Thursday, December 31, 2020

NAKAAMI KA KHAUFF AUR KHUD AITEMADI KI KAMZORI KAAMYAABI HASIL KE LIYE BAHUT BADI RUKAAWAT HAI

 



नाकामी का खौफ और खुद ऐतेमादी की कमजोरी कामयाबी हासिल के लिए बहुत बड़ी रुकावट है,


कहा जाता है कि हिरण की रफ्तार तकरीबन 90 किलोमीटर प्रति घंटा जबकि शेर की ज़्यादा से ज़्यादा रफ्तार 58 किलोमीटर प्रति घंटा होती है,

रफ्तार में इतने बड़े फर्क के बावजूद भी बेशतर मौकों पर हिरण शेर का शिकार हो जाता है, क्या आप जानना चाहते हैं के क्यूं ??

क्यूंकि जब भी शेर को देखकर जान बचाने के लिए हिरण भागता है तो उसके दिल में पक्का यकीन होता है के शेर ने उसे अब हरगिज़ नहीं छोड़ना, वह शेर के मुकाबले में कमज़ोर है और उससे बचकर नहीं निकल सकता ,

निजात ना पा सकने का ये खौफ हर लम्हे पीछे मुड़कर ये देखने के लिए मजबूर करता है के अब उसके और शेर के दरमियान कितना फासला बाक़ी रहता है और खौफ की हालत में यही सोच हिरण की रफ्तार पर असर अंदाज़ होती है, बस इसी दौरान शेर करीब आकर उसे दबोच कर अपना निवाला बना लेता है,

अगर हिरण पीछे मुड़ मुड़ कर देखने कि अपनी इस आदत पर काबू पा ले तो कभी भी शेर का शिकार नहीं बन पाएगा और हिरण को अपनी इस सलाहियत पर यकीन आ जाए के उस की ताकत उसकी तेज़ रफ्तारी में छिपी हुई है बिल्कुल ऐसे ही जैसे शेर की ताकत उसके अज़म और ताकत में छिपी हुई है तो वह हमेशा निजात पा लिया करेगा ,

बस कुछ ऐसी ही हम इंसानों की फितरत बन जाती है के हम हर लम्हे पीछे मुड़ मुड़ कर अपने माजी को तकते और कुरेदते रहते हैं जो कुछ और नहीं बल्कि हमें सिर्फ डसता रहता है, हमारी हिम्मतो को कमज़ोर , तबियतो को कमज़ोर करता रहता है और कितने ही ऐसे पीछा करते हमारे वहम और खौफ हैं जो हमें नाकामी का निवाला बनाते रहते हैं,

और कितनी ही हमारी ऐसी अंदरूनी मायूसिया हैं जो हमसे ज़िंदा रहने का हौसला तक छीनती रहती हैं हम कहीं हलाक और बर्बाद ना हो जाएं की सोच की वजह से अपने मकासिद हासिल करने के काबिल नहीं बनते और ना ही अपनी सलाहियत पर कभी ऐतमाद कर पाते हैं,

साभार : शाहिद सानाबिली
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com 

Wednesday, December 30, 2020

HOSHIYAR RAHEN

 



होशियार रहें !!

किसी ने क्या खूब कहा है के :- बहुत सारे लोग बड़ी बड़ी बातें करके अपनी तरफ मोड़ने के लिए बातें खूबसूरत अंदाज में पेश करते हैं मगर काम नहीं और हां कभी कभी वह दिखलावे के लिए थोड़ा बहुत काम कर भी देते हैं मगर आपका नहीं और किसी का , ऐसे मक्कारों से सावधान रहें,

क्यूंकि वह दीन का नाम ले कर, ईमान का नाम लेकर, दावत वा तबलीग़ का नाम लेकर , इसलाह ए मुआशरा का नाम लेकर, तालीम वा तरबियत का नाम लेकर , हेल्थ का नाम लेकर, रिफाई वा फलाही काम का नाम लेकर, अच्छी सियासत का नाम लेकर, हुकूक का नाम लेकर तुम्हें बेवकूफ बनाने की कोशिश करेंगे, मगर होशियार रहें जब तक आपका काम ना हो आप भी भरोसा किसी का ना करें अपने राज़ किसी को ना दें,जो करना हो सिर्फ अपने भरोसे पर करें,

ये अल्फ़ाज़ कुछ लोगों पर सादिक आते हैं जो सिर्फ बातें करते हैं जो लोगों के मिजाज़ को देखकर बातें करते हैं उन्हें अपनी तरफ माएल करते हैं लोगों को दिलासों में रखते हैं मगर काम नहीं,

और किसी ने क्या ही खूब कहा है :-

बड़ा अजीब ये मंजर दिखाई देता है।
हर शख्स ही पत्थर दिखाई देता है।

जिसे भी अपना समझता हूं ऐ मेरे यारों
उसी के हाथ में खंजर दिखाई देता है।

बाज़ लोग मीठी मीठी बातें करके आपके अपने बनकर आपके राज़ जाकर दूसरों को सुनाते हैं कभी मज़ाक समझ कर कभी बगावत समझकर , कभी फितना समझकर , कभी राजदार समझकर , कभी दुश्मन समझकर , कभी दोस्त समझकर, कभी बेवकूफ समझकर , इसलिए भरोसा सोच समझकर करो और अपने राज़ , राज़ ही रहने दो वरना वहीं खंजर का वार करेंगे जिनपर आप भरोसा करते हैं

अल्लाह हम सभी को हिदायत दे....आमीन

तहरीर: मुहम्मद इसहाक भट्टी
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
ब्लॉग: islamicleaks.com 

Tuesday, December 29, 2020

ALLAH KI PUKAAR

 



नबी ए करीम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :- " अल्लाह ताला फरमाता है के


मैं अपने बन्दे के गुमान के साथ हूं और जब वह मुझे अपने दिल में याद करता है तो मैं भी उसे अपने दिल में याद करता हूं और जब वह मुझे मजलिस में याद करता है तो मैं उसे उससे बेहतर फरिश्तों की मजलिस में उसे याद करता हू और अगर वह मुझसे एक बालिश्त करीब आता है तो मैं उससे एक हाथ करीब हो जाता हूं, और अगर वह मुझसे एक हाथ करीब आता है तो में उससे दो हाथ करीब हो जाता हूं, और अगर वह मेरी तरफ चलकर आता है तो मैं उसके पास दौड़ कर आ जाता हूं"

(सही बुखारी हदीस 7405) 

Monday, December 28, 2020

फ़िज़ूल सवालात के जरिए दूसरों कि ज़िन्दगी तबाह वा बर्बाद मत कीजिए

 



फ़िज़ूल सवालात के जरिए दूसरों कि ज़िन्दगी तबाह वा बर्बाद मत कीजिए

एक नौजवान ने दूसरे से पूछा :

आप कहां काम करते हैं ?? उसने जवाब दिया :-" फलां दुकान में "

फिर पूछा : अच्छा ! दुकान वाला आपको कितनी तनख्वाह देता है ?? उसने जवाब दिया 500

नौजवान ने बड़ी हैरत से पूछा : 500 बस ?? इतने में तुम्हारा गुज़र बसर होता है, यकीनन वो दुकान वाला इस लायक नहीं के आप उसके पास इतनी तनख्वाह में काम करें,"

उसी दिन से उसे अपने काम से नफरत होने लगी, वह दुकान वाले से तनख्वाह बढ़ाने कि दरख्वास्त करने लगा , दुकान वाले ने तनख्वाह बढ़ाने से इंकार कर दिया तो उसने काम करना ही छोड़ दिया , पहले जो कुछ कमाता था अब उससे भी हाथ धोकर के बैठ गया और बेकारी की ज़िन्दगी गुजारने लगा ,

एक खातून के बच्चा पैदा हुआ , उसकी सहेली उसे मुबारकबाद देने के मौके पर उससे पूछ बैठी :- तुम्हारे शौहर ने बच्चे की विलादत के मौके पर तुम्हारे लिए क्या तोहफा पेश किया ??

उस खातून ने जवाब दिया :- कुछ भी नहीं !!

