Sunday, July 26, 2020

MUSALMAN E HIND KE LIYE SPAIN KA EK SABAQ







मुसलमान ए हिंद के लिए उंदुलस (स्पेन) का एक सबक

क़ुरआन करीम में बार बार ये सबक दिया है के पिछली कौमों के हालात और उनके अंजाम से इब्रत हासिल की जाए, उनकी तारीख को इबरत का जरिया समझा जाए, और उन रास्तों पर चलने से बचा जाए जिन पर चल कर ये कौमें हलाकत वा बर्बादी से दो चार हुई और सफे हस्ती से मिटा दी गई,

वह कौमें तो शिर्क वा बुत परस्ती और अंबिया की ना फरमानी के इरतेकाब पर मिटा दी गई, लेकिन अगर हम खुद मुसलमानों कि 1400 साला तारीख पर सरसरी नजर डालें और दुनिया के मुख्तलिफ इलाकों में उनके उरूज और ज़ावाल की कहानी पढ़ें तो अपने मुल्क के मौजूदा हालात में बहुत कुछ सीखने को मिलता है,

जिस तरह हिंदुस्तान पर मुसलामनो ने लगभग 800 साल हुकूमत की, फिर सलब होने के बाद आज तक उनकी जो दास्तान है वह सामने है, उसी तरह उंदूलस ( मौजूदा स्पेन ) में भी तकरीबन 800 साल तक मुसलमानों ने हुकूमत की, फिर वहां मुसलमानों के इक्तेदार का खात्मा हुआ,, उसके कुछ अरसा बाद मुख्तलिफ मराहिल से गुजरते हुए एक वक़्त आया के एक एक मुसलमान से स्पेन को खाली करा लिया गया, उसकी पूरी दास्तान बहुत लंबी है,

सुकूत ए स्पेन और मुसलमानों के ज़वाल के अस्बाब पर सैकड़ों किताबें लिखी जा चुकी हैं, जवाल के अस्बाब में एक अहम सबब " तवायफ अल मुलुकी " बताया गया है, हम इसी मुलूकी के ताल्लुक से गुफ्तगू की जा रही है,

स्पेन में इस्लाम और मुसलमानों के इस्तेहकाम और इस्लामी खिलाफत के क़ायाम का सेहरा उमवियों के सर है, लेकिन तीन सदिओं तक हुकूमत करने के बाद जब उमवियों में कमजोरी का गई और आखिर 422 हिजरी में हुकूमत पर उनकी गिरफ्त ख़तम हो गई तो वहां पर मुख्तलिफ नसल के मुसलमानों के छोटी छोटी कमजोर हुकूमते कायेम हुई जिन्हें " मुलूकुल तवायफ " के नाम से याद किया जाता है,

इतिहास करो के मुताबिक तवायफ उल मुलुक का दौर स्पेन में मुसलमानों सबसे बुरा और कमजोर दौर माना जाता है,
स्पेन में उमावि हुकूमत के खात्मे के बाद 20 से ज़्यादा हुक्काम 20 से ज़्यादा शहरों और इलाकों में उमावि खिलाफत के वारिस बने, उनमें बर्बर , अरब , और सकालबा थे, हर शहेर की अलग हुकूमत थी, बल्कि बाज़ शहरों में एक से ज़्यादा उम्मीदवार थे, उनके बीच कौमी जंग वा जिदाल का लंबा सिलसिला जारी रहा, जबकि उनके मुखालिफ नसरानी बादशाह अपनी अपनी हुकूमतों और अवाम के साथ पुरसुकून वक़्त गुज़ार रहे थे, नसरानियों ने उन बादशाहों को एक दूसरे के खिलाफ वरगलाना शुरू कर दिया और इस तरह इसलाम और मुसलमानों कि इज्जत और वक़ार को ज़बरदस्त ठेस पहुंची,

बाज़ मुसलमान बादशाहों ने अपनी कमजोरी के बास नासरानियों को जिज़्या देना क़ुबूल कर लिया, और कुछ ने अपने कुछ शहर उनके हवाले कर दिए, ये लोग इसाईं फौजियों के साथ मिलकर अपने मुसलमान भईयों से लड़ाई करने से भी गुरेज नहीं करते थे,

