Wednesday, July 25, 2018

OONT KA PESHAB AUR HINDU BHAI KE SAWAAL

हमारे मित्र विकी कुमार भाई ने हमें एक स्टेटस मे टैग किया जिसमें उन्होंने प्यारे नबी सल्ल. की छवि को धूमिल करने के लिए नबी करीम सल्ल. पर ये झूठा आरोप लगाया कि माज़अल्लाह नबी सल्ल. ऊंट का पेशाब पिया करते थे ( पूरी तरह बेसलेस और झूठा आरोप )
 

फिर विकी भाई ने लिखा था कि नबी स. ऊंट के पेशाब से बीमार मुसलमानों का इलाज करते थे . और जो भी व्यक्ति मुसलमान बनने के लिए रसूल के पास आता था वे उसे ऊंट की पेशाब जरूर पिलाते थे रसूल फरमाते थे कि ऊंटों की पेशाब मुफीद होती है और कारगर दवा होने के कारन मैं भी इसका इस्तेमाल करता हूँ . (अस्तगफार)
 

सबूत के लिए भाई ने
बुखारी -(वुजू )जिल्द 1 किताब 4 हदीस 234
बुखारी -जिल्द 8 किताब 82 हदीस 794
और बुखारी -जिल्द 7 किताब 71 हदीस 590 के सन्दर्भ बताए थे ॥
 

 भाई को हमारा जवाब :- विकी भाई, आपने रेफ्रेन्स तो सही दिए पर हदीस के शब्दों को अच्छी तरह से बदल डाला है, और आपने ये झूठ बोलकर और मूर्खता दिखाई कि नबी सल्ल. माज़अल्लाह ऊंट का पेशाब पीते थे और नव मुस्लिमों को इसे पीने की आज्ञा देते थे, .. 

धिक्कार है आपके बेबुनियाद झूठ पर भाई,

 सभी जीवों का मल मूत्र और प्रतिबंधित किए हुए जीवों का मांस आदि कुछ ऐसी चीजें है जिन्हें आम हालत मे किसी भी मुस्लिम के लिए खाना हराम है ॥
 

किन्तु पवित्र कुरान मे हराम चीजों का उल्लेख करने के साथ ये भी इजाज़त दे दी गई है, कि यदि कोई इंसान ये हराम चीजे खाने पर मजबूर हो जाए, और उसका मकसद अल्लाह की नाफरमानी करना न हो तो वो हराम चीज खा सकता है, मसलन उसकी जान को खतरा हो और इसके अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प न हो कि किसी हराम की गई चीज के खाने पर जान बच सकती हो तो मुस्लिम अपनी जान बचाने के उद्देश्य से वो अपवित्र चीज खा सकता है !
 

जिन हदीस के सन्दर्भ आपने दिए उनमें लिखा है कि कुछ लोग जो बेहद बीमार और कमजोर थे वे नबी सल्ल. के पास आए और नबी सल्ल. से सहारा मांगा, आप सल्ल. ने उन बीमार लोगों को ऊंटनी का दूध और ऊंटनी का ही पेशाब दवा के तौर पर पीने की सलाह दी, थोड़े ही दिनों मे वो लोग इस इलाज से खूब तन्दुरूस्त हो गए थे ॥
आज अमेरिका के कैंसर अनुसंधान केन्द्र समेत अनेक मेडिकल रिसर्च सेंटर्ज़ का कहना है कि ऊंट का पेशाब कैंसर जैसी कई खतरनाक बीमारियों का इलाज करने मे कारगर है .... तो समझ मे आता है कि सम्भवत: उन बीमार बद्दुओं को भी कैंसर जैसा ही कुछ जानलेवा रोग हो गया था, जो नबी सल्ल. के सुझाए इलाज से ठीक हो गया ।
 

और भाई ये तो जगजाना तथ्य है कि दुनिया के लोग चाहे कितने पवित्र और शाकाहारी बनते हों, पर जब अपनी जान पर बनती है, तो अपने डाक्टर की हर सलाह मानकर गन्दी से गन्दी चीज और किसी भी जानवर का रक्त और मांस खा लेते हैं,
 

ये तो आप जानते ही होंगे कि एण्टी बायोटिक दवाएं जानवरों के रक्त और मांस से बनती हैं, जिन्हे बीमार पड़ने पर आप बिना पथ्य अपथ्य का विचार किए खा जाते हो...
 

बहरहाल भाई बीमारी के इलाज के लिए ऊंटनी का पेशाब दवा के तौर पर इस्तेमाल करने की बात पर आपको ऐतराज नहीं करना चाहिए, क्योंकि आपके आयुर्वेद मे तो बीमारी के इलाज के लिए व्यक्ति को स्वयं अपना ही मूत्र पीने का इलाज सुझाया गया है, और दवा के लिये अनेक गन्दे पशुओं का मांस खाना भी सुझाया गया है ।
वो भी छोड़िए, आप जो ह्रष्ट पुष्ट होकर भी अकारण ही प्रसाद के नाम पर रोज गाय का पेशाब पीते हैं, कम से कम आपको तो किसी की जान बचाने के लिए ऊंटनी का पेशाब देने की चिकित्सकीय सलाह इतनी अनोखी नहीं लगनी चाहिए थी ॥
 

( सुनता हूँ कि अरब मे इस हदीस के कारण ऊंट के पेशाब पर अनुसंधान किए गए और उसे कैंसर रोधी पाया गया .... वैसे मेरा विचार है कि लोग केवल अपनी आध्यात्मिक पुस्तकों के प्रेम मे डूबकर ऐसे काम न करें जिनका खुद उनके और उनके समाज के गले से उतरना मुश्किल हो ... ऊंट का मूत्र कैंसररोधी होता है ये बात वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित हो गई, इतना काफी है ... लेकिन मैं ये ठीक नहीं समझता कि कैंसर के इलाज के तौर पर मुस्लिम ऊंट का मूत्र पीना शुरू कर दें जबकि कैंसर के इलाज के स्वच्छ और प्रभावी तरीके मौजूद हों ...
 

हां यदि ऊंट के मूत्र से बेहतर कैंसर का और कोई उपचार सिद्ध न हो तब इस विधि को अपनाने मे भी कोई हिचक नहीं होनी चाहिए, और ऐसी स्थिति मे केवल ऊंट का मूत्र ही क्यों, इनसान की जान बचाने के आखिरी और एकमात्र उपाय के रूप मे दूसरी हराम चीजों से भी सहायता ली जा सकती है, यही हदीस का वास्तविक मन्तव्य भी है ॥ )...... 


written by  Zia Imtiyaz

EK JANWAR SAARE GHAR WALON KI TARAF SE KAFI HAI CHAHE GHARWALON KI TADAD KITNI HI KYUN NA HO

Ek Janwar Sare Ghar Walo Ki Taraf Se Kafi Hai Chahe Gharwalo Ki Tadad Ketni Hi Kyu Na Ho:


Hazrat Ataa Ibn Yasaar Bayan Karte Hai Ke Maine Sawal Kiya Hazrat Abu Ayyub Ansari Raziallahuanhu Se Rasoolullah Sallallahualahiwasallama Ke Daur Me Qurbani Kaise Di Jati Thi? To Hazrat Abu Ayyub Ansari Raziallahuanhu Ne Farmaya:-

 Rasoolullah Sallallahualahiwasallam Ki Daur Me Ek Shaks Ek Bakri(Goat) Ki Qurbani Karta Tha Apne Aur Apne Sare Ghar Walo Ki Taraf Se Aur Wo Khud Bhi Khate Aur Dusro Ko Bhi Khilate Yaha Tak Ke Logo Ne Fakr Karna Suru Kar Diya Aur Jo Haal Hai Wo Tum Dekh Rahe Jo...
 

(Jami Tirmizi, Abwab Ul Azaayi, Babu Maja'a Innasshatal Wahidata Tujziyu An Ahlil Baiti)


Imam Tirmizi Ne Is Hadees Ko Hasan Sahih Karar Diya Hai,
Imam Shaukani Ne Bhi Is Hadees Ko Sahih Karar Diya Hai
(Nayl Ul Awtar, Kitab Ul Uzhiyata, Safa-137)
 

Imam Ibn Naqqash Ne Bhi Is Hadees Ko Sahih Karar Diya Hai.
 
