Wednesday, March 31, 2021

दो और दो चार होते हैं,

 



मास्टर सहाब बच्चे को बड़ी जान लगाकर हिसाब सिखा रहे थे, वो मैथ्स के टीचर थे, उन्होने उस बच्चे को अच्छी तरह समझाया के दो और दो चार होते हैं,


मिसाल देते हुए उन्होने उसे समझाया के यूं समझो के

" मैंने तुम्हे दो कबूतर दिए , फिर दो कबूतर दिए , तो तुम्हारे पास कुल कितने कबूतर हो गए??"

बच्चे ने जवाब दिया ,' मास्टर जी पांच "

मास्टर साहब ने उसे दो पेंसिल दी और पूछा ये कितनी हुई ?? बच्चे ने जवाब दिया के , " दो

फिर दो पेंसिल पकड़ा कर पूछा के अब कितनी हुई??
"चार" बच्चे ने जवाब दिया ,

मास्टर साहब ने एक लम्बी सांस ली जो उनके इत्मीनान और सुकून की अलामत थी,

फिर दोबारा पूछा ," अच्छा अब बताओ के मानलो मैंने पहले तुम्हे दो कबूतर दिए ,फिर दो कबूतर दिए तो कुल तुम्हारे पास कितने हो गए ?? " पांच " बच्चे ने फौरन जवाब दिया ,

मास्टर साहब ने झुंझलाकर कहा," अरे अहमक ! पेंसिल दो और दो चार होती हैं तो कबूतर दो और दो पांच क्यों होते हैं ?? उन्होने रोने वाली आवाज़ में पूछा,

" मास्टर जी एक कबूतर मेरे पास पहले से ही है " बच्चे ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया

हम मुसलमान तो हो गए मगर कुछ कबूतर हम अपने बाप दादाओं से ले आएं हैं और कुछ समाज से ले लिए हैं, इसीलिए जब कुरआन की बात सुनते हैं तो सुभानल्लाह भी कहते हैं,

जब हदीस ए नबावी सुनते हैं तो दुरूद भी पड़ते हैं, मगर जब अमल की बारी आती है तो बाप दादा और समाज वाला कबूतर निकाल लेते हैं,

शादी ब्याह की रस्में देख लें, हिंदू, सिख और मुसलमान की शादी में फर्क सिर्फ फेरों और इजाब वा कुबूल का है, बाकी हिंदुओं मे भी दूल्हे की मां बहन नाचती है तो मुसलमान की शादी पर भी मुंडे की मां बहन ना नाचे तो शादी नहीं सजती,

विरासत में दौर ए जिहालत का कानून लागू है, बेटी का कोई हिस्सा नहीं,

दहेज गैर मुस्लिमों की रस्म है के बेटी को जायदाद में हिस्सा तो देना नहीं लिहाजा दहेज के नाम पर माल बटोरो और यही काम आज मुसलमान कर रहा है, जो इस्लाम से पहले से हमारे पास है,

हमने कलमे की " ला" के साथ इस पांचवे कबूतर को उड़ा कर पिंजरा खाली नहीं किया,

(तारीख ए इस्लाम के वक्यात)

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks

Tuesday, March 30, 2021

औरत

 



औरत


एक प्यासा मुसाफिर कुवें के पास पहुंचा तो वहां एक औरत पानी भर रही थी, मुसाफिर ने उससे पानी लेकर पिया और पूछा :- " ए भली औरत ! तू औरत की मक्कारी के बारे में क्या जानती है ??

सवाल सुनते ही औरत ने चीखना शुरू कर दिया .....मुसाफिर घबरा गया और बोला ," ऐसा क्यों करती हो??

औरत बोली , " ताकि गांव वाले तुझे कत्ल कर दें तूने मुझे तकलीफ दी है"

मुसाफिर घबरा गया और हाथ जोड़कर बोला ," मुझे माफ कर दो !! तुम बहुत अच्छी, शरीफ और रहमदिल लगती हो"

औरत ने ये बात सुनी और जल्दी से घड़े का पानी खुद पर उंडेल लिया , इतने में गांव वाले आ गए, औरत ने उन्हें बताया के मैं कूवें में गिर गई थी इस नेक आदमी ने मुझे बचाया है,

गांव वालों ने मुसाफिर का शुक्रिया अदा किया और उसकी जवां मर्दी की तारीफ करने लगे ,

जाते जाते उस औरत ने मुसाफिर से चुपके से कहा," याद रखो औरत को तकलीफ दोगे तो वह तुम्हारा सुख चैन छीन लेगी, उसे खुश रखोगे तो वह तुम्हे मौत के मुंह से निकाल लाएगी "

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks 

Monday, March 29, 2021

शादियों के वक्त पर औरतों का हद से बड़ जाना, (किस्त 1)

 



शादियों के वक्त पर औरतों का हद से बड़ जाना, (किस्त 1)


दुल्हन का नीम बरहना लिबास , गैर मर्दों का औरतों को अलग अलग अंदाज से फोकस करके कमरे में बंद करके फिल्में बनाना और बाप भाई की गैरत के कान पर जूं तक ना रेंगना , और तो और कुछ दीनदार घरानों में भी इस मौका पर हया का जनाजा उठता नज़र आता है के दिल खौफ से कांप जाता है,

मूवी मेकर , फोटो ग्राफर ऐसे बन ठन कर शादी के प्रोग्राम में आते हैं जैसे शादी ही उनकी हो, ना जाने आपकी गैरत कैसे गवारा कर जाती है के एक गैर मर्द आपकी नई नवेली दुल्हन को आपके पहले देखे और अलग अलग स्टाइलों से उसका फोटो सेशन करे ??

अफसोस

अब तो ऐसे रंज वा गम का वक्त है की किस किस चीज़ को रोया जाए ?? दूल्हा मियां खुद मूवी मेकर, फोटो ग्राफर को गाइडलाइन दे रहा होता है की ,

" ये मेरी बहन है, मेरी कजिन, मेरी खाला और ये दुल्हन की बहन, अम्मा खाला वगेरह वगेरह हैं"

और साथ ही उसे सख्ती से कहता है के ," सब लेडीज की तस्वीर ठीक से बनाना"

लम्हा ए फिक्रिया तो ये है के जो बंदा जितना गरीब है वह उतना ही ज्यादा पैसा इन गुनाह की रस्मों पर खर्च करता है, चाहे उधार ही क्यूं ना लेना पड़े,

पूछो तो ये लोग कहते हैं," हमारी बिरादरी में ऐसा करना रिवाज है, खानदान में नाक कट जायेगी, लोग कहेंगे फलां की शादी पर नाच गाना, रांड़ का डांस , आतिश बाज़ी, फायरिंग नहीं हुई शादी में जाने का मजा नहीं आया "

याद रखो!!

जिन लोगों को दिखाने के लिए आप ये सब बेजा रस्में अदा करते हैं उनको आपके बेटे - बेटी की तलाक से कोई फर्क नहीं पड़ता , उन लोगों को कोई परवाह नहीं के आपने पैसे उधार लिया है या दिन दहाड़े डाका मारा है, यही लोग आपकी औलाद के तलाक के मौके पर कहते हैं,

" इतनी फहाशी तो फैलाई थी इन लोगों ने शादी के मौके पर तो अंजाम तो बुरा ही होना था"

भाई और बहनों ! दुनिया नहीं जीने देती ,दुनिया को नहीं देखो अपनी जेब को देखो , इस्लाम के हुदूद को देखो, इस्लाम ने तो शादी को इंतेहाई आसान बनाया है, इन मिट्टी के पुतलों ( इंसान) को नाजायेज खुश करने के लिए गुनहगार मत बनो,

अल्लाह ताला को खुश करोगे तो आपकी शादी कामयाब होगी इंशा अल्लाह,

बहुत से लोग शादियों के मौका पर घरों और मैदानों , सड़कों पर टेंट लगा लेते हैं और औरतों का नाच देखते हैं, निकाह का इन नाचने वाली औरतों से क्या ताल्लुक है ??

बहुत से शादियों में देखा है की घरों के बुजुर्ग भी इन फहस महफिलों में शामिल होते हैं और इन फहश औरतों से फहाश हरकतें सर ए आम करते हैं, और बहुत सी जगहों में देखने में आया है के " दूल्हा मियां" खुद इन फाहश औरतों के साथ डांस के साथ साथ फहाश हरकात करना भी ज़रूरी समझता है,

आप खुद ये फैसला करो ये शादी के मौके पर आप अल्लाह के अजाब को दावत दे रहे हो के नहीं ??ऐसी शादी में बरकत कैसे आ सकती है ??

जारी.....

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks

Sunday, March 28, 2021

किसी जंगल में एक सयाना कव्वा रहता था

 



किसी जंगल में एक सयाना कव्वा रहता था , कव्वा बहुत खुशहाल जिंदगी गुज़ार रहा था , बगैर किसी परवाह के वो पूरा दिन घूमता रहता और तरह तरह के खाने पीने का लुत्फ उठाता ,अंधेरा होते ही किसी खुशबूदार पेड़ पर रात गुजारता , जिंदगी के हसीन दिन गुजारते गुजारते एक दिन जब उसकी एक हंस से मुलाकात हुई तो इस मुलाकात के बाद वह परेशान रहने लगा ,


दरअसल उसकी परेशानी की वजह ये फिक्र थी जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी के,

" हंस इतना सफेद और मैं इतना काला, ये हंस दुनिया का सबसे खुश परिंदा होगा "

कव्वे ने अपने ख्यालात हंस को बताए , हंस ने कहा, " असल में मुझे लगता था मैं सब से ज्यादा खुश हूं जबतक मैने तोता नहीं देखा था ,तोते के पास दो अलग अलग रंग हैं, अब मैं सोचता हूं तोता सबसे ज्यादा खुश होगा "

कव्वा तोते के पास पहुंचा , तोते ने कौवे को बताया ," मैं बहुत खुश जिंदगी गुजार रहा था , फिर मैंने मोर देखा , मेरे पास तो सिर्फ दो रंग हैं जबकि मोर के पास कितने ही रंग हैं"

कव्वा मोर से मिलने चिड़ियाघर जा पहुंचा , वहां कव्वें ने देखा के सैंकड़ों लोग मोर को देखने आए हैं, लोगों के रवाना होने के बाद कौवा मोर के करीब गया , कौवे ने कहा ," प्यारे मोर !! तुम बहुत खूबसूरत हो तुम्हें देखने हजारों लोग आते हैं, मुझे लगता है तुम दुनिया में सबसे ज्यादा खुश रहने वाले परिंदे हो"

मोर ने जवाब दिया ," मैं भी सोचता था की मैं सबसे खूबसूरत और खुश परिंदा हूं लेकिन मैं अपनी खूबसूरती की वजह से मैं चिड़ियाघर में कैद हूं, मैंने चिड़ियाघर में काफी गौर किया और मुझे अंदाजा हुआ के सिर्फ कव्वा वह अकेला परिंदा है जो चिड़ियाघर के किसी पिंजरे में कैद नहीं, पिछले कुछ दिनों से मुझे लगता है की अगर मैं कव्वा होता तो आजाद होता "

अगर हम सोचें और जायज़ा लें तो हम में से कुछ इंसान भी ऐसे ही जिंदगी गुजार देते हैं, जिंदगी का मवाज़ाना करते करते नाशुक्री करने लग जाते हैं,

जो अल्लाह में दिया होता है उससे भी लुत्फ हासिल नहीं कर पाते , अपने पास दस रुपए होते हैं लेकिन दूसरों के सौ पर नज़र रखने की वजह से बेचैन जिंदगी गुज़ार रहे होते हैं,

अल्लाह ने इंसान को बेशुमार नेमतों से नवाजा है लेकिन इंसान फिर भी नाशुक्रा है, अपने से ज्यादा वाले से मवाजाना कर एहसास कमतरी में अपने को मुब्तिला करता है,

बराबरी करना ही हो तो अपने से कमतर से कीजिए और फिर अल्लाह का शुक्र कीजिए जिसने इस कद्र नेमतों से नवाजा है,

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks

Saturday, March 27, 2021

इबरत की जगह है तमाशा नहीं है!!

 



इबरत की जगह है तमाशा नहीं है!!


अपने नफ्स को साफ करने की ज़रूरत,

आज मेरी बीवी की एक सहेली उसे मिलने आई, बहुत गमजदा और परेशान थी, कुछ महीने पहले उसकी मां का इंतकाल हो चुका है, उसकी अभी शादी नहीं हुई, भाइयों के पास रहती है,

कहने लगी , बाजी ! मैंने अम्मी के सारे सूट निशानी के तौर पर रखे हुए हैं, जब बहुत उदास होती हूं तो उनमें से कोई एक निकाल कर पहन लेती हूं, दिल को झूठी तसल्ली दे लेती हूं के अम्मी को गोद में हूं, लेकिन भाभियां लड़ती हैं ,कहती हैं के ," मरे हुए की इस्तेमाल हुई चीज़ों में नहूस्त होती है, उन्हे घर में मत रखो जितनी जल्दी हो सके जान छुड़ा लो "

मैं किचन में बैठा नाश्ता कर रहा था जब ये बात मेरी कानों में पड़ी, मैंने वहीं से पूछा ," अच्छा ये बताओ के अम्मी के जो इस्तेमाल किए जेवरात थे, कानों की बालियां या हाथों की चूड़ियां वगेरह वह कहां हैं ??"

