तकरीबन आज से सौ साल बाद जब हम सब मर जाएंगे, हम सब ये रंगीन दुनिया छोड़ जाएंगे, फिर हम माज़ी बन जायेंगे ,
नई नसल में हमारा नाम ओ निशान खतम हो जाएगा, हमारे अपने ही हमारी कब्र तक भूल जाएंगे,
हमारे जिस्म को मिट्टी खा जाएगी और हमारी रूह ना जाने कहां कहां भटकेगी,
आज हम दूसरों के हुकूक खाते हैं ,लोगों को दुख देते हैं , रिश्वत और हराम की कमाई करते हैं , अल्लाह की मखलूक पर ज़ुल्म करते हैं, गरीबों को सताते हैं, कार बंगला बैंक बैलेंस बनाते हैं,
सौ साल बाद हम सब ये सब छोड़ जाएंगे, आप भी मर जाओगे और हम भी मर जायेंगे ,
फिर नफरतें क्यूं ??
हसद बुग्ज क्यों ??
ज़ुल्म क्यों ??
जात और बिरादरी के नाम पर तफरीक क्यूं??
दो दिन की जिंदगी प्यार, मुहब्बत, अखलाक, एहसास, खुलूस और हमदर्दी के साथ क्यूं नहीं गुजारते ??
साभार: Umair Salafi Al Hindi
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