उसकी सहेली बड़ी हैरत से कहने लगी:- कितनी अजीब बात है !! क्या उसके नजदीक तुम्हारी कोई अहमियत ही नहीं, "

उसकी सहेली अल्फ़ाज़ का ये बारूद उस पर डालकर चलती बनी,

जुहर के वक़्त उसका शौहर घर आया तो देखा बीवी बहुत नाराज़ बैठी है, दोनों में कहासुनी हुई और मामला तलाक तक पहुंच गया ,

ये तबाही कहां से शुरू हुई ? उसकी सहेली की उसी बात से,
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बयान किया जाता है के एक बाप था, बड़ी सुकून और इत्मीनान भरी ज़िन्दगी गुज़ार रहा था किसी ने उससे कह दिया :- क्या तुम्हारा बड़ा बेटा तुम्हारी खैरियत पूछने नहीं आता ??कितनी अजीब बात !! आखिर उसके पास क्या मजबूरी है,

फिर क्या था उस बाप के दिल में बातें घर कर गईं, और उसी दिन से उसकी पुरसुकून वाली ज़िन्दगी घारत हो गई,
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हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में कई बार ऐसे सवालात पूछे जाते हैं जो देखने में बड़े मासूम से लगते हैं मगर वह हकीकत में ज़िन्दगी को तबाह वा बर्बाद कर देते हैं,

मिसाल के तौर पर,

आपके पास ये क्यूं नहीं है ?
आप वह फलां चीज क्यूं नहीं खरीद लेते ??
आप ये अजियत भरी ज़िन्दगी कैसे झेल रहें हैं ??
आप इस बन्दे को कैसे अपनी ज़िन्दगी में बर्दाश्त कर रहें हैं ??

हम इस तरह के सवालात नादानी में या बतौर तफ़रीह कर बैठते हैं, लेकिन शायद हमें नहीं मालूम होता के ये सवालात मुखातिब के दिल में कितना गहरा ज़ख्म दे जाते हैं,

इस तहरीर या पैगाम का खुलासा येे हैं के किसी की ज़िन्दगी तबाह करने का सबब ना बनो,

एक और नसीहत!!

जब किसी के घर में दाखिल हो तो एक अंधे की तरह और जब वहां से निकलो तो एक गूंगे की तरह,

इस तरह के नसीहती पैगामात भेजते हुए मुझे अपने बारे में हरगिज़ ये दावा नहीं होता के मैं बहुत पाक वा साफ हूं, इसलिए इन पैग़ामात का सबसे पहला मुखातिब मैं अपने आप ही को समझता हूं,

इस पैगाम का एक ही उंवान है :-" दूसरों की ज़िन्दगी तबाह वा बर्बाद मत कीजिए"

अरबी से मनकूल

तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com 

Sunday, December 27, 2020

KASOOR SAFEDPOSH BUDDHE KA NAHIN- MANHAJ WA NISAAB KA HAI

 



कसूर सफेदपोश बुड्ढे का नहीं मनहज वा निसाब (सिलेबस) का है


कयादत की भांग पी कर जब कोई हर्जा सरायी करता है तो उसके मुंह से बदबूदार झाग समेत ऐसे अल्फ़ाज़ भी निकल जाते हैं जो झाग से भी मकरूह और नागवार होते हैं,

जबसे फकीह उल नुसूस के बाब में अहले राय का जहूर हुआ तब से सबील उल मोमिनीन से एराज़ शुरू हुआ अहलुल राय कौन हैं ??

यही निरी हनाफियत के ठेकेदार लोग, जिसमे जा बजा हदीस ए रसूल अल्लाह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तकद्दुस को पामाल किया जाता है और दूर अज्कार ताविलात से उन्हें नाकाबिल ए अमल बना दिया जाता है, जहां सरीह नुसूस के मुक़ाबिल में मुफ्तियों की गुंजालिक इबारतों को तरजीह दी जाती है, जहां चंद सहाबा किराम को गैर फकीह जानकर उनकी रिवायतों को नाकाबिल ए हुज्जत क़रार दिया जाता है, हद तो ये है के उन अहले राय के अन्दर अक्वाल इमाम की तरजीह के वास्ते नुसूस शरिअह को मंसूख करने की भी जुर्रत पाई जाती है !

सलमान नकवी नदवी कि परवरिश भी उसी माहौल में हुई, जहां दिलों में हदीस से पहले फिकह की अजमत पढ़ाई जाती है, तकलीद के वजूब पर लम्बी लम्बी बहेसें होती हैं लेकिन इत्तेबा ए सुन्नत और फहम सहाबा पर कोई चर्चा नहीं होता, सात सालों तक फिकाह वा फतवा पढ़ाने के बाद आखिरी साल दौरा हदीस के नाम पर शताब्दी एक्सप्रेस की रफ्तार से नॉन स्टॉप कुतुब सित्ता का दौरा करा दिया जाता है,

उनका दिल इतना तंग होता है कि पूरे मुल्क के सामने तलाक़ जैसे मसले में शरियत को छोड़कर मसलक बचाने में जुट जाते हैं,

यहां तक कि पार्लियामेंट में उनका एक मौलवी जज्बात में फरीक मुखालिफ को सिर्फ इस बिना पर दहशतगर्द का लक़ब दे डालता है के उसने तलाक को शरई नुसूस के मुताबिक समझा है, हलाला जैसे गन्दे धंधे पर ये लोग खामोश हैं क्योंकि उनके पास इसके इलावा शौहर बीवी को दोबारा मिलाने का कोई रास्ता नहीं,

जब उनके मदरसे में सहाबा और उनसे मरवी हदीस की इतनी इज़्ज़त अफजाई हो रही हो तो भला उनके परवरदाह मौलवी को ये कहने में क्या परेशानी हो सकती है कि हजरत अबू हुरैरा राजियाल्लाह ताला अनहु ने हदीस को छुपाया था ??

कसूर इस सफेदपोश बुड्ढे का नहीं कसूर उसके मंहज और निसाब का है, इसके इलावा बुड्ढा कयादत के नशे में चूर भी है, ऐसी सूरत में मुंह से कब क्या निकल जाए कुछ भरोसा नहीं, खैर कयादत का नशा एक उमूमी ऐब है जो किसी के अंदर भी पाया जा सकता है लेकिन नशे की हालत में आदमी अकसर अपने दिल की तर्जुमानी कर रहा होता है लिहाज़ा जब तक उनके मनहज में दुरुस्तगी ना आए शातमीन सहाबा की खेप तैयार होती रहेगी....

وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ الْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصْلِهِ جَهَنَّمَ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا۔

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com

Saturday, December 26, 2020

MUNKAR E HADITH KE LIYE LAMHA E FIKRIYA

 



एक फ्लाइट में पास बैठी बा-हिजाब लड़की से एक शख्स बोला, "आइए क्यों न कुछ बातचीत कर लें , सुना है इस तरह सफर आसानी से कट जाता है ..!!"


लड़की ने किताब से नजर उठाकर उसकी तरफ देखा और कहा, "जरूर , मगर आप किस मौजू पर बात करना चाहेंगे ..!!"

उस शख्स ने कहा, "हम बात कर सकते हैं कि इस्लाम औरतों को पर्दे में क्यों कैद करता है ..?"
"या इस्लाम औरत को मर्द के बराबर विरासत का हकदार क्यों नहीं मानता ..?"

लड़की ने दिलचस्पी से कहा, "जरूर , लेकिन पहले आप मेरे एक सवाल का जवाब दीजिए ..!!"

उस शख्स ने पूछा, "क्या ..!!"

लड़की ने कहा, "गाय , घोड़ा और बकरी एक सा चारा यानी घांस खाते हैं , लेकिन गाय गोबर करती है , घोड़ा लीद करता है और बकरी मेंगनी करती है , इसकी वजह क्या है ..??"

वह शख्स इस सवाल से चकरा गया और चिढ़कर बोला, "मुझे इसका पता नहीं ..!!"

इस पर लड़की बोली, "क्या आप समझते हैं कि आप खुदा के बनाए कानून , पर्दा , विरासत और हलाल व हराम पर बात करने के काबिल हैं , जबकि खबर आपको जानवरों की गिलाज़त की भी नहीं है ..?"

यह कहकर लड़की अपनी किताब की तरफ मुतवज्जा हो गई ..!!

नोट : यह है हमारे मुआशरेे की मिसाल , इल्म होता नहीं लेकिन बहस करना अपना फ़र्ज़ समझते हैं ..!

Friday, December 25, 2020

ZINDAGI KI SACCHAI KO SAMJHNA BAHUT MUSHKIL NAHIN HAI

 



ज़िन्दगी की सच्चाई को समझना बहुत मुश्किल नहीं है,


करना बस ये है के :

जिस तराज़ू पर आप दूसरों को तौलते हैं उस तराज़ू पर कभी खुद बैठ कर देखिए,

जिस बात पर आपको तकलीफ होती है दूसरे को भी ऐसे ही होती है,

जो बात आपको खुश करती है अगले कि खुशी भी ऐसे ही होती है,

जिन्दगी में सुकून और खुशियां सिर्फ इबादत से नहीं मामलात को संवारने से भी आती हैं 

Thursday, December 24, 2020

ALLAH PAR BHAROSA - EK SABAK




अल्लाह पर भरोसा : एक सबक अमूज़ वाकया


इमाम जहबी रहमतुल्लाह अलैह अपनी किताब " सीर अलाम उन नुबुला " में एक वाकया ज़िक्र किया है के हातिमुल आसिम जिनका शुमार बड़े नेक लोगों में से था, एक साल उनका हज का शौक हुआ मगर उनके पास हज के लिए माली ताकत नहीं थी, और शरई तौर पर इस तरह हज करना जायज नहीं बल्के अगर अहले ओ अयाल राज़ी ना हों और उनके अखराजात का बंदोबस्त ना हो तो ऐसी सूरत में हज वाजिब ही नहीं होता,

चुनांच जब हज का मौसम आया तो उनकी एक बेटी जो कि नेक थी उन्हें रोता हुआ देख कर पूछने लगी:

अब्बू जान आप क्यों रो रहे हैं ??

बाप: हज का मौसम आ गया है,

बेटी: आप हज करने क्यूं नहीं जाते ?

बाप: पैसों का मसला है,

बेटी: अल्लाह ताला इंतजाम कर देगा

बाप: आप लोगों के घरेलू अखराजात का क्या होगा ?

बेटी: अल्लाह ताला उसका भी इंतजाम कर देगा

बाप: लेकिन ये मामला आपकी वालिदा पर मुंहासिर है ,

बेटी मां के पास गई और सारा माजरा सुनाया, आखिर कार मां और बच्चे सब राज़ी हो कर बाप से कहने लगे:

" आप हज को जाएं अल्लाह ताला ज़रूर हमारी रोज़ी रोटी का इंतजाम करेगा"

चुनंचे बच्चों के तीन दिन के अखराजात का इंतजाम करके हातिम हज पर चले गए, उनके पास भी ज़रूरत भर अखराजात नहीं थे, वह हज काफिले के पीछे पीछे चल रहे थे , अभी थोड़ी ही दूर गए थे के हज काफिले के अमीर को किसी बिच्छू ने डंक मार दिया , लोग इलाज और रुकिया के लिए किसी शक्श को तलाश करने लगे उनकी नजर हातिम पर पड़ी चुनांचे उन्हाेंने रूकिया किया और फौरन अमीर सहाब शिफायाब हो गए,

अमीर सहाब ने कहा कि उनके सफर खर्च का सारा जिम्मा मेरे ऊपर है,

हातिम कहने लगे:- ऐ अल्लाह ! ये तूने मेरा बंदोबस्त कर दिया, अब मेरे बच्चों का भी बंदोबस्त करके मुझे दिखा दे,

तीन दिन गुजर गए घर में जो खर्च था वह खत्म हो गया अब भूख उनको काटने लगी, चुनांचे घर वालों ने बेटी को मलामत करना शुरू कर दिया और वह बेटी उनकी मलामत पर हंस रही थी, घर वालों ने कहा तुम हंस रही हो और भूक की वजह से हमारा बुरा हाल है,

बेटी ने उन लोगों से पूछा :- अच्छा ये बताओ हमारे अब्बा रिज्क देने वाले हैं या रिज़्क खाने वाले ??

घरवालों ने जवाब दिया :- रिज़्क खाने वाले हैं और रिज़्क देने वाला तो अल्लाह ही हैं,

बेटी ने जवाब दिया :- ठीक है रिज़्क खाने वाला चला गया है मगर रिज़्क देने वाला अभी बाकी है,

अभी ये बातें हो ही रहीं थीं के इतने में दरवाज़ा खटखटाने कि आवाज़ आने लगी,

पूछा दरवाज़े पर कौन ??

जवाब आया अमीर उल मोमिनिन आप लोगों से पानी तलब कर रहें हैं, बेटी ने मस्कीजा पानी से भर दिया, जब खलीफा ने पानी पीया तो उसे पानी में ऐसी मिठास महसूस हुई जो इससे पहले कभी ना महसूस कि थी,

खलीफा ने पूछा : पानी कहां से लाए हो?

उन लोगों ने जवाब दिया:- हातिम के घर से ,

कहा उनको बुलाओ ताकि मैं उन्हें इसका बदला दूं ,

लोगों ने कहा :- वह तो हज पर गए हुए हैं,

खलीफा ने अपनी पेटी जोकि शानदार कपड़े की थी और कीमती जवाहारात से भरी थी उसे निकाल कर देते हुए कहा ये ले जाओ और उनके घरवालों को दे दो,

खलीफा ने अपने वजीरों से कहा :- कौन है जो मुझसे मुहब्बत करता है (यानी वह भी अपनी पेटी निकाल कर दे दे )
चूनाचे सारे वजीरों और ताजिरों ने अपनी अपनी पेटी निकाल कर दे दी, इतने में बहुत सारी पेटियां जमा हो गई, एक ताज़िर ने एक खतीर रकम देकर सारी पेटियो को खरीद लिया जिससे उनका घर सोने से भर गया और ज़िन्दगी भर के लिए उनके अखराजात के लिए काफी हो गया, फिर इस ताजिर ने सारी पेटियों को उन्हें वापस कर दिया,

घर वाले इस पैसे से खाने पीने की चीजें खरीद कर खुश थे जबकि बेटी रो रही थी,

मां ने बेटी से कहा: बेटी तुम्हारा मामला तो अजीब है, पहले जब हम भूख से रो रहे थे तब तुम हंस रही थी, अभी अल्लाह ने हमें खुश हाल कर दिया है तुम फिर क्यूं रो रही हो ??

बेटी ने जवाब दिया :-

" ये मखलूक जो अपने लिए किसी नफा वा नुकसान के मालिक नहीं ( उसका इशारा खलीफा की तरफ था) उसने हमारे ऊपर एक नजर करम करके हमें ज़िन्दगी भर के लिए मालदार कर दिया, फिर उस जात के बारे में सोचें जिसके हाथ में सारी बादशाहत है "

( सीर अलाम उन नुबुला 11/ 487)

तहरीर: शाहिद सनाबिली
हिन्दी तर्जुमा : Umair Salafi Al Hindi

ब्लॉग: islamicleaks  

Wednesday, December 23, 2020

SAR ZAMEEN E ARAB KA EK AZEEM MUJAAHID

 



सर ज़मीन ए अरब का एक अज़ीम मुजाहिद!

वह अपनी क्लास का सबसे अकलमंद तालिब ए इल्म था, उस्तादों का मंजूर ए नज़र था वह हर बार क्लास में पहली पोजिशन लेता,
सानविया से फरागत के बाद उसे अरमको में 2500 सऊदी रियाल पर जॉब मिली, अब उसके पास नौकरी भी थी और गाड़ी भी, उनके हम उमर नौजवानों में यही कामयाबी थी,
लेकिन 18 साल का समीर सुवेलीम की ज़िन्दगी में कोई खला थी कोई बेचैनी थी और कोई कमी थी,
ये वो दौर था जब अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत यूनियन के खिलाफ मजाहिमत शुरू हो चुकी थी, एक दिन सब कुछ छोड़ छाड़ कर समीर सुवेलीम ने अफ़ग़ानिस्तान का रुख करने का इरादा बांधा चंद दिन बाद वह पेशावर कैंप में था,
सन 1988 से लेकर 1993 तक वह अफ़ग़ानिस्तान में जारी मुजाहिमत का ना सिर्फ हिस्सा रहा बल्कि खोस्त, जलालाबाद और फतह काबुल में अरब मुजाहीदीन की कयादत की,
इस दौरान ये अरब जवान एक मजबूत आसाब का मालिक कमांडर के तौर पर सामने आ चुका था,
इन पांच सालों में ये रूसी, अंग्रेज़ी, और पश्तो जबानें भी सीख चुका था अरब और गैर अरब मुजाहीदीन के दरमियान ये एक पुल का भी किरदार अदा कर रह थे,
1993 में मुजाहीदीन कयादत की तरफ से उन्हें एक छोटा सा दस्ता देकर ताजिकिस्तान के बर्फसारों पर रहते हुए मौसम कि शिद्दत के बावजूद गोरिल्ला कार्यवाही से रूसी फौजियों की नाक में दम करता रहा, इस दौरान उनकी दो उंगलियां भी राह ए खुदा में कट गईं, ये 2 साल तक ताजिकिस्तान का महाज़ संभाले रहा, ताजिकिस्तान की आज़ादी के बाद ये वापस अफ़ग़ानिस्तान लौटा,
1995 में सिर्फ 8 मुजाहिद साथियों के साथ इन्होने चेचन्या का रुख किया यहां से समीर सुवेलीम का अफसानों किरदार शुरू होता है सिर्फ 8 मुजाहिद के साथ चेचन्या पहुंचे इस बहादुर अरब मुजाहिद ने अगले एक साल के दौरान सैकड़ों मकामी नौजवानों को तरबियत दे कर गोरिल्ला जंग में उतारा था यहां इनका नाम कमांडर खत्ताब पड़ा,
गोरिल्ला जंग में पहली बार ऐसा हुआ था के रूसी इंटेलिजेंस के चीफ सर पकड़ कर बैठ गई थी के अफ़ग़ान मुहाज़ से पिटने के बाद ये कौनसा नया मुहाज खुल गया,
कमांडर खत्ताब अपने चंद साथियों समेत कभी सोवियत फौजियों के काफिले पर हमला करता कभी उनकी छावनियों पर हमला करता और कभी उनके हेलीकॉप्टर गिराता,
16 अप्रैल 1996 को खत्ताब ने गोरिल्ला जंग की सब से बड़ी कार्यवाही कर डाली, 50 मुजाहिद साथियों के साथ अबू खत्ताब एंबुश लगाए बैठा था के रूसी फ़ौज का काफिला वहां से गुज़रा खत्ताब और साथियों ने हल्ला बोल दिया उस कार्यवाही में 223 फौजी मारे गए थे जिनमें 26 फौजी अफसर थे, जबकि 50 गाडियां मुकम्मल तबाह हुई थी, खत्ताब ने इस कार्यवाही की वीडियो भी जारी कर दी,
22 दिसम्बर 1997 को खत्ताब ने अपने 100 साथियों समेत रूसी सरजमीन के अंदर दाखिल होकर रूसी फौज का हैडक्वाटर पर हमला किया जिसमें 300 गाडियां तबाह हुईं जबकि दर्जनों फौजी हलाक हुए,
खत्ताब और उसके साथियों ने कई हेलीकॉप्टर को गिराया और उन हेलीकॉप्टरों को गिराते हुए ये उसकी वीडियो बनाते थे,
1996 में रूसी फौज चेचन्या से निकल गई ,इस दौरान खत्ताब पूरे चेचन्या में हीरो बन चुके थे नई कायम हुकूमत ने खत्ताब की शुजाअत वा बहादुरी को सराहते हुए उन्हें कई अवॉर्ड दिए उन्हें जनरल का एजाजी खिताब दिया,
जंग खतम होने के बाद खत्ताब ने दावत वा तबलीग़ और तौहीद की तरवीज का काम शुरू कर दिया,
पूरे मुल्क में मदारिस और दीनी तालीमी इदारो का जाल बिछाया,
उन्होंने मुख्तलिफ तरबियती सेंटर कायम किए जहां उम्मात ए मुसलमां के जवानों की तालीम के साथ साथ उन्हें तरबियत दी जाती,
2002 में रूसी इंटेलिजेंस, एक गद्दार के जरिए खत्ताब को ज़हर देकर शहीद करने में कामयाब हुई, बाद ने पता चला ये गद्दार डबल एजेंट था,
अरब का ये नौजवान 18 साल की उम्र में घर और वतन से चला था पूरे 15 साल ये मुख्तलिफ महाजों पर ये लड़ता रहा और आखिर में सिर्फ 33 साल की उम्र में जाम ए शहादत नोश की, सऊदी अरब के एक गांव अरार में पैदा हुए उम्मत के इस बहादुर बेटे ने अपने रब से किया अपना अहद पूरा किया
तहरीर: फ़िरदौस जमाल
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks