Wednesday, July 7, 2021

अल्लाह से दुआ करते हुए ये ना सोचें के पता नहीं मेरी दुआ कुबूल होगी या नहीं,

 



अल्लाह से दुआ करते हुए ये ना सोचें के पता नहीं मेरी दुआ कुबूल होगी या नहीं, मेरे गुनाह इतने हैं के वह मेरी दुआ क्यूं सुनेगा ?


मैं कौनसा नेक बशर हूं जो मेरी दुआएं कुबूल हों ?

या मुझे फलां दुआ अरबी में नहीं आती तो जिस ज़बान में मैं दुआ करूं वह अल्लाह कुबूल करेंगे या नहीं? वगेरह वगेरह जैसी तमामतर सोचों को एक तरफ रख दें और बस ये बात जान लें के ...!!

आपका रब आपके लफ्जों पर गिरफ्त नहीं रखता , वह अपने बन्दे के अल्फ़ाज़ पर गौर नहीं करता के उसने कितनी अच्छी तरह से दुआ का एहतिमाम किया , और कौनसे बहतारीन अल्फ़ाज़ का चुनाव किया,

अगर वह ये दुआ ना पढ़े तो कुबूल नहीं होगी ऐसा कुछ भी नहीं,

वह रब्बुल आलामीन तो सिर्फ अपने बन्दे के दिल के हालात को देखता है, वह उसके खूलूस ए नियत को देखता है के उसके बंदे ने कितनी तड़प और उम्मीद से मांगा है,

अपने बंदे से अल्लाह कुरआन में फरमाता है,

وَاس٘جُد٘ و٘اق٘تَرِب٘۔ (العلق)~
" सजदे में गिरो, इस तरह अल्लाह के करीब हो जाओ "

दुआ के चुनाव और लफ्जों की रस्म में ना लगें बस सजदे में गिरकर अपने रब के सामने खामोश हो जाएं, वह तो दिल में छुपे हर उस राज़ को भी जानता है जिससे अभी तक आप भी वाकिफ नहीं,

अपने अल्लाह से मांगें, मुखलिस नियत, साफ दिल और यकीन ए कामिल के साथ वह हर एक के दिल का हाल बखूबी जानता है,

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks