Saturday, August 14, 2021

आज कल बड़े पैमाने मुस्लिम लड़कियां गैर मुस्लिम लड़कों के साथ भाग रही है




 आज कल बड़े पैमाने मुस्लिम लड़कियां गैर मुस्लिम लड़कों के साथ भाग रही है क्योंकि उनके साथ जॉब कर रही है, स्कूल कॉलेज में पढ़ रही है तो गलत माहौल मिला हुआ है नमाज़ छोड़ कर कुफ्र कर रही है अलग अब ये तो बंद नहीं किया जा सकता इसलिए माहौल चेंज करने के लिए अब वक्त आ गया है कि औरतों को मस्जिद में एंट्री दिया जाए (पहले बड़े शहरों के कुछ मस्जिद से शुरुआत हो), वहाँ उसके तालीम का भी प्रबंध हो उसे सब सही गलत बताया जाए, मिम्बर से इन मसलों पर बयान हो


अब वक्त आ गया है कि औरतों को मस्जिद में एंट्री दिया जाए (पहले बड़े शहरों के कुछ मस्जिद से शुरुआत हो), वहाँ उसके तालीम का भी प्रबंध हो उसे सब सही गलत बताया जाए. अब लड़कियाँ सब जगह जा ही रही है सिवाय मस्जिद के

अबू हुरैरा ने कहा कि: मर्दों के लिए सबसे आला दर्जे की सफ पहली है, और सबसे कमतर दर्जे की सफ आखरी सफ है, और औरतों के लिए सबसे बेहतरीन साफ आखरी सफ है और उनके लिए सबसे कमतर दर्जे की सफ पहली सफ है। (सहीह मुस्लिम ८८१)

इस सिलसिले में एक और हदीस है:
“सहल बिन साद ने रिवायत की: मैं ने देखा कि एक मर्द, बच्चों की तरह, अपने कम कपड़ों को, कपड़े की कमी की वजह से, अपनी गर्दनों के गिर्द बांधे हुए अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पीछे, नमाज़ अदा कर रहा था। मुनादी लगाने वालों में से एक ने कहा: ऐ मस्तुरात अपने सर नहीं उठाएं जब तक मर्द (उन्हें) अपना सर ना उठा लें।
(सहीह मुस्लिम: 883)

एक दूसरी हदीस, जिससे औरतों को मस्जिदों में जाने की इजाज़त साबित होती है:
सलीम ने इसकी रिवायत अपने बाप (अब्दुल्लाह बिन उमर) से की है, कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया कि: जब औरतें मस्जिद में जाने के लिए इजाज़त तलब करें, तो उन्हें मना मत करो।
(सहीह मुस्लिम:884)

एक और हदीस से इस मसले का तस्फिया होता है:
इब्ने उमर ने रिवायत की: औरतों को रात में मस्जिद में जाने की इजाज़त दो। उनके बेटे ने जिनका नाम वाकिद है कहा कि: तो वह फसाद पैदा करेंगी। (रावी) ने कहा: उन्होंने उन (बेटे) के साइन पर थपकी मारी और कहा कि: मैं तुम से अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हदीस ब्यान कर रहा हूँ, और तुम कहते हो: नहीं!
(सहीह मुस्लिम: 890)

अब्दुल्लाह (बिन उमर) की बीवी जैनब ने रिवायत की: अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हम से कहा: जब तुममें से कोई मस्जिद आए तो, उसे खुशबु नहीं लगानी चाहिए।
(सहीह मुस्लिम: 893)

उपरोक्त सभी हदीसें इस बात की तस्दीक करती हैं कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने महिलाओं को मस्जिदों में जाने की इजाज़त दी है। तथापि मस्जिदों में जाना उनके लिए आवश्यक नहीं किया गया था। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने केवल इतना कहा कि, अगर कोई औरत मस्जिद में नमाज़ अदा करना चाहती है तो रात में भी उसे ऐसा करने से नहीं रोका जाना चाहिए। महिलाओं को यह कहा गया था कि जब वह मस्जिद में जा रही हों तो, खुशबु ना लगाएं।

अपनी औरतों को मस्जिद में जाने की इजाजत दो तुम तो जुमा का खुतबा सुन कर नसीहत हासिल कर लेते हो पर तुम्हारी औरतें इसे गुमराह रहती है जिससे वह दीन (शरीयत इस्लाम) से दूर होती चली जाती है

जिस तरह से मस्जिद ए नबवी में और सउदी अरब मुख़्तलिफ़ मस्जिदो मे औरतों का इंतजाम मर्दों से सेपरेट है उसी तरह से हमे भारत में भी करना चाहिए तब औरतों का हक अदा होगा और वह दीन से करिब आएगी इंशॉल्लाह

Friday, August 13, 2021

शैख रज़ाउल्लाह अब्दुल करीम मदनी हाफिजहुल्लाह की बसीरत अफ़रोज़ गुफ्तगू

 



शैख रज़ाउल्लाह अब्दुल करीम मदनी हाफिजहुल्लाह की बसीरत अफ़रोज़ गुफ्तगू


खुलासा

खुदकुशी का असल वजह दहेज़ ही नहीं बल्कि उसके इलावा दर्ज़ जेल वजह भी हैं, बहुत से रिश्ते दहेज़ से पाक मिलते हैं लेकिन उनको गरीबी का बहाना बनाकर कैंसल कर दिया जाता है जबकि अल्लाह का वादा कुरआन में मौजूद है,

नंबर 1, दीन से दूरी,
नंबर 2, नजायेज मुहब्बतों का माहौल
नंबर 3, शादी के लिए रिश्तों के इंतेखाब में जात बिरादरी वाद ,ये बहुत बड़ी वजह है शादियों के मुश्किल होने का जिसके खिलाफ कोई ज़बान खोलने की हिम्मत नहीं करता ,

लड़की गैर मुस्लिम के साथ भाग जाए गवारा है पर गैर बिरादरी के मुस्लिम नौजवान को देना गवारा नहीं , जब गैर मुस्लिम के साथ भागती है तो कितने मां बाप गैरत में आकर खुद बच्ची की जान ले लेते हैं,

नंबर 4, मेरे जैसी खूबसूरत है वैसा ही खूबसूरत लड़का मिले तब ही रिश्ता करेंगे , इसी इंतेजार में लड़कियां बहुत उम्र दराज हो जाती हैं और बहुत से फितनों की नज़र होकर अपनी जिंदगी बरबाद कर लेती हैं,

इसी तरह जितना खूबसूरत मेरा लाडला है, उसी तरह चांद जैसी लंबे कद वाली, लंबे बालों वाली मिलेगी तब ही रिश्ता करेंगे ,

अल्लाह मुस्लिम समाज की इसलाह फरमाए ...आमीन

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com

Thursday, August 12, 2021

मुनाफिक

 



जज़्बाती होना , जल्दी गुस्सा करना, छोटी छोटी बातों को दिल पर लेना और जल्द रो देना , एक साफ दिल आदमी होने की निशानी होती है, इसकी वजह जज़्बात में शिद्दत का होना है,


ये सब खूबियां कभी किसी मुनाफिक (Hypocrite) इंसान में नहीं पाई जाती, इनका ताल्लुक उन लोगों से होता है जो रिश्तों को दिमाग से बढ़कर, दिल से निभाते हैं,

Umair Salafi Al Hindi

Wednesday, August 11, 2021

आजकल एक मश्हूर नारा चल रहा है - 'मेरा जिस्म मेरी मर्ज़ी'

 



आजकल एक मश्हूर नारा चल रहा है - 'मेरा जिस्म मेरी मर्ज़ी'

हालांकि किसी भी इंसान की मर्ज़ी उसके जिस्म पर नहीं चलती

इंसान मुंह से खाता और बोलता है, नाक से सांस लेता और सूंघता है, कान से सुनता, आँख से देखता है, हाथ से चीज़ों को पकड़ता है, और पाँव से चलता है

दुनिया के लगभग हर इंसान के पास ये अंग होते हैं
लेकिन दुनिया का कोई भी इंसान इन अंगों के ऊपर अपनी मर्ज़ी नहीं चला सकता, इनके फंक्शन को नहीं बदल सकता

दुनिया का कोई भी इंसान नाक से नहीं देख सकता, आँख से नहीं सुन सकता, पाँव से सूंघ नहीं सकता, वो अपनी मर्ज़ी से एक अंग के फंक्शन नहीं बदल सकता उनकी औकात हि नही जो अपने हि जिस्म के अंग के कामो को अपने मन मानी मर्जी से चला सके मैं ईकरा अर्श खान कानपुरी पुरे रुये जमी पर जितने भी इंसान है उन सब को खुली चुनौती और चैलेंज दे रही हु अगर तुम सब मिल भी जाओ और सब मिल कर भी इस नेजामे कुदरत में किसी एक अंग के साथ भी उलट फेर कर के दिखा दो पूरे जिस्म की तो बात ही बहुत दूर है

इंसान के जिस्म पर उसकी मर्ज़ी नहीं चलती अगर चलती है तो कोई भी इंसान अपने उपर आयी मौत को रोक कर अपनी उम्र बढ़ा कर दिखाए औकात से जादा बड़ कर बोल देना बेशक आसान होता है लेकिन जब करने कि बारी आती है तो पता चलता है कि कौन कितना पानी में है कहने को तो सब लाखो करोडो़ कि बात करते हैं जैसे वो किसी बादशाह के बेटे हो और शाहनशाही खुद्दारी गुरुर घमंड भी ऐसा होता है जैसे वो इतना पावर फुल ताकतवर है कि उसे कभी किसी कि कोई जरुरत ही नहीं पडे़गी औकात और गुरुर घमंड का तब पता चलता है जब उसके मुसीबत पर उसके रवैईये से खुद उसी के रिश्तेदार दोस्त एहबाब उसका साथ नही देते और बात करते हैं अपनी जिंदगी अपने जिस्म और अपने मर्जी से जिने कि

सच तो ये है मर्ज़ी सिर्फ अल्लाह की चलती है इंसान तो बस एक मिट्टी का खिलौना है और वो अपनी मूर्खता का परिचय दुनिया को कराता है जाहीलाना जुम्ला बोल कर मेरा जिस्म और मेरी मर्जी अल्लाह की कुदरत को मत आजमाना भूल कर भी वर्ना कही तुम्हारे जिस्म मे जान तो रहेगी लेकिन तुम अपने ही बिस्तर से उठने लायक नही रहोगे और तुम्हारे जिंदगी का सहारा एक मामूली सा इंसान हि होगा इस लिए रब के इस्लाम के खिलाफ जाने कि भूल कर भी कोशीश मत करना कुर्आन हदीस को 💕 लगा कर पढ़े और उस पर अमल करने कि कोशीश करेंगे तो हर परेशानी दुःख दर्द बिमारी से महफूज रहोगे इंशा अल्लाह

#ईकरा_अर्श_खान_कानपुरी 🌹🤲🌹

Tuesday, August 10, 2021

मर्द ही ज़ालिम क्यों ??

 



तस्वीर का दूसरा रुख


मर्द ही ज़ालिम क्यों ??

जब भी दहेज की बात आती है तो मर्दों को बुरी तरह लताड़ा जाता है, उन्हे बेगैरत और ना जाने क्या क्या कहा जाता है,

अपने यहां की बात करूं तो यहां एलानिया डिमांड तो नहीं की जाती मगर दहेज की ख्वाहिश सब करते हैं लेकिन हकीकत ये भी है के मर्दों को अगर दहेज की ख्वाहिश होती है तो जरूरी चीजों की होती है,

मगर हम लड़कियां...?? जरूरत से कई गुना ज्यादा सामान खरीदती हैं, शादी की शॉपिंग ऐसे करते हैं जैसे दो तीन नस्लों को दुकानों के चक्कर से निजात दिलाना हो, किसी तरह की क्रॉकरी, कपड़ों और ज्वेलरी का कोई सेट ना छूटे, कोई डिजाइन रह ना जाए,

एक लड़की दूसरी लड़की को देखकर , एक औरत दूसरी औरत को देखकर सामान खरीदते खरीदते अंबार लगा देती है,

शादी के मौकों पर जूता छिपाई, द्वार छिकाई और ना जाने कौन कौन सी रस्म में, किसका हाथ है ?? मर्दों का !!! मुझे तो नज़र नहीं आता!!

जब बॉक्स से सामान निकाल कर एक दो रूम भर दिए जाते हैं तो उसकी कंपनी चैक करने और ब्रांडेड और गैर ब्रांडेड का लेबल लगाने क्या मर्द जाते हैं ??

दहेज पर ताना कसने वाले अक्सर हमारी हम सनफ ही होती हैं तो फिर औरत से हमदर्दी और मर्द जालिम क्यों ?? सच कहूं तो इन रस्मों में मर्दों से ज़्यादा हमारी हिस्सेदारी है,

आखिर में मैं ये कहना चाहूंगी के जो लोग दहेज़ सिर्फ इसी को समझते हैं जो डिमांड की जाए और अगर डिमांड ना किया जाए तो बाप भाई कहते हैं के," हम अपनी बेटी बहन को खुशी से दे रहें हैं"

अगर कोई अपनी बहन बेटी को कुछ दे रहा है तो खास शादी के मौके पर क्यों ?? क्या शादी के बात उनका अपनी बेटी बहन से ताल्लुकात खतम हो जाते हैं ??

तुम चाहो तो अपने बेटियों को सातों जमीन सोना भरकर दो मगर नुमाइश करके गरीबों की झोंपड़ीयों में इज़ाफा क्यों करते हो ??

और मैं समाज से ये भी पूछना चाहूंगी के जब बेटी बहन को साजो सामान " खुशी से " दिया जाता है ताकि वह ससुराल में तानो का शिकार ना हो तो जब वही बहन बेटी विरासत जो की उसका हक़ है उसका मुतालबा करती है तो उनकी गर्दनें छुरियों की नोक पर क्यों रख दी जाती हैं ??

अगर वह ज़बरदस्ती अपना हक ले ले तो इस पर मायके के दरवाज़े क्यों बंद कर दिए जाते हैं ?? क्या उस वक्त बहन बेटी की खुशी प्यारी नहीं होती ??

साभार : बहन सबा यूसुफजई Saba Yosuf Zai
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com

Monday, August 9, 2021

तमाम तर चाहतें कुरबान जिस पर, वही चाहत मांगी गई।




 तमाम तर चाहतें कुरबान जिस पर, वही चाहत मांगी गई।

वक़्त ऐ कुबुलियत था, अल्लाह से अल्लाह की मुहब्बत मांगी गई।

ना और कोई आरज़ू, ना मजीद ख्वाहिश रही बाक़ी
हर्फ ए आखिर में हुआ सवाल तो तहज्जुद की आदत मांगी गई।

Sunday, August 8, 2021

जब वो पैदा हुआ तो उसकी मां ने उसे देखकर मुंह फेर लिया

 




जब वो पैदा हुआ तो उसकी मां ने उसे देखकर मुंह फेर लिया क्योंकि ना सिर्फ वह दोनो हाथों , पांव से महरूम था बल्कि सिरे से उसकी टांगें और बाजू मौजूद ही नहीं थे, इस वक्त उसकी उम्र 37 साल है,


सोचिए उसने पिछले 37 साल बिना टांगों, बाजुओं, बगैर हाथों, पांव के कैसे गुजारे होंगे और वह आज किस हालत में होगा,

अगर आप ऑस्ट्रेलिया में पैदा होने वाले इस सख्स की जिंदगी को पढ़ें तो आपके तमाम गिले शिकवे, तमाम बहाने , सब शिकायतें, हवा में उड़ जायेंगी और मेरी तरह आपका सर भी शर्म से झुक जाएगा क्योंकि वह अपने आधे अधूरे जिस्म के बावजूद एक मुकम्मल और भरपूर जिंदगी जी रहा है बल्कि करोड़ों बुझी आंखों में उम्मीद की रोशनी और मायूस दिलों में जोश की आग भड़का रहा है,

ये सात किताबों का लेखक है और इसकी अक्सर किताबें न्यू यॉर्क बेस्ट सेलर की लिस्ट का हिस्सा बनी हैं, इसकी किताबों की शोहरत का अंदाजा इस बात से लगाएं के ये किताबें दुनिया के चालीस से ज्यादा जबानों में ट्रांसलेट हो चुकी हैं,

वह एक मोटिवेशनल स्पीकर भी है और TED समेत हर काबिल ए जिक्र फोरम पर अपनी गुफ्तगू के जरिए लाखों लोगों की जिंदगियां बदल चुका है उसके मुंह से निकलने वाला हर लफ्ज़ उम्मीद और जिंदगी से भरपूर होता है, अपनी तकरीरी सरगर्मियों के सिलसिले में वह आधी से ज़्यादा दुनिया घूम चुका है,

उसने 2005 में " Limbs Without Limbs" और 2007 में "Altitude is Altitude" के नाम से ट्रेनिंग के इंस्टीट्यूट बनाए जहां वह कारोबारी इदारों , अफ़राद और दुनिया के मुख्तलिफ हुकूमतों के ऑफिसर्स को कामयाबी के गुर सिखाता है,

इसका मीडिया से भी गहरा ताल्लुक है, हर काबिल ए जिक्र सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसके लाखों फॉलोअर हैं जिन्हें वह अपनी गुफ्तगू, वीडियो और तहरीरों के जरिए बेहतर और खुशहाल जिंदगी जीने की तरघीब देता रहता है,

BBC, CNBC, CNN समेत दुनिया भर के मोतबर तरीन टीवी चैनल इसके इंटरव्यू नश्र करते रहते हैं,

इसने मुहब्बत भी की और शादी भी, इसकी बीवी एक खूबसूरत ऑस्ट्रेलिवी मॉडल है, इन दोनो के चार हस्ते खेलते बच्चे हैं, ये अपनी खूबसूरत बीवी और बच्चों के साथ कैलिफोर्निया अमेरिका में अपने आलीशान घर में अपनी मनपसंद जिंदगी जी रहा है,

इस आदमी का नाम Nick Vujicic है,

जब आप अपने पूरे जिस्म के साथ अपनी अधूरी जिंदगी से तंग आने लगे तो इस पोस्ट को बार बार पढ़ लिया करें, इसके अधूरे जिस्म के साथ " पूरी" जिंदगी आपको जीने का हुनर और हौसला अता करेगी,

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks 

Saturday, August 7, 2021

जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदते हैं,

 



जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदते हैं,


दो औरतें काज़ी इब्न अबी लाइली की अदालत में पहुंच गईं, ये अपने वक्त के मशहूर वा मारूफ काज़ी थे,

काज़ी ने पूछा ," तुम दोनो में से किसको पहले बात करनी है?" उन में से बड़ी उम्र वाली औरत ने दूसरी से कहा तुम अपनी बात काज़ी साहब के आगे रखो,

वह कहने लगी काज़ी साहब ये मेरी फूफी है मैं इसे अम्मी कहती हूं चूंकि मेरे वालिद के इंतकाल के बाद इसी ने मेरी परवरिश की है यहां तक कि मैं जवान हो गई,

काज़ी ने पूछा इसके बाद ?? वह कहने लगी फिर मेरे चाचा के बेटे ने मंगनी का पैगाम भेजा इन्होने उनसे मेरी शादी कर दी, मेरी शादी को कई साल गुजर गए अजदावाजी जिंदगी खूब अच्छी चल रही थी, एक दिन मेरी ये फूफी मेरे घर आई और मेरे शौहर को अपनी बेटी से दूसरी शादी की ऑफर कर ली साथ ये शर्त रख ली के पहली बीवी (यानी मैं) का मामला फूफी के हाथ में सौंप दे , मेरे शौहर ने कुंवारी से शादी के चक्कर में शर्त मान ली, मेरे शौहर की दूसरी शादी हुई, सुहागरात को मेरी फूफी मेरे पास आई और मुझसे कहा," तुम्हारे शौहर के साथ मैंने अपनी बेटी ब्याह दी है तुम्हारे शौहर ने तुम्हारा मामला मेरे हाथ सौंप दिया है मैं तुझे तेरे शौहर की वकालत करते हुए तलाक देती हूं "

काज़ी साहब मेरी तलाक हो गई,

कुछ दिनों बाद मेरी फूफी का शौहर सफर से थक हारे पहुंच गया वह एक शायर और हुस्न परस्त इन्सान थे, मैं बन संवर कर उनके सामने बैठ गई और उनसे कहा, " क्या आप मुझसे शादी करेंगे ?? उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा , उसने फौरन हां कर ली, मैंने उनके सामने शर्त रख दी के आपकी पहली बीवी ( यानी मेरी फूफी) का मामला मेरे हाथ सौंप दें , उसने ऐसा ही किया,

मैने वकालत का हक इस्तेमाल करते हुए फूफी को तलाक दे डाली और फूफी के पहले शौहर से शादी कर ली,

काज़ी ने हैरत से कहा," फिर !!"

वह कहने लगी काज़ी साहब कहानी अभी खतम नहीं हुई, कुछ अरसे बाद मेरे इस शौहर का इंतकाल हुआ , मेरी ये फूफी विरासत का मुतालबा करते पहुंच गई मैंने इससे कहा के , " मेरे शौहर ने तुम्हे अपनी जिंदगी में तलाक दी थी अब विरासत में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं है,"

झगड़ा तवील पकड़ा इस दौरान मेरी इद्दत भी गुजर गई, एक दिन मेरी ये फूफी अपनी बेटी और दामाद (मेरा पहला शौहर) को लेकर मेरे घर आई और विरासत के झगड़े में मेरे इस पहले शौहर को सालिस (Arbitrator) बनाया , उसने मुझे कई सालों बाद देखा था , मर्द अपनी पहली मुहब्बत नहीं भूलता है, चुनांचे मुझसे यूं मिलकर उसकी पहली मुहब्बत ने अंगड़ाई ली मैंने उनसे कहा ," क्या फिर मुझसे शादी करोगे ??" उसने हां कर ली,

मैने उनके सामने शर्त रख ली के अपनी पहली बीवी ( मेरी फूफी की बेटी) का मामला मेरे हाथ में दें, उसने ऐसा ही किया , मैने अपने पहले शौहर से शादी कर ली और उसकी बीवी को शौहर की वकालत करते हुए तलाक दे दी,

काज़ी इब्न अबी लाइली सर पकड़ कर बैठ गए , फिर पूछा के ," इस केस में अब मसला क्या है ??"

मेरी फूफी कहने लगी," काज़ी साहब क्या ये हराम नहीं के मैं और मेरी बेटी दोनों की ये लड़की तलाक करवा चुकी है फिर मेरा शौहर और मेरी बेटी का शौहर भी ले उड़ी, इसी पर बस नहीं दोनो शौहरों की विरासत भी अपने नाम कर ली "

काज़ी इब्न अबी लाइली कहने लगे ," मुझे तो इस केस में हराम कहीं नजर नहीं आया, तलाक भी सही है, वकालत भी जायज है,तलाक के बाद बीवी पहले शौहर के पास दोबारा जा सकती है बशर्ते के दरमियान में किसी और से उसकी शादी हो कर तलाक या शौहर फौत हुआ हो, तुम्हारी कहानी में भी ऐसा ही हुआ है "

इसके बाद काज़ी ने खलीफा मंसूर को ये वाकया सुनाया , खलीफा हंस हंस कर लोटपोट हो गए और कहा के ," जो कोई अपने भाई के लिए गड्ढा खोदेगा ,खुद उसी गड्डे में गिरेगा , ये बुढिया तो गड्डे की बजाए गहरे समुंदर में गिर गई "
كتاب :جمع الجواهر في - الحُصري

साभार: फिरदौस जमाल
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks

Friday, August 6, 2021

क्या मैं।भी बड़ा आदमी बन सकता हू ?

 



एक दिन प्रोफेसर साहब से जूता पॉलिश करने वाले बच्चे ने जूता पॉलिश करते करते पूछा ," मास्टर साहब ! क्या मैं।भी बड़ा आदमी बन सकता हू ? "


प्रोफेसर ने कहकाहा लगाकर जवाब दिया , " दुनिया का हर सख्स बड़ा आदमी बन सकता है "

बच्चे का अगला सवाल था," कैसे ??"

प्रोफेसर ने अपने बैग से चाक निकाला और उसके खोखे की दीवार पर दाएं से बाएं तीन लकीरें बनाई,

पहली लकीर पर मेहनत, मेहनत, और मेहनत लिखा,
दूसरी लकीर पर ईमानदारी, ईमानदारी और ईमानदारी लिखा,
और तीसरी लकीर पर सिर्फ एक लफ्ज़ हुनर लिखा,

बच्चा प्रोफेसर को चुपचाप देखता रहा , प्रोफेसर ये लिखने के बाद बच्चे की तरफ मुड़ा और बोला ," तरक्की के तीन जीने (Stairs) होते हैं"

पहला ज़ीना मेहनत है,
आप जो भी हैं आप अगर सुबह दोपहर और शाम तीनों वक्त में मेहनत कर सकते हैं तो आप तीस फीसद कामयाब हो जायेंगे ,

आप कोई सा भी काम शुरू कर दें, आपकी दुकान, फैक्ट्री, ऑफिस या खोखा सबसे पहले खुलना चाहिए और रात को आखिर में बंद होना चाहिए , आप कामयाब हो जायेंगे ,

प्रोफेसर ने कहा," हमारे इर्द गिर्द मौजूद नब्बे फीसदी लोग सुस्त हैं ये मेहनत नहीं करते , आप जूं ही मेहनत करते हैं आप नब्बे फीसदी लोगों की लिस्ट से निकल कर दस फीसद महनती लोगों में आ जाते हैं, आप तरक्की के लिए अहल लोगों में शुमार होने लगते हैं,

अगला मरहला ईमानदारी होती है, ईमानदारी चार आदतों का पैकेज है, वादे की पाबंदी, झूट से नफ़रत, ज़बान पर कायम रहना और अपनी गलती का ऐतराफ करना,

आप मेहनत के बाद ईमानदारी को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लो, वादा करो तो पूरा करो, झूट किसी कीमत पर ना बोलो, ज़बान से अगर एक बार बात निकल जाए तो आप उस पर हमेशा कायम रहो और हमेशा अपनी गलती, कोताही, का आगे बढ़कर एतराफ करो, तुम ईमानदार हो जाओगे , कारोबार में इस ईमानदारी के शरह 50 फीसद होती है,

आप पहला 30% मेहनत से हासिल करते हैं,आपको दूसरा 50% ईमानदारी देती है, और पीछे रह गया 20% तो ये 20% हुनर होता है,

आपका प्रोफेशनलिज्म आपकी स्किल और आपका हुनर आपको बाकी 20% भी दे देगा ,

" आप सौ फीसद कामयाब हो जाओगे "

प्रोफेसर ने बच्चे को बताया," लेकिन ये याद रखो हुनर, प्रोफेशनलिज्म और स्किल की शारह सिर्फ 20% है और ये 20% भी आखिर में आता है, आपके पास अगर हुनर की कमी है तो भी आप मेहनत और ईमानदारी से 80% कामयाब हो सकते हैं,

लेकिन ये नहीं हो सकता के आप बेईमान और सुस्त हों और आप सिर्फ हुनर के जोर पर कामयाब हो जाएं, आपको मेहनत से ही स्टार्ट लेना होगा , ईमानदारी को अपना ओढ़ना और बिछौना बनाना होगा, आखिर में खुद को हुनरमंद साबित करना होगा ,

प्रोफेसर ने बच्चे को बताया," मैंने दुनिया के बेशुमार हुनारमंदो और फनकारों को भूखे मरते देखा " क्यों ? क्यूंकि वो बेईमान भी थे और सुस्त भी, और मैने दुनिया के बेशुमार बेहूनरों को खुद का हवाई जहाज उड़ाते देखा ,

तुम इन तीन लाकीरों पर चलना शुरू कर दो,
तुम आसमान की बुलंदियों को छूने लगोगे,

मनकूल

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks

Thursday, August 5, 2021

कुछ देर के लिए अच्छा अखलाक निभा लेना बहुत आसान है,

 



कुछ देर के लिए अच्छा अखलाक निभा लेना बहुत आसान है, लेकिन मसला वहां होता है जहां हर वक्त का साथ होता है,

लेंन - देंन होते हैं,
उम्मीदें होती हैं,
कुरबानियां होती हैं,
और उनकी नाकदरिया होती हैं,

खानदान के लोग, करीबी दोस्त जिनके साथ सालहा साल का साथ हो तो रंजिश बढ़ने के चांस ज़्यादा हो जाते हैं, हम ही क्यों पहल करें, कितनी बार झुकें, आखिर क्यों ????

पहले तो ये सोचें के आखिर रंजिश की वजह क्या है ?? रोजमर्रा की छोटी छोटी बातें मिलकर दिल में गांठ सी डाल देती हैं, पहली गांठ के बाद अगली गांठ बहुत आसान हो जाती है, रिश्तों की डोरी उलझती चली जाती है के सिरा मिलना ही मुश्किल हो जाता है, इसलिए पहली गांठ पर ही मोहतात हो जाएं,

बहतरीन गुमान दिल में लाएं , भाभी ने क्या खबर आपकी दी हुई शॉल इसलिए अपनी बहन को दी हो के उसे बहुत अच्छी लगी हो, और वह अपनी प्यारी चीज तोहफा देना चाहती हो,

जो सहेली या दोस्त आपको खुद से कॉल नहीं करती/करता ,क्या खबर की बहुत मसरूफ हो,या फोन खो गया हो, नंबर गुम हो गया हो, तोहफा आप जो भी दें कोशिश करें के बस अल्लाह की खातिर और मुहब्बत बढ़ाने की गर्ज से दें, अगर आपको ये एहसास है के आप मुसलसल अच्छा तोहफा देते हैं, दूसरे हर बार आपकी नाकद्री करते हैं तो उनके लेवल पर आ कर तोहफा दे दें क्योंकि तोहफा देने का मकसद मुहब्बत बढ़ाना होता है, अगर तोहफा ही मुहब्बत कम करने का सबब बन रहा है तो कोई तब्दीली करें , मियां को भी बताएं के उनकी फलां बात से आपको उलझन होती है,

