं कि उसी औरंगज़ेब ने उसी नागर सेठ के बनवाए हुए शत्रुन्जया और आबू मन्दिरों को काफ़ी बड़ी जागीरें प्रदान कीं।

मन्दिर तोड़ने की घट्ना

निःसंदेह इतिहास से यह प्रमाण्ति होता हैं कि औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर और गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद को ढा देने का आदेश दिया था, परन्तु इसका कारण कुछ और ही था। विश्वनाथ मन्दिर के सिलसिले में घटनाक्रम यह बयान किया जाता है कि जब औरंगज़ेब बंगाल जाते हुए बनारस के पास से गुज़र रहा था, तो उसके काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं ने बादशाह से निवेदन किया कि वहा। क़ाफ़िला एक दिन ठहर जाए तो उनकी रानियां बनारस जा कर गंगा दनी में स्नान कर लेंगी और विश्वनाथ जी के मन्दिर में श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर आएँगी। औरंगज़ेब ने तुरंत ही यह निवेदन स्वीकार कर लिया और क़ाफिले के पडाव से बनारस तक पांच मील के रास्ते पर फ़ौजी पहरा बैठा दिया। रानियां पालकियों में सवार होकर गईं और स्नान एवं पूजा के बाद वापस आ गईं, परन्तु एक रानी (कच्छ की महारानी) वापस नहीं आई, तो उनकी बडी तलाश हुई, लेकिन पता नहीं चल सका। जब औरंगजै़ब को मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने फ़ौज के बड़े-बड़े अफ़सरों को तलाश के लिए भेजा। आखिर में उन अफ़सरों ने देखा कि गणेश की मूर्ति जो दीवार में जड़ी हुई है, हिलती है। उन्होंने मूर्ति हटवा कर देख तो तहखाने की सीढी मिली और गुमशुदा रानी उसी में पड़ी रो रही थी। उसकी इज़्ज़त भी लूटी गई थी और उसके आभूषण भी छीन लिए गए थे। यह तहखाना विश्वनाथ जी की मूर्ति के ठीक नीचे था। राजाओं ने इस हरकत पर अपनी नाराज़गी जताई और विरोघ प्रकट किया। चूंकि यह बहुत घिनौना अपराध था, इसलिए उन्होंने कड़ी से कड़ी कार्रवाई कने की मांग की। उनकी मांग पर औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र-स्थल को अपवित्र किया जा चुका है। अतः विश्नाथ जी की मूर्ति को कहीं और लेजा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाए और महंत को गिरफ्तार कर लिया जाए। डाक्टर पट्ठाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है। पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा. पी. एल. गुप्ता ने भी इस घटना की पुस्टि की है।

मस्जिद तोड़ने की घटना

गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद की घटना यह है कि वहां के राजा जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजते थे। कुछ ही वर्षों में यह रक़म करोड़ों की हो गई। तानाशाह न यह ख़ज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी। जब औरंज़ेब को इसका पता चला तो उसने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद गिरा दी जाए। अतः गड़ा हुआ खज़ाना निकाल कर उसे जन-कल्याण के कामों मकें ख़र्च किया गया। ये दोनों मिसालें यह साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि औरंगज़ेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्जिद में कोई फ़र्क़ नहीं समझता था। ‘‘दर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उन लोगों को दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और मनगढंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए हैं।

साभार पुस्तक ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय, मधुर संदेश संगम, अबुल फज़्ल इन्कलेव, दिल्ली-2

AURANGZEB



Aurangzeb mughal itihas me sabse badnam shasak hain jiska kaaran ye bataya jata hai kiwo kattar muslim thy . . . 
lekin jab ham dhyan se itihas padh te hain to pate hain Aurangzeb r.a. ne Sati pratha ko apne shasan me band karwa ke anginat maasoom aurato ki jaan bachai thi is ke saath Aurangzeb r.a. ne apne rajya me Daas wyapar pe rok lagaai . 
Bazaro me Jua khelne aur khule aam Sharab peene pe rok laga dithi ,
 apne rajya me Veshyavritti pe rok laga di thi, 
rajya me bhang ki kheti pe rok laga di thi aur ek sath 80 taxes ko maaf kr dia tha jinme hinduo pe laga teerth yatra tax bhi maaf kr dia tha . 
aurangzeb r.a. ne apne darbar me pury mughal period ke mukable sabse zyada 33% hindu man sabdar rakhe thy aur unhone Jyotish sangeet etc.mahal ke faltu kharco pe rok laga di thin . . . . . 
ye tathya bharat sarkar dwara manyata prapt kitabo me milte hain 
jaise Dr. Laeek ahamad ki likhi kitab 
MUGAL KALEEN BHARAT, page: 177-178
aur Harishchandra Varma ki likhi kitab 
MADHYA KALEEN BHARAT, page: 147 
isi tarah NCERT ki 12th class ke liye kitab 
 BHARTEEY ITIHAS KE KUCH VISHAY-2 me 
Bhatki Sufi Paramparaye Page: 149 pe likha hai
''shasako ne bhumi anudan aur kar ki Chhoot hindu, jain, parsi, isaai aur yahoodi dharm Sansthaao ko di sath he ghair muslim dharmik netaao ke prati shraddha bhav wyakt kiya ! aise anudaan anek mugal badshah, jinme Aurangzeb shamil thy dwara diye gye''
Page 150 srot 6 me

Aurangzeb r.a. dwara ek jogi ko likhe huyepatr ka ansh dia hai

Wo Patra is tarah h

''Buland maQaam Shivmurat guru anand nathjiyo/ Janab e muhtaram, aman aur khushi se hamesha shri shiv jiyo ki panah me rahen. Poshak keliye vastr aur 25 rupay ki raqam jo bhent ke taur par bheji gai aap tak pahochegi. janab e muhtaram aap hame likh sakte hain jab bhi hamari madad ki zarurat ho''
Page 234 
''Yuddh ke dauran agar mandir nasht ho jate thy tobaad me unki marammat ke liye anudaan jaari kiye jate thy aisa hame Shahjahan aur Aurangzeb ke shasan kaal me pata chalta hai''
in facts se pata chal jata ki kattar muslim Kise kahte h



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www.aljamaat.org (Jamatul Muslimeen)
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www.irf.net (Dr. Zakir Naik)
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KYA NABI SALLALLAHU ALAIHI WASALLAM NE ALLAH KO DEKHA HAI??

Bismillahirrahmanirraheem




KYA NABI SALLALLAHU ALAIHI WASALLAM NE ALLAH KO DEKHA HAI??
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Yeh Janne se pahle ke Aima ka raajeh mauqif kya hai in baaon par ghaur farmalein:


1) KYA NABI KAREEM SAW NE ME'RAAJ WAALI RAAT ALLAH RABBUL IZZAT KO DEKHA?


2) KYA NABI KAREEM SAW NE HAAL-E-KHAWAAB ME ALLAH TA'AL KO DEKHA?


3) KYA DUNIYA ME ALLAH TA'ALA KO DEKHA JAA SAKTA HAI?


1)


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ME'RAAJ WAALI RAAT DEEDAAR-E-ILAAHI:
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 Me'raaj waali raat nabi kareem saw ne duniya ki zaahiri aankh se deedar-e-ilaahi nahi kiya,
jaisa ke

a)
Sayyadna Abu Zar Giffari rz bayan karte hain:

"main ne Rasul Allah sallallahu alaihi wasallam se sawal kiya:
Kya aapne ne apne Rabb ko dekha?

farmaya: wo to Noor hai, main ise kaise dekh sakta hun.

(Sahih Muslim: 1/99, H: 178)

sahih Muslim ki is riwayat me RAAYAT NOORA ke alfaaz bhi hain jinka matlab bayan karte he 


IMAM IBN HIBBAN ra. farmate hain:

iska matlab hai Aap saw ne Apne Rabb ko nahi dekha balke makhlookh (farishto) ke nooron me se ek buland noor dekha tha.

(sahih IBn Hibban, tahet-e-hadees: 5)


b)

Sayyada Aaisha rz farmatin hain:


JO AAPKO YE BAYAN KARE KE MOHAMMED SALLALLAHU ALAIHI WASALLAM NE APNE RABB KO DEKHA THA WO JHOOT BOLTA HAI:

(sahihh Bukhari: 2/720, H. 4855, Sahih Muslim: 1/98, H: 177)


sayadna IBN Abbas Rz ka qaul hai:


"yaqeenan Allah ta'ala ko nabi kareem sallallahu alaihi wasallam ne dekha hai:


(sunan tirmizi: 3280, wa qala hasan, sunnat ibn abi asim: 1/19, tafsire tabri 27/52, kitabut tawheed ibn khuzaima: 1/490 wa sanad hasan)


  IS QAUL KE BAARE ME Shaikhul islam ibn taimiya raz farmate hain:

darasal ye ta'arruz nahi hai kyunki Sayadna ibn Abbas rz ne ye nahi farmaya ke nabi kareem saw ne Allah ko apne Sar waali do aankho se dekha hai"

(aijtema jiyoshul islamiya ibn qayyim: page 48)


aur farmate hain:

koi daleel aisi nahi jiska ye taqaza ho ke Aap saw ne Allah ta'ala ko Apni Aankho se dekha hai: na ye sahaba kiram me se kisi se saabit hai na kitab wa sunnat me koi aisi daleel hai. iske bar-aks sahihh nusus iski nafi me ziyadah waaze hai.

(majmual fatawa ibn taimiya: 6/509,510)


HAAFIZ IBN KASIR RA FARMATE HIAN;


Nabi kareem saw ke Allah ko dekhne ke baare me jo kuch manqool hai wo na nabi kareem saw se saabi hai na sahaba kiram rz se:

(al fusul fi sirat rasul: p. 268)


nez farmate hain:


Sayadna IBn Abbas rz se ek riwaya hai ke unhone Nabi Kareem saw ke Allah ko dekhne ke lafz istemaal farmaye hain: unki ye baad dil ke saath dekhne se muqayyid ki jaayegi.
jis ne aankho ke saath dekhne wali riwayat bayan ki hai us ne munkir baat ki hai kyunki is baare me sahaba kiram se kuch saabit nahi:

(tafsir ibn kaseer: 6/23-24)



IMAM IBN ABI IZZA HANFI RA. is baare me farmate hian:


sahih baat ye hai ke nabi kareem saw ne Allah ta'ala ko Apne dil ke saath dekha tha, sar ki aankh se nahi dekha:


farmane-e-baare ta'ala "MA KAZABA ALFUADU MA RAA'YA (NAJM 53:11) DIL NE JO DEKHA THA USE JHUTLAYA NAHI,
WALAQAD RAAHU NAZLATAN UKHRA 

(NAJM 53: 13)

(YAQINAN AAP SAW NE USE DUSRI DAFA DEKH THA) KE baare me nabi saw se sahih saabit hai ke yahan jis cheez ko dekhne ka zikr hai wo Jibrail as. hain: Aap saw ne JIbrail as ko 2 dafa unki soorat me dekha hai jis me wo paida kiye gaiye the:

(sharah aqeeda tahawiya ibn abil izz hanfi: 1/275)


aur likhte hain:


lekin nabi kareem saw ke Allah ta'ala ko Apne sar ki Aankh k saath dekhne ke bare me ki dalil nahi milti, Albatta Aap saw ke Allah ta'ala ko na dekhne ke baare me dalaail milte hain"


((sharah aqeeda tahawiya ibn abil izz hanfi: 1/222)


IBN HAJAR RA. LIKHTE HIAN:


sayadna ibn Abbas rz se kuch riwayat mutlaq aai hain aur kuch muqayyid.
zaruri  hai ke mutlaq riwayat ko muqayyid riwayat par mahmul kiya jayee...
yun sayadna ibn abbas rz ke asbaat aur sayada aaisha rz ki nafi me is tarah tatbeeq mumkin hai ke sayada aaisha rz ki nafi aankhon ki ru'yat par mahmul kiya jaye aur sayadna ibn abbas rz ke asbaat ko dil ki ru'yat apr mahmul kiya jaaye.
Phir dil ke dekhne se dekhna hi muraat hai na ke sirf janna, kyunkii nabi kareem saw hamesha Allah ko jaante the. jinhone nabi akram saw ke liye dil ke saath Allah ko dekhne ka asbaat kiya hai unki muraat ye hai ke jis tarah Aam logo ki Aankh me ru'yat paida ki jaati hai aise hi ap saw ke dil mu ru'yat paida ki gai.


aqli taur par ru'yat ke liye koi khaas shart nahi agarcha aadat ye hai ke ye aankh me hi paida hoti hai.

(fatahul baari ibn hajar: 8/484)

======
FAAIDA:
======

farmane baari

surah najm53: 10)

pas wo (nabi kareem saw) do kamaano ke darmiyani fasle par tha ya is se bhi qareeb. phir usne uske bande ki taraf wo wahi ki jo usne wahi ki thi(
se muraat jibrail as hain.

jaise ke hafiz ibn kaseer ra likhte hain:

yani jab jibrail as MOhammmed saw par zameen ki taraf utre to itne qareeb hue ke JIbrail as aur Mohammed saw ke darmiyan do kamano ke darmiyan faasle jitna fasla bhi na raha.

(tafseer ibn kaseer 6/22, ba tahqiq abdur razaq mahdi)

aur likhte hain:

isi tarah ye ayat (53:9) (yani yahan jibrail as muraad hai)

aur hum ne jo kaha ke Mohammed saw ke bahot ziyadah qareeb hone waale jibrail as hi the to ye Ummul mominin Sayada aaisha rz , Sayadna Abdullah ibn Masood rz, sayadna Abu zar rz aur Sayadna Abu hurairah rz ka farman hai"

(tafseer ibn kaseer: 6/32)


farman baari ta'ala hai:

(surah najm53: ayat 9-10) ki tafsir me sayadna Abdullah ibn masood raz farmate hain:

"Is se muraad JIbrail as hain"

(sahih Bukhari: 2/720: H: 4856, Sahih Muslim: 1/97: H: 174)


HAASIL KALAAM YE HAI KE sayda Aisha rz ne jis ru'yat ki nafi ki hai, iska talluk duniya ki zahiri aankh se hai, yani unke mutabiq wo shaks jhoota hai jo ye da'awa karta hai ke rasul saw ne Allah ko apni zahiri aankho se dekha hai:

sayadna ibn abbas rz jis dekhne ko saabit karte hain wo dil se dekhna hai,

is tarah don aqwaal me tatbeeq ho jati hai. jo log zahiri aankh se rasul saw ka Allah ko dekhna saabit karte hain unka qaul marjoo hai.

======

FAIDA:
======

farmane baari ta'ala (surah najm 53 ayat 10) ke baare me

Hafiz ibn kaseer ra farmate hain:
iska maani ye hai ke jibrail as ne Allah ke bande Mohammed saw ki taraf jo wahi karna thi kardi ya Allah ne Apne bande Mohammed saw ki
taraf jo wahi karna thi, jibrail ke waaste se kardi, ye dono maani durust hain:

(tafseer ibn kaseer: 6/23)

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AL-HAASIL:
========


NABI AKRAM SALLALLAHU ALAIHI WASALLAM NE ME'RAJ WALI RAAT ALLAH KO NAHI DEKHA. ISKE KHILAF KUCH SAABIT NAHI.


2)
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NABI KAREEM SAW KA HAALAT-E-NEEND ME DEEDAR-E-ILAAHI:
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aima ahle sunnat is baat ke qail hain nabi akram saw ne haalat-e-neend me Allah ta'ala ko dekha hai.


sayadna mu'aaz bin Jabal rz se riwayat hai ke ek din Namaz-e-subh ke baad rasul saw ne apne khawaab bayan karte hue farmaya:


"Achanak Maine Apne Rabb ko haseen tareen soorat me dekha'

(masnad imam ahmed 5/243 sanad sahih)

shaikhul islam ibn taimiya rh is bare me farmate hain:

ye dekhna me'raj wale waqiye me nahi balke madina munawwarah me tha jab aap saw subah ki namaz me aane se late ho gaye the.

phir aap saw ne sahaba kiram rz ko is raat Allah ko neend me dekhne ke baare me bataya.
isi bina par imam ahmed rh ne farmaya ke Rasul saw ne Zarur Allah ko dekha hai kyunki ambiya-e-kiram ke khawaab yaqinan wahih hote hian:

(zaadul maad ibn qayyim 3/37)


aur farmate hain:


malum hua ke ye waqiya madina munawarah me neend ke dauran ka hai, meraj ki raat bedaari ka nahi.


(majmual fatawa 3/387, 388)


3)
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KISI NE DUNIYA ME ALLAH TA'ALA KO NAHI DEKHA:
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 kisi ne Duniya me Allah ta'ala ko nahi dekha:

ye ahle sunnat wal jamat ka ittefaaqi wa ijmaai aqeeda hai.

jaisa ke IMAM USMAN BIN SAYEED DARMI RA. farmate hain:


"tamam aima kiram yahi kahte hain ke Allah ko duniya me na dekha gaya na duniya me ise dekha ja sake ga.


(al radd alal jahmiya lil darmi: 124)

shaikhul islam ibn taimiya r. farmate hain:


Musalmano ka is baat par ittefaaq hai ke nabi akram saw ne zameen me apni aankho se Allah ko nahi dekha:


(majmual fatawa ibn taimiya: 3/388)


 Imam ibn Abil Izz hanfi ra likhte hain:


Ummate muslima is baat par ittefaaq kiya hai ke duniya me koi apni aankho se Allah ko nahi dekh sakta.

(sharah aqeeda tahawiyah ibn abi izz hanfi 1/222)


Rasul saw ka farman hai:

"jaan lo ke tum me se koi bhi marne se pahle Allah ko nahi dekh sakta:

(sahih Muslim: 2/399: H. 169)


sayadna abu imama bahli rz bayan karte hain ke rasul saw ne hame dajjal ke bare me khutba diya aur farmaya:

"wo kahega ke main tumhara rabb hun, halanki tum maut se pahle apne rab ko nahi dekh sakte:

(as sunnat ibn abi aasim: 400 sanad hasan, ...)


=======

AL-HAASIL:
=======  

NABI KAREEM SALLALLAHU ALAIHI WASALLAM NE ME'RAJ WAALI raat ALLAH KO NAHI DEKHA.

ALBATTA MADEENA MUNAWARRAH ME HAALAT-E-NEEND ME ALLAH KA DEEDAR KIYA HAI:

AUR YE SHARF RASUL SAW KO HAASIL HAI:
ALHAMDULILLH

MAKKAH MADINA WALO SE AAL-E-DEOBAND KE SHADEED IKHTILAAF

Bismillahirrahmanirraheem




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MAKKAH MADINA WALO SE AAL-E-DEOBAND KE SHADEED IKHTILAAF
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1. makke aur madeene walo k nazdeek sirf Allah hi mushkil kusha hai.
AAL-E-DEOBAND K NAZDEK ALI RAZ. MUSHKIL KUSHA HIA. (DEKHIYE KULLIYAT-E-IMDADIYA P. 103)


2.


1. makke aur madeene walo k nazdeek wahdatul wajood ka aqeedah shirk hai
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK wahdatul wajood ka aqeedah haq aur sahih hai (dekhiye kulliyat-e-imdadiya page 218)

3.


makke aur madeene walo k nazdeek qabr parasti shirk hai.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK qabr ki mitti se shifa hoti hai. (dekhiye HIKAYAT-E-AULIYA, HIKAYAT NO. 366)


4.
makke aur madeene walo k nazdeek KASHTI KINARE LAGANE WALA SIRF ALLAH HAI.
AAL-E-DEOBAND KAHTE HAIN K "MERI KASHTI KINARE PAR LAGAO YA RASUL ALLAH" (DEKHIYE KULLIYAT-E-IMDADIYA PAGE 205)


5.
makke aur madeene walo k nazdeek Rasul saw Rahmatul aalameen hain.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK HAJI IMDADULLAH RAHMATUL AALAMEEN HAI. (DEKHIYE QASASUL AKAABIR PAGE 69)


6. makke aur madeene walo k nazdeek BANDA KABHI KHUDA NAHI BAN SAKTA.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK (BANDA BAAZ AUQAAT) ZAHIR ME BANDA AUR BAATIN ME KHUDA HO JATA HAI. (DEKHIYE KULLIYAT-E-IMDADIYA PAGE 35-36)


7.
makke aur madeene walo k nazdeek HAQ WAHI HAI JO QURAN WA HADIS ME HAI.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK HAQ WAHI HAI JO RASHID AHMED GANGUHI KI ZUBAAN SE NIKALTA HAI. (DEKHIYE TAZKIRATUR RASHEED J. 2, PAGE 17)


8.
makke aur madeene walo k nazdeek AAJIZON KI DASTAGIRI AUR BE-KASO KI MADAD KARNE WALA SIRF ALLAH HAI.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK AAJIZON KI DASTAGIRI AUR BE-KASO KI MADAD KARNE WALE RASUL SAW HAI. (DEKHIYE FAZAIL-E-DAROOD PAGE 137)


9.

makke aur madeene walo k nazdeek AULIYA K PAAS ILM-E-GHAIB NAHI HOTA.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK AULIYA K PAAS ILM-E-GHAIB HOTA HAI. (DEKHIYE SHUMAIL-E-IMDADIYA PAGE 61)


10.

makke aur madeene walo k nazdeek SHAIKH MOHAMMED BIN ABDUL WABAB IMAM, MUJADDID, MUHAHID AUR NEK AALIM THE.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK MOHAMMED BIN ABDUL WAHAB ZAALIM WA BAAGHI KHUNKHAWAAR SHAKS THA!!!!! (DEKHIYE AS-SHAHABUS SAAQIB. PAGE 42)


11.

makke aur madeene walo k nazdeek MOHAMMED BIN ABDUL WAHAB RA. AHLE SUNNAT ME SE THE.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK MOHAMMED BIN ABDUL WAHAB KHAARJIYON ME SE THE (DEKHIYE ALMAHIND PAGE 46)


12.

makke aur madeene walo k nazdeek GHAUS-E-AAZAM SIRF EK ALLAH HAI.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK SHAIKH ABDUL QADIR JEELANI RA. GHAUS-E-AAZAM HAIN. (DEKHIYE ASHRAM ALI THANWI KI KITAAB: TALEEM-E-DEEN PAGE 18)


13.

makke aur madeene walo k nazdeek RASUL SAW WAFAAT PAAKAR DUNIYA SE CHALE GAYE HAIN.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK RASUL SAW DEENWI TAUR PAR ZINDAAH HAIN. 

(DEKHIYE AAB-E-HAYAAT PAGE 27, 36)


14. makke aur madeene walo k nazdeek ALLAH TA'ALA APNE ARSH PAR HAI.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK ALLAH TA'ALA HAR JAGAH MAUJOOD HAI. (DEKHIYE MALFOOZAT FAQIYAL UMMAT J. 2, PAGE 14)


15.

makke aur madeene walo k nazdeek ALLAH TA'ALA KI SIFAAT MASLAN HAATH WAGAIRA PAR TASHBEEH AUR TAWEEL K BAGAIR IMAAN LANA ZAROORI HAI.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK HAATH SE MURAAD QUDRAT HAI. (DEKHIYE 
ALMUHAND PAGE 48)


16.

makke aur madeene walo k nazdeek SOOFIYON KI KITAAB DALAILUL KHAIRAT QABIL-E-AITEMAD NAHI HAI.

AAL-E-DEOBAND K NAZDIK DALAILUL KHAIRAT KA PADHNA BAAIS-E-SAWAAB HAI. 

(DEKHIYE ALMUHIND PAGE 41-42)


17.

Makke aur madeene walo k nazdeek ALLAH SE DUA ME AMBIYA WA AULIYA KA WASILA JAAYAZ NAHI.

AAL-E-DEOBAND K NAZDIK ALLAH SE DUA ME AMBIYA WA AULIYA KA WASILA JAAYAZ HAI (DEKHIYE ALMUHAND PAGE 37)


18.

Makke aur madeene walo k nazdeek RASUL SAW AAKHRI NABI HAI.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK :AGAR BILFARZ BAAD ZAMANA NABWI SAW KOI NABI PAIDA HUA TO PHIR BHI KHATIMIYAT MUHAMMADI ME KUCH FARQ NAHI AAYEGA" (DEKHIYE TAHZEERUN NAAS PAGE 85)


19.

Makke aur madeene walo k nazdeek MAZHAB BANAKAR DEOBANDI KAHELANA JAYAZ NAHI HAI.
AAL-E-DEOBAND K NAZDIK DEOBANDI KAHELANA JAAYAZ BALKE BAAIS-E-FAKHR HAI.


20.


makke aur madeene walE GARMIYON ME BHI ZOHAR KI NAMAZ AWWAL WAQT ME PADHTE HAIN.

AAL-E-DEOBAND GARMIYA HO YA SARDI ZOHAR KI NAMAZ HAMESHA BAHOT LET KARKE PADHTE HAIN.


21.

Makke aur madeene walE ASAR KI NAMAZ EK MISL PAR PADHTE HAI.
AAL-E-DEOBAND ASAR KI NAMAZ DO MISL K BAAD PADHTE HAIN.


22.

Makke aur madeene walE MAGHRIB KI AZAN K BAAD 2 RAKATO KA WAQT DETE HAIN.
AAL-E-DEOBAND MAGHRIB KI AZAN K BAAD 2 RAKATO KA WAQT KABHI NAHI DETE.


23.

Makke aur madeene walE akahri iqaamat kahete hain.
AAL-E-DEOBAND dohari iqaamat kahete hain.


24.

Makke aur madeene walE k nazdeek kabaa (baitullah) har waqt apni jagah par raheta hai.
AAL-E-DEOBAND k nazdeek kabaa (baitullah) baaz buzurgo ki ziyaarat ko jaata hai. (dekhiye fazaail-e-Hajj Page 111)


25.

Makke aur madeene walE subha ki namaaz andhere me padhte hain.
AAL-E-DEOBAND subha ki namaz andhere me nahi padhte balike roshni me padhte hain.


26.

Makke aur madeene walE farz namaaz k baad ijtemaai dua nahi karte
AAL-E-DEOBAND farz namaaz k baad hamesha ijtemaai dua karte hain.


27.

Makke aur madeene walE rafayadain karte hain.
AAL-E-DEOBAND rafayadain k sakht khilaaf hain.


28.

Makke aur madeene walE namaz janaza me surah fatihaa padhte hain.
AAL-E-DEOBAND namaz janaza me surah fatiha nahi padhte.


29.
Makke aur madeene walE aamin biljaher (zor se aamin) kahete hain.
AAL-E-DEOBAND aamin biljahere se sakht chid aur hasad rakhte hue mana karte hain.


30.

Makke aur madeene walE ek rakat witr padhte hain.
AAL-E-DEOBAND ek witr k sakht mukhaalif hain.


31.

Makke aur madeene walE iqaamat hone k baad sunnatein nahi padhte
AAL-E-DEOBAND iqaamat hone k baad bhi sunnatein padhte hain.


32.

Makke aur madeene walE ek salaam se 3 witr nahi padhte
AAL-E-DEOBAND ek salaam se maghrib ki tarah mushabehat karte hue 3 witr hamesha padhte hain.


33.

Makke aur madeene walE namaz janaza me namaz wala darood padhte hain.
AAL-E-DEOBAND rahmat witrahamat wala khudsakhta darood padhte hain.


34.

Makke aur madeene walE witr me duaa ki tarah haath utha kar qunoot padhte hain.
AAL-E-DEOBAND qunoot witr me dua ki tarah haath utha kar kabhi qunoot nahi padhte.


35.

Makke aur madeene walo k nazdeek pakhana najis aur paleed hai.
AAL-E-DEOBAND k peer k nazdeek mohid k liye pakhana khana waajib hai. (dekhiye IMDADUL MUSHTAAQ PAGE 101, FIQRA 224)


36.

Makke aur madeene walE AURTO KO MASJID ME NAMAZ PADHNE SE BILKUL BANA NAHI KARTE
AAL-E-DEOBAND K NAZDEEK AURTO K LIYE MASJID ME NAMAZ PADHNA MAMNOO HAI.


37.

Makke aur madeene walE JUMA K SIRF 2 KHUTBE DETE HAIN.
AAL-E-DEOBAND JUMA KE 3 KHUTBE DETE HAIN. EK URDU ME AUR 2 ARABI ME.


38.

Makke aur madeene walE NAMAZ JUMA HAMESHA AWWAL WAQT ME PADHTE HAIN.
AAL-E-DEOBAND NAMAZ HAMAESHA LATE KARKE PADHTE HAIN.


39.

Makke aur madeene walE HALAT-E-KHUTBA ME 2 RAKATE PADHTE HAIN.
AAL-E-DEOBAND HALAT-E-KHUTBA ME 2 RAKATE PADHNE K SAKHT MUKHAALIF HAIN.

IS SE MALOOM HUWA K MAKKA AUR MADINA WALO SE AAL-E-DEOBAND (DEOBANDIYO) K SHADEED IKHTELAFAAT HAIN AUR SAUDI K ULEMA KO DEOBANDI "ULEMA" APNA BHAI NAHI MAANTE.

SARFARAZ KHAN SAFDAR DEOBANDI NE LIKHA 

"MUFTI SAHAB KO MALOOM HONA CHAHIYE K DEOBANDI BADE PAKKE HANAFI HAIN AUR NAJADI ULEMA BAAZ TO HAMBALI HAIN AUR BAAZ GHAIR MUKALLID HAIN WO IS MASLAK K AITEBAAR SE HAMARE BHAI KAISE HUWE?" 

(BAAB-E-JANNAT PAGE 194)


AUR LIKHA SARFARAZ KHAN NE:


"BILA SHAK HARMAIN SHARIFAIN KI NUSOOS SE BADI FAZEELAT AUR RUTBA SAABIT HAI. LEKIN SHARAI DALAIL SIRF 4 HAIN JINKA ZIKR HO CUKHA. AGAR HARMAIN SHARIFAIN ME ACHCHE KAAM HOO TO NURUN NURALA, WARNA HARGIZ HUJJAT NAHI HAIN"


(RAAH-E-SUNNAT PAGE 167),,,,,,,,,



#UmairSalafiAlHindi
#IslamicLeaks

BUKHARI WA MUSLIM SHAREEF MUQALLIDEEN KI NAZAR MEIN

Bismillahirrahmanirraheem




BUKHARI WA MUSLIM SHAREEF MUQALLIDEEN KI NAZAR MEIN
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1)

 BADRUDDIN AINEE HANAFI LIKHTE HAIN:


"SHARQ WA GHARB ke ulema ka ispar ITTEFAAQ hai ke KITAABULLAH k baad BUKHARI wa MUSLIM se ziyada sahih koi kitaab nahi hai, AUR JAMHOOR NE SAHIH BUKHARI ki sehat ko SAHIH MUSLIM PAR TARJEEH DI HAI"


(Muqaddima Umdatul Qaari Sharah Sahih Bukhari: 1/24)


- BADRUDDIN AINEE HAN MAZEED FARMATE HAIN:


"Yani Salaf wa Khalaf ke Ulema Sahih Bukhari ki Maqbooliyat par Muttafiq hain" 

(Umdatul Qaari: 1/20)


2)

 MULLA ALI QAARI HANAFI LIKHTE HAIN:


"ulema ka is baat par ittefaaq hai ke saheyeen ko talqi bilqabool haasil hai aur taleef karda kutub me SE bukhari wa muslim sab se ziyadah sahih hain. 

