Thursday, December 3, 2020

उसूल ए हदीस- किस्त 3

 



उसूल ए हदीस- किस्त 3

तहकीक: खबर ए आहाद ,

किस्त 2 में खबर आहाद के बारे में ज़िक्र हुआ था इस पोस्ट में खबर आहाद को तकवियत देने वाले कुछ सुराग ये हैं,

1- रिवायत का सहिहैन या उनमें से किसी एक में होना , चूंकि उलेमा ने इन किताबों को अज़ रूए सेहत क़ुबूल किया है इसलिए ये मजीद करीना (condition) हो,

2- उस रिवायत का खबर मशहूर होना जो मुताद्दिद (कई) तरीके से वारिद हो

3- ऐम्मा वा सनद के वास्ते से आना बशर्ते वह घरीब ना हो,

इल्म ज़रूरी : उस इल्म को कहते हैं जिसके सबूत के लिए इस्तदलाल (अनुमान) की ज़रूरत ना हो,

इल्म नजरी : उस इल्म को कहते हैं जो बहस वा नजर और इस्तादलाल से साबित हो, नेज़ इसके इलावा उसकी सेहत के लिए मजीद करीना मौजूद हो,

इल्म जनी : उस इल्म को कहते हैं जो बहस वा नजर और इस्तादलाल से साबित हो, मगर सेहत के लिए मजीद करीना मौजूद ना हो, इसमें यकीन का पहलू राजेह (बहतर) और शुबाह का पहलू मरजूह होता है,

खबर आहाद जिनमें रिवायत हदीस की सिकाहियत (रावी का हाल) के इलावा दूसरा कोई करीना ना हो उनसे जो इल्म हासिल होता है वह भी इल्म यकीन होता है, इसलिए के उसकी भी सेहत के लिए रावी ए हदीस के हालात में बहस वा नजर के बाद ही इस्तादलाल करके हुक्म लगाया जाता है,

इसके इलावा अगर कोई करीना भी मौजूद हो तो उसकी वजह से उसकी सेहत का दर्जा बड़ जाता है, इसलिए मुहद्दिसीन ने उस फर्क की ताबीर के लिए एक को नजरी और दूसरे को ज़नी कह दिया , जिसमें लुग्वी माना से ज़्यादा इस्तेलाही माना का दखल है

ज़न का मतलब:

ज़न बदगुमानी के माना में इस्तेमाल होना है जैसे

یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوا اجۡتَنِبُوۡا کَثِیۡرًا مِّنَ الظَّنِّ ۫ اِنَّ بَعۡضَ الظَّنِّ اِثۡمٌ

" ऐ ईमान वालों ! बहुत सी बदगुमानी से बचो, बाज़ गुमान गुनाह होते हैं " (क़ुरआन अल हुजरात आयत 12)

नेज़ यकीन के माने में भी इस्तेमाल होता है,

اِنِّیۡ ظَنَنۡتُ اَنِّیۡ مُلٰقٍ حِسَابِیَہۡ

" मैं पहले ही समझता था के मुझे अपने हिसाब का सामना करना होगा " (क़ुरआन अल हाक्का आयत 20)

الَّذِیۡنَ یَظُنُّوۡنَ اَنَّہُمۡ مُّلٰقُوۡا رَبِّہِمۡ

" जो इस बात का ख्याल रखते हैं के वह अपने परवरदिगार से मिलने वाले हैं " (क़ुरआन अल बकरा आयात 46)

وَّ ظَنَّ اَنَّہُ الۡفِرَاقُ

"और इनसान समझ जायेगा के जुदाई का वक्त आ गया " (कुरआन अल कियामा आयत 28)

وَ رَاَ الۡمُجۡرِمُوۡنَ النَّارَ فَظَنُّوۡۤا اَنَّہُمۡ مُّوَاقِعُوۡہَا

" और मुजरिम लोग आग को देखेंगे तो समझ जायेंगे के उन्हें उसी में गिरना है " (क़ुरआन अल कहफ आयत 53)

शक वा शुबह में भी इसका इस्तेमाल होता है,

وَ مَا لَہُمۡ بِہٖ مِنۡ عِلۡمٍ ؕ اِنۡ یَّتَّبِعُوۡنَ اِلَّا الظَّنَّ ۚ وَ اِنَّ الظَّنَّ لَا یُغۡنِیۡ مِنَ الۡحَقِّ شَیۡئًا ﴿ۚ۲۸﴾

" हालांकि उन्हें इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं है, वह महज़ वहम वा गुमान के पीछे चल रहें हैं, और हकीकत ये है के वहम वा गुमान हक के मामले में बिल्कुल कारामद नहीं " ( क़ुरआन अल नजम आयत 28)

माना कि तहकीक के लिए सियाक वा सबाक (Context) और करीने की ज़रूरत पड़ती है अगर करीना कमजोर हो या ज़न इल्म वा यकीन और सदाकत के मुकाबले में , या मुजम्मत के लिए इस्तेमाल हो तो वह शक वा शुबहा के माने में होता है, और अगर करीना मजबूत हो या तारीफ के सियाक में हो तो वह यकीन के माने में होता है,

करीना मजबूत होने की सूरत में अमूमन "अन" (मैं) या "अन्ना"(वह) के साथ और करीना कमज़ोर होने की सूरत में "इन्ना" (वह) या "इन्नी" के साथ इस्तेमाल होता है,

नेज़ मकबूल राविओं के वास्ते से जो इल्म हासिल होता है यहां " ज़न" का इस्तेमाल तारीफ के सियाक (context) में है, लिहाज़ा यहां भी " ज़न" यकीन के माने में होगा और उनके वास्ते से जो इल्म हासिल होगा वह यकीन होगा,

मालूम हुआ के " ज़न " से मुराद अंदाजा लगाना और शक वा शुबह नहीं है बल्कि इससे इल्म यकीनी ही मुराद है, और इल्म की ये तीनों किस्मे ज़रूरी, नजरी, ज़नी, इनसे जो भी इल्म हासिल होता है वह यकीनी होता है, अलबत्ता उनके दरजात में फर्क होता है, इस्तेलाह में एक को जरूरी, दूसरी को नजरी, और तीसरे को ज़नी कहा जाता है, यानी इल्म यकीनी ज़रूरी, इल्म यकीनी नजरी, इल्म यकीनी ज़नी..

जारी....

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com