शादी के बाद लड़कियां ईमान की हलावत क्यूं खो देती हैं ??
एक खातून ने शेख अल्लामा नसीरुद्दीन अल्बानी रहमहुल्लाह से पूछा के शेख मोहतरम शादी के पहले मैंने नमाज़ और रोज़े की बहुत पाबंद थी, क़ुरआन मजीद की तिलावत करने में लज्जत महसूस होती थी लेकिन अब मुझे इन चीज़ों में ईमान की वो हलावत नहीं मिल पाती,
शेख अल्बानी ने पूछा :- " मेरी मुस्लिम बहिन मुझे ये बताओ अपने शौहर के हुकूक अदा करने और उसकी बात मानने का आप किस कद्र एहतेमाम करती हो ?"
वो खातून हैरत से कहने लगी :-" शेख मोहतरम में आपसे क़ुरआन कि तिलावत , नमाज़ और रोज़े को पाबंदी और अल्लाह की फर्माबरदारी के बारे में पूछ रही हूं और आप मुझसे मेरे शौहर के बारे में पूछ रहें हैं "
शेख नसीरुद्दीन अल्बानी में फ़रमाया :-" मेरी बहिन ! कुछ औरतें इसलिए ईमान की हलावत, अल्लाह की फरमा बरदारी की लज्जत और इबादत पर लुत्फ का असर महसूस नहीं कर पाती क्यूं कि रसुलल्लाह मुहम्मद (sws) ने फ़रमाया :- "
( ولا تجد المرأة حلاوة الإمان حتى تودي حق زوجها)
( ولا تجد المرأة حلاوة الإمان حتى تودي حق زوجها)
यानी कोई भी औरत उस वक़्त तक ईमान कि हलावत नहीं पा सकती जब तक वो अपने शौहर के हुकूक अदा ना करे "
( सही तरघीब हदीस 1939)
UmairSalafiAlHindi
Islamicleaks
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