आज कल बड़े पैमाने मुस्लिम लड़कियां गैर मुस्लिम लड़कों के साथ भाग रही है क्योंकि उनके साथ जॉब कर रही है, स्कूल कॉलेज में पढ़ रही है तो गलत माहौल मिला हुआ है नमाज़ छोड़ कर कुफ्र कर रही है अलग अब ये तो बंद नहीं किया जा सकता इसलिए माहौल चेंज करने के लिए अब वक्त आ गया है कि औरतों को मस्जिद में एंट्री दिया जाए (पहले बड़े शहरों के कुछ मस्जिद से शुरुआत हो), वहाँ उसके तालीम का भी प्रबंध हो उसे सब सही गलत बताया जाए, मिम्बर से इन मसलों पर बयान हो
अब वक्त आ गया है कि औरतों को मस्जिद में एंट्री दिया जाए (पहले बड़े शहरों के कुछ मस्जिद से शुरुआत हो), वहाँ उसके तालीम का भी प्रबंध हो उसे सब सही गलत बताया जाए. अब लड़कियाँ सब जगह जा ही रही है सिवाय मस्जिद के
अबू हुरैरा ने कहा कि: मर्दों के लिए सबसे आला दर्जे की सफ पहली है, और सबसे कमतर दर्जे की सफ आखरी सफ है, और औरतों के लिए सबसे बेहतरीन साफ आखरी सफ है और उनके लिए सबसे कमतर दर्जे की सफ पहली सफ है। (सहीह मुस्लिम ८८१)
इस सिलसिले में एक और हदीस है:
“सहल बिन साद ने रिवायत की: मैं ने देखा कि एक मर्द, बच्चों की तरह, अपने कम कपड़ों को, कपड़े की कमी की वजह से, अपनी गर्दनों के गिर्द बांधे हुए अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पीछे, नमाज़ अदा कर रहा था। मुनादी लगाने वालों में से एक ने कहा: ऐ मस्तुरात अपने सर नहीं उठाएं जब तक मर्द (उन्हें) अपना सर ना उठा लें।
(सहीह मुस्लिम: 883)
एक दूसरी हदीस, जिससे औरतों को मस्जिदों में जाने की इजाज़त साबित होती है:
सलीम ने इसकी रिवायत अपने बाप (अब्दुल्लाह बिन उमर) से की है, कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया कि: जब औरतें मस्जिद में जाने के लिए इजाज़त तलब करें, तो उन्हें मना मत करो।
(सहीह मुस्लिम:884)
एक और हदीस से इस मसले का तस्फिया होता है:
इब्ने उमर ने रिवायत की: औरतों को रात में मस्जिद में जाने की इजाज़त दो। उनके बेटे ने जिनका नाम वाकिद है कहा कि: तो वह फसाद पैदा करेंगी। (रावी) ने कहा: उन्होंने उन (बेटे) के साइन पर थपकी मारी और कहा कि: मैं तुम से अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हदीस ब्यान कर रहा हूँ, और तुम कहते हो: नहीं!
(सहीह मुस्लिम: 890)
अब्दुल्लाह (बिन उमर) की बीवी जैनब ने रिवायत की: अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हम से कहा: जब तुममें से कोई मस्जिद आए तो, उसे खुशबु नहीं लगानी चाहिए।
(सहीह मुस्लिम: 893)
उपरोक्त सभी हदीसें इस बात की तस्दीक करती हैं कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने महिलाओं को मस्जिदों में जाने की इजाज़त दी है। तथापि मस्जिदों में जाना उनके लिए आवश्यक नहीं किया गया था। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने केवल इतना कहा कि, अगर कोई औरत मस्जिद में नमाज़ अदा करना चाहती है तो रात में भी उसे ऐसा करने से नहीं रोका जाना चाहिए। महिलाओं को यह कहा गया था कि जब वह मस्जिद में जा रही हों तो, खुशबु ना लगाएं।
अपनी औरतों को मस्जिद में जाने की इजाजत दो तुम तो जुमा का खुतबा सुन कर नसीहत हासिल कर लेते हो पर तुम्हारी औरतें इसे गुमराह रहती है जिससे वह दीन (शरीयत इस्लाम) से दूर होती चली जाती है
जिस तरह से मस्जिद ए नबवी में और सउदी अरब मुख़्तलिफ़ मस्जिदो मे औरतों का इंतजाम मर्दों से सेपरेट है उसी तरह से हमे भारत में भी करना चाहिए तब औरतों का हक अदा होगा और वह दीन से करिब आएगी इंशॉल्लाह