Monday, March 1, 2021

DUSRI SHADI

 



दूसरी शादी !!

ये 2018 की एक शाम थी जब मेरे मोबाइल की बेल बजी काल रिसीव की,एक सहाब ने सलाम दुआ के बाद में पूछा अब्दुल्लाह साहब ! क्या आप रिश्ते करवाते हैं ??
मैंने कहां जी अलहम्दुलिल्लाह !!,
तो अगला सवाल गैर यकीनी था के सर मैं आपसे मिलना चाहता हूं, मैंने पूछा किस सिलसिले में ,
तो जवाब मिला बहन के रिश्ते के सिलसिले में मदद चाहिए, तीन साल हो गए हैं कोई रिश्ता नहीं मिल रहा,
मैंने मुकम्मल तफसील मांगी तो उन्होंने मुझे तफसील व्हाटसएप कर दी, इसके साथ ही मुलाकात करने की ख्वाहिश ज़ाहिर की, मजीद मालूमात लेने से पता चला भाई किराना की दुकान करते है और मेरे इलाके के नज़दीक ही थे, तो मुलाकात के लिए चला गया, काफी अच्छे और शरीफ इन्सान थे,
बहन के मुताल्लिक पूछने पर बताया के चार साल पहले उस भाई के बहनोई एक हादसे में फौत हो चुके हैं, तीन बच्चे हैं और सितम ये के एक बच्ची माजूर( विकलांग) है,
मैंने कहा हिन्दुस्तान/पाकिस्तान में दूसरे के बच्चे कोई नहीं पालता, ये सुनकर उसके आंखों में आसूं आ रहे थे और कहने लगे "प्रोफेसर सहाब मेरी बीवी ने मेरी बहन और उसके बच्चों का जीना हराम कर रखा है,
औरत ही औरत की दुश्मन है आप किसी तरीके से किसी भी तरह रिश्ता करवा दें अहसानमंद रहूंगा, हाथ जोड़ते हुए कहा '"
मैं हालात को मुकम्मल समझ चुका था लेकिन मसला बच्चों का था फिर एक माजूर बच्ची का साथ, बात कुछ समझ से बाहर थी, खैर कोशिश और तसल्ली देकर वापस आ गया ,
काफी सारे लोगों से बात की सब तैयार मगर बच्चों का सुनते ही सब इनकार कर जाते थे , तंग आकर पहली बीवी की मौजूदगी में शादी करने वालों से बात की तो अंदाज़ा हुआ के उनको सिर्फ जिस्म की ज़रूरत थी और यहां बात बच्चों की भी थी,
जो भी सुनता कहता
" बच्चे नहीं चाहिए भाई मुझे, सुन्नत पूरी करनी है बच्चे नहीं पालना, मैं दूसरे की औलाद क्यूं पालू, दूसरे की औलाद कौन पालता है "
दो महीने इसी तरह गुज़र गए मेरा एक दोस्त जो होलसेल का काम करता था काफी मालदार भी था, माशा अल्लाह
एक दिन उसकी दुकान में बैठे बैठे ख्याल आया मैंने कहा रिज़वान भाई, यार दूसरी शादी क्यूं नहीं कर लेता , उसने गौर से मुझे देखा , मेरी तरफ झांकने लगा, तो मैंने कहा क्या हुआ,
जवाब मिला के अब्दुल्लाह भाई देख रहा हूं आप नशा तो नहीं करने लग गए, क्यूं मुझे मरवाना चाहते हो, मैंने कहा
"रिज़वान ये सुन्नत है, आप माशा अल्लाह अच्छा कमाते हैं, अल्लाह ने आपको बहुत सारी नेमतों से नवाजा है आपको ज़रूर दूसरी शादी करना चाहिए और किसी का सहारा बनना चाहिए "
तो उसके इनकार से भी मायूसी मिली,
खैर कुछ रोज़ बाद रिजवान से दोबारा मुलाकात हुई तो काफी मायूस लग रहे थे, मैंने पूछा क्या बात है कोई परेशानी दिखाई दे रही है कहने लगे दुकान में चोरी हो गई, हालात खराब हो गए हैं, मेरी बीवी भी झगड़ा करके मायके जा बैठी है और लगातार तलाक की मांग कर रही है, औलाद नहीं थी,
मैंने अफसोस किया है तसल्ली देने के साथ ही कह दिया के :- रिज़वान इसीलिए आपसे कह रहा हूं की दूसरी शादी कर लें ,आज दूसरी बीवी होती तो पहली बीवी भी छोड़ कर नहीं जाती, अगर नहीं यकीन तो दूसरी शादी करके यतीम बच्चों के सर पर हाथ रखें, फिर देखें अल्लाह की कुदरत, पहली बीवी भी वापस आयेगी और खुशहाली भी"
मेरी तरफ देखने के बाद रिजवान भाई ने कुछ सोचा और पूछा कितने बच्चे हैं उनके, मैंने कहा दो, एक बेटा एक बेटी, माजूर बच्ची का ज़िक्र मैं भूल चुका था , उसने कहा ठीक है आप बात करें जो मेरे अल्लाह को मंजूर,
मैंने लड़की के भाई को कॉल की और शाम को उसको उसकी दुकान पर भी बुला लिया , मुलाकात कारवाई, घर कारोबार देखने के बाद हां कर दिया ,
इस तरह उनका निकाह प्रोफेसर्स रिसर्च अकादेमी टीम के प्रोफेसर्स ने पढ़ाया और रेहाना अपने बच्चे लेकर रिज़वान की जिन्दगी में खुशगंवार झोंके की तरह शामिल हो गई,
