रिश्तों में बोलना जरूरी है।
कुछ बुरा लगे तो बोलो, कुछ अच्छा लगे तो बोलो, कुछ समझ ना आए तो बोलो, गुस्सा आए बोलो प्यार आए बोलो,
किसी भी हालत में जो भी जज़्बा हो उसको कॉम्प्रोमाइज की छुरी से ज़ीबह मत करो कॉम्प्रोमाइज करनें का मतलब ये नहीं के अपना गला दबा कर अपनी आवाज़ बंद कर दो और अपनी जज़्बात को ज़बान पर कॉम्प्रोमाइज का कोयला रखकर उसको गूंगा कर दो
याद रखो जज़्बात आवाज़ के मोहताज है अल्लाह ने इसलिए ज़बान दी ताकि बोल सको, अल्लाह जब शहरग के करीब रहते हुए भी तुमसे कहता है के मुझे पुकारो तो समझलो बोलना कितना ज़रूरी है,
जब अल्लाह के साथ ताल्लुक में बोलना पड़ता है तो इंसानों के साथ आप कैसे गूंगा बनके रह सकते हैं,
देखें मजबूर होकर दुनिया का कोई भी काम चल सकता है मगर रिश्ता नहीं चल सकता , कोशिश करके देख लेते हैं ये कहने वाले लोग ज़हर भी इसी शौक से खा कर देखें के मरेंगे या नहीं,
साभार: बहन सबा युसुफजई
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com