एक आम औरत और तवायफ में क्या फर्क होता है ??
होती तो दोनों ही औरतें हैं, फिर क्यूं एक आम औरत एक पाकीज़ा मुहब्बत के बाद टूट जाती हैं ??
और क्यूं तवायफ एक के बाद एक ताल्लुक बनाए जाती है और फिर भी खुद को टूटने नहीं देती ??
औरत की ताकत उसके जज्बात में होती है, तवायफ जिस्म तो दे देती है मगर कभी भी अपने जज्बात तक किसी भी मर्द को पहुंचने नहीं देती,
जबकि आम औरत जब मुहब्बत करती है तो सबसे पहले अपने जज्बात देती है, वह जिस्म दे या ना दे मगर उसके आंसू, उसकी खुशी, उसकी दूसरी औरतों और उस इंसान के दोस्तों से जलन और दुआएं भी उसी इंसान से मंसूब हो जाती है जिससे वह मुहब्बत करती है,
अक्सर देखने में आता है के लोग एक औरत को किसी से बात करता देखकर फैसला सुना देते हैं के ये उस आदमी में दिलचस्पी ले रही है, और उसे ये खुश फहमी हो जाती है के उसे उस इंसान से मुहब्बत है,
मगर उसके जाने के बाद वह दूसरे इंसान की मुहब्बत सर पर सजाए नजर आती है, तो लोग समझते हैं के येे भी तवायफ है, उसके एक ताल्लुक के बाद दूसरे ताल्लुक़ का मतलब ये है के उसने पहले इंसान को अपने जज्बात नहीं दिए थे जिसे वह मुहब्बत समझ बैठे वह उसकी दोस्ती या हमदर्दी थी, पहली बार बच सकती है मगर दूसरी बार नहीं, आखिर टूट ही जाती है, फिर अपनी ज़िन्दगी में कभी किसी और इंसान को आने नहीं देती, ना फिर किसी पर ऐतबार करती है, ना शादी का नाम लेती है, शादी कर भी ले फिर भी सारी ज़िन्दगी ज़िंदा लाश बनकर गुज़ार देती है और अपने खानदान को संभाल भी नहीं पाती,
मैं मर्दों से बस इतना कहना चाहता हूं के इंटरनेट की अक्सर औरतें भोली होती हैं उनको तवायफ समझ कर मुहब्बत का खेल मत समझना वरना ये टूट जाएंगी और अगर औरत टूट जाए तो एक खानदान, एक नसल टूट जाती है, खुदा के लिए अपना नाम जालिमों में ना लिखवाना, और मेरी लड़कियों से भी गुज़ारिश है कि अपनी अस्मत की खुद हिफाज़त करें,
अपनी ज़िन्दगी से प्यार करें बैगैर निकाह मुहब्बत खेल है जिसकी कद्र कोई नहीं करता वह भी नहीं जो आपको तवायफ समझ कर आपके जज़्बात तक पहुंच कर आपके अंदर की औरत को खींच कर सरे बाज़ार लाना चाहता है, बेहतर है के दोस्तियां भी छोड़ दें, और बावक्त खुद को बचाकर इस झूठी ज़िन्दगी से भाग जाएं,
साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com