Saturday, July 31, 2021

मदीना का बाज़ार था

 



मदीना का बाज़ार था , गर्मी की तेज़ी इतनी ज़्यादा थी के लोग निढाल थे, एक ताजिर अपने साथ एक गुलाम को लिए परेशान खड़ा था , गुलाम जो अभी बच्चा ही था वह भी धूप में खड़ा पसीना पसीना हो रहा था ,


ताजिर का सारा माल अच्छे दामों में बिक गया था बस ये गुलाम ही बाकी था जिसे खरीदने में कोई भी दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था,

ताजिर सोच रहा था के इस गुलाम को खरीद कर शायद उसने घाटे का सौदा किया है, उसने तो सोचा था के अच्छा मुनाफा मिलेगा लेकिन यहां तो असल लागत मिलना भी मुश्किल हो रहा था , उसने सोच लिया था के अब अगर ये गुलाम पूरी कीमत पर भी बिका तो वह उसे फौरन बेच देगा ,

मदीना की एक लड़की की उस गुलाम पर नज़र पड़ी तो उसने ताज़िर से पूछा के ये गुलाम कितने का बेचोगे ,

"ताजिर ने कहा मैंने इतने का लिया है और इतने का ही दे दूंगा "

उस लड़की ने बच्चे पर तरस खाते हुए उसे खरीद लिया ताजिर ने भी खुदा का शुक्र अदा किया और वापस की राह ली,

मक्का से अबू हुजैफा आए तो उन्हें भी इस लड़की का किस्सा मालूम हुआ , लड़की की रहमदिली से मुतास्सिर होकर उन्होंने उसके लिए निकाह का पैगाम भेजा जो कुबूल कर लिया गया,

यूं वापसी पर वह लड़की जिसका नाम शाबीता बिंत याअर था ,उनकी बीवी बनकर उनके साथ थी और वह गुलाम भी मालकिन के साथ मक्का पहुंच गया,

अबू हुजैफा मक्का आकर अपने पुराने दोस्त उस्मान बिन अफ्फान से मिले तो उन्हे कुछ बदला हुआ पाया और उनके रवैए में सर्द मोहरी महसूस की, उन्होंने अपने दोस्त से पूछा ," उस्मान ये सर्द मोहरी क्यों ??"

तो उस्मान बिन अफ़फान ने जवाब दिया ," मैंने इस्लाम कुबूल कर लिया है और तुम अभी तक मुसलमान नहीं हुए हो तो अब हमारी दोस्ती कैसे चल सकती है"

अबू हुजैफा ने कहा," तो फिर मुझे भी मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम के पास ले चलो और उस इस्लाम में दाखिल करदो जिसे तुम कुबूल कर चुके हो "

चुनांचे हज़रत उस्मान ने उन्हे मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम की खिदमत में पेश किया और वह कालिमा पढ़कर दायरा ए इस्लाम में दाखिल हो गए, घर आकर उन्होने अपनी बीवी और गुलाम को अपने मुसलमान होने का बताया तो उन दोनों ने भी कलमा पढ़ लिया ,

हज़रत अबू हुजैफा ने इस गुलाम से कहा के ," चुंके तुम भी मुसलमान हो गए हो इसलिए मैं अब गुलाम नहीं रख सकता लिहाजा मेरी तरफ से अब तुम आजाद हो"

गुलाम ने कहा," आका ! मेरा अब इस दुनियां में आप दोनों के सिवा कोई नहीं है , आपने मुझे आजाद कर दिया तो मैं कहां जाऊंगा "

हज़रत अबू हुजैफा ने उस गुलाम को अपना बेटा बना लिया और उसे अपने पास ही रख लिया ,

गुलाम ने कुरआन पाक सीखना शुरू कर दिया और कुछ ही दिनों में बहुत सा कुरआन याद कर लिया , और वह जब कुरआन पढ़ते तो बहुत खूबसूरत लहज़े में पढ़ते,

हिजरत के वक्त नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम से पहले जिन सहाबा ने मदीना की तरफ हिजरत की उनमें हज़रत उमर के साथ हजरत अबू हुजैफा और उनका ये लेपालक बेटा भी था

मदीना पहुंच कर जब नमाज़ के लिए इमाम मुकर्रर करने का वक्त आया तो इस गुलाम की खूबसूरत तिलावत और सबसे ज्यादा कुरआन हिफ्ज़ होने की वजह से उन्हें इमाम चुन लिया गया, और उनकी इमामत में हज़रत उमर बिन खत्ताब जैसे जलीलुल कद्र सहाबी भी नमाज़ अदा करते थे,

मदीना के यहूदियों ने जब उन्हे इमामत करवाते देखा तो हैरान हो गए के ये वही गुलाम है जिसे कोई खरीदने के लिए तैयार नहीं था , आज देखो कितनी इज्जत मिली के मुसलमानो का इमाम बना हुआ है,

अल्लाह ताला ने उसे खुशगुलु इस कद्र बनाया था के जब आयात ए कुरआनी तिलावत फरमाते तो लोगों पर एक महवियत तारी हो जाती और राहगीर ठिठक का सुनने लगते ,

एक बार उम्मुल मोमिनिन हज़रत आयशा को नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम के पास हाजिर होने में देर हुई, आप मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम ने तौकफ की वजह पूछी तो बोलीं के एक कारी तिलावत कर रहा था , उसके सुनने में देर हो गई और उसकी तिलावत की तारीफ इस कद्र की के नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम खुद चादर संभाले हुए बाहर तशरीफ ले आए, देखा तो वह बैठे तिलावत कर रहें हैं,

नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम ने खुश होकर फरमाया," अल्लाह पाक का शुक्र है के उसने तुम्हारे जैसे शक्श को मेरी उम्मत में बनाया"

क्या आप जानते हैं वो खुशकिस्मत सहाबी कौन थे ??

उनका नाम हज़रत सालिम था , जो सालिम मोली अबू हुजैफा के नाम से मशहूर थे, उन्होंने जंग मौता में जाम ए शहादत नोश किया ,

अल्लाह की करोड़हा रहमतें हों उन पर

(किताब: सीरत नबावियाह (इब्न हिशाम), तबाकात कुबरा (इब्न साद)

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks

Friday, July 30, 2021

किसी ने मुहब्बत दी,

 



अस सालामुन अलैकुम!!


किसी ने मुहब्बत दी,
किसी ने धोका,
किसी ने हाथ थाम लिया ,
किसी ने बीच राह में छोड़ दिया,
किसी ने मेरी अच्छाइयों के लंबे पुल बांध दिए,
किसी ने मेरी जात को सिर्फ मैला किया,
किसी ने साथ चलने की हज़ार वजूहात मांगी,
कोई बगैर कुछ पूछे साथ चल दिया ,

मेरे किरदार पर सिर्फ उन्ही लोगों ने उंगली उठाई जिनका खुद का किरदार सवालिया निशान था, दूसरे के बारे में वही गुमान होता है जैसे बंदा खुद होता है,

किसी ने उल्फत भरे अल्फ़ाज़ बरसा दिए मेरी ज़िंदगी में,
हर आने वाले ने अपने अपने ज़र्फ के मुताबिक मुझे कई बातें सिखाई मगर एक बाते जो मुझे सबने सिखाई वह ये के ,

" अल्लाह के सिवा कोई अपना नहीं और मैं आज जिंदगी के उस मकाम पर हूं जहां मेरा यकीन है के , वाकई अल्लाह के सिवा कोई अपना नहीं, लोग सिर्फ तोड़ने वाले होते हैं, मुझे थामने वाला सिर्फ और सिर्फ मेरा अल्लाह मौजूद है, उस अल्लाह के सिवा कुछ याद रखने के लायक नहीं "

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks

Thursday, July 29, 2021

माह ए शाबान

 



माह ए शाबान


जिन दो रातों की फजीलत खास तौर से बयान की जाती है और उसमे सही और गलत की तमीज नहीं की जाती उनमें से एक शाबान की 15वी रात है जिसे आम तौर पर शब ए बरात कहा जाता है,

ये सही है के ये रात जिस महीने में आती है उसमे नबी ए करीम मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम रमजान को छोड़कर बाकी सब महीनों की बनिस्बत ज्यादा रोजे रखते थे,

और नबी ए करीम मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ये फरमाया करते थे के , " इस महीने में नेक अमाल ऊपर उठाए जाते हैं और मुझे ये बात पसंद है के मेरे अमाल रोजे की हालत में उठाए जाएं"

जो हुरमत वाले महीने कहलाते हैं और जिनमे जंग वा जदाल और खून करना हराम हो जाता है, तमाम मुफस्सिरीन वा मुहाद्दिसीन वा उलेमा का इत्तेफाक है के ये चार महीने जुल कादा, जुल हिज्जाह, मुहर्रम , और रजब के महीने हैं, शाबान को किसी मुफस्सिर ने इन चार महीनों में शुमार नहीं किया ,

इस पूरे महीने में नबी ए करीम मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने जिस इबादत का खास तौर कर एहतेमाम किया वह रोजा है, और इसका एहतमाम पूरे महीने किया , किसी एक दिन के साथ उसको खास नहीं किया , और ना ही इस महीने के किसी एक दिन के रोजे की कोई फजीलत बयान की,

शब ए बारात

जहां तक शाबान की 15वी रात का ताल्लुक है तो इसके बारे में नबी ए करीम मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद सही सनद के साथ रिवायत किया गया है, " अल्लाह ताला शाबान की 15वी रात को अपनी पूरी मखलूक की तरफ ( बा नज़र ए रहमत) देखता है, फिर मुशरिक और कीना करने वालों के सिवा सारी मखलूक की बख्शिश कर देता है "

(तिबरानी, इब्न हिब्बान, बैहेकी)

यही वो हदीस है जो शाबान 15वी रात की फजीलत में सही सनद के साथ रिवायत की गई है, इसके इलावा जितनी हदीस आम तौर पर बयान की जाती हैं, और जिन्हें अखबारात और महफिलों की ज़ीनत बनाया जाता है वह सब की सब सनादन इंतेहाई कमज़ोर बल्कि मनगडंत हैं,

और नबी ए करीम मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम की शरियत ऐसी खुराफात से पाक है, लिहाजा उलेमा ए सु के लिए ये ज़रूरी है के वह ऐसी रिवायत को बयान करने और उनकी नश्र वा ईशाअत से परहेज़ करें जो सनद के ऐतबार से साबित ना हो,

यकीनी तौर पर ये हदीस ए नवाबी की बहुत बड़ी खिदमत होगी, वह अगर किसी हदीस को बयान करने से पहले इसकी सनद के मुतल्लिक तहकीक कर लें, वरना नबी ए करीम मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद हमेेशा याद रखना चाहिए के ," जिसने जान बूझकर मेरी तरफ ऐसी बात मंसूब की जो मैने नहीं कही, उसे अपना ठिकाना जहन्नम में बना लेना चाहिए ,

शब ए बरात की निस्बत से जो कमजोर और मनगडंत हादिसे आम तौर पर बयान की जाती हैं उनमें से चंद एक ये हैं,

1 - शाबान मेरा महीना है और रमज़ान अल्लाह का ,

2- शाबान की 15वी रात को अल्लाह इतने लोगों को आजाद करता है जितने के फलां बकरी के बाल हैं,

3- इस रात को 14 रकात अदा करने से 20 हज्जो और 20 साल के मकबूल रोजों का सबाब मिलता है,

4- इस रात में 100 रकात नाफिल नमाज़ पढ़ी जाएं और हर रकात में सूराह इखलास पढ़ी जाएं और पढ़ने वाले के एक साल के गुनाह नहीं लिखे जाते ,

5- हसन बसरी का ये कौल के उन्होंने 30 सहाबा किराम से ये सुना के नबी ए करीम मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया के ," जो सख्स इस रात को नमाज़ पढ़े , अल्लाह ताला उसकी तरफ 70 नजरें फरमाते हैं,"

और हर नज़र के साथ 70 हाजतें पूरी फरमाते हैं,

इसी किस्म की और भी हदीस बिला इत्तेफ़ाक जईफ़ और मनगडंत हैं, एम्मा किराम मसलन इमाम शौकानी, इब्न जावजी, इब्न हिब्बान, कुर्तुबी, इमाम सुयुती ने इन रिवायतों को नाकाबिल ए ऐतबार क़रार दिया है,

लिहाजा इन को बयान करने से परहेज़ करना चाहिए, तफसीलात के लिए फवाइद अल मजमुआ, मौजुआत अल कुबरा, तफसीर अल कुर्तूबी वगेरह देखी जा सकती है,

जारी...

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks

Wednesday, July 28, 2021

शब ए बरात को क्या करना चाहिए ??

 



शब ए बरात को क्या करना चाहिए ??


अब सवाल ये है के जो हदीस शाबान की 15वी रात की फजीलत में सही सनद के साथ आई है, क्या उसमे किसी महफिल जमाने का जिक्र है या किसी खास इबादत का , या चरागा और आतिशबाजी करने का जिक्र उस हदीस में किया गया है ??

इसका सही जवाब हर वह सख्स दे सकता है जो खुराफात और मनगढ़त रिवायत पर यकीन करने के बजाए नबी ए करीम मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की साफ सुथरी शरियत पर ईमान रखता हो,

चुके इस हदीस का अगर गौर से मुताला किया जाए तो साफ तौर पर ये बात मालूम होती है के नबी ए करीम मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इसमें किसी महफिल का जिक्र नहीं किया है, ना किसी खास इबादत का , और ना चारागा की बात कही गई है, ना आतिशबाजी की,

बल्कि जिस चीज़ का जिक्र किया गया है वह है, " अल्लाह की आम मगफिरत, जिनका मुस्ताहिक नबी ए करीम मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने हर सख्स को करार दिया है जिसके अकीदे में शिर्क की मिलावट ना हो, और उसके दिल में किसी मुसलमान के मुतल्लिक कीना , कपट और बुग्ज़ ना हो "

तो उस रात को होने वाली आम बख्शीश का मुस्ताहिक बनने के लिए जरूरत इस बात की है के इन्सान अपना अकीदा दुरुस्त करे,

नफा और नुकसान का मालिक सिर्फ अल्लाह को समझे,

मुश्किल कुशा भी सिर्फ़ अल्लाह को तसव्वुर करे, फिर अल्लाह पर भरोसा करे,

अपनी तमाम उम्मीदों का मरकज तमाम दरबारों के बजाए सिर्फ अल्लाह को बनाए,

खौफ पीरों, बुजुर्गों के बजाए सिर्फ अल्लाह से ही हो,

नज़र वा नियाज अल्लाह के लिए माने, और अल्लाह को छोड़कर किसी दूसरे को मदद के लिए मत पुकारे,

और इसके साथ साथ मुसलमानों के मुतल्लिक अपना दिल साफ रखे , और किसी से हसद , कीना, कपट ना रखे,

ये वह चीज़ें हैं जो इंसान की निजात के लिए इंतेहाई ज़रूरी हैं,

रही बात चरागां और आतिशबाजी की, ये महज फिजूल खर्ची है, जिससे हमारे दीन में मना किया गया है, इसलिए उससे परहेज करना हर मुसलमान पर लाज़िम है,

जारी...

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks

Tuesday, July 27, 2021

नहर स्यूज मिस्र




 तीन दिनों से नहर स्यूज मिस्र के अंदर एक बहुत बड़ा जापानी जहाज रास्ता रोक कर खड़ी है, यूरोप और अमेरिका में तेल का दाम दस गुना महंगा हो चुका है, जापानी कंपनी ने माफी मांगी है, इसे सीधा करने के लिए दुनिया भर की माहिर कंपनियां कोशिश कर रही हैं मगर अब तक नाकाम रहीं हैं,

अंदाज़ा हैं के ऐसे ही हफ्ता दस दिनों तक रास्ता रुका रह सकता है जिससे यूरोप और अमेरिका के अंदर तेल की कीमतों में पचास गुना इज़ाफा हो जायेगा ,
दरअसल कुछ टेक्निकल खराबी की वजह से जहाज के सारे इंजन बंद हो गए , जहाज काबू से बाहर हो गया मतलब काग़ज़ की कश्ती जैसी इसकी हालत हो गई है, हवा तेज चलने लगी फिर हवाओं ने इसका रुख मोड़ दिया और इस तरह जहाज का अगला सिरा जाकर साइड में खुश्की के अंदर दूर तक धंसता चला गया, मालूम रहे जहाज़ एफिल टावर से भी लंबा है,
नोट : इसी रास्ते को 1973 की लड़ाई में मिस्र और सऊदी अरब की तरफ से एक हफ्ते के लिए रोका गया था तो उस वक्त यूरोप और अमेरिका के अंदर सारी गाडियां सड़क पर खड़ी हो गईं थी और सब लोग पैदल हो गए थे,
ये कुदरती ताकत और वसाएल अल्लाह ने मुसलमानों को अता किया है, बस मुनाफिकों के खात्मे और आपसी इत्तेहाद की जरूरत है,
साभार: डॉक्टर अजमल मंजूर मदनी
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks

Monday, July 26, 2021

क्या शाबान की 15वी रात फैसलों की रात है ??

 



क्या शाबान की 15वी रात फैसलों की रात है ??


अल्लाह ताला का इरशाद है ,

" यकीनन हमने इसे बा बरकत रात में उतारा है , बेशक हम डराने वाले हैं, इस रात में हर मजबूत काम का फैसला किया जाता है "

(कुरआन सुरा अल दुखान आयत 3, 4)

अल्लाह ताला के इस फरमान में " बा बरकत " रात का जिक्र आया है जिसमे कुरआन मजीद को उतारा गया , और जिसमे साल भर में होने वाले वाकयात का फैसला किया जाता है,

इस रात से कौन सी रात मुराद है ? खुद कुरआन मजीद में इसका जवाब मौजूद है,

अल्लाह ने फरमाया," बेशक हमने इसे लैलातुल कद्र में उतारा "

(कुरआन सुरा अल कद्र )

तो " बा बरकत " रात से मुराद लैलातुल कद्र है जो रमजानुल मुबारक के आखिरी अशरे की ताक रातों में आती है, और इसी में इंसान की जिंदगी और मौत , रिज्क, और तमाम हादसात का फैसला कर दिया जाता है

" बा बरकत " रात की यही तफसीर हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास, हज़रत कतादा, हज़रत हसन वगेरह ने की है और इसी तफसीर को जमहूर मुफस्सिरीन ने दुरुस्त करार दिया है,

अल्लाह हमें हक बात कहने और समझने की तौफीक दे...आमीन

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks 

Sunday, July 25, 2021

रसूम ए शब ए बरात

 



रसूम ए शब ए बरात


शब ए बरात में तमाम एहतमाम यानी घरों की सफाई वा आराइश , नए और उम्दा खाने और उनके साथ उम्दा किस्म की खुशबूदार बत्तियों से घरों को मुआत्तर करना दरअसल इस वजह से किए जाते हैं के इस दिन मरे हुए लोगों की रूहें तसरीफ लाती हैं, और रात भर घरों में रहकर सुबह सवेरे आलम ए अरवाह की तरफ रुखसत हो जाती हैं,

चुनांचे इन्ही रूहों का इस्तकबाल करने के लिए घरों को संवारने रोशनियों से सजाते और फातिहा में उनकी पसंदीदा खाने की चीज़ें पेश करते हैं जो जिंदगी में उन्हे पसंद रही हो,

रूहों के आने का ये तसव्वुर सरासर हिंदुआना अकीदा है के " पितृपक्ष " वगेरह के मौके पर पूर्वजों की आत्माएं आती हैं, और उन्हे पिंड नज़र किया जाता है जिससे उन्हें शांति मिल जाती है और वापस हो जाती हैं, ये पिंड उनके नाम से नदी में डाल दिया जाता है,

इस्लामी नुक्ता ए नजर से रूहों की वापसी का अकीदा सरासर गलत है, इंसान के मर जाने के बाद दोबारा लौटकर उसकी रूह दुनिया में नहीं आ सकती,

अहनाफ के उलेमा के नजदीक भी यही राय है, एक हनाफि आलिम का कौल है,

" बाज़ लोग ये अकीदा रखते हैं के शब ए बरात वगेरह में मुर्दों की रूहें घरों में आती हैं और देखती हैं के किसी ने हमारे लिए कुछ पकाया है या नहीं, जाहिर है ऐसे अमल किसी दलील से साबित नहीं हो सकता "

(इसलाह उल रूसूम पेज 132)

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks

Saturday, July 24, 2021

हम कहां से नापाक हो रहे हैं ??

 



हम कहां से नापाक हो रहे हैं ??


ये सवाल खुसुसन नफसानी ख्वाहिश शहवत के बारे में पूछा गया था,

अल्लाह ताला ने इंसान को इसी तरह से डिजाइन किया है के ये उसकी जिस्मानी जरूरत है, अल्लाह ताला ने ये ज़रूरत जानवरों में भी रखी है, जानवर इस में किसी भी तरह की तमीज नहीं करता , मगर इंसान को इसे कंट्रोल करने का हुक्म दिया है, इंसान को हुक्म दिया है के वह हलाल तरीके से इस ज़रूरत को पूरा करे, निकाह करे,

लेकिन समाज में अब जानवरों का सा बिगाड़ देखने को मिलता है, हमने ऐसी खबरें भी देखीं जब बेटी बाप से महफूज़ नहीं थी और बहन भाई से ना बच सकी, जब हलाल तरीके से ज़रूरत पूरी करने के बजाए हर औरत को शहवत की नज़र से देखा जाने लगा,इनको हम भेड़िया नहीं कहेंगे क्योंकि भेड़िया वह अकेला जानवर है जो अपनी जोड़ी के इलावा किसी के साथ भी ताल्लुक कायम नहीं करता,

अब ये नापाकी कहां से आ रही है ?? ये बहुत छोटे छोटे सुराखों से दाखिल होकर हमारी जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा बनी है, पता है कैसे ??

पहले दिल की समझ नहीं थी तो बुराई देखकर दिल मुंह को भी नहीं आता था , अब ज़रा दिल खुला है तो सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हुए किसी लड़की का जिस्म दिखाती तस्वीर भी सामने से गुजरे या बेहयाई फैलाते " खुले ज़ेहन" के लोगों के पोस्ट देखें तो मैं वह पेज या ग्रुप छोड़ देती हूं ,क्योंकि ये ही वो छोटे छोटे सुराख हैं जहां से नापाकी दाखिल होती है,

शहवत वह लावा है जिसे फटने को बस एक जरा सी सहूलियत चाहिए होती है और वह जरूरत इंटरनेट ने पूरी कर दी है, तजससुस इंसान के खमीर में है, जब बारह चौदह साल की बच्ची या बच्चा को मालूम होता है के ये भी कोई लज्जत है तो वह उसे और ज़्यादा जानने की कोशिश करता है और जानते जानते एक दिन वह खुद उसका हिस्सा बन जाता है, फिर ये लावा नेकियां करने से नहीं बुझता ,

क्या आपने कभी सुना है के किसी लावे को बारिश ने बुझा दिया है ?? नहीं सुना होगा , लावे को तो एक दिन फटना ही है,लेकिन अगर फटना ही है तो क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें ?? नहीं बल्कि इसके ऊपर एक मजबूत इमारत बनाए के अगर लावा फट भी जाए तो किरदार की दीवारें ना गिरें, ज़लजले से किरदार तबाह ना हो, समझ रहें हैं ?? यानी अब अगर आपकी शहवत को सहूलियत मयस्सर आ चुकी है तो क्या हम किरदार की इमारतें मज़बूत कर सकते हैं ?? हम सब जानते हैं हमारी जिंदगी में कौन से सुराख हैं जहां से बेहयाई और नापाकि दाखिल हो रही है, तो क्या उनसे बचने के लिए हमने कोई तदबीर की ?? वह ग्रुप, वह पेज ,वह नोवेल , वह ड्रामा, वह फिल्म, वह वेबसाइट, वह साथ, वह दोस्ती, जो आपको गुनाह करने पर मजबूर करती है, क्या आपने उसे छोड़ा ??

अच्छा मुझे बताएं एक सुराख से आपने सांप निकलते देखा तो क्या दोबारा उस पर हाथ रखेंगे ?? नहीं ना !! क्योंकि जान का खतरा लाहक है,

तो प्यारे लोगों ! बेहयाई के ये सुराख भी ऐसे ही खतरनाक सांप लिए हुए हैं जो आपकी ईमान को निगल जाएगी, आपका ईमान बहुत कीमती है, आपकी जान/नफ्स बहुत कीमती है,

वह जान जिसके बदले में जन्नत मिलना थी, जिसके बदले में अल्लाह की मुलाकात और दीदार रब मयस्सर आना है, उस जान की कीमत हमने बहुत थोड़ी पाई, यानी उस कीमती जान के बदले हमने म्यूजिक, शहवत, झूट जैसे गुनाहों को खरीद लिया जिनकी लज़्जत यकीनन फानी है, अल्लाह ताला ख़ुद कहता है,

" जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही खरीदी , उनकी तिजारत उनके लिए नफामंद ना हुई और उन्होंने थोड़ी कीमत पाई"

ये दो आयतों का मफहूम है, यानी हिदायत को छोड़कर गुमराही खरीद लेना इंतेहाई सस्ता सौदा है,

साभार : फाखरा वहीद
तरजुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks 

Friday, July 23, 2021

हस्सास (Sensitive) इंसान डिप्रेशन का जल्दी शिकार होते हैं

 



हस्सास (Sensitive) इंसान डिप्रेशन का जल्दी शिकार होते हैं


कभी हमने सोचा के जहनी मर्ज़ क्यूं पैदा होते हैं ??

हम में से अक्सर इसको बीमारी ही नहीं समझते , हमारे नज़दीक बीमारी वही है जो नज़र आ जाए, जबकि जहनी तकलीफ और नफसियाती तकलीफ नज़र नहीं आती,

डिप्रेशन का पहला शिकार Sensitive इंसान होता है और खास तौर पर वह इंसान जो अपनी कैफियत का इजहार भी ना कर सकता हो, तीन चीज़ें मेंटल डिप्रेशन बढ़ाने में अहम किरदार अदा करती हैं,

रोज़गार, मुहब्बत, और इंसानी रवैए !!!

अगर देखा जाए तो सबसे अहम इंसानी रवैए हैं, ऑफिस में एक बॉस का रवैया, एक दोस्त, एक महबूब, वालीदैन, औलाद या ससुराल का बर्ताओ,

कोई ना कोई तकलीफ देने में अपना किरदार अदा कर रहा होता है, और आप " Hidden Depression" का शिकार होते चले जाते हैं,

यहां पर एक उमूमी रवैया ये भी है के कोई डिप्रेशन का शिकार है तो उसे नफसियाती मरीज समझ लिया जाता है, इसलिए लोग अपना जहनी दबाओ किसी से बांटते नहीं और अंदर ही अंदर जंग लड़ते रहते हैं !!!

अगर हम अपने रवैए को बेहतर कर लें तो किसी मरहम की जरूरत ना रहे , किसी के जज़्बात, एहसासात और खिदमात की कदर भी जान लें तो उसे जहनी दबाओ का शिकार होने से बचाया जा सकता है,

ये बात बड़ी दिलचस्प है के डिप्रेशन की वजह आपके करीबी रिश्तेदार ही बनते हैं वह किसी और को ये एजाज हासिल नहीं करने देते,

अगर शादी से पहले बेटे या बेटी की पसंद पूछ ली जाए तो क्या हर्ज है ?? और अगर पसंदीदगी हो तो एना छोड़कर वहां शादी कर देने में क्या हर्ज है ??

35% वालीदैन बच्चों की जबरदस्ती शादी करके खुद तो नाम निहाद सुरखुरुई हासिल कर लेते हैं लेकिन औलाद को डिप्रेशन और कॉम्प्रोमाइज जैसी तकलीफ में डाल देते हैं,

ससुराली निजाम जहनी तकलीफ में अहम किरदार अदा करता है, कितनी लड़कियों के ख्वाब ससुराल की दहलीज पार करते ही चकनाचूर हो जाते हैं,

हर सास अपना डिप्रेशन और महरूमी बहु में मूनतकिल करने लगती है, बहु अपने बच्चों में, और मर्द इसी चक्की के दो पाटों में पिसता रहता है,

" मुहब्बत" जिसे हमारे समाज में एक गैर अहम अनसर समझा जाता है वह भी नफसियाती दबाओ की एक अहम वजह है,

मुहब्बत जिसे हो जाए वह जेर आताब,
जो पा ले तान वा तशनी उसका मुकद्दर ,
और जिसकी खो जाए उसके लिए उम्र भर की महरूमी और अजियत,
और कोई पाकर भी मुहब्बत की कद्र वा कीमत खो देता है,

कोई हालात का मारा हो या महरूमी का , नफरत का डसा हो या मुहब्बत का , हमारे समाज में मरहम रखने की रीत ही नहीं,

किसी की नींद टूटे या ख्वाब , दिल टूटे या हिम्मत ,हमारे करीबियों को भी खबर नहीं होती क्योंकि हम अपनी दुनिया में मस्त हैं,

हमारे पास बड़े बड़े डॉक्टरों के नंबर तो हैं किसी की सुनने किया वक्त नहीं, सुनकर तसल्ली के लिए लफ्ज़ नहीं,

तसल्ली और मुहब्बत के दो लफ्ज़ हर ज़ख्म का इलाज हैं,

इस इलाज में महारत हासिल कीजिए , मसीहा आप भी हो सकते हैं, हो सकता है कोई चमत्कार का नहीं आपकी मुहब्बत और तवज्जो का मुंताजिर हो....

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks