Saturday, July 11, 2020

KYA KALMA PADH LENA HI SHIRK NA KARNE KI DALEEL HO SAKTI HAI





मुसलमानों ने ये समझ लिया है के बस कलमा पढ़ लिया है अब हम शिर्क कर ही नहीं सकते, हमारी सोच ये बन गई है के एक कलमा पढ़ने वाला इंसान कभी शिरक कर ही नहीं सकता है,

जबकि आज हम जहां नजर डालें हमें शिर्क नजर आएगा , लोग आज क्या क्या कर रहें हैं इतना तो मुश्रीकीन ए मक्का भी नहीं करते थे, बल्कि आज का मुशरिक मुश्रिकीन ए मक्का से बदतर मुशरिक है,

मुश्रिकीन ए मक्का भी अल्लाह को मानते थे अल्लाह ही को अपना रब तस्लीम करते थे, क़ुरआन में अल्लाह ताला ने इसका ज़िक्र किया है के जब मुश्किल आती थी तो वो खालिस अल्लाह को पुकारते थे,

पर उनका सबसे बड़ा गुनाह यही था के को मुश्किल दूर होने के बाद अपने बनाए हुए माबूदों की इबादत करते थे वा वसीला लगाते थे, और जो बुत उन लोगों ने बनाए थे वो नेक लोगों के थे,

मुश्रिकीन ए मक्का अपने बुजुर्गों को अल्लाह के यहां अपना सिफारिशी बनाते थे, आज हम देख लें जब हम किसी से कहते हैं के आप अल्लाह के साथ इन बुजुर्गों को क्यूं शरीक बना रहें हैं तो जवाब मिलेगा ,
" हम इनकी इबादत थोड़ी करते हैं हैं तो बस इन नेक लोगों का वसीला लगाते हैं "
बिल्कुल यही जुर्म तो मुश्रिकीन ए मक्का करते थे, आगे हम खुद सोच लें के ऐसा काम करने वाले को क्या कहा जाएगा ?

अल्लाह ताला ने मुश्रिकीन ए मक्का का अकीदा क़ुरआन में बयान किया है,

" आप कह दीजिए के वो कौन है जो तुमको आसमान और ज़मीन में से रिज्क पहुंचाता है, या वो कौन है जो कानों और आंखों पर पूरा अख़्तियार रखता है, और वो कौन है जो ज़िंदा को मुर्दा से निकलता है, और वह कौन है जो तमाम कामों कि तदबीर करता है ?? जरूर यही कहेंगे के अल्लाह, तो उनसे कहें के फिर क्यूं नहीं डरते ?? "

(क़ुरआन सूर युनूस 31)

यानी मुश्रिकीन ए मक्का ला इलाहा इल्लल्लाह का इकरार करते थे, लेकिन और लात , उज़्ज , मनात जैसे नेक बुर्जुगों का वसिला भी लगाते थे,
हम कह सकते हैं आज के मुशरिक , पहले के मुश्रिकीन ए मक्का से बदतर है, क्यूंकि मुश्रिकीन ए मक्का परेशानी में अल्लाह ही को पुकारते थे, लेकिन आज का मुशरिक खुश हाली और परेशानी में गैर अल्लाह को ही पुकारता है ..
जारी...

UmairSalafiAlHindi
IslamicLeaks