नया एक रिश्ता पैदा क्यूं करें हम।
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करें हम।खामोशी से अदा हो रस्म दूरी।
कोई हंगामा बरपा क्यूं करे हम।
ये काफी है के हम दुश्मन नहीं हैं।
वफादारी का दावा क्यूं करें हम।
वफ़ा , इखलास , कुर्बानी , मुहब्बत।
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूं करें हम।
हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम।
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम।
किया था अहद जब लम्हों में हमने।
तो सारी उम्र एफा क्यूं करें हम।
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी।
तो फिर दुनिया की परवाह क्यूं करें हम।
ये बस्ती है मुसलमानों की बस्ती।
यहां कार मसीहा क्यूं करें हम।