खामोशी से कुढ़ते रहने की बजाए अपनी बात कह दीजिए ,

देखिए , बिना बताए बस अल्लाह ही की जात है जिसको सब पता हो, इंसानों को मुंह से बोलकर बताना पड़ता है, ये तरीका बहुत गलत है और औरतों में तो आम है के दिल ही दिल में कुड़ती जाएंगी और थक कर के बात उलझा देंगी, दूसरे लोगों से कह कहला कर दिल हल्का करने की कोशिश में लगी रहेंगी , लेकिन उससे ताल्लुक वाले बन्दे को हवा तक नहीं लगने देंगी, भाई बोलें जो मसला है,

कभी कभी आपकी कोई बात आपके लिए बहुत बड़ी होती है जबकि दूसरे के नज़दीक कोई अहमियत नहीं रखती , उन्हे बताएं के मुझे फलां बात इस तरह महसूस हुई और उसपर मेरी दिल शिकनी भी हुई, सामने वाला बंदा या तो अपनी वजह बताएगा जो आपको पता ना थी या शर्मिंदा होकर आगे के लिए एहतियात करेगा , दोनों सूरतों में रिश्ता बेहतर हो जायेगा , और जो कहना है डायरेक्ट कहें दूसरों के जरिए से बात पहुंचाना बहुत ही बचकाना रवैया है

उम्मीदें कम और हकीकत पसंदाना रखें, जिंदगी बहुत मसरूफ है, हर एक अपने अपने कामों में मसरूफ है, ऐसे में ये उम्मीद ना रखें के कोई सुबह शाम आपको कॉल या मैसेज करे, सालगिरह याद रखे , कोई याद कर ले तो दिल से शुक्र गुजारी हों, ना करे तो ईजी रहें ,

खुद से चीजें Assume ना करें, मुमकिन है कोई बीमार हो, इम्तेहानों में मसरूफ हो, जेहनी तौर कर स्ट्रेस में हो और बात ऐसी हो के आपसे कह ना सकता हो , कुछ भी हो सकता है,

लेकिन !! आप इसके बाद भी किसी के साथ रंजिश बढ़ती जा रही है दिल मुसलसल बोझल है, रूह तकलीफ में है , उसकी कोई खास बात दिलसे निकलती नहीं,तो देखिए के क्या उस इंसान के साथ निभाना बहुत ही ज़रूरी है ?? अगर रहम( पेट) का रिश्ता हो तो झुक जाना पहल कर लेना ज़रूरी है, गोया काम मुश्किल है ,रहम के रिश्ते तोड़ने पर सख्त गुनाह की वइद है इसलिए एहतियात भी इतनी ही ज्यादा , शौहर तो फिर शौहर है, उससे भी पहल कर लें जितना मुमकिन हो सके,

ये बात जेहन में रखें के किसी भी रिश्ते के लिए बाउंड्री बनाएं, नाकाबिल ए बर्दाश्त बात उनके नोटिस में लाएं, मोमिन एक सुराख से दोबारा नहीं डसा जाता , इसलिए किसी को इजाज़त ना दें के आपको इस्तेमाल करे, जिस्म के साथ रूह भी आपके पास अल्लाह की अमानत है,इसका खयाल रखना आप पर फर्ज़ है, किसी को फर्क।नहीं पहुंचता के अपने रवैए से आपकी रूह घायल करे,

रिश्ते के ऐतबार से एक हद तक झुकिए , आगे बढ़िए लेकिन अगर पहल करना ज्यादा मुश्किल हो रहा है तो रास्ता अलग कर लें, मुश्किल अमल है लेकिन बार बार हर्ट होने से बेहतर है के रिश्ता अलग कर लिया जाए,

किसी भी ताल्लुक में बहरहाल दरगुजर करना जरूरी है, साथ रहें तब भी, अलग हो जाएं तब भी, ला ताल्लुकि का मुतालबा ये नहीं के नफरत का बोझ दिल में रखे बाकी जिंदगी गुजारनी है,

माफ करें और आगे बढ़ें, आपके मिजाज़ का कोई बंदा आपको मिल ही जायेगा, और मेरा तजुर्बा है के ढेरों के बजाए वह एक आध जिगरी यार ही काफी है,

साभार: बहन सबा यूसुफजई Saba Yousuf Zai
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
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