ये नाम निहाद मुस्लिम हुक्मरान इसाई बादशाहों को जिज्या पेश करते थे जिसकी मिकदार हमेशा बढ़ती रहती थी, इसी रकम से वह तमाम मुस्लिम मुलूक उल तवायफ के खात्मे का मंसूबा बनाते थे,

क्या ये हैरत अंगेज बात नहीं के स्पेन के मुसलमानों ने ये तो पसंद कर लिया के दुश्मनों के सामने घुटने टेक दें, अपनी ज़मीन और इलाके उनके हवाले कर दें, जिल्लत वा खवारी की सुलह के बाद जीजया देना क़ुबूल कर लें, अपने भईयों के मुकाबले दुश्मनों से मदद लें, ये सब मुमकिन और आसान था, लेकिन इकतेदार की मुहब्बत और दुनिया की बंदगी से ऊपर उठ कर इस्लाम की जानिब वापसी और इत्तेफाक़ वा इत्तेहाद के साथ अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकड़ ने में उनके लिए आर थी, अंदेशे थे और रुकावटें थी,

डॉक्टर अब्दुल हलीम ओवैस लिखते हैं
" स्पेन से हमारे निकलने कि दास्तान का मुहासिल ये नहीं के दुश्मन अपनी ताकत वा तदबीर से हम पर ग़ालिब आ गया, बल्कि उसमें हमारी अपनी जात में हजीमत की दास्तान मस्मूर है, हम अपने हाथों बर्बाद हुए, हम में से एक ने दूसरे को इस तरह खा लिया जिस तरह बाज़ जानवर दूसरे को खा लेते हैं "
(अजमत रफ्ता पेज 35)

मौसूफ आगे लिखते हैं,:
" तारिख में हमारे लिए इब्रत की चीज़ खुद हमारे जवाल की दास्तान है, जब हमारा कोई अज़ू सिर्फ अपनी फिक्र में लगा रहेगा तो यकीनन तमाम आजा जवाल का शिकार हो जाएंगे "
( पेज 37-38)

अफसोस हमारे मुल्क के मुसलमान जो 130 करोड़ की आबादी में 15 फीसद है वह मुख्तलिफ टुकड़ियों में बटे हुए हैं, उनमें से कुछ मस्लकी तकसीम है , उसके इलावा सियासी ऐतबार से, लिसानी ऐतबार से, जाती बिरादरी के नाम पर भी फासले हैं, हर गिरोह के सर पर नाम नीहाद मगर मजबूत कयादत है, जो अपने मानने वालों को सिर्फ और सिर्फ ये बावर कराने की कोशिश में मसरूफ रहते हैं के तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन तुम्हारे मुखालिफ मसलक वाले हैं, मुखालिफ पार्टी वाले, मुखालिफ बिरादरी वाले हैं,

उन कयादत की तकरीरों और तहरीरों का जयेजा लीजिए और ज़मीनी सतह पर उनकी और उनके मातहतओं की सरगर्मियों पर नजर डालिए तो इस हकीकत को मानने पर कोई हर्ज ना होगा,

अभी कुछ रोज़ पहले खबर मिली है के मुल्क के शुमाल मश्रीक रियासतों में से एक रियासत में किसी मसलक के लोगों का कोई दावती प्रोग्राम होने वाला था, दूर दराज से कुछ उलेमा पहुंच चुके थे, मगर दूसरे मसलक वालों ने अपनी अददी बरतरी और ताकत के बल बूते पर प्रशासन से शिकायत करके उस प्रोग्राम को खतम करा दिया और उस। कार खैर का सवाब लूट लिया,

गौर करें के अगर मुल्क की अक्सरियत से ये शिकायत है के वह 85 फीसद होने की वजह से हम 15 फीसद मुसलमानों को सता रहें हैं और ज़ुल्म वा ज्यादती का निशाना बना रहें हैं तो क्या हम भी अपने कलमा गो भईयों के साथ महज इस वजह से ज़ुल्म वा ज्यादती नहीं कर रहें हैं के वह तादाद में हमसे बहुत कम हैं ???

स्पेन के मुसलमान और उनकी कयादतें अपनी छोटी छोटी हुकूमतों और इलाकों को बचाने के लिए इसाइयों से मदद लेते थे, उसकी भारी कीमत जिज्या की शक्ल में पेश करते थे, इसाइयों से मदद लेकर दूसरी मुस्लिम हुकूमतों और इलाकों पर हमले करते थे, बल्कि कभी कभी उन्हें खुद अपने मुखालिफ मुसलमानों पर हमले कि तर्गीब देते और उनकी मदद करते, मुसलमानों की कमजोरियों से उन्हें आगाह करते, लेकिन इन सब के बावजूद बारी बारी सबका नंबर आया और सब इब्रतनाक अंजाम से दो चार हुए,

स्पेन के तवायफ उल मुलुकी के मामले को सामने रखिए और अपने मुल्क के मुसलमानों कि गिरोह बंदियों का इससे मावज़ाना कीजिए तो मामला कहीं ज़्यादा खतरनाक नजर आता है,

अक्सर जमातों और गिरोहों का एक दूसरे के साथ लगभग वहीं मामला है को स्पेन के मुलुकुल तवायफ का आपस में था, दूसरों की जासूसी करना, उनके राज और उनकी कमजोरी से हुकूमतों को आगाह करना, उनकी मसाजीद और मदरसों पर हमले तक के लिए माहौल बनाना और इस काम में बेदरेग पैसा लगाना, उनको मुल्क का गद्दार बल्कि दहशतगर्द बना कर पेश करना वगेरह वगेरह,

तमाम तर तकाज़ों और ज़रूरतों के बावजूद मसलकी और गिरोही हिसार से बाहर निकल कर एक उम्मत का नमूना पेश करने के लिए कोई माकूल कोशिश दिखाई नहीं देती, इन नाज़ुक हालात में भी हमारी कयादातें या तो मंज़र नामे से गायब हैं या नमूदार होती है तो गीरोही ज़रूरतों और गीरोही चादरों में लिपटी होती हैं, माशा अल्लाह,

हमारी मस्लकी और तबकाती मुलूकुल तवायफ का हाल तो ये है के गैर मुस्लिमों और बुत परस्तों से इजहार एकता में बड़ी फराख दिली का मुजाहिरा करते हैं लेकिन जैसे ही मामला अपने कलमा गो भईयों और जमातों से इष्तराक और तावुन की बात आती है उनकी रगें फड़क उठती है, और उनको ऐसा महसूस होने लगता है के ये तो कुफ्र और ईमान के माबैन इस्तराक और तकारीब की बात है, और ऐसा क्यूं कर मुमकिन है,

मैं बड़े ही अदब के साथ एक अल्लाह, एक रसूल, एक क़ुरआन और एक दीन पर ईमान रखने वाले तमाम अहले वतन से गुज़ारिश करता हूं के मुल्क के मौजूदा हालात में अपनी अपनी रवीश पर नजर सानी करें, इस नाज़ुक वक़्त में मसलक और गिरोह के तहफ्फुज से कहीं ज्यादा दीन और ईमान के तहफ्फुज को फिक्र करें, आपसी इख्तेलफात को एक दायरे में हल करने की कोशिश करें, इख्तेलाफ को इत्तेफाक़ पर ग़ालिब ना आने दें, नौजवान नसल से मेरी खास तौर पर गुज़ारिश है के इफ्तेराक और इंतेशार की शिकार मिल्लत की कश्ती को डूबने से बचाने के लिए आगे आएं, मस्लकी और गिरोह गेम खेलने वालों को कायेल करें के वह अपनी सलाहतें उममत की फलाह वा बहबूद की खातिर अच्छे कामों में इस्तेमाल करें,
साभार: असद आजमी
हिंदी तर्जुमा : UmairSalafiAlHindi