(Marqaatul Mufaateeh: 1/598)


-mazeed likhte hain:

"wo quran majeed ke baad sahih tareen kitab hai" 

(Marqaatul Mufaateeh: 1/59)


3)

SAYYAD SHAREEF JARJANI HANAFI LIKHTE HAIN:


"Yani Sirf Ahadees Saheeya par mushtamil Imam Bukhari ne sab se pahle kitab tasneef ki, phir Muslim inke nakhse qadam par chale aur ye dono ditaabein KITABULLAH ke baad sabse ziyadah saheeh hain." 

(Risala Usool Hadees lijarjaani: 1)


4)


 MOHAMMED MUEEN SINDHI HANAFI LIKHTE HAIN:


"AASMAN KE CHHAT KE NEECHE SIRF SEHAT ME IN DONO (BUKHARI WA MUSLIM) ka ashal kutub hona aur QURAN AZEEZ K baad in dono ka ashal kutub hona EK IJMAAI BAAT HAI" 

(DARASAAT LILBEEB: 284)


5)

SHABBIR AHMED USMANI HANAFI LIKHTE HAIN:


"YANI sab se pahle sirf ahaadees saheeya par jis ne koi tasneef tayar ki, wo imam bukhari hain, phir inke nakshe qadam ki pairwi imam muslim ra. ne ki aur ye dono kitabe musannifaat hadees me sabse ziyada saheeh kitabe hain"


(fATEHUL MULHAM SHAHRAH MUSLIM: 54)


6)

 ABUBAKAR GHAAZEEPURI HANAFI LIKHTE HAIN:


"Imam bukhari ra. ka yahi bahot bada karnama hai ke inho ne lakhon hadiso me se muntakhib majmuaa tayar kardiya hai, jisko ummat me talqee wa qabool aam hasil hua, aur ahaadees ki maujooda kitabo me se ummat ne isko sab se saheeh kitab qarar diya" 

(ARMAGHAN-E-HAQ: 291)


Note: talqee bilqabool k bare me AMEEN OKARWI HANAFI LIKHTE HAIN:

"jis hadees ko talqee bilqabool naseeb ho, wo agar quran ke bhi khilaaf ho to amal jaayaz hai" 


(majmuaa rasaail okarwi: 1/227)


Note: ye ahnaaf ka qayda hai k hadis quran ke khilaf bhi ho, halanki koi sahih hadis quran ke khilaf nahi hotsakti, kyunki inme mutabiqat zarur payi jati hai.


7)


SARFARAZ SAFDAR HANAFI LIKHTE HIAN:


"SAHEEYEEN (BUKHARI WA MUSLIM) ME JO RAWAAYAT HAIN WO SAHEEH HAIN"


(KHAZAAIN-E-SUNAN: 2/111)


8)


 ALLAMA ZAILEE HANAFI LIKHTE HAIN:


"HUFFAZ HADIS KE NAZDIK SAB SE AALA DARJE KI HADIS WO HAI, JIKI RIWAYAT PAR BUKHARI WA MUSLIM KA ITTEFAQ HO"


(NASBUR RAAYA: 1/421)


9)


 AHMED ALI SAHARANPURI HANAFI LIKHTE HAIN:
ULEMA KA ITTEFAAQ HAI KE LIKHI HUI KITABO ME SE SAB SE ZIYADA SAHIH BUKHARI WA MUSLIM HAIN, AUR JAMHOOR KA ISPAR ITTEFAAQ HAI KE MUSLIM SE BUKHARI ZIYADAH SAHIH HAI AUR ISME FAAYDE BHI ZIYADA HAIN"


(MUQADDIMA SAHIH BUKHARI: 1/4)


-MAZEED LIKHTE HIAN:


"Ummat ka sahih bukhari wa sahih muslim har do kitabo ki sahet par qataee ijmaa hochuka hai" (MUQADDIMA SAHIH BUKHARI: 1/4)


10) MOHAMMED ISMAAIL SANBHALI HANAFI LIKHTE HIAN:


"DUNIYA JAANTI HAI KE SAHIH BUKHARI AISI BENAZEER KITAB HAI K KUTUB HADIS ME ASHAL KUTUB MAANI GAYI HAI AUR ISPAR DUNIYA KA ITTEFAAQ HAI"


(Taqleed aima aur muqaam abu hanifa (ra): 152)


11)


SHAH WALIULLAH DEHLWI HANAFI LIKHTE HAIN:


"SAHIH BUKHARI WA MUSLIM KE bare me tamam muhaddisin muttafiq hain ke inme tamam ki tamam MUTTASIL AUR MARFOO AHADEES YAQINAN SAHIH HAIN AUR YE DONO KITABE APNE MUSANNIFIN TAK BIT TAWATIR PAHONCHI HAI, JO INKI AZMAT NA KARO WO BID'ATI HAI, MUSALMANO KI RAAH KE KHILAF CHALTA HAI, AGAR TUJHE WAAZEH HAQ CHAHIYE TO MUSANNIF IBN ABI SHEBA, TAHAWI AUR MASNAD KHWARZAMI KA SAHEEYEEN SE MAWAZINA KAR, TO MASHRIQ AUR MAGHRIB KI DOORI PAYEGA"


(Hujjatullah albalagha 1/376, 387)


-ISI HAQEEQAT KA AITERAAF KARTE HUW SHAH WALIULLAH DELHWI MAZEED LIKHTE HAIN:


