बच्चों को बालिग होकर एहसास होता है के असल कामयाबी खिलौने जमा करना नहीं बल्कि तालीमी मैदान में आगे बढ़ना है,
फिर शादी होने पर मालूम होता है के बेहतरीन शरीक ए हयात का मिलना असल कामयाबी है,
फिर रोज़गार के मामलात से दिल में यकीन पैदा हो जाता है के असल कामयाबी कारोबार के बड़ा होने या नौकरी में पोजिशन से है,
जवानी ढलने पर नुक्ता ए नज़र तब्दील हो जाता है के असल कामयाबी तो बसलाहियत औलाद , बड़े से घर और बेहतरीन गाड़ी के होने से है,
फिर बुढापे में इन्सान के नजदीक असल कामयाबी का पैमाना बीमारियों से बचकर जिस्मानी वा दिमाग़ी तन्दरूस्ती का बरकरार रहना करार पाता है,
बिलाआखिर जब मौत का फरिश्ता इन्सान को लेने आ जाता है तो असल बात खुलकर सामने आती है के कामयाबी के तमामतर दुनियावी तसव्वुर दरहकीकत बहुत बड़ा धोका थे, असल कामयाबी का तसव्वुर तो तो अल्लाह की नाज़िल कर्दा किताब कुरआन मजीद में दर्ज है जिसके मुताला वा समझने का वक्त ही नहीं मिल सका था,
इसलिए अभी वक्त को गनीमत जानिए और अल्लाह की तरफ रूजू का जेहन बनाएं,
साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com