इबरत की जगह है तमाशा नहीं है!!
अपने नफ्स को साफ करने की ज़रूरत,
आज मेरी बीवी की एक सहेली उसे मिलने आई, बहुत गमजदा और परेशान थी, कुछ महीने पहले उसकी मां का इंतकाल हो चुका है, उसकी अभी शादी नहीं हुई, भाइयों के पास रहती है,
कहने लगी , बाजी ! मैंने अम्मी के सारे सूट निशानी के तौर पर रखे हुए हैं, जब बहुत उदास होती हूं तो उनमें से कोई एक निकाल कर पहन लेती हूं, दिल को झूठी तसल्ली दे लेती हूं के अम्मी को गोद में हूं, लेकिन भाभियां लड़ती हैं ,कहती हैं के ," मरे हुए की इस्तेमाल हुई चीज़ों में नहूस्त होती है, उन्हे घर में मत रखो जितनी जल्दी हो सके जान छुड़ा लो "
मैं किचन में बैठा नाश्ता कर रहा था जब ये बात मेरी कानों में पड़ी, मैंने वहीं से पूछा ," अच्छा ये बताओ के अम्मी के जो इस्तेमाल किए जेवरात थे, कानों की बालियां या हाथों की चूड़ियां वगेरह वह कहां हैं ??"
कहने लगी," भाई वाह तो भाभियों ने आपस में बांट लिए , अपनी बेटियों के लिए के उनकी अम्मा की निशानी है"
मैने कहा," भाभियों से पूछो, ये सोने के जेवरात भी तो मरहूमा के इस्तेमाल शुदा हैं, क्या उनमें नहूसत नहीं है, क्या उनको भी सदका नहीं कर देना चाहिए था , सारी नहूस्त क्या सिर्फ जूती कपड़ों और सस्ती चीज़ों में घुसती है ??,"
कैसा अजीब समाज है हमारा , मरहूम की कीमती और मनपसंद चीज़ें बाखुशी हड़प लेता है, और सस्ती और नपसंदीदा चीज़ों पर मनहूस का लेबल टांग कर गरीबों में सदका कर देता है, गोया के गरीब सिर्फ मनहूस चीज़ों के हकदार हैं और सदके में सिर्फ बेकार चीज़ें दी जानी चाहिए ,
हमारी बेहीसी और मरहूम की इससे ज्यादा बे तौकीरी और क्या होगी,
साभार: Umair Salafi Al Hindi
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