"LEKIN IMAM BUKHARI WA MUSLIM SIRF WAHI HADISE NAQAL KARTE HAIN, JISPAR INHONE APNE ASAATIZA SE BAHES WA MUNAZIRA KIYA HOTA HAI AUR JISKE BAYAN KARNE AUR TASHEE PAR INSAB KA IJMAA HOCHUKA HOTA HAI"


(Hujjatullah albalagha 1/387)


12)


 MOHAMMED ASHFAAQ AHMED HANAFI LIKHTE HAIN:



"Muhaddisin ka ijmaa hai k saheeyeen me jitni marfoo muttasil ahadees hain, wo qatai taur par saheeh hain"


(Sharah Tirmizi Tayyibus Sanadi: 1/2)


13)


 HAAFIZ IBN SALAAH RA. LIKHTE HAIN:


"sAHIH BUKHARI WA SAHIH MUSLIM ME MUTTASIL SANAD KE SAATH RASUL SAW KI JITNI AHADIS HAIN, WO BILA ISHKAAL SAARI KI SAARI YAQINAN SAHIH HAIN"


(Muqaddima Ibn Salaah: 12)


14)


ABDUL HAI LAKHNAWI HANAFI LIKHTE HAIN:


"bukhari wa muslim dono kitabein quran majeed ke baad sahih tareen kitabe hain, ispar mashriq wa maqhrib ke tamam muhaddisin ka ittefaq hai ke indono kitabo ki koi nazeer nahi" 

(Zafarul amaani: 58)


-mazeed farmate hain:


"Aisa shaksh jo rawat sahih muslim me shuba (doubt) kare k muslim wa aaqil the ya nahi? wo shaksh ya to mahez jaahil hai, fanoone hadis isma rijaal se mutlaqan waqfiyat nahi rakhta hai. ya muaand wa gumrah hai, aima hadees ne is amar par ittefaq kiya hai ke kitabullah ke baad sahih bukhari phir sahih muslim" 

(Majmuatal fatawa: 1/304)


15)


MOHAMMED AASHIQ ILAAHI HANAFI "SAWAANEH UMRI MOHAMMED ZAKARIYA HANAFI" ME LIKHTE HAIN:


"JAMHOOR KA MASLAK YE HAI K SAB SE MUQADDAM BUKHARI HAI, BALKE TAQREEBAN SAARE HI MUSALMANO KA ISPAR ITTEFAAQ HAI" 

(SAWAANEH UMRI MOHAMMED ZAKARIYA: 350)


16)


 QAAZI ABDUR RAHMAN HANAFI FAAZIL DARUL ULOOM DEOBAND LIKHTE HAIN:


"Sahih bukhari shareef kitabullah ke baad ashal kutub ke maghaz khitab se sarfaraaz hui, jisme fakhar maujoodat ramatillilaalam khatamal nabeeyyin saw. ki buland paya ahaadees ko amiril momineen filhadis abu abdullah mohammed bin ismaail bukhari ne murattab farmaya"


(fazul baari urdu sharah sahih bukhari: 1)



17)


Mohammed zakariya hanafi likhte hain:


"saari riwaayat bukhari sahih hain, agar kisi ne kalaam kiya hai to ghalat kiya hai" 

(taqreer bukhari shareef: 140)


18)


qAARI MOHAMMED TAYYAB HANAFI LIKHTE HAIN:


"iMAM bukhari ra ki jalalat shaan aur jalalate qadar se kaun musalman na waqib hai? 

ahle ilm me kaun hai jo nawaqif hai? inki tasneef ya taleef sahih bukhari ki azmat wa jalalat poori UMMAT PAR WAAZEH AHI, UMMAT NE IJMAAYI TAUR PAR TALQI BILQUBOOL HAI AUR "ASHAL KUTUB BAAD KITABULLAH" hone ki shahadat di hai, iske muallif bhi jalilulqadr, kitab bhi jalilul qadr aur kitab ka jo mauzoo hai wo HADEES HAI, YANI KALAAM NABI SAW WA AFAAL WA AQWAAL WA TAQREERAT. ISLIYE MAUZOO BHI MUBARAK, MUSANNIF BHI MUBARAK, TASNEEF BHI MUBARAK, HAQ TALA HUM SAB KO BHI MUBARAK BANAYDE KE INKE SILSILE SE HUM SAMNE AA RAHE HAIN"


(KHUTBAT HAKEEMUL ISLAAM: 5/456)



19)


RASHEED AHMED GANHUHI HANAFI


RASHID AHMED GANHUHI JINKE MUTALLIQ AASHIK ILAHI MEERTHI LIKHTE HAINKE BARHAA AAPKO APNI ZABAN FAIZ TARJUMAN SE YE KAHTE SUNA GAYA K 

"Sun lo haq wahi hai, jo rasheed ahmed ki zaban se nikalta hai, aur main baqasam kaheta hoon k kuch nahi hoon, magar is zamane me hidayat wa nijaat mauqquf hai meri itteba par" 

(Tazkiratur Rasheed: 2/17)

 -inhi k baare me ashraf ali thanwi hanafi likhte hian:


"Rasheed ahmed ganguhi farmate hain k 

"HAQ TALA NE MUJH SE WADA FARMAYA HAI K MERI ZUBAN SE GHALAT NAHI NIKALWAYEGA" 

(ARWAAHE SALASA: 310)


YAHI RASHEED AHMED GANGUHI LIKHTE HAIN: 

"BUKHARI ASHAL KUTUB HAI"

(TALEEFAAT RASHEEDIYA: 337)

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