कहने लगी," भाई वाह तो भाभियों ने आपस में बांट लिए , अपनी बेटियों के लिए के उनकी अम्मा की निशानी है"

मैने कहा," भाभियों से पूछो, ये सोने के जेवरात भी तो मरहूमा के इस्तेमाल शुदा हैं, क्या उनमें नहूसत नहीं है, क्या उनको भी सदका नहीं कर देना चाहिए था , सारी नहूस्त क्या सिर्फ जूती कपड़ों और सस्ती चीज़ों में घुसती है ??,"

कैसा अजीब समाज है हमारा , मरहूम की कीमती और मनपसंद चीज़ें बाखुशी हड़प लेता है, और सस्ती और नपसंदीदा चीज़ों पर मनहूस का लेबल टांग कर गरीबों में सदका कर देता है, गोया के गरीब सिर्फ मनहूस चीज़ों के हकदार हैं और सदके में सिर्फ बेकार चीज़ें दी जानी चाहिए ,

हमारी बेहीसी और मरहूम की इससे ज्यादा बे तौकीरी और क्या होगी,

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks 

Friday, March 26, 2021

RASM AUR ISLAM

 



कई कई हफ्तों तक बा आवाज़ बुलंद बेहूदा गानों पर नाच कर पड़ोसियों का जीना हराम करके ,


बेपरदगी के साथ मिक्स गैदरिंग के मज़े लेकर,

दिखावे वा नुमाइश के लिए लाखों के कर्ज़ लेकर बेहतरीन दहेज़ और ऊंची किस्म की दावत और रंगीन माहौल बना करके ,

और तमाम गैर शरई रस्मों को लाज़िमी समझ कर अदा करते हुए,

गर्ज ये के अल्लाह की नाफरमानी के तमाम रिकॉर्ड तोड़ने के बाद, सारे बुरे काम करने के बाद मेरे समाज में कुरआन पाक के साए में बेटी की रुखसती की जाती है,

फिर कहते हैं घरों में बरकतें नहीं हैं, आमदनी पूरी नहीं होती, दिन रात लड़ाई झगडे होते हैं, जिंदगी में बेचैनी है, सुकून हासिल करने के लिए नींद की गोलियां का सहारा लेना पड़ता है,

कर्ज़ अदा करने की फिक्र ने डिप्रेशन का मरीज़ बना लिया है,

लगता है किसी ने बुरी नज़र लगा दी है या फिर किसी ने हसद में जादू कर दिया है, यानी कहीं से भी खुद को कुसूरवार ठहराने को तैयार नहीं, ये सोचने को तैयार नहीं के....

ये सब हमारी अपने कर्मों की सजा है,
ये सब अल्लाह की नाराज़गी का नतीजा है,
ये सब नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम की सुन्नतों को तोड़ने का अंजाम है,

अब भी अपने गिरेबान में झांकने को तैयार नहीं,
अब भी अपने आमालों की इस्लाह की फिक्र नहीं,
हम जायज नाजायेज़ , हलाल हराम की फिक्र भूल चुके हैं,
फिर कहते हैं जिंदगी में सुकून नहीं,

जब कुछ समझ नहीं आता तो दुआ तावीज ढूंढने के चक्कर में लग जाते हैं, के कहीं से कोई चमत्कारी वजीफा मिल जाए जिससे चंद मिनटों में मसाइल हल हो जाएं,

याद रहे इस्ताघफर और दुआ से बहतरीन कोई वजीफा नहीं, अपने गुनाहों की माफी मांगना और हमेशा के लिए तौबा कर लेना , अल्लाह को इससे ज्यादा महबूब अमल कोई भी नहीं,

ये सारी परेशानियां हमारी काले अमाल का नतीजा है, लेकिन हमें गुनाहों की माफी मांगना और अपने अमाल सुधारना गवारा नहीं,

अब भी ना सुधरे तो कब सुधरेंगे!!,

मौत की गारंटी है के सौ फीसद आएगी , जिंदगी की कोई गारंटी नहीं के कब तक रहेगी,

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks 

Thursday, March 25, 2021

PEER AUR MUREED




 एक मुरीद अपने पीर साहब की टांगें दबाने के साथ साथ अपना मसला भी बयान कर रहा था ,उसी दौरान पीर साहब की आंख लग गई, लेकिन मुरीद लगातार पीर साहब की टांगें दबाता रहा और अपनी परेशानी भी पीर साहब के गोश गुज़ार करता रहा,


इतने में पीर साहब की आंख खुल गई और वह बोले ," हां ! तो क्या बता रहा था ?? मैं सुन नहीं सका आंख जो लग गई थी, अब दोबारा बता अपना मसला ??"

ये सुनते ही मुरीद को जोरदार झटका लगा और वह एक दम खड़ा हो गया और कहने लगा , " पीर साहब क्या आपने वाकई नहीं सुना ..!!?"

पीर बोला ," हां मेरी आंख लग गई थी, आंख खुल गई है अब बोल ??"

मुरीद बोला ," पीर साहब आंख आपकी नहीं मेरी खुल गई है, जब आप सोए हुए नहीं सुन सकते तो मरने के बाद कैसे सुनेंगे "

और पीर ने शोर मचा दिया ," पकड़ो इस गुस्ताख को ये वहाबी हो गया है "

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks 

Wednesday, March 24, 2021

सोसाइटी और मजहब

 



सोसाइटी और मजहब


अगर एक जगह कुछ लड़कियां बैठी हों और किसी का भाई वहां से गुजरे तो कोई एक लड़की अचानक बोल उठती है, " बहन ! तुम्हारा भाई कितना हैंडसम है, ये तो एक दम हीरो है "

लेकिन अगर एक जगह कुछ लड़के बैठे हों और किसी की बहन वहां से गुजरे तो क्या कोई लड़का ऐसा जुमला कहने की जुर्रात कर सकता है ??

नहीं कर सकते ना !!

इसलिए के सोसायटी ने तय कर दिया है के ऐसे जुमले सिर्फ लड़कियां कह सकेंगी, लड़के नहीं

मैं भी यही कहना चाहता हूं के हमारे ना चाहते हुए भी मज़हब से कहीं ज्यादा ताकतवर सोसायटी हो चुकी है,

दूसरी शादी करना कोई जुर्म नहीं, लेकिन औरत चाहे कितनी ही मजहबी हो वह हरगिज़ हरगिज़ इस चीज़ को तसलीम नहीं करती और सौतन के नाम पर खूनख्वार हो जाती है,

इसी तरह मजहब में शादी के लिए बालिग मर्द वा औरत के लिए उमर की कोई कैद नहीं है, 60 साल का मर्द 20 साल की लड़की से शादी कर सकता है और 60 साल की औरत किसी 20 साल के आदमी से शादी कर सकती है,

लेकिन देख लीजिए , ऐसा जब भी होता है सोसाइटी में तंज के तीर चलाना शुरू हो जाते हैं, हालांकि मजहब में " बेजोड़ " शादी का कोई तसव्वुर नहीं , बस औरत और मर्द बालिग हैं तो वो शादी कर सकते हैं उमर का गैप कोई मायने नहीं रखता ,

हमारी सोसाइटी में तो लोग जवान औलाद के होते हुए मजीद औलाद पैदा करने से भी शरमाते हैं क्योंकि सोसाइटी इसे अच्छा नहीं समझती,

मुस्ताहिक का जकात लेना उतना ही जरूरी है जितना साहब हैसियत का जकात अदा करना , लेकिन देख लीजिए

जकात लेना गाली बन गया है, मजबूर से मजबूर शरीफ आदमी भी उधार लेना गवारा कर लेता है, जकात नहीं लेता , हालांकि जरूरतमंद होते हुए भी जो जकात नहीं लेता वह भी एक तरह से गुनाहगार ही ठहरता है, क्योंकि वह अगर जकात नहीं लेगा तो कोई दूसरा गैर मुस्तहिक वह रकम ले उड़ेगा,

असल में सोसायटी अपने आपमें बड़ी जालिम चीज है, ये समाजी मामलात को देखते हुए उसूल खुद तय कर लेती है, ये मज़हब को मानती तो है लेकिन सिर्फ इबादत की हद तक , अमली मामलात में ये सिर्फ अपने उसूलों को तरजीह देती है,

पसंद की शादी मजहब में कोई जुर्म नहीं लेकिन हमारी सोसाइटी में ये अब भी किसी हद तक नपसंदीदा चीज़ ही समझी जाती है,

