Thursday, August 5, 2021

कुछ देर के लिए अच्छा अखलाक निभा लेना बहुत आसान है,

 



कुछ देर के लिए अच्छा अखलाक निभा लेना बहुत आसान है, लेकिन मसला वहां होता है जहां हर वक्त का साथ होता है,

लेंन - देंन होते हैं,
उम्मीदें होती हैं,
कुरबानियां होती हैं,
और उनकी नाकदरिया होती हैं,

खानदान के लोग, करीबी दोस्त जिनके साथ सालहा साल का साथ हो तो रंजिश बढ़ने के चांस ज़्यादा हो जाते हैं, हम ही क्यों पहल करें, कितनी बार झुकें, आखिर क्यों ????

पहले तो ये सोचें के आखिर रंजिश की वजह क्या है ?? रोजमर्रा की छोटी छोटी बातें मिलकर दिल में गांठ सी डाल देती हैं, पहली गांठ के बाद अगली गांठ बहुत आसान हो जाती है, रिश्तों की डोरी उलझती चली जाती है के सिरा मिलना ही मुश्किल हो जाता है, इसलिए पहली गांठ पर ही मोहतात हो जाएं,

बहतरीन गुमान दिल में लाएं , भाभी ने क्या खबर आपकी दी हुई शॉल इसलिए अपनी बहन को दी हो के उसे बहुत अच्छी लगी हो, और वह अपनी प्यारी चीज तोहफा देना चाहती हो,

जो सहेली या दोस्त आपको खुद से कॉल नहीं करती/करता ,क्या खबर की बहुत मसरूफ हो,या फोन खो गया हो, नंबर गुम हो गया हो, तोहफा आप जो भी दें कोशिश करें के बस अल्लाह की खातिर और मुहब्बत बढ़ाने की गर्ज से दें, अगर आपको ये एहसास है के आप मुसलसल अच्छा तोहफा देते हैं, दूसरे हर बार आपकी नाकद्री करते हैं तो उनके लेवल पर आ कर तोहफा दे दें क्योंकि तोहफा देने का मकसद मुहब्बत बढ़ाना होता है, अगर तोहफा ही मुहब्बत कम करने का सबब बन रहा है तो कोई तब्दीली करें , मियां को भी बताएं के उनकी फलां बात से आपको उलझन होती है,

खामोशी से कुढ़ते रहने की बजाए अपनी बात कह दीजिए ,

देखिए , बिना बताए बस अल्लाह ही की जात है जिसको सब पता हो, इंसानों को मुंह से बोलकर बताना पड़ता है, ये तरीका बहुत गलत है और औरतों में तो आम है के दिल ही दिल में कुड़ती जाएंगी और थक कर के बात उलझा देंगी, दूसरे लोगों से कह कहला कर दिल हल्का करने की कोशिश में लगी रहेंगी , लेकिन उससे ताल्लुक वाले बन्दे को हवा तक नहीं लगने देंगी, भाई बोलें जो मसला है,

कभी कभी आपकी कोई बात आपके लिए बहुत बड़ी होती है जबकि दूसरे के नज़दीक कोई अहमियत नहीं रखती , उन्हे बताएं के मुझे फलां बात इस तरह महसूस हुई और उसपर मेरी दिल शिकनी भी हुई, सामने वाला बंदा या तो अपनी वजह बताएगा जो आपको पता ना थी या शर्मिंदा होकर आगे के लिए एहतियात करेगा , दोनों सूरतों में रिश्ता बेहतर हो जायेगा , और जो कहना है डायरेक्ट कहें दूसरों के जरिए से बात पहुंचाना बहुत ही बचकाना रवैया है

उम्मीदें कम और हकीकत पसंदाना रखें, जिंदगी बहुत मसरूफ है, हर एक अपने अपने कामों में मसरूफ है, ऐसे में ये उम्मीद ना रखें के कोई सुबह शाम आपको कॉल या मैसेज करे, सालगिरह याद रखे , कोई याद कर ले तो दिल से शुक्र गुजारी हों, ना करे तो ईजी रहें ,

खुद से चीजें Assume ना करें, मुमकिन है कोई बीमार हो, इम्तेहानों में मसरूफ हो, जेहनी तौर कर स्ट्रेस में हो और बात ऐसी हो के आपसे कह ना सकता हो , कुछ भी हो सकता है,

लेकिन !! आप इसके बाद भी किसी के साथ रंजिश बढ़ती जा रही है दिल मुसलसल बोझल है, रूह तकलीफ में है , उसकी कोई खास बात दिलसे निकलती नहीं,तो देखिए के क्या उस इंसान के साथ निभाना बहुत ही ज़रूरी है ?? अगर रहम( पेट) का रिश्ता हो तो झुक जाना पहल कर लेना ज़रूरी है, गोया काम मुश्किल है ,रहम के रिश्ते तोड़ने पर सख्त गुनाह की वइद है इसलिए एहतियात भी इतनी ही ज्यादा , शौहर तो फिर शौहर है, उससे भी पहल कर लें जितना मुमकिन हो सके,

ये बात जेहन में रखें के किसी भी रिश्ते के लिए बाउंड्री बनाएं, नाकाबिल ए बर्दाश्त बात उनके नोटिस में लाएं, मोमिन एक सुराख से दोबारा नहीं डसा जाता , इसलिए किसी को इजाज़त ना दें के आपको इस्तेमाल करे, जिस्म के साथ रूह भी आपके पास अल्लाह की अमानत है,इसका खयाल रखना आप पर फर्ज़ है, किसी को फर्क।नहीं पहुंचता के अपने रवैए से आपकी रूह घायल करे,

रिश्ते के ऐतबार से एक हद तक झुकिए , आगे बढ़िए लेकिन अगर पहल करना ज्यादा मुश्किल हो रहा है तो रास्ता अलग कर लें, मुश्किल अमल है लेकिन बार बार हर्ट होने से बेहतर है के रिश्ता अलग कर लिया जाए,

किसी भी ताल्लुक में बहरहाल दरगुजर करना जरूरी है, साथ रहें तब भी, अलग हो जाएं तब भी, ला ताल्लुकि का मुतालबा ये नहीं के नफरत का बोझ दिल में रखे बाकी जिंदगी गुजारनी है,

माफ करें और आगे बढ़ें, आपके मिजाज़ का कोई बंदा आपको मिल ही जायेगा, और मेरा तजुर्बा है के ढेरों के बजाए वह एक आध जिगरी यार ही काफी है,

साभार: बहन सबा यूसुफजई Saba Yousuf Zai
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamcleaks