Wednesday, February 23, 2022

मेरा तजुर्बा है के हिंदुस्तान के तहरीकी मुजाहिदीन जिसके लिए भी नारे बाज़ी करते हैं उसे खतम करके ही दम लेते हैं,

 



मेरा तजुर्बा है के हिंदुस्तान के तहरीकी मुजाहिदीन जिसके लिए भी नारे बाज़ी करते हैं उसे खतम करके ही दम लेते हैं,


जैसे सद्दाम हुसैन, खलीजी जंग में ये लोग सद्दाम हुसैन के लिए आवाज़ बुलंद कर रहे थे बाद में उसकी लुटिया डुबो दी,

लीबिया का साथ दिया , उसे भी बरबाद कर दिया ,

मुर्सी के हक में नारे बाजी की वह अल्लाह को प्यारे हो गए ,

सीरिया की आवाम के हक में बोलने लगे , उन्हे मुल्क छोड़कर दरबदर होना पड़ा,

इस लिए अच्छा है ये लोग सऊदी अरब के खिलाफ ही रहें,

साभार: शैख अब्दुल्लाह मुस्ताक

नोट : जो दिन रात अरबों की तबाही की तमन्ना और आरज़ूये करते हैं उन लोगों को भी फलस्तीन की फिक्र हो रहा है,

Blog: Islamicleaks 


Tuesday, February 22, 2022

मदखली, मदखली, मदखली !!!,

 



जबसे हमने जमात "इख्वानुल मुस्लिमीन मिस्र" और उसकी दूसरी शक्ल फलस्तीन में " हमास" और उसकी तीसरी शक्ल बर्रे सगीर में " जमात ए इस्लामी", और खुसुसन हमारी जमात अहले हदीस (सलाफी) में से जो जमात ए इस्लामी के रहनुमाओं से मुतास्सिर हैं जिनके पिछले दिनों मैंने नाम भी लिए , उन इख्वानियों की जिस दिन से मैंने पकड़ शुरू की है और उनकी दुम पर पांव रखा है तो उसी दिन से उनकी चीखें निकल रहीं हैं,


मदखली, मदखली, मदखली !!!,

और मेरे हल्के से एक आलिम ए दीन ने फेसबुक पर पोस्ट लिख डाली के ,"जनाब ये लोग मदखली हैं जो उलेमा इजरायल के खिलाफ जिहाद यानी हमला का ऐलान नहीं कर रहे ,"

मेरा इनबॉक्स भरा पड़ा है, के जनाब आप हमास की मुखालिफत करते हैं वह तो मजलूमों की हिमायत कर रही है ,क्या आप जिहाद के मुनकिर हैं ??

आज से पच्चीस साल पहले भी हमें मुनकर ए जिहाद कहा गया था ,जब हमने लोगों को ये समझाया के " कश्मीर का जिहाद खालिस वतनियत का जिहाद है, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा गलत है, पहले पाकिस्तान में तो इस्लाम नाफिज कर लो"

जब हमने ये बात लोगों को समझाना शुरू की तो जवाब में हमें मुंकर ए जिहाद कहा गया ,

अजीब बात ये है आज हमें मदखली कहने वाले वह लोग ही हैं जो कल को कश्मीर की लड़ाई को ऐन जिहाद कहा करते थे लेकिन जब हमारी मेहनत से जब उन्हें तागूत की समझ आई और इस बात का शाऊर हुआ के कुफफार के खिलाफ होने वाली हर लड़ाई जिहाद नहीं बन सकती जब तक के उसमे वह तमाम शरायत मौजूद ना हो जो इस्लाम के मुताबिक होनी चाहिए ,

लेकिन अफसोस ! आज फिर वही लोग हमारे मद्दे मुकाबिल हैं,इंशा अल्ला! अल्लाह से उम्मीद है के अल्लाह उन्हे इस मसले में भी समझ अता फरमाएगा,

मदखलियत

अब हम आते हैं इस बात की तरफ के मदखलियत क्या है, तारीफ तो वह होती है जो दुश्मन भी करे , तो हमारे मुखालिफ तारीफ क्या करते हैं ,उनके मुताबिक सादा अल्फाज़ में आप मदखाली उलेमा की तारीफ ये समझें

" जो उलेमा हुकमरानों के खिलाफ खुरूज को नाजायेज समझते हैं इल्ला ये के वह कुफ्र करें "

अब हम आते हैं अपने असल मौजू की तरफ, क्या हमारे 57 मुस्लिम मुमालिक के जो हुक्मरान हैं अगर वह अपने किसी कमजोरी की वजह से इजरायल पर हमला नहीं कर सकते और उनके यहां जो उलेमा हैं वह उनकी कमजोरी को देखते हुए खामोश हैं, या दूसरे अल्फाजों में वह इख्वानियों की तरह खुरुज नहीं कर रहे तो क्या ये उलेमा मदखली हैं ??

मेरा हर शक्श से सवाल है क्या हर मसला का हल हमला करना ही है कुछ मौके ऐसे होते हैं के जब ताकत न हो तो फिर दुआ ही करनी चाहिए, ये अक्लमंदी नहीं होती के आप अपनी ताकत का मवाजाना (Estimate) ही ना करें और मुखालिफ से भिड़ जाएं, और मैं ये बात अपनी तरफ से नहीं कह रहा हूं शरियत में इसका सबूत मौजूद है,

नबी ए करीम मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने हज़रत आसिम बिन साबित की इमारत में दस अफ़राद का काफिला जासूसी की खातिर मक्का की तरफ भेजा , जिनमे से एक सहाबी हज़रत खुबैब बिन अदी भी थे, वाकया तफसील काफी लंबा है लेकिन मैं मुख्तसर बयान करूंगा के जब इन अशहाब रसूल को पकड़ा गया तो हज़रत आसिम बिन साबित ने अल्लाह से दुआ की, " ए अल्लाह हमारी गिरफ्तारी की खबर अल्लाह के रसूल को पहुंचा दे"

हज़रत आसिम तो मौके पर ही शहीद कर दिए गए और हज़रत खुबैब बिन अदि को मक्का में जाकर फरोख्त कर दिया गया,और फिर कुफ्फार ए मक्का ने बड़े ही दर्दनाक तरीके से हज़रत खूबैब बिन अदी को शहीद कर दिया,

इस वाकए में हमारे लिए एक नसीहत है, मदीना में रियासत भी कायम हो चुकी थी और ये वाक्या गज़वा उहूद के बाद का है और अल्लाह के रसूल को उनके दस सहाबा किराम की सुरत ए हाल से आगाह भी कर दिया गया था , लेकिन फिर भी अल्लाह के रसूल उनकी मदद के लिए क्यों न पहुंचे ,

आपने मस्जिद नबावी में अपने सहाबा किराम को इस वाकए का बताकर अपने अशहाब से सिर्फ दुआ का ही क्यों कहा , आपने सिर्फ दुआ ही की ( आज अगर हम दुआ का कहे तो मदखली ठहरें)
अल्लाह के रसूल ने कुफ्फार मक्का की इसी तरह ईजा रसानियों का आठ साल का इंतजार क्यों किया !!

अगर आज हम ये बात कहें के इजरायल पर हमला करने से पहले हम मुसलमान एक हों , हम ताकत हासिल करें,असलहा खरीदें जैसा के कुरआन कहता है के واعدو لھم ما استطاعتم (जिस तरह के इस वक्त हुकूमत ए सउदी का सालाना दिफाई बजट पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है , वह ताकत हासिल करने की कोशिश कर रहें हैं ,इंशा अल्लाह अल्लाह उन्हे एक ना एक दिन जरूर कामयाबी अता फरमाएगा)

कुफ्फार के मुकाबले मतलूबा ताकत हासिल करने से पहले अगर दुआएं करना मदखलियत है, तो मेरा सवाल उन हजरात से है के ," ए अल्लाह के रसूल हज़रत खुबैब बिन अदी और आसिम बिन साबित की मदद को क्यों ना पहुंचे हालांकि आसिम बिन साबित ने अल्लाह से दुआ भी की थी के हमारी मजलूमियत हमारी गिरफ्तारी की खबर अल्लाह के रसूल तक पहुंचा दे ,

और अल्लाह के रसूल को अल्लाह ने खबर भी दे दी थी लेकिन अल्लाह के रसूल अपने प्यारे सहाबियों की मदद को ना पहुंच सके थे, इस वाक्य में हमारे लिए एक नसीहत छुपी है के जज़्बात में नहीं आना चाहिए बदला लेने के लिए मुनासिब वक्त का इंतजार करना चाहिए , अभी फिलहाल दुआओं का वक्त है ,आप दुआएं करें

और जिन भाइयों को अल्लाह ने ताकत दी है उन्हे हम रोकते नहीं वह इजरायल जाएं और मजलूमीन की मदद करें, वह हमसे बेहतर होंगे इंशा अल्लाह,

लेकिन अगर वह भी हमारे साथ इधर ही बैठे हैं, सारा दिन अपना कारोबार कर रहें हैं, तो मेरा उनसे मशवरा है ज्यादा बातें करने की बजाए वह अपने फलस्तीन भाइयों के लिए दुआएं जरूर करें...

साभार: शैख अब्दुल खालिक भट्टी
हिंदी तर्जुमा محمد عمیر انصاری
Blog: Islamicleaks 

Monday, February 21, 2022

ख्वारिज और रवाफिज का अहले सुन्नत वल जमात के साथ खूनी खेल,




 ख्वारिज और रवाफिज का अहले सुन्नत वल जमात के साथ खूनी खेल,


काजी अयाज़ रहमतुल्लाह अपनी किताब " तरतीब उल मदारिक 5/303 " में लिखते है,

राफज़ी हुकूमत बनी उबैद के ज़माने कैरवान के अहले सुन्नत वल जमात बहुत ही परेशान कुन हालात से गुज़र रहे थे, छुप छुप कर जिंदगी गुजारते थे, राफजियों ने हुसैन अल आमी नामी शख्स को इस बात के लिए मुकर्रर कर रखा था के वह भरे बाज़ार में सहाबा किराम रिजवानुल्लाह को गाली दे, कभी कभी वो नबी ए अकरम मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को भी गाली देता ,सहाबा के नाम शराब की दुकानों कर लटकाए जाते , अगर अहले सुन्नत वल जमात का कोई फर्द हरकत भी करता तो उसकी गर्दन मार दी जाती,

उस ज़माने में जेनाता नामी कबाइल में एक शख्स था जिसकी कुन्नियत अबू यजीद थी, आबिद वा जाहिद था लेकिन ख्वारिज़ के सबसे शदीद फिरका सफरियाह से ताल्लुक रखता था , उसने अपनी जमात को लेकर राफज़ियो के खिलाफ मुहाज खोल दिया ,जब अहले सुन्नत वल जमात ने देखा तो उन्होंने इस खारीजी का साथ दिया क्योंकि ख्वारिज़ अहले सुन्नत वल जमात के नजदीक मुसलमान थे जबकि रवाफिज़ बिल्खुसूस बनी उबैद के रवाफिज़ काफिर थे,

चुनाँचे कैरवान के फुकहा , सुलहा , ऐम्मा वगेरह सभी ने रवाफिज़ की हुकूमत के खात्में के लिए ख्वारिज़ का साथ दिया , जंग की तैयारी शुरू हो गई , अबू यजीद खारजी की कयादत में लोग रवाफिज़ से मुकाबले के लिए निकले , अहले सुन्नत वल जमात के उलेमा वा फुकहा जिहाद का झंडा संभाले हुए थे, अल्लाह रब्बुल इज्जत उन्हे कामयाबी देता रहा , और आखिर में जब महदविया नामी शहर में रवाफिज़ का मुहासिरा कर लिया गया तो अबू यजीद खारजी ने देखा के अब तो हमारी हुकूमत बन्नी तय है, चुनांचे उसने अपनी खारजियत का असली चेहरा जाहिर कर दिया ,

अपनी खास फौज के कहा के," जब तुम रवाफिज़ से मुकाबला आराई के लिए जाना तो उलेमा ए कैरवान का साथ छोड़कर वापस चले आना ताकि रवाफिज़ उनसे अच्छी तरह बदला ले सकें, और ऐसा ही हुआ , रवाफिज़ ने चुन चुनकर कैरवान के उलेमा वा फुकहा और अहले सुन्नत वल जमात के अफ़राद को कत्ल कर दिया और खारीज़ी खबीस बैठकर मज़े लेता रहा "

ये काज़ी अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह का बयान था जिसे मैंने निहायत ही इख्तेसार के साथ बयान किया है, आज के दौर में कोई सोचता है के खारजी राय रखने वाले रवाफिज़ के साथ मिलकर बैतुल मुकद्दस फतह कर लेंगे तो ये उनकी भूल है, बैतुल मुकद्दस ज्यों का त्यों रहेगा बस अहले सुन्नत का वहां से सफाया हो जाएगा ,

ख्वारिज़ और रवाफिज़ दोनों का इजातकरदा (Founder) एक ही है और वह अब्दुल्लाह बिन सबा है, इसलिए दोनों के दिल आपस में मिलते हैं

فاعتبروا يا أولى الأبصار

साभार: अबू अहमद कलीमुद्दीन यूसुफ ( जामिया इस्लामियां मदीना मुनाववारा)
हिंदी तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks

Sunday, February 20, 2022

अमीरुल मोमिनीन खलीफा अब्दुल मालिक इब्ने मरवान -

 



अमीरुल मोमिनीन खलीफा अब्दुल मालिक इब्ने मरवान -


"हज़रत अमीर मुआविया रज़ि० की औलाद में यज़ीद के सिवा कोई खलीफा नहीं हुआ। लेकिन वो तमाम खलीफा जो यज़ीद के बाद तख़्त नशीं हुए अमीर मुआविया रज़ि० के खानदान बनी उमैया से ही ताल्लूक रखते थे,(बाप के बाद बेटे वाला झूठ हज़रत मोआविया र०अ० के दुश्मन ख़ारजी राफ़ज़ियों ने फैलाया)

अब्दुल मालिक 39 साल की उम्र में तख़्त पर बैठा, वो मदीने के बड़े आलिमों में गिना जाता था।

अब्दुल मालिक एक बहादुर शख्स था, उसे शुरुआत में कई बगावतों का सामना करना पड़ा। इन बग़ावतों में सबसे बड़ी बग़ावत खारज़ियों ने की जिनका मरकज़ इराक और ईरान था।

खारज़ियों ने कई साल तक बग़ावत को ज़ारी रखा, और आख़िर में मुहल्लब बिन अबी सफ़रह की कोशिशों से, जो अपने ज़माने के सबसे बड़े सिपहसालार थे, ये बग़ावतें कुचल दी गई और पूरी सल्तनत में अमन क़ायम किया।
अपने इन्हीं कामों की वजह से अब्दुल मालिक खानदान बनी उमैया का बानी समझा जाता है।

शुमाली अफ्रीका को भी अब्दुल मालिक के ही दौर में दोबारा फतह किया गया।

ये काम एक सिपहसालार "मूसा बिन नासिर" ने अंजाम दिया, जो 79 हिज़री में शुमाली अफ्रीका के हाकिम (गवर्नर) बनाए गए थे।

मूसा ने न सिर्फ शुमाली अफ्रीका को फतह किया बल्कि उन्होंने वहां इस्लाम की तब्लीक़ भी की।

उनके दौर में पूरा शुमाली अफ्रीका मुसलमान हो गया।
अब्दुल मालिक के ही दौर में इस्लामी समुंद्री फ़ौज़ की तरक्की हुई और उन्होंने तूनीस में एक जहाज बनाने का कारखाना क़ायम करवाया।

अब्दुल मालिक के दौर का सबसे बड़ा काम येरुशलम में कुब्बतुस - सखरा (गोल्डन गुम्बद) की तामीर करवाना है।"
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Saturday, February 19, 2022

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद

 



हमारी हस्ती सिर्फ दिल और रूह की सच्चाइयों पर कायम है, अगर खज़ाना खतम हो जाए तो फिर जमा किया जा सकता है, अगर फौजें कट जाएं तो दोबारा बनाई जा सकती हैं, अगर हथियार छिन जाए तो कारखानों में दोबारा ढाले जा सकते हैं, लेकिन अगर हमारे दिल का ईमान जाता रहा तो वह कहां मिलेगा ??

अगर कुरबानी और हक़ परस्ती का जज़्बा लुट गया तो वह किस से मांगा जाएगा ??
(मौलाना अबुल कलाम आज़ाद)

Friday, February 18, 2022

दीफा करें मगर कितना ??

 



दीफा करें मगर कितना ??


मैने मुलाहिजा किया के सोशल मीडिया में सय्यद मौदूदी के मुरीद और पैरोंकार इनका दिफा बिलकुल वैसे ही करते हैं जैसे एक मुकल्लिद अपने इमाम का और एक मुरीद अपने पीर का , हालांकि सय्यद मौदूदी ने जो गलत कहा उसी पर नक़द किया जाता है, जो उन्होंने अच्छा किया उसका इंकार नहीं,

दरअसल गलती के नताइज़ का एतबार होता है, चुनांचे उन्होंने अकल वा सेल्फ स्टडी को मेयार बनाकर तारीख वा हदीस,तफसीर और सियासत शरीया में जो ठोकरें खाई हैं, और रवाफिज़ के ताईन जो खारिजी रवैया अपनाया है उम्मत पर इसके बहुत भयानक नताइज सामने आए हैं, चुनांचे उसे एक्सपोज करना और नौजवान ए उम्मत को इससे आगाह करना हर वाकिफ कार मुखलिस मुसलमान पर वाजिब है,

दूसरे ये के मुरीदान ए मौदूदी से गुजारिश है के उमूमी दिफा के बजाए उन लोगों का ताक्कुब करें जो बेजा नक़द करते हैं, क्योंकि उमूमी दिफा सिर्फ किताबुल्लाह, सुन्नत ए रसूल और सहाबा का किया जाता है बाकी किसी का नहीं, चुनांचें इनके इलावा किसी उम्मती का उमूमी दिफा वही करता है जो उसका मुरीद , मुकल्लिद या अंध भक्त होता है, और वह अपनी महबूब शख्सियत को अल्लाह, रसूल या कमसे कम सहाबा के दर्जे में कर रखा होता है,

नोट: अगर ये उसूल जेहन में रहेगा तो हम दिफा शख्सियत में कभी नहीं भटक सकते , चुनांचे हम पर वाजिब है के हम किताब वा सुन्नत और सहाबा का उमूमी दिफा करें क्योंकि कुरआन पाक में उन सबकी तादील, सिकाहत और इन पर कुल्ली एतमाद की सर्टिफिकेट मौजूद है, रहे बाकी लोग तो उनका दिफा उसी कद्र जायज है जिस कद्र उस पर किसी किस्म का ज़ुल्म हुआ हो ,

साभार: डॉक्टर अजमल मंजूर मदनी
तर्जुमा : Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks

Thursday, February 17, 2022

डेविड सेलबॉर्न पश्चिमी दुनिया का मशहूर लेखक है, उसने एक किताब लिखी थी the loosing battle with islam,





 डेविड सेलबॉर्न पश्चिमी दुनिया का मशहूर लेखक है, उसने एक किताब लिखी थी the loosing battle with islam,

इस किताब में उसने लिखा के पश्चिमी दुनिया इस्लाम से हार रही है, उसने हार के कई कारण गिनाए हैं, जिसमे इस्लाम के मज़बूत फैमिली सिस्टम को भी एक कारण बताया है,
पश्चिमी दुनिया मे फैमिली सिस्टम तबाह हो चुका है, जिसके नतीजे में पूरा पश्चिमी समाज तबाह होने के कगार पर पहुंच चुका है, पश्चिमी दुनिया मे फैमिली सिस्टम इस बुरी तरह से तबाह हो चुका है के वहां की पोलिटिकल पार्टियां फैमिली सिस्टम को बचाने का वादा अपने इलेक्शन में करती है, ऑस्ट्रेलिया में तो 'फैमिली फर्स्ट' नाम से एक पोलिटिकल पार्टी तक बना ली गयी थी, फैमिली सिस्टम को बचाना वेस्टर्न वर्ल्ड का सबसे बड़ा मुद्दा है क्योंकि अगर फैमिली नही बचेगी तो समाज भी देर सवेर ध्वस्त हो जाएगा,
पश्चिमी विचारक ये बात बहुत अच्छी तरह से जानते है के पूरी दुनिया मे सिर्फ इस्लाम और मुस्लिम सोसाइटी ही ऐसी बची है जहां फैमिली सिस्टम बचा हुआ है और इस्लाम एक ऐसा इको सिस्टम डेवलप करता है जहां फैमिली सिस्टम फलता फूलता है,
यही वजह है के डेविड सेलबॉर्न जैसे लेखक ये कहने पर मजबूर हो जाते हैं के इस्लाम के मज़बूत फैमिली सिस्टम की वजह से पश्चिम देर सवेर इस्लाम से हार जाएगा
मलाला यूसुफजई को वेस्ट ने खड़ा किया है तो अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल भी करेगा, और करता रहता है,
मलाला हों या उसके समर्थक हों, उन सबका टारगेट इस्लाम और मुस्लिम समाज मे मौजूद मज़बूत फैमिली सिस्टम को तोड़ना और खत्म करना है, शादी बियाह पर दिया गया मलाला का हालिया बयान उसी सिलसिले की कड़ी है
मलाला और उनके समर्थक
दरअसल सभ्यताओं की जंग में पश्चिम के प्यादे हैं, उनके एजेंट हैं, जो सभ्यताओं की जंग में पश्चिम की हारती हुई बाज़ी को जीत में बदलने के लिए फड़फड़ा रहे है