मजहब कहता है जब बच्चे बालिग हो जाएं तो जल्द से जल्द उनकी शादी कर दो, लेकिन सोसाइटी कहती है के सिर्फ बालिग नहीं बल्कि जब अपने पैरों पर खड़े हो जाएं तब करो, चाहे तब तक 35 साल तक ही क्यूं ना पहुंच जाएं, यही वजह है के हमारे समाज में बहुत कम ऐसे लड़के लड़कियां है जो 18 साल को उम्र को पहुंचते ही शादी शुदा हो जाते हैं,

मजहब कहता है औलाद को हराम लुकमे से बचाओ, सोसाइटी कहती है के नहीं औलाद के लिए जो कुछ हो सकता है कर गुजरो,

मज़हब जात बिरादरी को सिर्फ पहचान का जरिया करार देता है, लेकिन सोसाइटी इसे फख्र का जरिया समझती है,

कभी सोचिएगा गौर कीजिएगा , सोसाइटी के उसूल कोई नहीं बनाता ये अपना उसूल खुद तहरीर करती है, और लोग ना चाहते हुए भी इस पर अमल करने पर मजबूर हो जाते हैं "

सोसाइटी ने लोगों के जेहन में ये बात भी डाल दी है के मजहब के बगैर रहा जा सकता है लेकिन सोसाइटी के बगैर नहीं,

लेकिन लोग ये बात भूल गए हैं के सोसाइटी के बिना रहा जा सकता है मजहब के बगैर नहीं,

लेकिन फिल ज़माना हम मजहब को अपनी मर्ज़ी से चलाना चाहते हैं और सोसाइटी से रिश्ता तोड़ने को तैयार नहीं,

मजहब में अपनी तरफ से पैदा की गई मर्जी और सोसाइटी के उसी के इसी दोगले मेय्यार ने हमारे कौल वा फेल में अजीब सा तजात भर दिया है,

दीन वा दुनिया को अपनी चालाकी से राम करते करते हम अजीब सी मखलूक बन गए हैं,

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks 

Tuesday, March 23, 2021

अगर आपको दुनिया बदलनी है तो खुद को बदल डालिए,


 


अगर आपको दुनिया बदलनी है तो खुद को बदल डालिए,


जो अपने हालात नहीं बदल सकता वह दुनिया को क्या बदलेगा,

दिन का पहला काम बड़ा अहम होता है जब सुबह उठें तो नमाज़ ए फज्र से शुरुआत करें और जिक्र अज़कार के बाद पूरे दिन की प्लानिंग कर लीजिए ,

सुबह के चंद काम जो आपने बड़े बेहतरीन अंदाज से किए हों आपको दूसरे बड़े काम करने की हिम्मत देते हैं,

हर दिन ऐसे उठें के आप एक बड़ा काम करने जा रहें हैं दुनिया बदलने जा रहें हैं, फतह के झंडे गाड़ने जा रहें हैं, ऊंचे पहाड़ों को फतह करने जा रहें हैं,

बुलंदी पर पहुंचने से पहले बुनियादों को ठीक करें, हम सबकी जिंदगी में चैलेंज मुश्किलात और मसाइल हैं मसला तब बड़ा लगता है जब हम खुद इस मसला को बड़ा मानने लगते हैं,

आपके अंदर की आवाज़ और यकीन के कोई मुझे हरा नहीं सकता ये यकीन ही आपको कामयाबी तक पहुंचाएगा,

कितना ही अंधेरा हो ये अंधेरा जरूरी है सितारों के चमकने के लिए , आपके लिए Dark Moment बेहतरीन Moment बन सकते हैं सिर्फ आपके एक इरादे और अज़म से,

उम्मीद नहीं छोड़नी हिम्मत नहीं हारनी निगाह बुलंद रखनी हैं अज़म पुख्ता रखने इरादे मजबूत रखने हैं अपने मजबूत इरादे से मुश्किल को आसान बनाना है,

रोजाना सिर्फ एक फीसद तब्दीली से आप मुकम्मल जिंदगी बदल सकते हैं, रोज़ मुस्कुरा कर देखें दूसरों को इज्जत देना शुरू करें , ऐसे दरख़्त लगाएं जिनकी छांव में आपको नहीं बैठना, ऐसे कुवेन खोदें जिनका पानी भी आपको नहीं पीना,

आप हालात को ना बदल सकें खुद को बदल दें, तकदीर खुद बदल जाएगी,

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks