दीफा करें मगर कितना ??
मैने मुलाहिजा किया के सोशल मीडिया में सय्यद मौदूदी के मुरीद और पैरोंकार इनका दिफा बिलकुल वैसे ही करते हैं जैसे एक मुकल्लिद अपने इमाम का और एक मुरीद अपने पीर का , हालांकि सय्यद मौदूदी ने जो गलत कहा उसी पर नक़द किया जाता है, जो उन्होंने अच्छा किया उसका इंकार नहीं,
दरअसल गलती के नताइज़ का एतबार होता है, चुनांचे उन्होंने अकल वा सेल्फ स्टडी को मेयार बनाकर तारीख वा हदीस,तफसीर और सियासत शरीया में जो ठोकरें खाई हैं, और रवाफिज़ के ताईन जो खारिजी रवैया अपनाया है उम्मत पर इसके बहुत भयानक नताइज सामने आए हैं, चुनांचे उसे एक्सपोज करना और नौजवान ए उम्मत को इससे आगाह करना हर वाकिफ कार मुखलिस मुसलमान पर वाजिब है,
दूसरे ये के मुरीदान ए मौदूदी से गुजारिश है के उमूमी दिफा के बजाए उन लोगों का ताक्कुब करें जो बेजा नक़द करते हैं, क्योंकि उमूमी दिफा सिर्फ किताबुल्लाह, सुन्नत ए रसूल और सहाबा का किया जाता है बाकी किसी का नहीं, चुनांचें इनके इलावा किसी उम्मती का उमूमी दिफा वही करता है जो उसका मुरीद , मुकल्लिद या अंध भक्त होता है, और वह अपनी महबूब शख्सियत को अल्लाह, रसूल या कमसे कम सहाबा के दर्जे में कर रखा होता है,
नोट: अगर ये उसूल जेहन में रहेगा तो हम दिफा शख्सियत में कभी नहीं भटक सकते , चुनांचे हम पर वाजिब है के हम किताब वा सुन्नत और सहाबा का उमूमी दिफा करें क्योंकि कुरआन पाक में उन सबकी तादील, सिकाहत और इन पर कुल्ली एतमाद की सर्टिफिकेट मौजूद है, रहे बाकी लोग तो उनका दिफा उसी कद्र जायज है जिस कद्र उस पर किसी किस्म का ज़ुल्म हुआ हो ,
साभार: डॉक्टर अजमल मंजूर मदनी
तर्जुमा : Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks