Monday, July 13, 2020

TURKEY DRAMA DIRILIS ERTUGRUL KI QAYAMAT (PART 1)






तुर्की ड्रामा, डिरिलिस एर्तगुरुल की कयामत ( पहली किस्त)

सुनने में आ रहा है कि फुरसत के इन लम्हात में तुर्की ड्रामा ( Ertugrul Dirilis ) खूब देखा जा रहा है, नौजवान ए मिल्लत अपने कीमती वक़्त को इस ड्रामे में बर्बाद कर रहे हैं, इस्लामी तारिख और क़ुरआन वा हदीस की तशरीह के लिए कोई मुनासिब किताब पढ़ने की बजाए इसी ड्रामे के पीछे पढ़े हुए हैं, जिसके अंदर बहुत सारी सियासी, समाजी, ईखलाकी, तारीखी एकायेद और दीनी खामियां हैं, लिहाज़ा ज़रूरी समझा के इस ड्रामे पर कुछ लिखा जाए ताकि इससे नौजवान ए मिल्लत होशियार रहें, और अगर कहीं इस पोस्ट में कोई गलती देखें तो बिला झिझक आप रहनुमाई करें उसकी इसलाह की जाएगी, इसका वाहिद मकसद तारीख ए इस्लाम की गैरत है इसकी बुनियाद पर मैंने कलम उठाया है वरना मैं 6 साल से इस ड्रामे से वाकिफ हूं,

उस्मान नहीं Ertugrul क्यूं ??

सवाल ये है के तुर्क बादशाहत Ertugrul के बेटे उस्मान के नाम पर उस्मानी सल्तनत के नाम से मशहूर है, लेकिन बानी ( Founder) का नाम छोड़कर ऐसे सख्स का नाम क्यूं चुना गया जिसकी सख्शियत मझूल (छिपी हुई ) है , ना इसके दीन का सबूत है ना ही निसबत पता है, ना ही उस्मानी सल्तनत इसके ज़माने में वजूद में अाई थी ??

जवाब : चूंकि तुर्की अपने नाटो (NATO) इत्तेहाद यूरोप के खिलाफ इतना बड़ा कदम नहीं उठा सकता था के जिस उस्मान ने यूरोपी सलीबीयों के छक्के छुड़ा दिए थे, कई इसाई इमारतों को खतम करके अनाजूल में रियासत काईम की थी, उसके नाम पर इतना मशहूर ड्रामा बना लिया जाए, ऐसा करके Erdugan यूरोपी यूनियन और नाटो से दुश्मनी मोल नहीं ले सकते थे,। इसलिए इस आलमी नफरत और कौमियत पर मबनी ड्रामे के लिए एक माझूल सख्स का नाम चूना गया जिसे तारीख में Ertugrul के नाम से जाना जाता है,

यही वजह है कि उस्मानी सल्तनत के मशहूर सलातीन के नाम पर ड्रामा ना बना कर पेश कर एक माझूल सख्स को लिया गया ताकि एक तरफ खयाली और तस्सुवूराती वा खुराफाती किरदारों से मुसलमान नौजवानों का ब्रेन वाश किया जाए, और दूसरी तरफ उसके इत्तेहाद परस्त नाटो यूरोपियन मुमालिक भी नाराज़ ना हों इन शख्सियत के नाम को लाने से जिन्होने यूरोप को रौंदा है, जैसे उस्मान अव्वल, बा यजीद अव्वल, मुहम्मद फातेह, सलीम अव्वल और सुलेमान कानूनी वगेरह

ड्रामे का सियासी मकसद ::

बार बार दरख्वास्त करने और यूरोप के हक में बहुत सारे फैसले लेने नेज़ नाटो की ख्वाहिश पर चलने के बावजूद भी यूरोपियन यूनियन में जगह नहीं मिली तो ड्रामे बाजी के जरिए तुरकों को मशहूर करना शुरू किया

2014 से लेकर 2019 तक 5 सीरीज पेश किए जा चुके हैं, हर सीरीज कई कई पार्ट में होते हैं, हर पार्ट को दिखाने के लिए तकरीबन 2 मिलियन लीरा की लागत आती है जिसे हुकूमत की तरफ से अदा किया जाता है, हर पार्ट का फौरी तौर पर तर्जुमा साथ में अरबी के अंदर भी किया जाता है, हालाकि फिल्मों और द्रामों में ऐसा नहीं होता है, जिससे पता चलता है के इस ड्रामे से अरब नौजवानों को ब्रेन वाश करना मकसद है, यही वजह है कि इस ड्रामे पर बाज़ अरब मुमालिक के अंदर पाबंदी लगा दी गई है

इस ड्रामे के अंदर आज से 8 सौ साल पहले की ज़बान और दीन को इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि जिस तरह यर्दुगान और इख्वनियों की दुहरी ज़बान और दीन के नाम पर एवान ए इक्तेदार तक पहुंचना मकसद होता है, इसमें वहीं किया गया है,

2016 के अंदर जो ड्रामाई इंकलाब (Arab Spring) जान बूझ कर करवाया गया था उस वक़्त जब की पूरी दुनिया और बिलखसूस आलम ए अरब के ईखवानी और बर ए सगीर के तहरीकी नजर रखे हुए थे, उस वक़्त इस ड्रामे की आवाज़ और तराने सुनवाए जा रहे थे

ताज्जुब और हैरत की बात ये है कि जो सख्स खुद मुगलों के डर से मारा मारा फिर रहा था उस ड्रामे के अंदर मुजाहिद ए इस्लाम और गाज़ी बना कर दिखाया गया है बल्कि मसीहा बना कर पेश किया गया है, जबकि Ertugrul के दौर में काई (Kai) कबीले ने इस्लाम के नाम पर तन्हा कोई लड़ाई नहीं लड़ी है, और ना की किसी सलीबी जंग में हिस्सा लिया है, बल्कि उस वक़्त सिर्फ माल ए गनीमत के लिए ही कबीला सलाजकह के साथ किराए के तौर पर लड़ता था, गाज़ी उस्मान के दौर में इस्लामी लड़ाई शुरू होती है जिसने उस्मानी सल्तनत की बुनियाद रखी थी,

Ertugrul को अरबों का मसीहा बना कर दिखाया गया है जबकि जिस वक़्त के बारे में ये अफसानवी हवादिस गढ़ कर दिखाए गए हैं उसी वक़्त आलम ए इस्लाम में उसी सर ज़मीन बिलाद ए शाम पर दो अज़ीम लड़ाइयां काफिरों से लड़ी गईं, एक लड़ाई हत्तिन (Hattin) में सलीबीयों के खिलाफ, दूसरी लड़ाई एन अल जलूत (ain al jalut ) तातारियों के खिलाफ , लेकिन इस ड्रामे में इन जंगों की तरफ कोई इशारा नहीं है, क्यूंकि इन जंगो में Ertugrul और उसके कबीले का कोई इशारा नहीं है, क्यूंकि इन जंगो में Ertugrul और उसके कबीले का कोई किरदार नहीं था, बल्कि इसमें सिर्फ अरबों, कुर्दों और अफ्रिकिओं का अज़ीम किरदार था,

सवाल ये है कि जब इतनी बड़ी जंगो में Ertugrul और उसके कबीले का कोई किरदार नहीं था तो आखिर उस वक़्त Ertugrul किस्से लड़ रहा था, और अरबों को किस्से बचाने आया था ?? अरबों ने तो खुद तातारियों और सलीबीयों को अरब मुमालिक से मार भगाया था ??

इसी तरह इस ड्रामे में दिखाया गया है के तकबीर के जरिए कैसे Ertugrul सलीबीयों पर हमला करता है और फलस्तीन का दीफा करता है जबकि उस वक़्त ये शाम के शुमाली हिस्से में थे और फलस्तीन का दिफा नूरुद्दीन जंगी और सलाहुद्दीन आय्यूबी सल्तनत कर रही थी जो शाम के मगरिबी हिस्से मिस्र तक फैली थी, तारीख की किसी भी किताब में सलीबीयों से लड़ते हुए काई कबीले को नहीं दिखाया गया है, ये उसी तरह है जैसे इस वक़्त सय्यद Erdugan मीडिया के अंदर फलस्तीन का दीफ़ा कर रहें हैं,

मकसद सिर्फ नौजवान ए मिल्लत के दिलों में इन वहमी और खयाली ड्रामो के जरिए अपना झूठा सियासी मकाम हासिल करना है,

अब्बासी खिलाफत : इस ड्रामे में सबसे बड़ा जुर्म ये किया गया है के खिलाफत अब्बासिया और दीगर अरब वा कुर्द इमारत का इस ड्रामे के अंदर कोई किरदार नहीं दिखाया गया हलांकी यही उस वक़्त हकीकी मानो में फलस्तीन और बीलाद ए हरमैन का दिफ़ा कर रहे थे, बल्कि ड्रामे के अंदर उल्टा तुर्कों का किरदार दिखाया गया है जबकि 12वी और 13वी सदी ईसवी में तूर्कों का कोई किरदार नहीं था, बिल खुसूस नूरुद्दीन जंगी, अमादुद्दीन जंगी, और सलाहुद्दीन अय्युबी और उसकी औलाद जो कि कुर्द मुसलमान थे, इन बहादुरों का कोई जिक्र नहीं है, और जो काई कबीला उस वक़्त मझूल था पूरी अय्यारी और मक्कारी से पूरा क्रेडिट उसी को दे दिया गया है,

क्या इसे तुर्क कौमियात का नारा और जाहिली अस्बियता का नाम देंगे या हालिया तुर्क और कुर्द लड़ाई को हवा देने के लिए Erdugan ने ये फरेब कारी की है ??

इस ड्रामे के अंदर अरबों को खाइं (चोर) बना कर दिखाया गया है जबकि इन मंगोलियों का कोई जिक्र नहीं है जिनके ज़ुल्म वा सितम की वजह से Ertugrul और अपना आबई वतन छोड़ कर सर ज़मीन शाम की तरफ भागना पड़ा ?? आखिर मंगोलियो से इस तारीखी अगमाज और फरेब से उर्दुगानी ड्रामा नौजवान ए मिल्लत को क्या पैग़ाम देना चाहता है, ??

इस ड्रामे के अंदर शामी शहेर हलब ( allepo) को तुर्क शहेर बना कर दिखाया गया है, आखिर इससे क्या पैग़ाम जाता है, यही ना के Erdogan ने रूस और ईरान के साथ मिलकर हलब वा इदलिब की बरबादी में जो हिस्सा लिया वह सब सही है, इसी तरह शुमाली शाम के इलाकों में सिकांदरिया और अफरीन वगेरह पर तुर्की ने जो जालिमाना कुर्दों के इलाकों पर कब्ज़ा किया है वो सब सही है ??

इसके लिए दरीदा दहनी का सबूत देते हुए इस ड्रामे के बाज़ अदाकारों ने बाकायदा ड्रामे के अंदर ये बयान दिया है के अफरीन का कब्ज़ा सही है, बल्कि एक अदाकार ने तो यहां तक कह दिया के माजी में जो हुआ था शाम के साथ वहीं अमल दोबारा दोहराया जाएगा, यानी टर्को का कब्ज़ा वापस मुल्क शाम पर आएगा !!

एक ख़ास बात ये के इस ड्रामे के अंदर काम करने वालों और किरदार अदा करने वालों से सूटिंग मकामो और स्टूडियोज़ के अंदर Erdogan कभी अपनी बीवी के साथ कभी पूरी फैमिली के साथ उनसे मिलकर उन्हें मुबारकबाद देते नजर आते हैं, तो कभी ड्रामे की शुरुआत में तो कभी आखिरी में दिखाई देते हैं, कभी बाकायदा इसके लिए पूरी महफ़िल सजाते है, हालांकि ऐसा आम तौर पर फिल्मों और ड्रामा में ऐसा नहीं होता है,

इस ड्रामे को इख्वनी मीडिया खासकर कतारी अल जजीरा ने खूब प्रचार किया और एक बार बाकायदा Ertugrul का किरदार अदा करने वाले अदाकार को लेकर Erdugan कतर गए अमीर कतर से मिलने के लिए, जिनकी शाही महमान नवाजी खूब हुई, इससे समझ में आ रहा होगा के इतने महंगे ड्रामे को फ्री में कई ज़बान के अंदर तर्जुमा के साथ चलाने वाला कौन है, और इसे किन मक़ासिद के लिए चलाया जा रहा है

जारी...


साभार : मौलाना अजमल मंजूर मदनी
तर्जुमा: UmairSalafiAlHindi