रिज़वान भाई ने एक मकान जो किराए पर दिया हुआ था खाली करवा कर रेहाना वा बच्चों को वहां शिफ्ट कर दिया, तब पहली बीवी को पता चला तो वह आंधी की तरह घर आई, घर खाली देखकर रिज़वान भाई को घर बुलाया,
और मियां और पहली बीवी की नोक झोंक हुई तो रिज़वान ने कहा :- तुम्हे नहीं रहना तो बेशक नहीं रहो, तलाक़ लेना है तो बेशक ले लो, अगर यहां रहना है इज़्ज़त से रहो जैसे पहले रहती थी, लेकिन ये ना कहना के रेहाना को छोड़ दो, ये मुमकिन नहीं"
पहली बीवी ने जब देखा कि तीर कमान से निकल चुका है तो वह भी खामोश हो गई,
अब रिज़वान भाई की जिंदगी में बहारें आ चुकी थीं, रेहाना ने उसकी जिंदगी में रंग भर दिए थे, बच्चे शहर के बेहतरीन स्कूल में दाखिल हो गए, लेकिन रिज़वान भाई रेहाना की आंखों में अब भी उदासी देखते और शक कर चुके के कोई बात ज़रूर है,
एक दिन उसने मुझसे जिक्र किया तो मैंने कहा :-" उदासी क्यूं ना हो उसकी एक बच्ची उससे दूर है"
रिज़वान ने कहा:- " बच्ची ! कौनसी बच्ची ??"
तो मैंने सब कुछ बता दिया , रिज़वान ने सब सुनकर मुझे एक नज़र देखा तो मैंने सर झुका लिया,
उस दिन शाम को रिज़वान भाई बीवी से कहने लगे तैयार हो जाओ, बच्चों को भी तैयार करो आज हमें आपके भाई के घर जाना है ज़रूरी काम है,
बीवी का दिल धड़क उठा, पूछा तो जवाब मिला :- जितना कहा है उतना करो "
कुछ देर के बाद ही वो भाई के घर थे, वहां रिज़वान ने रेहाना को कहा के:-" माजूर बेटी कहां है ?" इतना सुनना था के उसे लगा शायद कुछ गलत होने जा रहा है,
वह दूसरे कमरे में है, रिज़वान ने दूसरे कमरे में जाकर देखा तो गलाजत से लतपत बच्ची इंतेहाई कमज़ोरी की हालत में पड़ी थी, रिज़वान भाई इशारा करते हुए कहने लगे :- " रेहाना बच्ची के कपड़े बदलो ये हमारे साथ जायेगी "
रेहाना ने ये सुना तो रिज़वान के कदमों में गिर गई, भाई ने रिज़वान को गले लगा लिया, यूं वह बच्ची रिज़वान अपने घर ले आया,
अब वह बच्ची और दूसरे वह बच्चे रिज़वान, रेहाना और उसकी पहली बीवी की जान हैं, रिज़वान दिन दोगनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है,
एक दिन रिज़वान और उसकी बेगम ने मेरी दावत की तो रेहाना भाभी ने हाथ जोड़कर कहा:-"
सर अब्दुल्लाह साहब कभी ज़िन्दगी में रिश्ते करवाने का काम मत छोड़ना मेरी रिज़वान से शादी ना होती तो मैं आज बच्चों को कत्ल करके खुदकुशी कर चुकी होती, लोगों को बताओ अब्दुल्लाह भाई दूसरी शादी वह नेमत है जो शर्तिया खुशहाली देती है, खुशहाली लाती है, मेरी जैसी लाखों हैं जो दुखों भरी ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं, उनको भी खुशियां देनी हैं, काश के ये नेमत समाज में आम हो जाए"
ये वाकया फर्ज़ी नहीं हकीकी है,
दूसरी शादी वाकई एक नेमत है और ऐसी औरत से दूसरी शादी जिसके बच्चे हों, जिन्दगी में हकीकी खुशियां बिखेर देती हैं, मगर क्या किया जाए ऐसे लोगों का जो दूसरी शादी करना चाहते हैं लेकिन बच्चे नहीं चाहते ,
जो दूसरी शादी के मज़े तो लेना चाहते हैं मगर किसी के सर दस्त ए शफकत नहीं रखना चाहते,
क्या ये है सुन्नत ??
कहां लेकर जाए वह औरत उन बच्चों को कत्ल कर दे या किसी दरिया में फेंक दे, क्या करे, जिन्दगी मौत का किसको इल्म, कब किसको मौत अपने शिंकजे में ले ले,
इल्म है नहीं ना तो हमारे बाद तुम्हारे बच्चों के साथ ऐसा हो, फिर क्या करोगे ?? देर मत करो,
दूसरी शादी करना चाहते हो तो बच्चों वाली से करो, पहली बीवी को भी कहने के काबिल होगे के सहारा देने के खातिर की है, बेसहारा बच्चों को बाप का सहारा दो, ये मत कहो के किसी के बच्चे नहीं पाल सकता , क्या तुम पालते हो बच्चों को ??
अरे पालने वाली जात तो अल्लाह की है, अल्लाह से डरो, डरो उस वक्त से जब अल्लाह तुम्हे खुद दिखाए के देखो कौन पालता है , तुम या मैं ??
कम से कम औरतों को इस किस्म की किसी मजबूर को सहारा देने वाली दूसरी शादी को तो सपोर्ट करना चाहिए,
साभार: हाफ़िज़ अब्दुल खालिक भट्टी
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
ब्लॉग: Islamicleaks.com