(Al Ihkaam Ul Ahkam,Safa-254)


Ann Abdullahubnu Hishaami Qaula Kaana Rasoolullahi Sallallahualaihiwasallama Yuzhiya Bisshaati Wahidati Ann Jamiyi Ahlihi...


Hazrat Abdullah Ibn Hishaam Raziallahuanhu Farmate Hai Ke Rasoolullah Sallallahualaihiwasallam Ek Bakri Ki Qurbani Karte The Apne Sare Gharwalo Ki Taraf Se...
 
(Mustadrak Imam Hakim, Kitab Ul Uzhiya, Hadees-7555, Safa-255)


Imam Hakim Ne Is Hadees Ko Sahih Karar Diya Hai Aur
Imam Hafiz Zahabi Me Unki Muafiqat Ki Hai,Aur
Imam Hayshmi Ne Farmaya Ise Imam Tabrani Ne Apne Kabeer Me Riwayat Kiya Hai Aur Iske Rijaal Sahih Hai.
 

(Majma Uz Zawaid, Kitab Ul Uzhiya, Safa-21)


In Dono Hadeeso Me Waze Dalil Maujud Hai Ke Ek Bakdi Yani Goat Us Shaks Ki Taraf Se Jo Qurbani Kar Raha Hai Aur Uske Sare Gharwalo Ki Taraf Se Kafi Hai Chahe Gharwalo Ki Tadad Ketni Hi Kyu Na Ho Aur Yahi Rasoolullah Sallallahualaihiwasallam Ki Aur Sare Sahaba Ekram Rizwanullahialahiajmain Ki Sunnat Haiaur Yahi Kehte Hai Imaam Malik Aur Humare Ashab Imam Ahmad Ibn Hambal Aur Imam Ishaq Ibn Rahway Aur Imam Auzayi Aur Imam Lais Ibn Sa'ad Aur Imam Hakim Aur Imam Tirmizi Aur Imam Hayshmi Aur Imam Ibn Quiyim Aur Imam Shaukani Aur Imam Ibn Naqqash Ke Ek Janwar Us Shak Ki Taraf Se Jo Qurbani Kar Raha Hai Aur Uske Sare Gharwalo Ki Taraf Se Kafi Hai...
 

(Jami Tirmizi Abwab Ul Uzhiya)Taufat Ul Ahwazi Sharh Jami Ut Tirmizi, Jild-5, Safa-72)


Imam Abdullah Farmate Hai Ke Maine Apne Walid Yani Imam Ahmad Ibn Hambal Se Pucha Ke 1ek Bakdi(Goat) Sare Gharwalo Ki Taraf Se Qurbani Karne Ke Bare Me?To Unhone Yani Imam Ahmad Ibn Hambal Ne Farmaya,La Bayis Qad Zabiyun Nabiyi Sallallahualaihiwasallama Kabshaini Qurban Ahaduhuma Faqaula Bismillahi Haza Ann Muhammadu Wa Ahlil Baitihi...


Koi Harz Nahi Isme Balke Nabi E Kareem Sallallahualaihiwasallam Ne Do Mendha Zibah Kiya Aur Usme Se 1ek Janwar Apne Zibah Kiya Aur Farmaya Suru Allah Ke Naam Se Ye Muhammad Alahisalam Ki Taraf Se Hai Aur Unke Sare Gharwalo Ki Taraf Se...

(Masail Ul Imam Ahmad Ibn Hambal Lil Abdullah,Safa-262,)
(Masail Imam Ahmad Ibn Hambal Lil Ishaq,Safa-130)


Imam Ibn Quiyim Jauziya Ne Farmaya Rasoolullah Sallallahualahiwasallam Ki Sunnat To Ye Hai Ke 1ek Bakdi(Goat) Ek Shaks Aur Uski Sare Gharwalo Ki Taraf Se Kafi Hai Chahe Unki Tadad Ketni Hi Kyu Na Ho...
 

(Zaad Ul Maad, Jild-1, Safa-579)


Imam Shaukani Ne Farmaya,Wa Haqqu Innaha Tajzi Ann Ahlil Baiti Wa Inkaanu Maayitu Nafsi Aww Aksaru...


Haqq To Ye Hai Ke Ek Bakdi Kafi Hai Sare Gharwalo Ki Taraf Se Chahe Unki Tadad 100 Hi Kyu Na Ho Ya Inse Bhi Zyada....
 

(Nayl Ul Awtar, Kitab Ul Uzhiya, Safa-137)


Alhamdullah Etne Sare Dalil Ke Baad Aur Behes Aur Aur Koi Shak O Shuba Ki Koi Gunjais Hi Baki Nahi Rehta...


Rasool Allah Sallallahu Alaihi Wasallam Ne Farmaya:
 

"Main Tumhare Darmiyan 2 Cheezen Chod Kar Ja Raha Hoon (Quran Aur Sunnat Sahih Hadis) Jab Tak Tum Inhe Mazbuti Se Pakde Rahoge Hargiz Gumrah Nahi Hoge
 

(Hadis Al Hakim, Mo'atta Imam Malik)


#UmairSalafiAlHindi
#IslamicLeaks

मुसलमान एक धार्मिक समूह है, मुसलमानों को कोई राजनैतिक एजेंडा है ही नहीं,




आप राजनैतिक लड़ाई के लिए देश के मुसलमानों को एक साथ इकट्ठा होते हुए नहीं देख पायेंगे, ऐसा क्यों है ?
क्योंकि मुसलमान राजनैतिक समूह हैं ही नहीं , मुसलमान एक धार्मिक समूह है, मुसलमानों को कोई राजनैतिक एजेंडा है ही नहीं,
 

 मुसलमानों का बस धार्मिक एजेंडा है\ वह भी व्यक्तिगत,सामूहिक एजेंडा है ही नहीं, जबकि इसके बरक्स हिन्दू एक राजनैतिक समूह है, इस समुदाय का एक राजनैतिक एजेंडा है, इसका एक सुगठित राजनैतिक प्रशिक्षण का कार्य्रक्रम है,


हिन्दू धर्म नहीं है, हिन्दू एक राजनैतिक शब्द है, पांच सौ साल पहले अकबर के समय में तुलसीदास जब रामचरित मानस लिख रहे थे, तब तक भी उन्होंने अपने लिए हिन्दू शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था,
क्योंकि तब तक भी कोई हिन्दू धर्म नहीं था, कोई भी हिन्दू दुसरे हिन्दू जैसा नहीं है, कोई हिन्दू मूर्ती पूजा करता है कोई नहीं करता, कोई मांस खाता है, कोई नहीं खाता, 


आदिवासी ईश्वर को नहीं मानता,  गाय खाता है, मूर्ती पूजा नहीं करता,  लेकिन हिन्दुओं की रक्षा के राजनैतिक मुद्दे पर भाजपा को वोट देता है, अंग्रेजों नें भारत में अपने खिलाफ उठ रही आवाज़ को दबाने के लिए
एक तरफ मुस्लिम लीग को बढ़ावा दिया दूसरी तरफ हिन्दू नाम की नई राजनैतिक चेतना को उकसावा दिया,
आज़ादी के बाद पाकिस्तान बनने के साथ मुस्लिम लीग की राजनीति भी भारत में समाप्त हो गयी,
लेकिन संघ की अगुवाई में ज़मींदार, साहूकार,  जागीरदारों ने अपनी अमीरी और ताकत को बरकरार रखने के लिए अपना राजनैतिक एजेंडा बनाया, लेकिन ये लोग सत्ता में नहीं आ पा रहे थे क्योंकि यह मात्र चार प्रतिशत थे,
संघ के नतृत्व में इन लोगों नें लम्बे समय तक मेहनत किया, राम जन्मभूमि मुद्दे पर संघ ने दलितों,  आदिवासियों, ओबीसी को हिन्दू अस्मिता के साथ सफलतापूर्वक जोड़ा संघ नें करोड़ों दलितों, आदिवासियों और ओबीसी के मन में यह बिठा दिया की देखो यह बाहर से आये मुसलमान हमारे राम जी का मन्दिर नहीं बनने दे रहे हैं,
इस तरह जो दलित पास के आदिवासी को नहीं जानता था,  या जो ओबीसी हमेशा दलित से नफरत करता था
वह सब हिंदुत्व के छाते के नीचे आ गए,


मुसलमानों का हव्वा खड़ा करके अलग अलग समुदायों को इकट्ठा करना और असली राजनैतिक मुद्दों को भुला देना संघ की राजनीति की खासियत रही, संघ इसके सहारे सत्ता हासिल करने में पूरी तरह सफल हो गया,
दूसरी तरफ भारत का मुसलमान बिना किसी राजनैतिक एजेंडे के चलता रहा, 



भारत के मुसलमानों को लगता था कि  आजादी की लड़ाई के बाद हमारे नाम पर पाकिस्तान मांग लिया गया
और गांधी जी की हत्या भी हमारे कारण हो गयी है, इसलिए हमारे समुदाय को तो किसी बात पर मांग करने का कोई हक बचा ही नहीं है, हांलाकि न तो बंटवारे के लिए और ना ही गांधी की हत्या के लिए मुसलमान किसी भी तरह से कसूरवार ठहराए जा सकते थे, भारत के बंटवारे की नींव सावरकर की हिन्दू महासभा और हेडगवार के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा रखी गयी,


यहाँ तक कि मुस्लिम लीग की राजनीति भी हिन्दुओं की मुखालफत करना नहीं था, जबकि हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का शुरुआत से ही मुख्य एजेंडा मुसलमानों, ईसाईयों और कम्युनिस्टों की मुखालफत करने का तय किया गया था,


हिन्दू मह्सभा और संघ की पूरी राजनीति यह थी कि  भारत के लोगों को मुसलमानों और ईसाईयों का डर दिखाया जाय और मजदूरों किसानों और दलितों की बराबरी वाली राजनीति मांग को समाप्त किया जाय,
ताकि पुराने ज़मींदार, साहूकार और जागीरदार अपनी पुरानी अमीरी और ताकतवर हैसियत आजादी के बाद भी बरकरार रख सकें, अपनी राजनीति को जारी रखने के लिए संघ आज भी यही नफरत भारत के नौजवानों के दिमागों में नियमित रूप से डालता है,


भारत के मुसलमान आज भी किसी राजनैतिक एजेंडे के बिना भारत की मुख्यधारा की राजनीति में जुड़ने की कोशिश करते हैं, ध्यान दीजिये भारत के मुसलमान किसी भी साम्प्रदायिक दल को वोट नहीं देते,
क्योंकि मुसलमानों का कोई राजनैतिक एजेंडा नहीं है,
 

इसलिए आप मुसलमानों को राजनैतिक मुद्दों पर इकट्ठा होते हुए नहीं देख पाते, इसलिए JNU  में नजीब नाम के लड़के को  जब संघ से जुड़े संगठन ने पीटा और गायब कर दिया तो उसकी लड़ाई धर्मनिरपेक्ष ताकतों नें लड़ी,
नजीब के लिए कोई मुसलमानों की भीड़ नहीं उमड़ पड़ी,
 

 हम मानते हैं कि भारत की राजनीति का एजेंडा समानता और न्याय होना चाहिए,
लेकिन संघी राजनीति इन्ही दो शब्दों से खौफ खाती है, इसका उपाय यही है कि बराबरी और इन्साफ के लिए
देश भर में जो अलग अलग आन्दोलन चल रहे हैं,  जैसे छात्रों का आन्दोलन, महिलाओं का आन्दोलन,
मजदूरों का आन्दोलन, किसानों का आन्दोलन,  दलितों का आन्दोलन, आदिवासियों का आन्दोलन,
उन सब के बीच संपर्क बने और वे मिलकर  इस नफरत की राजनीती को खत्म करके
बराबरी और न्याय की राजनीति से युवाओं को जोड़ दें। 

Himanshu Kumar