Tuesday, June 30, 2020

TAREEKHI DRAAMO KI TAHQEEQ KAR LIA KARO







तहकीक तहकीक तहकीक

तकरीबन आठ या दस साल पहले मुझे इस्लामी तारीख पढ़ने का शौक पैदा हुआ, मेरे हाथ में पहली किताब नसीम हेजाजी की थी, यकीन मानिए उनकी किताब उस दर्जे की होती है कि नौजवान को महसूर कर से, आप पड़ते जाएंगे और आपको लगेगा के मुजाहिदीन के घोड़ों की आवाज़ आपके कानों में गूंज रही है, आपको महसूस होगा के बस जैसे की किताब खतम हो और मैं जिहाद पर चला जाऊं या वो इलाके देख आऊं जिन इलाकों का ज़िक्र किताब में हो रहा है,

वहीं इसके इलावा उन हसीन लड़कियों के हुस्न को ऐसे बयान किया है कि उनके जिस्म को ख्यालों में भी उसकी पूरी बनावट इंसान महसूस कर लें और नौजवान मर्दों के चेहरों पर तबस्सुम आ जाए, बहरहाल मैंने उनकी कुछ किताबें पढ़ी, यकीन मानिए मुझे इतना पागलपन हो चला था के मैंने एक किताब 3 दिन में खतम की, पर मेरा दिल नहीं भरता,

मन चाहता की उस किताब के किरदारों के बारे में जानकारी हासिल कर लूं, मैंने बहुत कोशिश की विकिपीडिया पर सर्च किया लेकिन इतनी मशहूर तारीख में उन किरदारों का कोई नाम ओ निशान नहीं था,

फिर मैंने इनायतुल्लाह अल्तमश की किताब पढ़ना शुरू किया जो काफी हद कर सही रिवायतों पर मबनी है, लेकिन कहीं कहीं उसमे भी लड़कियों का ज़िक्र ऐसे करा गया है जैसा मर्द सुनना पसंद करता है, सूफ़ी कल्चर को जान बूझकर डाला गया,

लेकिन इनायत अल्लाह अल्तमश की किताबों में जो किरदार है जो काफी हद तक मोतबर है ,

इस बात को बताने का सिर्फ यही मकसद है कि हम जो देखते हैं उसकी तहकीक जरूर करना चाहिए, औरतों के हुस्न के जरिए हम वो चीज़ भी ले लेते हैं जो हमारे ईमान के लिए खतरा बन जाती है,

Dirilus Ertugrul काफी हद तक में कहूंगा नसीम हेज़ाजी के नॉवेल के पैटर्न पर बना है उसके किरदार आपको किसी भी मोतबर तारीख की किताबों में नहीं मिलेगे, बस हम सीरियल की खूबसूरत तुर्की लड़कियों और कुंवारे लड़कों की आरजूओं का ताना बाना की वजह से तहकीक नहीं कर पाते, याद रखो जिस सीरियल में औरत ना हो वो कभी कामयाब नहीं हो सकता,

मैं पूछ सकता हूं कितने लोगों ने Omar Series देखी है ?? और कितनों ने सलाहुद्दीन अय्यूंबी और नूरुद्दीन जंगी, खालिद बिन वालीद, अमर बिन आस, ओबैदा बिन ज़र्रा , कुतैबा बिन मुस्लिम, तारिक बिन जियाद, मुहम्मद बिन कासिम, उकबा इब्न नाफे , मूसन्ना बिन हरिसा , जैसे जरनैल के बारे में पड़ा है,

अगर नहीं पढ़ा तो पढ़ने कि कोशिश कीजिए अगर किताब नहीं है तो कम से काम विकिपीडिया से ही इनके कारनामे जानिए ,

Monday, June 29, 2020

YUN DAR DAR JHOLIYAN FAILAANE KI AADAT NAHIN HAI MUJHE





यूं दर दर झोलिया फैलाने की आदत नहीं है मुझे , मेरा रब खुद कहता है

" मुझे पुकारो मैं तुम्हारी पुकार सुनूंगा " (अल क़ुरआन 23:20)

और अल्लाह के सिवा जिन्हें तुम पुकारते हो वो तो खजूर की घुठली के छिलके के बराबर भी कुछ इख्तियार नहीं रखते ( अल क़ुरआन 35:13)

फिर तुम किस गुमराही में उलझे जा रहे हो ?

मेरा रब कहता है :-" ए नबी ( sws) तुम फरमा दो ! मैं तुम्हारे नफे वा नुकसान में कोई इख्तियार नहीं रखता " ( अल क़ुरआन 72:21)

Sunday, June 28, 2020

EL BADE FITNE SE AAGAAH KAR RAHA HOON




मुसलमानों तुम्हे एक बहुत बड़े फितने से आगाह कर रहा हूं,
कुछ लोग तुम्हे खिलाफत के नाम पर एक बहुत बड़े फितने में डाल देंगे,

याद रखो खिलाफत कायम करने से नहीं आती, बल्कि खिलाफत अल्लाह को राज़ी करके मिलती है, अल्लाह खिलाफत से नवाज़ता है, खिलाफत अल्लाह की तरफ से तोहफा है,

सहाबा किराम ने कभी खिलाफत के लिए ना ही जंग की है और ना ही कोशिश की है, फिर आखिर ये कौन है जो खिलाफत के नाम पर लोगों को बहका रहें हैं,

भारत में जिस तरह हिन्दुओं को हिन्दू राष्ट्र के लिए बहकाया जाता है उसी तरह दुनिया में मुसलमानों को खिलाफत के नाम पर बहकाया जा रहा है, मैं ज़्यादा गहराई में नहीं जाना चाहता , जानता हूं तुम लंबी पोस्ट पड़ पड़ कर ऊब चुके हो

क्या सीरिया, लीबिया, मिश्र, ट्यूनीशिया में इस्लामी हुकूमत के नाम पर तुम्हारा खून नहीं बहा, क्या मिला हुकूमत से बगावत का सिला , सिर्फ मौतें !

तुम नादान हो ज़रा सी जज्बाती तकरीर सुनकर तुम बावले हो जाते हो, याद करो दाईश की खिलाफत और हमारे मुल्क के एक सरकारी मौलवी की करतूत, जिसने उचलक में अबू बक्र बगदादी को खलीफा मान लिया और उस फर्जी खलीफा को अमीर उल मोमिनीं का लकब से नवाज़ दिया,

ये सिर्फ एक भारतीय मौलवी की करतूत नहीं बल्कि मिस्र , कतर , सऊदी अरब , तुर्की से भी ऐसे मौलवियों का जहूर हो गया था, और उनके लब्बैक पर लाखों मुसलमान जोक दर जोक दईश में शामिल हो रहे थे, काफी तादाद भारतीय मुसलमानों की भी यही, आखिर क्या अफकार हैं इन लोगों के ,
ये उसी सोच का नतीजा था !

ऐसे बहुत से मौलवी बिलों में छिपे बैठे है मौके की तलाश में के कब मौका मिले और मुसलमानों के खून का सौदा करें, मिश्र में हजारों लोग मारे गए, आज हम शाम , लीबिया , को जलता हुए देख रहें हैं लाखों मुसलमान मारा जा चुका है और लाखों मुल्क छोड़ने पर मजबूर हुए, बच्चों के सामने उनकी मां की इज्जत लूटी तो, बीवी के सामने शौहर का क़त्ल हुआ, और तुम्हे बहकाया गया इस्लामी हुकूमत के नाम पर,

इस फितने के बीच सऊदी के तुम पर क्या एहसान था वो मैं नहीं बयान करना चाहता , क्यूंकि तुम जल भून जाओगे,
UmairSalafiAlHindi
#ArabSpring
#अरब बहारिया

Saturday, June 27, 2020

DIRILIS ERTUGRUL TAAREEKH KE AINE ME AUR KURD IKHTELAAF





Ertugrul तारिख के आइने में, और कुर्द इकतेलाफ

किसी भी सीरीज का ये समझ कर बॉयकॉट करना की इससे उस सीरीज के हीरो की इज़्ज़त मजरूह होती है ये सही नहीं है !

जब हम इतिहास में झांकते हैं तो सिर्फ इतना पता चलता है कि जब चंगेज खान ने सेंट्रल एशिया पर हमला किया तो काई कबीला अपनी जान बचाकर अनातोलिया आ गया उस वक़्त काई कबीले की तादाद 400 थी, जब ये अनातोलिया में दाखिल हुए तो सलजूकी फौज एक छोटी मंगोल टुकड़ी से जंग कर रही थी, काई कबीला के लोग सलजुकी फौज के साथ शामिल हो गए, और आखिर में सलजुकि फौज ने मोंगोलियों को हरा दिया,

इस बात से खुश होकर सलजुकी बादशाह ने काई को इनाम के तौर पर एक अनातोलिया के सुदूर इलाके ने एक ज़मीन का टुकड़ा दे दिया, जब कभी भी सलजुकिओं को इनकी जरूरत होती इन्हें बुला लेते, इतिहास में इनका मुसलमान होना भी मशकूक है, ये कब मुसलमान हुए ये भी मशकुक है,

कुछ इतिहास कारो ने Ertugrul के बाप के नाम को लेकर इख्टेलाफ किया है, कुछ कहते हैं कि इसके बाप का नाम काई कबीले का सरदार गुंदुज अल्प था, तो कोई कहता है सुलेमान शाह, कुछ कहते हैं दोनों एक है,

बस इसके इलावा आप पूरी तारीख पढ़ लिए आपको कुछ नहीं मिलेगा, हा अगर कोई Dirilis Ertugrul सीरीज को देख कर इतिहास समझता है तो उसके पास बताने को बहुत कुछ है,

और सबसे बड़ी बाद उस दौर के दो मशहूर आलिम वा इतिहास कार, काजी बहाउद्दीन शद्दाद और इमाम इब्न तैमिय्याह मौजूद थे, काजी बहुद्दीन शाद्दाद ने नूरुद्दीन जंगी और सलाहुद्दीन अय्यूबि सल्तनत का पूरा इतिहास लिखा है और इमाम इब्न तैमिया ने मंगोलिओ का लेकिन उनकी किताबों में आपको Ertugrul के कारनामे बिल्कुल नजर नहीं आएंगे, जबकि ये दो सल्तनत हकीकी तौर पर सलजुकिओ के मातहत थी और फरमा बरदार थी

आखिर क्यों तुर्की को इतिहास से छेड़ छाड़ करने की जरूरत महसूस हुई, वजह है तुर्क और कुर्द इख्टिलाफ,
सबको पता है सलाहुद्दीन अयूबी और नूरुद्दीन जंगी कुर्दी थे, वहीं कुरदी सूफियों के खिलाफ सख्त थे तो तुर्क सुफियत में डूबे हुए थे,

सलजुकी सल्तनत के कमजोर होने के बाद कूर्दी ही खिलाफत के असल वारिस थे, उस वक़्त सलाहुद्दीन के जान नशीन शाम और मिस्र में सलीबियों और मांगोलियो से उलझे हुए थे, तो दूसरी तरफ सलजुकी सल्तनत अपनी आखिरी सांस गिन रही थी,

उसके मरने के बाद बिना कुर्दों के मशवरे से Ertugrul के छोटे बेटे उस्मान को खलीफा बना लिया गया, तब से शुरू हुआ कुर्द और तुर्क का असली इक्तेलाफ , जो आज तक चला आ रहा है, जिस तरह का ज़ुल्म भारत कश्मीरियों पर करता है उसकी तरह का जुल्म तुर्की कुर्दों पर कर रहा है,

कुर्दों की मांग है कि हमें आज़ाद किया जाएं, इसलिए वो आजादी के लिए कोशा है, जब कुर्द ने अमेरिका के साथ मिलकर सीरिया और तुर्की में कुछ इलाके को दायेश से आज़ाद करा लिया तब मौके पर अमेरिका और तुर्क ने कुर्दों को धोका दे दिया, और अमेरिका निकल भागा और तुर्क ने फिर कुर्दों की नसल कुशी शुरू कर दी, जो आज भी जारी है,

खैर पोस्ट लंबा हो रहा है, अपनी बात का यही इक्तिमाम करता हूं,

UmairSalafiAlHindi

Friday, June 26, 2020

KYA HADIS ME WAARID FATEH QUSTUNTUNIYA SE MURAAD TURK SULTAN MUHAMMAD SAANI HAI ??




क्या हदीस में वारिद फतह कुस्तुनतुनिया से मुराद तुर्क सुल्तान मुहम्मद सानी है ??

फतह कुस्तुनतुनिया के ताल्लुक से एक हदीस है जिसमें आया है
: (لَتُفْتَحَنَّ القسطنطينيةُ، ولِنعْمَ الأميرُ أميرُها، ولنعمَ الجيشُ ذلكَ الجيشُ)۔ السيوطي (٩١١ هـ)، الجامع الصغير ٧٢٠٩ • صحيح

तर्जुमा : " कुस्तुनतुनिया जरूर फतह होगा, उसका अमीर क्या ही अच्छा होगा, और वह फौज क्या ही अच्छी होगी "
सवाल ये है के क्या उस अमीर से मुराद जिसकी नबी ए करीम मुहम्मद (sws) ने तारीफ की है वहीं मुहम्मद सानी है जिसने 855 हिजरी यानी 1452 ईसवी में कुस्तुनतुनिया पर हमला करके वहां से इसाइयों को बेदखल कर दिया था ??

वैसे भी क्या नबी ए करीम मुहम्मद (sws) ऐसे सख्स की तारीफ कर सकते हैं जिसका अकीदा बातिल हो, बक्ताशी जैसे राफजीयत जदह खुराफाती सिलसिला तस्व्वुफ से वाबस्ता हो, नेज जिसमें हुकूमत बचाने की खातिर भाईय्यों भतीजों को क़त्ल करने के लिए तारिख का बदतरीन कानून बना दिया हो ??

चलिए देखते हैं हदीसों की रोशनी में फातह कुस्तुनतुनिया से मुराद क्या है, उसे कब फतह किया जाएगा, और फतह करने के वाले कौन लोग होंगे..

इस ताल्लुक से शेख हमूद तुवैजेरी अपनी किताब (إتحاف الجماعة ) में कहते हैं के हदीस में मौजूद फतह कुस्तुनतुनिया से मुराद वह फतह है जिसे मदीना कि फौज कुरब कयामत में करेगी, फिर दज्जाल निकलेगा, ये फतह अरबों के हाथ पर होगी ना की तुर्को के हाथ पर,
तफसील कुछ इस तरह है:

नबी ए करीम मुहम्मद (sws) ने खबर दी है के अलामात ए कयामत में से मुसलमानों और रूमियों के दरमियान एक बहुत बड़ी जंग भी है, और ये जंग जहूर ए महदी से पहले होगी, नबी ए करीम मुहम्मद (sws) ने उस जंग का नाम " मलहमा अल कुबरा " रखा है (The Great Slaughter), मुसलमान उस जंग में फतह हासिल करने के बाद कुस्तुनतुनिया की तरफ पेश कदमी करेंगे और उसे भी फतह कर लेंगे, और फिर उसके बाद दज्जाल का जहूर होगा
حَدَّثَنَا عَبَّاسٌ الْعَنْبَرِيُّ،‏‏‏‏ حَدَّثَنَا هَاشِمُ بْنُ الْقَاسِمِ،‏‏‏‏ حَدَّثَنَا عَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ ثَابِتِ بْنِ ثَوْبَانَ،‏‏‏‏ عَنْ أَبِيهِ،‏‏‏‏ عَنْ مَكْحُولٍ،‏‏‏‏ عَنْ جُبَيْرِ بْنِ نُفَيْرٍ،‏‏‏‏ عَنْ مَالِكِ بْنِ يَخَامِرَ،‏‏‏‏ عَنْ مُعَاذِ بْنِ جَبَلٍ،‏‏‏‏ قَالَ:‏‏‏‏ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‏‏‏‏ "عُمْرَانُ بَيْتِ الْمَقْدِسِ خَرَابُ يَثْرِبَ،‏‏‏‏ وَخَرَابُ يَثْرِبَ خُرُوجُ الْمَلْحَمَةِ،‏‏‏‏ وَخُرُوجُ الْمَلْحَمَةِ فَتْحُ قُسْطَنْطِينِيَّةَ،‏‏‏‏ وَفَتْحُ الْقُسْطَنْطِينِيَّةِ خُرُوجُ الدَّجَّالِ،‏‏‏‏ ثُمَّ ضَرَبَ بِيَدِهِ عَلَى فَخِذِ الَّذِي حَدَّثَ أَوْ مَنْكِبِهِ،‏‏‏‏ ثُمَّ قَالَ:‏‏‏‏ إِنَّ هَذَا لَحَقٌّ كَمَا أَنَّكَ هَاهُنَا أَوْ كَمَا أَنَّكَ قَاعِدٌ يَعْنِي مُعَاذَ بْنَ جَبَلٍ".

हज़रत माज़ बिन जबल कहते हैं के नबी ए करीम मुहम्मद (sws) ने फ़रमाया :-" बैत उल मुकद्दस की आबादी मदीना की वीरानी होगा, तो एक अज़ीम जंग शुरू हो जाएगी, वो जंग शुरू हुआ तो कुस्तुनतुनिया फतह हो जाएगा, और कुस्तुनतुनिया फतह हो जाएगा तो फिर जल्द ही दज्जाल का जहूर होगा " फिर आप (sws) ने अपना हाथ माज बिन जबल की रान पर या मोंढे पर मारा जिनसे आप ये बयान फरमा रहे थे
फिर फ़रमाया :-" ये ऐसे ही यकीनी है जैसे तुम्हारा यहां होना होना या बैठना यकीनी है "

( सुनन अबू दाऊद किताब उल मलहिम हदीस 4294)
حَدَّثَنَا النُّفَيْلِيُّ،‏‏‏‏ حَدَّثَنَا عِيسَى بْنُ يُونُسَ،‏‏‏‏ حَدَّثَنَا الْأَوْزَاعِيُّ،‏‏‏‏ عَنْ حَسَّانَ بْنِ عَطِيَّةَ،‏‏‏‏ قَالَ:‏‏‏‏ مَالَ مَكْحُولٌ،‏‏‏‏ وابْنُ أَبِي زَكَرِيَّا إِلَى خَالِدِ بْنِ مَعْدَانَ وَمِلْتُ مَعَهُمْ فَحَدَّثَنَا،‏‏‏‏ عَنْ جُبَيْرِ بْنِ نُفَيْرٍ،‏‏‏‏ عَنِ الْهُدْنَةِ،‏‏‏‏ قَالَ:‏‏‏‏ قَالَ جُبَيْرٌ:‏‏‏‏ انْطَلِقْ بِنَا إِلَى ذِي مِخْبَرٍ ٍ رَجُلٍ مِنْ أَصْحَابِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَأَتَيْنَاهُ فَسَأَلَهُ جُبَيْرٌ عَنِ الْهُدْنَةِ،‏‏‏‏ فَقَالَ:‏‏‏‏ سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ،‏‏‏‏ يَقُولُ:‏‏‏‏ "سَتُصَالِحُونَ الرُّومَ صُلْحًا آمِنًا فَتَغْزُونَ أَنْتُمْ وَهُمْ عَدُوًّا مِنْ وَرَائِكُمْ فَتُنْصَرُونَ وَتَغْنَمُونَ وَتَسْلَمُونَ ثُمَّ تَرْجِعُونَ،‏‏‏‏ حَتَّى تَنْزِلُوا بِمَرْجٍ ذِي تُلُولٍ فَيَرْفَعُ رَجُلٌ مِنْ أَهْلِ النَّصْرَانِيَّةِ الصَّلِيبَ فَيَقُولُ:‏‏‏‏ غَلَبَ الصَّلِيبُ فَيَغْضَبُ رَجُلٌ مِنَ الْمُسْلِمِينَ،‏‏‏‏ فَيَدُقُّهُ فَعِنْدَ ذَلِكَ تَغْدِرُ الرُّومُ وَتَجْمَعُ لِلْمَلْحَمَةِ".

हस्सान बिन अतिया कहते है के मखूल और इब्न अबी ज़करिया : खालिद बिन मादान की तरफ चले मै भी उनके साथ चला तो उन्होंने हम से खुबैर बिन नुफैर के वास्ते से सुलह के मूताल्लिक बयान किया, खूबैर ने कहा : हमारे साथ नबी ए करीम मुहम्मद (sws) के असहाब में से जो मुकबर नामी एक सख्स के पास चलो चूनाचे हम उनके पास आए, खुबैर ने उनसे सुलह के मुतल्लिक दरयाफ्त किया तो उन्होंने कहा , मैंने रसूलल्लाह मुहम्मद (sws) को फरमाते सुना :- " अनकरीब तुम रूमिओं के साथ सुलह करोगे, फिर तुम और वह मिल कर एक ऐसे दुश्मन के साथ लड़ोगे जो तुम्हारे पीछे है, उस पर फतह पाओगे, और गनीमत का माल लेकर सही सालिम वापस होगे यहां तक के एक मैदान में पहुंचोगे को टीलों वाला होगा,

फिर ईसाईयों ने से एक सख्स सलीब उठाएगा और कहेगा :- सलीब गालिब अाई, ये सुनकर मुसलमानों में से एक सख्स गुस्सा में आएगा और उसको मारेगा, उस वक़्त अहले रूम अहद शिकनी करेंगे, और लड़ाई के लिए अपने लोगों को जमा करेंगे "

बाज़ रावियों ने ये भी बयान किया है की उस वक़्त मुसलमान जोश में आ जाएंगे और अपने हथियारों की तरफ बढ़ेंगे और लड़ने लगेंगे, तो अल्लाह ताला उस जमात को शहादत से नवाजेगा "

नोट : एक बुलंद जगह पर डेरा जमाओगे, मुझे अहले इल्म में से कोई ऐसा सख्स नजर नहीं आया जिसने उस जगह की तहदीद की हो, बाज़ाहिर ऐसा मालुम होता है के वह जगह " मर्ज उल दाबिक" होगी, जैसा के एक दूसरी हदीस में वजेह है, जिसमें रसूलल्लाह मुहम्मद (sws) फरमाते है
: لاَ تَقُومُ السَّاعَةُ حَتَّى يَنْزِلَ الرُّومُ بِالأَعْمَاقِ أَوْ بِدَابِقَ

"कयामत उस वक़्त तक कायम ना होगी जब तक के रूमी अमाक़ या दाबिक़ ना पहुंच जाएं "
(सही मुस्लिम किताब उल फ़ितन हदीस 2897, अबू दाऊद किताब उल मलाहीम 4292,4293)
सही मुस्लिम में इस वाकेये की तफसील कुछ इस तरह है

हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत है के रसूलल्लाह मुहम्मद (sws) ने फ़रमाया :-" कयामत उस वक़्त तक कायम नहीं होगी जब तक रूमी अमाक या दाबीक़ ना पहुंच जाएं ( ये जगह शाम में हलब नामी शहर के करीब है, जंग की जगह यही होगी ) फिर उनके लिए मदीना से एक लश्कर रवाना होगा, वह उस ज़माने के बेहतरीन लोगों पर मुष्तमिल होगा, जब दोनों लश्कर सफ आरा होंगे तब इसाई कहेंगे :- हमें उन लोगों से लड़ाई कर लेने दो जो हम में से गिरफ्तार हों गए थे,

( ईसाईयों की बात से मालूम होता है के मुसलमानों और इसाइयों के बीच मुताद्दीद लड़ाईयां पहले भी हो चुकी होंगी जिनमें मुसलमानों को फतह हुई थी और इसाइयों को कैदी बना लिया गया था, और वह कैदी मुसलमान हो गए थे और अब इस्लामी लश्कर में शामिल हो कर इसाइयों से जिहाद करने आए होंगे )
मुसलमान कहेंगे :-" नहीं ! अल्लाह की कसम ! हम तुमको अपने भईयों से लड़ने के लिए नहीं छोड़ेंगे, "

फिर वह उनसे लड़ेंगे तो उनमें से एक तिहाई ( मुसलमान) भाग जाएंगे, अल्लाह ताला उनकी तौबा कभी क़ुबूल नहीं करेगा, और एक तिहाई उनमें से क़त्ल कर दिए जाएंगे, वह अल्लाह ताला के नजदीक अफजल शहीद होंगे, बाक़ी तिहाई फतह पा लेंगे, वह कभी आजमाइश में मुब्तिला नहीं होंगे, यही लोग कुस्तुनतुनिया को फतह कर लेंगे, जिस वक़्त वो माल ए गनीमत तकसीम करेंगे और अपनी तलवारें जैतून के दरखतों पर लटका देंगे तो अचानक शैतान चीख मार कर कहेगा : तुम्हारे पीछे तुम्हारे घरों में दज्जाल पहुंच गया है, मुसलमान वहां से निकल पड़ेंगे, हालांकि ये खबर गलत होगी, जब ये मुल्क ए शाम पहुंचेंगे तब हकीकत में मसीह दज्जाल का नुजूल होगा "

एक दूसरी रिवायत में है के रुमियों से जंग के बाद अहले इस्लाम माल ए गनीमत की तकसीम का मौका भी ना मिला होगा और वह दज्जाल से लड़ाई की तैयारी कर रहे होंगे, सफें दुरुस्त कर रहे होंगे के नमाज़ का वक़्त हो जाएगा और उसी वक़्त ईसा इब्न मरयम नूजूल फरमाएंगे

( सही मुस्लिम किताब उल फितन हदीस 2897)

नोट : हदीस में मौजूद फतह कुस्तुनतुनिया से मुराद वो फतह है को कुरब कयामत में मल्हमा अल कुबरा के वक़्त होगा, और ये फतह अहले मदीना और दीगर मुसलमानों के हाथ पर होगी,

साभार : मौलाना अजमल मंजूर मदनी
हिंदी तर्जुमा : UmairSalafiAlHindi

Thursday, June 25, 2020

BAIT UL MUQADDAS KI FATAH







मैं रसूल्लुल्लाह मुहम्मद (sws) के पास आया, आप गजवा ए तबूक में चमड़े के एक खैमे में ठहरे हुए थे, मैं खैमे के सेहन में बैठ गया तो, रसूल्लुल्लाह मुहम्मद (sws) ने फ़रमाया :- " औफ अंदर आ जाओ !"
मैंने अर्ज़ किया :-" पूरे तौर से अल्लाह के रसूल ?"
रसूल्लुल्लाह मुहम्मद (sws) ने फ़रमाया :-" हां पूरे तौर से "
फिर आपने फ़रमाया :-" औफ़ ! क़यामत से पहले छह निशानियां होंगी, उन्हें याद रखना, उन में से एक मेरी मौत है, "
मैं ये सुनकर बहुत रंजीदा हुआ

फिर आपने फ़रमाया :- " कहो एक, दूसरी बैत अल मुकद्दस की फतह, तीसरी एक बीमारी है जो तुम में ज़ाहिर होगी उसके जरिए अल्लाह ताला तुम्हे और तुम्हारी औलाद को शहीद कर देगा और उसके जरिए तुम्हारे आमाल को पाक कर देगा, चौथी तुम में माल की कसरत होगी हत्ता के आदमी को सौ दिनार मिलेंगे तो वह उससे भी राज़ी ना होगा, पांचवीं तुम्हारे दरमियान एक फितना बरपा होगा जिससे कोई घर बाक़ी ना रहेगा जिसमें वह ना पहुंचा हो, छटी तुम्हारे और अहले रूम (इसाई) के दरमियान एक सुलह होगी , लेकिन फिर वह लोग तुमसे धोका करेंगे और तुम्हारे मुकाबले के लिए उसी झंडे के साथ फौज लेकर आएंगे, हर झंडे के नीचे बारह हज़ार फौज होगी "

(इब्न माजा हदीस 4042)
UmairSalafiAlHindi

Wednesday, June 24, 2020

KYA BILAD E HARAMAIN KA DIFA ISLAM KA DIFA HAI ??






बिलाद ए हरमैन का दिफ़ा क्या इस्लाम का दिफ़ा है ??

इत्तेफाक़ से पिछले हफ्ते दिल्ली जाना हुआ जहां मेरे एक दोस्त से एक तहरीकी इख्वान ने मेरी शिकायत की के में आखिर तुर्की के खिलाफ ( उर्डुगानी तुर्की की हकीकत ) क्यूं लिखता हूं ?? और क्या सऊदी का दिफ़ा इस्लाम का दिफ़ा है ??

उस तहरीकी को मुझ से डॉयरेक्ट शिकायत करने की हिम्मत नहीं हुई, कहने पर उसका जवाब था मैं ऐसे सख्स से बात नहीं करता जो सऊदी का दिफ़ा करे,

दरअसल मेरी तहरीरों से सिर्फ उर्दूगानी तुर्की की हकीकत ही सामने नहीं आई है बल्कि तहरीकिओं का निफाक़ भी खुल कर सामने आ गया है,

और मै सऊदी का दिफ़ा नहीं बल्कि सलाफियत का दिफ़ा कर रहा हूं, और जो भी इस वक़्त सलफियत का मुहाफिज है उसके खिलाफ प्रोपगंडों का जवाब दे रहा हूं, रजा ए इलाही के खातिर

और क्या सऊदी से नफरत और उसके खिलाफ प्रोपगंडा करना और इल्हादी तुर्की का दिफ़ा और मजूसी ईरान को दार उल इस्लाम समझना इस्लाम का दिफ़ा है ??

आखिर जिन्हें दुश्मन ए सहाबा राफ्जी ईरानियों से मुहब्बत है वह तौहीद परस्त बिलाड ए हरमैन को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं, एक तहरीकी ने बेग़ैर किसी मुजलिमत के कहा था के मुझे सऊदी अरब से अल्लाह के वास्ते नफरत है, मैंने कहा :- " वाक़ई तुम हकीकि मानो में मौदूदि परस्त तहरीकी हो "

अगर कोई तहरीकी सऊदी अरब से नफरत और रफ्जी ईरान से मुहब्बत ना करे तो वह तहरीकी ही नहीं है ,

अब्रहा वक़्त राफजी हुसियों ने काबा पर मिसाइल फेंका किसी तहरीकी ने उसके खिलाफ ना एहतेजाज किया ना कोई आर्टिकल लिखा, आखिर क्यूं ??

बिलाद ए हरमैन का दिफ़ा अगर हरमैन का दिफ़ा नहीं है तो फिर मैं नहीं जानता के किसका दिफ़ा इस्लाम का दिफ़ा है,

साभार: मौलाना अजमल मंजूर मदनी

तर्जुमा : Umair Salafi Al Hindi

Tuesday, June 23, 2020

KUCH MUSALMANO PAR TAJJUB HAI





कुछ मुसलमानों पर ताज्जुब है,

जो इन रमज़ान के बबरकत दिनों में रुकु वा सजूद हर हाल में अपने रब से दुआ करते हैं,
"*اللهم إنك عفو تحب العفو فاعف عني"*
" ऐ अल्लाह बेशक तू माफ़ करने वाला है और माफी को पसंद फरमाने वाला है पस मुझे माफ़ कर दे "

वह रब से माफी का तलबगार है लेकिन लोगों को माफ़ नहीं करता,
ना अपने रिश्तेदारों और कराबतदारों के साथ अफू वा दरगुज़र का मामला करता है,
और ना मुसलमान भईयों को माफ़ कर रहा है,

क्या उसे अल्लाह से शर्म नहीं आती के खुद अल्लाह से माफी का सवाल कर रहा है लेकिन अल्लाह के बंदों को माफ़ नहीं कर रहा है,
अल्लाह के बंदों को माफ़ कर दिया करो !

शायद अल्लाह तुम्हे भी माफ़ कर से,
*
*﴿ وَليَعفوا وَليَصفَحوا أَلا تُحِبّونَ أَن يَغفِرَ اللَّهُ لَكُم وَاللَّهُ غَفورٌ رَحيمٌ﴾:*

( माफ़ कर दिया करें, दरगुज़र फरमा दिया करें , क्या आप नहीं चाहते के अल्लाह आपको माफ़ कर दे, बेशक अल्लाह बहुत ज़्यादा बख्शने वाला और रहम करने वाला है )
साभार : इमाम ए हरम डॉक्टर सऊद अश शुरैम, इमाम मस्जिद हराम

हिंदी तर्जुमा : Umair Salafi Al Hindi

Monday, June 22, 2020

ROAD TO MAKKAH





"The Road to Mecca" के लेखक लियोपोल्ड वेइस (मुसलमान होने के बाद -नाम मोहम्मद असद) लिखते हैं कि जब मैं हिजाज़ रेल से शाम की तरफ जा रहा था तो ट्रेन में खाने के वक़्त सबने अपना अपना खाना निकाला, लेकिन मेरे पास कुछ भी नही था । मेरे सामने बैठे हुए अरबी बुज़ुर्ग ने झोले से एक सुखी रोटी निकाली और मेरे मना करने के बावजूद आधी रोटी तोड़कर मुझे थमा दिया, और हम दोनों ने वो सुखी रोटी पानी मे डुबो कर खाई और उसके बाद सेर होकर पानी पिया दोनों का पेट भर गया । उसी वक़्त मुझे ये बात समझ आ गयी कि हज़रत उमर रज़िo के दौर में कैसे सूखे और क़हतसाली के बावजूद कोई भूखा नही सोता था । शायद एक बार हम अपनी रवायतों को ज़िंदा कर दे तो ये वक़्त भी गुज़र जाएगा ।


UmairSalafiAlHindi
#IslamicLeaks

Sunday, June 21, 2020

SHAH FAISAL BIN ABDUL AZIZ





शाह फैसल बिन अब्दुल अज़ीज़

1967 के अंदर बेल्जियम में एक तिजारती कॉम्प्लेक्स के अंदर आग लग गई जिसमें 300 लोग मर गए, उस वक़्त सऊदी सुल्तान शाह फैसल बिन अब्दुल अज़ीज़ आल सऊद बेल्जियम के दौरे पर थे, उस हादसे से आप बहुत मूतासिर हुए,

आपने वहीं एक मिलियन डॉलर इमदाद का ऐलान कर दिया, जिस से बेल्जियम का शाह बोडवीन अव्वल बहुत प्रभावित हुआ, क्यूंकि शाह फैसल के एलावा पूरे यूरोप के किसी मुल्क ने मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाया था,

चुनचे बेल्जियम के हाकिम ने शाह फैसल के इस सखावत का बदला चुकाने के लिए कहा के आप जो कुछ इस वक़्त मुझसे हुकम करें मैं उसे देने के लिए तैयार हूं, ये देख कर शाह फैसल ने अपने लिए कुछ ना तलब करके एक मस्जिद और इस्लामी मरकज के लिए दरख्वास्त कर दी, ताकि मुल्क में वहां मौजूद मुसलमान वहां इबादत कर सकें, और दीनी तालीम हासिल कर सकें,

चुनाचे शाह बेल्जियम ने राजधानी ब्रुसेल्स ही के अंदर एक बड़ी जगह अलॉट कर दी जहां एक बड़ी सी मस्जिद और इस्लामी मरकज बनवाया गया, साथ ही शाह बेल्जियम ने इस्लाम को भी सरकारी दीन का दर्जा दे दिया, इस वक़्त वहां सात लाख से भी ज़्यादा मुसलमान पाए जाते हैं, और वहां ईसाइयत के बाद इस्लाम दूसरा बड़ा दीन माना जाता है,

शाह फैसल का ये कारनामा है के इस वक़्त बेल्जियम में मुसलमानों को हर तरह की आजादी है, सिर्फ राजधानी ब्रुसेल्स में 300 मस्जिद मौजूद है, वहां के निसाब ए तालीम के अंदर दीनियात में इस्लामी तालीम भी शामिल है, बताया जाता है के सिर्फ इस्लामी मदरसों को तादाद 800 के लगभग है, जो हुकूमती कंट्रोल में चलते हैं,

मस्जिद के इमामों को हुकूमत तनख्वाह देती है, सरकारी छुट्टियों में ईद उल फितर और ईद उल अज़ह के दिन भी शामिल हैं,
अल्लाह सुबहान ताला शाह फैसल बिन अब्दुल अज़ीज़ आल सऊद की क़ब्र पर अपनी रहमतों का नुज़ूल फरमाए,
आमीन
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi

Saturday, June 20, 2020

DEEBAL KI FATAH





आज आपको दो प्राचीन शहर दीबल मौजूदा कराची और बुखारा की एक दास्तान सुनाता हूं,

कहा जाता है जब मुहम्मद बिन क़ासिम ने दीबल का मुहासरा किया तब ये मुहासिरा काफी लंबा हो गया, मुसलमानों को किले में घुसने की कोई तरकीब नहीं सूझ रही थी, और मुसलमानों कि परेशानी देख कर किले के अंदर के लोग मुसलमानों पर हस्ते और फब्तियां कसते,

एक दिन मुहम्मद बिन क़ासिम के एक जासूस ने खबर दी के इस किले में एक मंदिर है, जिसमें ऊपर एक बड़ा सा घंटा है किले के लोगों का मानना है कि जब तक ये घंटा महफूज़ है हम सुरक्षित है,

फिर क्या था, मुहम्मद बिन कासिम ने एक बड़ी से मंजनीक ( पत्थर फेंकने वाली तोप) बनवाई और अपने तोपची से कहा सिर्फ इस घंटे पर निशाना लगाओ, और ऐसा ही हुआ 10-15 गोलों से वो घंटा गिर गया और अंदर के लोग भागते हुए किले से बाहर आ गए,

दूसरा किस्सा एक प्राचीन शहर बुखारा का है कहा जाता है कि ये औलिया की सर ज़मीन है, 1868 में जब रूसियों का लश्कर बुखारा पर हमला करने के लिए निकला तब बुखारा के लोगों की ये सोच थी के बुखारा औलिया की सर ज़मीन है, हमें कुछ नहीं हो सकता, औलिया हमारी मदद करेंगे,

लेकिन तारीख ने देखा रूसियों ने औलियाओं की क़ब्रों पर घोड़े दौड़ाए, और बुखारा को फतह कर लिया,

कहने का तात्पर्य ये है कि जब तक अकीदा ए तौहीद मुस्लिमो में रहेगा तब तक मुसलमान गालिब रहेंगे , शिरक और बीदत से सिर्फ जिल्लत है मिली है,

नोट: नीचे पिक्चर दीबाल के किले की गई,

Umair Salafi Al Hindi

Friday, June 19, 2020

COVID19 SE LADNE KE LIYE ABI TAK KOI DAWA NAHIN BANI HAI







कॉविड19 से लड़ने के लिए अभी तक कोई दवा या वैक्सीन नहीं बनी है और आगामी 6 माह तक तो कोई उम्मीद भी नहीं है,

अल्लाह ने इंसानों पर जितना एहसान किया है और उस एहसान का बदला नहीं चुकाया जा सकता, अगर तमाम समुंदर को सियाही बना दिया जाए और पेड़ों को कलम , तब भी अल्लाह की तारीफ बयान नहीं हो सकती,
अल्लाह ताला ने इंसानी शरीर में किसी भी मर्ज से लड़ने के लिए एंटी बॉडीज पैदा कर रखी है, जिनका काम होता है शरीर में किसी भी बाहरी वायरस की घुसपैठ होने पर उस वायरस से जंग करना और उसे हराना,

लेकिन जब हमारी एंटी बॉडीज कमजोर हो जाती हैं तो बाहरी वायरस से वो जंग नहीं कर पाती और वायरस हमारे शरीर में फतह हासिल कर लेता है जिससे इंसान की मौत हो जाती है, बहरहाल मौत और ज़िन्दगी अल्लाह के हाथ में है,

कॉविड19 से लड़ने के लिए जब तक कोई दवा या वैक्सीन नहीं बन जाती तब तक हम अपने इम्यून सिस्टम को मजबूत कर सकते हैं, हमें हर ऐसी चीज को कम इस्तेमाल करना होगा जिससे सिस्टम कमजोर हो, और ऐसी चीज का ज़्यादा इस्तेमाल करना होगा जिससे इम्यून सिस्टम मजबूत हो,

अब मिसाल के तौर पर विज्ञान से प्रमाणित है कि मोबाइल टॉवर से निकला हुआ रेडिएशन इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है खासकर 4G और 5G का रेडिएशन, तो कम से कम हम 24 घंटे में से 12 घंटे मोबाइल बंद करके इस खतरे को कुछ कम कर सकते हैं,

यूरोप में कुछ लोगों ने तो मोबाइल टॉवर पर तोड़ फोड़ कर दी है, बहरहाल हमें ऐसा। नहीं करना है,
शहद और कलौंजी का सेवन से भी इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है,
और भी बहुत सारे घरेलू उपचार के जरिए इम्यून सिस्टम मजबूत किया जा सकता है, जैसे विटामिन C के जरिए, मांस, मछली के सेवन से, कुछ हरी सब्जियों के जरिए,

Umair Salafi Al Hindi

Thursday, June 18, 2020

EK FAAHISHA AURAT KI KAHANI




एक फहीशा औरत की कहानी


ये एक फहिशा औरत का घर है उसको बहुत जगह से राशन आता रहता है, (जरूर पढ़ें )
राशन की तकसीम का सिलसिला शुरू था, एक पुराने मकान पर नजर पड़ी, उसका दरवाजा खटखटाना चाहा था के साथ में आए मुहल्ले के एक आदमी ने माना कर दिया, पूछने पर वह कहने लगा साहब रहने दें, ये एक फाहिशा औरत का घर है, इसको बहुत जगह से राशन आता रहता है,
ये बात सुनकर मुझे यकीन हो गया के मुहल्ले में से एक ने भी उसको राशन फराहम नहीं किया होगा, जैसे तैसे मैंने उससे बहस करके उसके दरवाजे पर दस्तक दी, अंदर से धीरे से आवाज़ अाई, कौन ??
मैंने बताया राशन सप्लाई कर रहें हैं, आप लेना पसंद करेंगी ??
तो इंतेहाई गमगीन सी आवाज़ अाई के आप वापस चले जाएं पहले ही से इस मुहल्ले के लोग हमें जीने नहीं देते, हम गुज़ारा कर लेंगे, आप की महरबानी आप मुहल्ले के शरीफ लोगों में तकसीम कर दें,
उसके लहजे को महसूस करके मैंने बाजिद होकर कहा : आप मुझे अपना भाई समझें और मुहल्ले वालों कि फिक्र ना करें, बहुत असरार करने के बाद उस औरत ने अपनी बैठक का दरवाज़ा खोला और हमने राशन और आटे का थैला वगेरह उसके घर रख दिया,

वह औरत खुद पर्दे में अाई और शुक्रिया अदा करने लगी लेकिन दिल मुत्मइन नहीं था क्यूंकि वह बापर्दा औरत लग रही थी,
मुहल्ले का एक आदमी भी मेरे साथ था जो बार बार मुझे चलने के लिए कह रहा था, उस आदमी की बातों को नजर अंदाज करके मैंने जैसे वैसे हिम्मत की और उस औरत से पूछ लिया के बहन आपने ऐसा क्यूं कहा के घर में राशन मौजूद है ??
कहने लगी : भाई घर में आलू पड़े हैं, जो पिछले एक हफ्ते से बना कर खा रहें हैं, मुहल्ले में से किसी ने खबर तक ना ली, औरतें मेरे घर नहीं आती, अब मैंने पूछा : ऐसा क्यूं ??

वो बेकस औरत आंखो में आंसू लिए बोली मेरे शौहर को वफात पाए 2 साल का अर्सा हो गया है उस वक़्त हालात बहुत अच्छे थे , मेरे 2 बच्चे हैं, कुछ वक़्त ठीक गुज़रा मेरे वालिद जितना कर सकते थे करते रहे, उनकी वफात के बाद हालात खराब होना शुरू हो गए बच्चों का और घर का निज़ाम मुश्किल हो गया,

एक दिन मेरे शौहर का करीबी दोस्त कुछ अरसा बाद बाहर से आया, उसने मुझसे बहुत अफसोस किया और मुझे कुछ पैसे दे कर चला गया, फिर वह कुछ दिन के बाद आया और मुझे घर का कुछ राशन दे गया, दूसरी बार जब लोगों ने मेरे घर के बाहर गाड़ी खड़ी देखी तो तरह तरह की बातें करना शुरू कर दी, फिर जब वह वापस बेरून मुल्क लौटने लगा तो जाते हुए मेरे घर आया और कहा : बहन ये मेरा नंबर है आपको किसी भी चीज की जरूरत हो तो अपने भाई से कहना किसी मुहल्ले दार से मांगने की जरूरत नहीं,

जब वह बाहर निकला तो मुहल्ले के लोगों ने उसे पकड़ कर मारना शुरू कर दिया के तुमने हमारे मुहल्ले में गंद मचाया हुआ है, ये सुनकर मैंने चिल्लाना शुरू कर दिया के तुम लोगों ने मेरा हाल तक ना पूछा और अगर कोई मेरा भाई बनकर मेरा खयाल कर रहा है तो तुम उसे भी मार रहे हो,
शर्म से मेरी जान निकली जा रही थी के इतनी हमदर्दी का ये सिला मिला उसे,
वह भाई उनको समझाता रहा के ये मेरी बहन जैसी है लेकिन मुहल्ले के लोगों को जैसे एक तमाशा मिल गया लगाने को,
खैर वह जान छुड़ा कर वहां से चला गया, कुछ अरसा तक मुझे अगर कभी जरूरत होती तो मैं कॉल कर देती शर्मशार होकर उनको, और वह मुझे बैंक में पैसे जरूरत के मुताबिक भेज देते,

पिछले 2 माह से उनको कॉल नहीं की और फिर ये कोराना वायरस का मसला हो गया तो सुना के उन भाई के मुल्क के हालात ज़्यादा खराब है, दोबारा मेरी हिम्मत नहीं हुई कभी उनको कॉल करने की,
अब बेवा समझ कर कोई मेरी मदद भी करना चाहे तो मुहल्ले वाले मुझे गंदी नजरों से देखते हैं, और मुहल्ले में इतने शरीफ लोग है के हर कोई गुजरते हुए मेरे दरवाजे पर झांक कर जाता है, बाहर जाते हुए मुझे घूरते हुए जाते है, अपनी औरतों को मेरे घर आने नहीं देते,

ये वायरस तो बहाना रखा है अल्लाह ताला ने हमें राशन भेजने का वरना जरूरत का सामान तो बिल्कुल खतम होने को है, कुछ दिनों से उस भाई को कॉल मिलाने का सोचा लेकिन ज़मीर ने गवारा ना किया, सोचा के पता नहीं उनके अपने हालात कैसे होंगे,

मेरे बच्चों को भी अब महसूस होना शुरू हो गया है के मुहल्ले में हमारी मां को लोग किस नजर से देखते हैं , हमारे नबी मुहम्मद (sws) तो दुश्मनों कि बेटियों के सरों पर चादर रखा करते थे, ये कहां के दीनदार लोग हैं के अगर कोई मेरी मदद को मेरे घर आता है तो उसे मशकूक नजरों से देखते हैं, और कुछ लोगों ने डर की वजह से मुझे जकात तक देना छोड़ दी ये बातें करते करते उसका दुपट्टा आंसुओं से भीग गया और जो आदमी मेरे साथ बैठा था वह शर्म से पानी पानी हो रहा था,
मुझे पता ही नहीं चला के मेरे आंखों से आंसुओं कि झड़ी लगी हुई थी,

हमने राशन के साथ कुछ नकद रकम भी अपनी तरफ से अदा कर दी, जो आदमी मेरे साथ था वह बाहर निकल कर कुछ बोलने ही वाला था के मुझसे रहा ना गया और उसके बोलने से पहले ही शुरू हो गया के बरोज़ कयामत तुम लोगों के इस राशन को अल्लाह कैसे क़ुबूल करेगा जबकि तुम्हे मुहल्ले में रहने वाले इन लोगों को खबर नहीं जो किसी के दरवाज़े पर नहीं जाते ??

कोई कैसा है ये अल्लाह और उसके दरमियान का मामला है आंखों देखा भी कभी कभी सच नहीं होता,
उसकी खामोशी और नम आंखों ने कुछ ना बोला, 4-5 दिन बाद उसने मुहल्ले में से अच्छी खासी रकम इकट्ठी करके उस औरत के घर पहुंचा दी,
बेशक अल्लाह ही जानता है सबके दिलों का हाल
अल्लाह के लिए अपना दिल नरम कीजिए और अपने इर्द गिर्द मौजूद जरूरतमंदों का ख्याल रखें,

उस वक़्त का इंतज़ार ना करे जब कोई औरत बच्चों के भूक से मजबूर होकर घर की दहलीज से बाहर निकल कर हाथ फैलाए और फिर मुआशरे में मौजूद हमारे जैसे भेड़िए सिर्फ चंद निवालों की खातिर उस से उसका सब कुछ छीन लें, क्या उस औरत के इस जुर्म करने पर कौम के मर्दों से सवाल नहीं होगा ??
हाथ जोड़ कर इल्तेजा है के खुद बाहर निकलें और ऐसे लोगों को तलाश करें, रातों को अपने मुहल्ले का चक्कर लगाए और बच्चों की रोने की आवाज़ सुनकर और खाली बर्तनों की आवाज़ों से अंदाजा लगाएं के उनको राशन की जरूरत होगी,
आखिरी बात :
लम्हा ए फिकरिया है उन लड़कियों और पहली बीवियों के लिए जो मर्द के लिए दुसरी या तीसरी शादी को बुरा समझती हैं,

अल्लाह ना करें ये मसला अगर किसी औरत के साथ हो जाए और उसे भी इसी तरह की परेशानी से जूझना पड़े, तो क्या वो नहीं चाहेंगी के कोई मर्द उसे अपनी दूसरी , तीसरी या चौथी बीवी बना ले, यकीनन चाहेगी
हदीस में भी आया है दूसरों के लिए वही पसंद करो जो अपने लिए पसंद करते हो, औरतों को दूसरी औरतों का दर्द समझना चाहिए, और अपने शौहरों की जो साहब ए इस्तेतात है उनकी हौसला अफजाई करनी चाहिए और सवाब में हिस्सा लेना चाहिए,
और शौहरों को भी अपनी बीवियों में बराबर का दर्जा देना चाहिए, मौजू काफी बड़ा है, आपके दिमाग में काफी सवालात होंगे, इसलिए इस पोस्ट का यही खात्मा करता हूं,

Umair Salafi Al Hindi

Wednesday, June 17, 2020

SULTAN RUKNUDDEEN BEBRUS





सुल्तान रुकनुद्दीन बेबरस ( Lost Islamic Heroes) गुलाम से सुल्तान तक


बारहवीं सदी हिजरी में चंगेज खान की कयादत में सहराय गोबी के शुमाल से खून खवार मंगोल बगोला उठा जिसने सिर्फ चंद सालों में ही दुनिया को अपनी लपेट में ले लिया,
मंगोल लश्करों के सामने चीन , ख्वारिज्म , सेंट्रल एशिया, वेस्टर्न यूरोप और बगदाद की हुकूमते रेत की दीवारें साबित हुई,
मंगोल हमले का मतलब बेदरेग क़त्ल ए आम और शहर के शहर की मुकम्मल तबाही थी, दुनिया मान चुकी थी के इन वहशियों से मुकाबला नामुमकिन है, मंगोल को कभी हराया नहीं जा सकता,
मंगोलों ने सबसे पहले ख्वारिज्म की ईंट से ईंट और और फिर पांच सौ साल से ज़्यादा कायम खिलाफत अब्बासिया को फैसलाकुन अंजाम से दो चार किया,
मंगोलिओं ने ख्वारिज्म में खोपड़ियों के मीनार बनाए तो बगदाद में इतना खून बहाया के गलियों में कीचड़ और तफुन (बदबू) की वजह से अर्रसे तक चलना मुमकिन ना रहा, इस पुर अशोब दौर में मुसलामानों की हैसियत कटी पतंग की सी थी, मुसलमां नफसियती तौर पर किसी मुकाबले के काबिल नजर ना आते थे,
ऐसे में मिस्र में कायम ममलूक सल्तनत एक हल्की सी उम्मीद की लौ थी, वहीं सल्तनत जिसकी भाग दौड़ गुलाम और गुलामजादों के हाथ में थी.

( Mongol European Access) का अगला हदफ भी यही मुस्लिम रियासत थी, वह आखिरी रियासत जिसकी शिकस्त मुसलमानों की सियासी वजूद में आखिरी कील साबित होती , ममलूक भी उस खौफनाक खतरे का पूरा अदराक रखते थे, आज नहीं तो कल ये मुआरका होकर रहेगा,
और ये मुआरका हुआ,

तारीख थी सितंबर 1260 और मैदान था ऐन जालूत मंगोल मुस्लिम सियासी वजूद को खतम करने सर पर आ पहुंचे थे , मंगोल तूफ़ान जो बड़ी बड़ी सल्तनत को ख़ाक और खून की तरह बहा कर ले गए थे आज उनके सामने ममलूक थे जिसकी कयादत रुकनुद्दीन बेबर्स कर रहा था,

वहीं रुकनुद्दीन बेबरस जो कभी खुद भी सिर्फ चंद दिनार के बदले फरोख्त हुआ था , कम जराए और वासायेल वा कम लश्कर की तादाद के बावजूद बेयबर्स को ये मूआरका हर हाल में जीतना था, मुसलमानों के सियासी वजूद को कायम रखने के लिए, आखिरी तीर, और आखिरी सांस तक लड़ाई लड़नी थी,

जंग का बिगुल बजा, बद मस्त ताकत और जुनून के दरमियान घमासान का रण पड़ा, ताकतवर मंगोल जब अपनी तलवार चलाते थे तो उनका वार रोकना मुश्किल तरीन काम होता था लेकिन आज जब ममलूक वार रोकते तो तलवारें टकराने से चिंगारियां निकलती, और फिर जब जवाबी वार करते तो मंगोलों के लिए रोकना मुश्किल हो जाता,

मंगोलों ने ममलुकों को दहशत जदह करने की भरपूर कोशिश की लेकिन ये वो लश्कर नहीं था जो दहशत खा जाता, मंगोलों में कभी ऐसे जुनूनी लश्कर का सामना नहीं किया था, वह पहले पस्पा हुए और फिर उन्होंने जोरदार हमला किया जिससे मंगोल मैदान जंग से भाग खड़े हुए, ममलूक ने उन्हें गाजर मूली की तरह काट कर रख दिया,
मामला यहां तक पहुंचा की भागते मंगोलों को आम शहरियों आबादी ने भी क़त्ल करना शुरू कर दिया,
"मंगोलों को कोई हरा नहीं सकता" ये वहम " ऐन जालूत" के मैदान में हमेशा के लिए दफन हो गया,
" गुलामों " ने रुकनुद्दीन बेबरस की कयादत में मुस्लिम सियासी वजूद की जंग जीत ली और रहती दुनिया तक ये एजाज अपने नाम कर लिया,

इस मुआरके के बाद मंगोल पेशकदमी ना सिर्फ रुक गई बल्कि आने वाले सालों में बेबरस ने मंगोलों के जीते हुए इलाके भी उनसे वापस छीन लिए,
रुकनुद्दीन बेबरस ने अपनी सलाहियत से (European Access) को भी तोड़ डाला और सलीबी जंगो में भी फातेह रहा,
मुस्लिम दुनिया अपने इस अज़ीम हीरो के बारे में बहुत कम ही जानती है,

एक ऐसा हीरो जिसने उनकी सियासी वजूद को जंग बड़ी बेजिगरी से लड़ी, जिसके पश्त पर कोई कबीला भी ना था, और जो कभी कुछ चंद दीनार के बदले बिका था लेकिन जो मुसीबतों का मुकाबला करना जानता था, जो हिम्मत नहीं हारता था, और जो उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ता था,

सलाम सुल्तान रुकनुद्दीन बेबरस
शुक्रिया सुल्तान रुकनुद्दीन बेबरस
अल्लाह ताला आपके दर्जात बुलंद फरमाए...आमीन
Umair Salafi Al Hindi

Tuesday, June 16, 2020

HAMARI MASJID KE IMAM CHOR HAIN ??




हमारी मस्जिद के इमाम चोर हैं ?? ( एक नसीहत अमूज वाकिया )

एक बार अफ्रीका के एक गांव में एक इमाम मुकर्रर किए गए, बेहतरीन हाफ़िज़ होने के साथ साथ क़ुरआन मजीद की तिलावत बड़ी शानदार करते थे, वक़्त के पाबंद और तकवे वाले थे, लिहाज़ा लोगों को बहुत पसंद आए, गांव के लोग बड़ी इज्जत करने लगे, उस गांव का हर आदमी उस इमाम की दावत करना अपने लिए इज्जत समझता और बढ़ चढ़ कर इज्जत अफजाई की कोशिश करता इसलिए इमाम साहब की खाने की बारी लग गई थी, रमज़ान का महीना शुरू हो गया, आदत के मुताबिक गांव के एक आदमी ने बड़े शौक से इमाम साहब को दावत दिया, उसने इमाम साहब की बड़ी ताज़ीम वा तकरीम किया, दस्तरखान को तरह तरह के पकवान से सजाया गया, इमाम साहब खाने से फारिग हुए और खुशदिली से दुआएं देते हुए रुखसत हो गए,

उधर उस शख्स की बीवी दस्तरख्वान समेटने अाई तो उसे याद आया के दस्तरख्वान के करीब उसने एक मोटी रकम रख कर भूल गई थी मगर अब उसका कहीं नाम ओ निशान नहीं था, पूरा कमरा और घर छान मारा मगर वह रकम ना मिल सकी, जब उसका शौहर नमाज़ पढ़ कर घर आया तो बीवी ने सारा माजरा कह सुनाया शौहर ने भी रकम के ताल्लुक से ला इलमी का इजहार किया, थोड़ी देर गौर और फिक्र करने के बाद उन्होंने सोचा के आज इमाम साहब के इलावा हमारे घर और कोई नहीं आया था, और इस घर में हमारे सिवा इस घर में एक दूध पीती बच्ची है, लिहाज़ा हो या ना हो पैसे इमाम साहब ने ही उठाए है,

उस आदमी को बड़ा गुस्सा आया के हमने ही इमाम साहब को इस मुबारक और बाबरकत महीने में दावत दी और इमाम साहब ने उसका ये सिला दिया, मगर उसने शर्म के मारे इमाम साहब से कुछ पूछा नहीं अलबत्ता उस रोज़ के बाद से वह इमाम साहब से कतराने लगा,

इस घटना को पूरा एक साल बीत गया, फिर रमज़ान के महीने में उसी घर में इमाम साहब की दावत की बारी आ गई,
शौहर ने बीते रमज़ान के वाक्ये को सामने रखते हुए बीवी से मशवरा किया, बीवी अच्छी थी शौहर से बोली हो सकता है इमाम साहब को किसी परेशानी या मजबूरी रही हो इस लिए उन्होने ऐसा किया हो, हम उन्हें माफ कर दें ताकि अल्लाह पाक हमें बख्स दे,

चुनंच इमाम साहब को फिर दावत दी गई, शाम में जब सब लोग खाना खा चुके तो उस आदमी ने इमाम साहब से कहा :
" क्या आपने महसूस किया के पिछले रमज़ान से मैं आप से कतराने लगा था ?"

इमाम साहब बोले जी हां ! मगर मारूफियत की वजह से सबब दरयाफ्त ना कर सका, उसने कहा मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं आप उसका सही सही जवाब दीजिए, पिछली बार मेरी बीवी दस्तरख्वान के पास कुछ पैसे भूल गई थी जो आपके जाने के बाद गायब हो गए थे, कहीं वह पैसे आपने तो नहीं उठा लिए थे ??
इमाम साहब फौरन बोले जी हां ! मैंने ही उठाया था ! ये सुनकर उस आदमी के होश उड़ गए, इमाम साहब ने कहा के :
" मैंने दस्तरख्वान के करीब कुछ नोट देखा जो हवा की वजह से बिखर गए थे, खिड़की खुली हुई थी और पंखा चल रहा था, मुझे खदशा हुआ के कहीं नोट उड़ ना जाए, फिर मैंने उन नोटों को जमा करके उठा लिया..."

इतना कह कर सर झुका कर इमाम साहब रोने लगे, घर वाले हैरत से इमाम साहब को देखने लगे, फिर उन्होने कहा तुम्हे मालूम है के मैं क्यूं रो पड़ा ??

मैं इस बात पर नहीं रो रहा के तुमने मुझपर इलज़ाम लगाया और बोहतान तराशी किया बल्कि इस बात पर रो रहा हूं कि आज पिछले एक साल से तुम्हारे घर में किसी ने भी क़ुरआन मजीद छुआ तक नहीं, अगर एक बार ही क़ुरआन मजीद सिर्फ खोल ही लेते तो अपने पैसे पा लेते,
इतना सुनते ही वह आदमी दौड़ा दौड़ा क़ुरआन मजीद के पास गया और उसे खोल कर देखा तो उसमें सारे पैसे मौजूद थे,

अल्लाह ताला हमें क़ुरआन पड़ने की तौफीक दे और बड़गुमानी से बचाए.. आमीन

हिंदी तर्जुमा : UmairSalafiAlHindi