Thursday, July 30, 2020

FITNA E DAJJAL KA MATLAB (PART I)





फितना ए दज्जाल से क्या मतलब है ?? (किश्त 1)

अरबी ज़बान में दज्जाल के मतलब होते हैं फरेब के किसी शय्य (Element) को हकीकत में कोई और पर्दा डाल देना, इससे लफ्ज़ ए दज्जाल बना है यानी बहुत बड़ा धोखेबाज, जब ये किसी इंसान के लिए इस्तेमाल होगा तब उसके माने होंगे बहरूपिए के,

ये लफ्ज़ क़ुरआन मजीद में कहीं नहीं आया, ना फित्ना ए दज्जाल का आया है, हा हदीस में फित्न ए दज्जाल का ज़िक्र बहुत बार आया है, उसके आने का , उसकी खूबियों का, उसके हालात का, खास तौर पर नबी ए करीम मुहम्मद सल्ललाहो अलैहि वसल्लम की हिदायत है

" जब इंसान सुरह कहाफ पड़ता रहेगा वो फितन ए दज्जाल से महफूज़ रहेगा " ( मुस्लिम)
" जो इंसान सुरह कहाफ की शुरूआती आयात पढ़ता रहेगा वो फित्न ए दज्जाल से महफूज़ रहेगा " (अबू दाऊद)
" जो इंसान सुरह कहाफ की आखिरी आयात पड़ता रहेगा वो फित्न ए दज्जाल से महफूज़ रहेगा " (सुनं निसाई)

मुहम्मद सल्लालाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:- " के सुरह कहाफ इंसान को फित्न ए दज्जाल से महफूज़ रखने में मुफीद है"

क़ुरआन की रोशनी में जब हम देखते हैं तब हमें पता चलता है सबसे बड़ा द्जाल ये दुनिया और दुनिया की ज़िन्दगी है, इसलिए के इस दुनिया ने आखिरत (Day Of Judgement) में पर्दा डाल दिया है,

"क़ुरआन बार बार कहता है कि ये दुनिया का सामान सिवाए धोके के कुछ और कुछ नहीं " (क़ुरआन)

जिस इंसान ने अपनी पूरी महनत, ताकत, दुनिया में लगा दी और आखिरत से गाफिल रहा वो समझो के दज्जाल के फित्ने में गिरफ्तार हो गया, और उसके लिए दुनिया अज़ाब ए इलाही की वजह बन गई,

खास तौर पर दुनिया की चमक बढ़ती जा रही है, दुनिया में जितना मटेरियल चमक दमक है, नजर को लुभाने वाली चमक है, ये चमक जितनी बढ़ेगी दज्जलियत उतनी ही बढ़ती चली जाएगी

काफ़िर जो हकीकत में काफ़िर हैं चाहे नाम उसका मुस्लिम हो ,उसकी पहचान ये है कि उसकी सारी मेहनत, कोशिश, दुनिया के लिए है, दुनिया का आराम हासिल करने के लिए है

ये ही वजह है कि जब हम सुराए कहाफ़ पर गौर करते है, और हमारे नबी ने भी सुरह कहाफ की शुरुआती और आख़िरी आयात पड़ने को कहा है,

" और जो चीज़ ज़मीन पर है उसको हमने उसके लिए ज़ीनत (शोभा) बनाया है ताकि लोगों को आजमाएं की उनमें से बेहतर अमल करने वाला कौन है, और जो कुछ उस ज़मीन पर है उसे तो हम एक चटियल मैदान बना देने वाले हैं " (सुराह कहाफ 7-8)

यानी दुनिया की सजावट, चमक दमक, आज जो मगरिब में अपने चरम पर पहुंच चुका है, आप अंदाजा कीजिए वहां ज़िन्दगी कितनी दिलकश है कितनी चमक दमक है, इस क़दर वह ऊंची ऊंची इमारतें है, आदमी सब भूल जाता है
फ़रमाया

" ताकि हम आजमाएं कौन अच्छे अमल करता है," किया तुम दुनिया ही के अंदर गुम हो जाते हो, मगन हो जाते हो और हमें भूल जाते हो ? दुनिया से मुहब्बत करते हो ? बस ये इम्तेहान का एक पीरियड है, और इस पीरियड में ही इंसान की कामयाबी और नाकामयाबी है, दुनिया में रहते हुए दुनिया से दिल ना लगाना, दुनिया से मुहब्बत ना करना, इसे सिर्फ ज़िन्दगी गुजारने का जरिया समझना, असल महबूब, मकसूद अल्लाह हो जाए, आखिर त की ज़िन्दगी असल मकसूद हो

फिर फ़रमाया:

" आज तुम इस ज़मीन पर को देख रहे हो कल हम इसे चटियल मैदान बना देंगे " जैसे कोई फसल काट दी जाए

सूरह कहाफ आयत 8

फिर अल्लाह आगे फरमाता है:-" ए नबी, इनसे कहिए क्या हम तुमको बताएं के अपने अमल के ऐतबार से, अपनी मेहनत के ऐतबार से, अपनी कोशिश के ऐतबार से सबसे ज़्यादा धोखे में कौन है ? जिनकी भाग दौड़, महनत दुनिया ही की ज़िन्दगी में गुम हो कर रह जाए ? कह दीजिए, क्या हम तुम्हे उनकी खबर दें, जो अपने अमालों के लिहाज से सबसे बढ़कर नुकसान उठाने वाले हैं?

ये वो लोग है जिनकी पूरी कोशिश दुनिया ही की ज़िन्दगी में बर्बाद हो कर रही, और वह अपने आपको यही समझते रहे की वह अच्छे काम कर रहें हैं"

( सुरह कहाफ 103-104)

लेकिन इंसान ये समझ रहा है कि मैंने बहुत कामयाबी पा ली, मैंने फला फैक्ट्री बना ली, मेरी पूंजी पहले से बहुत ज़्यादा हो गई ?

और इंसान से सोचे कि ये सारी हमारी कामयाबी है, हालाकि असल ऐतबार से, आखिर त के ऐतबार से ये वो लोग है जो अपनी मेहनत के ऐतबार से सबसे ज़्यादा धोखे में है,

क़ुरआन मजीद के मुताबिक ये दुनिया और उसकी चमक दमक सबसे बड़ा दज्जाल है, इंसानी जिंदगी का असल दज्जाल ये दुनिया है, हमारा असल घर ये दुनिया नहीं है, जब इंसान इस दुनिया में ही गुम हो जाए और वह भूल जाए के " हम सब अल्लाह के है और उसकी तरफ वापस पलट कर जाने वाले हैं "
( सूरः बकरा आयत 156)

जब इंसान दुनिया का आशिक़ हो जाए तब दुनिया दज्जाल बन जाती है, दुनिया दार उल इम्तेहान है...
जारी.....