Tuesday, August 3, 2021

ननद और भाभी

 



ननद और भाभी


आज मैं शादीशुदा हूं , कल जो किसी की छोटी ननद थी आज तीन ननदों और एक देवर की बड़ी भाभी हूं, अब जो खुद पर गुजरी है तो समझ आई के प्रैक्टिकल लाइफ फूलों की सेज नहीं, जिम्मेदारियां पड़ जाएं तो लाड प्यार भूल जाते हैं मैच्योरिटी आ जाती है,

अब अपनी भाभी के साथ गुजारे हुए साल बहुत याद आते हैं, मैं कॉलेज में थी जब वो मेरे घर का हिस्सा बनीं उनकी एक एक बात , रवैए , चेहरे के तासुरात के मायने अब खुद भाभी बनकर समझ आते हैं,

मैं लाडली थी कॉलेज का गुस्सा , बहनों का गुस्सा , घर में मुंह फुलाकर , मूड बनाकर दिखाती थी, भाभी डरते डरते ही बात करती के यूं ना हो गुस्से में मैं उनके साथ बदतमीजी कर जाऊं, आज जब यही ननदें मेरे साथ करती हैं तो समझ आती है कितना दुख होता है जब अपने से छोटे से डर के एहतियात से बात करनी पड़े,

जब पार्टी और पिकनिक होती तो भाई से खूब पैसे मांगती थी लगता था भाभी परेशान हो रहीं हैं उनको जलाने के लिए और ज्यादा डिमांड और ज़िद करती , आज समझ आती है जब मेरे अपने शौहर को अपने बहन भाइयों को पॉकेट मनी , मेरे और घर के खर्चे manage करने होते हैं, भाभी जलती नहीं थी वह अपने शौहर के लिए उदास हो जाती थीं,

जब गुस्सा आता था तो मैं भाभी से ऊंची आवाज़ में बात करती थी, लाडली होने की वजह से वह मुझपर गुस्सा नहीं करते थे , सब सुन लेते थे, लगता था भाभी को बुरा लग रहा है, मैं दिल में सोचती हूं ," ये बड़ी आई दो चार साल हुए मेरे भाई पर हक जमाती है,"

आज जब मेरे शौहर के बहन भाई उनसे जरा सी बदतमीजी करें तो भाभी का दर्द महसूस होता है, मेरे वह भाई सही, भाभी के लिए उनके लिए शौहर सबसे मुआजजिज़ हस्ती थे,

भाभी पर किचन के काम का लोड होता तो मैं मदद नहीं करवाती थी, मैं सोचती थी के ये उनकी ही जिम्मेदारी है, ना अम्मी हम बहनों को कहती, और जब मैं थक जाती हूं तो सोचती हूं के मेरी सास अपनी बेटियों को जरा सा मदद करवाने को कह दें मुझे आसानी दे दें, काश ! मैं भाभी के लिए आसानियां कर देती,

भाभी से मैं जिस लहजे में चाहे बात कर दिया करती, मेरी जेहन में ये बात थी के ननद के नखरे उठाना भाभियों पर फर्ज है, आज याद आता है के असल बात ननद भाभी नहीं, बड़े छोटे ही है, अगर बड़े को छोटे से प्यार करना चाहिए तो छोटों को भी बड़े को इज़्ज़त देना चाहिए,

बड़ी बाजी हफ्ते से भी ज्यादा रहने आती थीं, भाभी जब कुछ पकाती, बाजी को कभी नमक सही नहीं लगता , कभी रोटियां कच्ची, कभी तेल ज्यादा, मुझे भी भाभी पर गुस्सा आता , अब महसूस होता है जब कोई मेहनत से काम करे और उसकी कोई हौसला अफजाई और तारीफ के दो बोल की बजाए तनकीद सहनी पड़े तो क्या बीतती है,

भाभी जब प्रेग्नेंसी में थीं और हमें अपने किसी दर्द या तकलीफ का बतातीं तो लगता Overreact कर रही है, सभी औरतें इस मरहले से गुजरती हैं, अब पता चला के प्रेग्नेंसी कितना कठिन मरहला है,

भाभी के कमरे में जाती तो कमरा बिखरा हुआ लगता , हमेशा सोचती थी इनको ज़रा सा भी सलीका नहीं है, अब समझ आया के जब पूरे घर की जिम्मेदारी कंधों पर हो तो अपने कमरे में आकर सफाई करने का नहीं आराम करने का मन होता है,

ऐसी ही कितनी बात याद आती रहती हैं, अब क्या कर सकती हूं, आसानियां ना दे सकी, मुश्किलात खूब बड़ाई, भाभी से माफी मांगने की हिम्मत हौसला नहीं है, जब अपनी ज्यादातियां याद आती हैं, अल्लाह ताला से माफी मांगती हूं,

जब अम्मी की तरफ जाऊं भाभी के लिए कोई तोहफा ले जाती हूं, ज्यादा दिन के लिए नहीं जाती के उनपर बोझ ना हूं, जब भी जाऊं साथ किचन में मदद करवा देती हूं, मेरी अम्मी तो कहती है के ," अपने घर से थकी आई हो आराम करो" लेकिन मुझे ऐसे आराम में कोई राहत नहीं मिलती,

वह किचन में मसरूफ़ हों तो अपने भतीजे को नहला धुला देती हूं, या किसी भतीजे को पढ़ा देती हूं, कोई ना कोई आसानी कर देती हूं, भाभी मेरे आने से बहुत खुश होती हैं, बल्कि खुद बार बार दावत देती हैं, अम्मी उनसे मेरे और मेरे शौहर के लिए खूब एहतेमाम करने को कहती हैं लेकिन मैं उनसे सादा खाना ही बनवाती हूं, फिर खूब तारीफ और शुक्रिया अदा करती हूं,

छोटी एक गैर शादी शुदा बहन को समझा कर आती हूं के पढ़ाई करो लेकिन उनको भी आसानी कर दो,

साभार: बहन डॉक्टर सबा खालिद
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks