Tuesday, December 1, 2020

उसूल ए हदीस का खाका (Road-Map) (किस्त 1)

 



उसूल ए हदीस का खाका (Road-Map) (किस्त 1)


बुनियादी तौर से इस इल्म का मकसद हदीस ए रसूल की हिफाज़त, सही और ज़ईफ़ में तमीज़ करना है, लिहाज़ा इस पर गुफ्तगू, हदीस पर गुफ्तगू से शुरू होती है, और शुरुआत में इसकी दो तरह की तकसीम की जाती है "बा ऐतबार मुखबर" और "बा ऐतबार निस्बत ",

मुखबर के ऐतबार से इसकी दो किस्में होती है, मुखबर की तादाद अगर ज़्यादा हैं तो उस हदीस को "मुतावातिर" और अगर कम हैं तो " आहाद" कहते हैं,

मुतावातिर पर गुफ्तगू उसकी तारीफ , शर्त, किस्में, और फायदा पर सिमट कर रह जाती है इसीलिए उसूल हदीस के बहस से उसका ताल्लुक नहीं क्यूंकि उसमे सेहत और ज़ईफ़ पर गुफ्तगू नहीं होती, उसकी सेहत मुसल्लम होती है,

फिर आहाद की तीन किस्में होती है, मशहूर, अज़ीज़, और गरीब, फिर यही तीनों किस्में मकबूल वा मरदूद में तकसीम हो जाती है,

मकबूल की दो किस्में होती है सही और हसन, यहां पर सही की किस्में , उसकी तारीफ, दरजात सही, क़ुतुब सीहाह वगेरह दीगर जुज्यात पर बाहेस होती है, जिसमें सहिहैन का खुसूसी ज़िक्र आता है,

फिर हसन कि तारीफ, किस्में, वजूद की जगह, हसन सही, का इजतेमा और उससे मुतालिक जुज्यात (Sources) ज़िक्र किए जाते हैं यहां मकबूल की बहस मुकम्मल हो जाती है,

उसके बाद मरदूद (ज़ईफ़) पर गुफ्तगू की जाती है जिसमें अदालत वा ज़ब्त से मुताल्लिक बातें होती है, ज़ईफ़ होने की वजह बताई जाती है, जिनकी दो किस्में होती है

1- मरदूद अज़ रुए अदालत वा ज़ब्त
2- मरदूद अज़ रुए सुकूत (खामोशी)

अगर मरदूद अज़ रुए सुकूत (खामोशी) है तो उसकी मुख्तलिफ शक्लें होती है जिनके नाम, मुअल्लक, मुअज्जल , मुन कताआ , , ,मुरसल और मुदाल्लिस है,

इनमें हर एक कि जुज्यात ,मसाइल वा मिसालें वगेरह बयान की जाती है,

और अगर मरदूद अज़ रुए अदालत वा ज़ब्त है तो उसकी कैफियत को देखा जाता है जो जुमला दस कैफियत पर मुन्हसर होता है उनको असबाब रद कहा जाता है, पांच का ताल्लुक अदालत से है, और पांच का ज़ब्त से जो हसब तरतीब इस तरह है,

1- रावी का झूठा होना
2- रावी का मुहतमम बिल कज्जब होना,
3- रावी से कसरत से गलती होना,
4- उसका इंटेहाई लापरवाह होना
5- उसका फासिक होना ( यानी गुनाह कबीरा करना)
6- रावी का शक्की होना यानी बा कसरत वहम होना
7- मुखालिफ उल शिकात, जिसमें अज़ रुए मुखालिफत : मुदर्रिज, मकलूब, मजीद, मुस्तरब, वगेरह पर गुफ्तगू की जाती है,
8- रावी का मझहूल (Doubtful) होना,
9- रावी का बीदाती होना,
10- सु ए हिफ्ज़ : यहां पर हर एक कि तारीफ, मिसालें, जुज्यात, हुक्म वगेरह हसब वगेरह बयान की जाती है,

फिर इन ज़ईफ़ रिवायत को तकवियत देने के लिए जो रिवायतें बतौर शाहिद और मुताबे तलाश की जाती हैं, उनका जिक्र होता है और अगर ये मकबूल रिवायतें मुता आरिज़ होती है तो क्या करना है उसकी वज़ाहत होती है, यहां पर हदीस की पहली तकसीम अज़ रुए मुखबर पर गुफ्तगू तकरीबन खत्म हो जाती है,

इसके बाद हदीस की दूसरी किस्म अज़ रुए निसबत का ज़िक्र आता है जिसमें हदीस ए कुदसी, मर्फु, मर्कू, मौकूफ, मक्तू, वगेरह पर गुफ्तगू होती है,

असबाब ए सेहत वा कमजोरी मालूम करने के लिए रावियों की मुआरिफत ज़रूरी होती है लिहाजा यहां पर रावियो की किस्में उनके तबकात जिरह वा तादील और उनके कलिमात, अहकामात, कवायद वा जावाबित पर बहेस। होती है, साथ साथ रावियों के आम हालात नाम वा निस्बत , कुन्नियत , अल्काब, वतन , कबायेल, तारीख वफात, मुताशबेह असमा वा दीगर मुतालिकात की मुआरिफत हासिल की जाती है,

फिर रिवायत की मुआरिफत की बारी आती है जिसमें पढ़ने पढ़ाने के आदाब, कैफियत रिवायत, हदीस लिखने का तरीका , तस्नीफ हदीस पर गुफ्तगू की जाती है और इस तरह से ये इल्म मुकम्मल होता है,

ये फन उसूल हदीस का बुनियादी और मुख्तसर खाका है जो अपने अनवा वा अक्साम के साथ हदीस रसूल की मुआरिफत और उसकी हिफाज़त के लिए हर वक़्त सीना सपर रहता है और ता कयामत इन शाए अल्लाह बाक़ी रहेगा

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog:islamicleaks.com