यूनिवर्सिटी नामा !
क्या ख्याल है आपका इस बारे में ।
यूनिवर्सिटियां या तवायफों के कोठे
यूनिवर्सिटी में तमाम तालबा लड़के हों या लड़कियां सब मैच्योर होते हैं, अच्छे बूरे और फायदे नुकसान का फर्क बख़ूबी जानते हैं, इस लेवल पर कोई एक दूसरे को तंग नहीं करता, यहां जो भी कपल यानी जोड़ा बनता है वह दोनों की बाहमी रजामंदी से बनता है,
दोनों एक दूसरे के साथ कुछ वक़्त गुज़ार कर दो तीन जूस कॉर्नर पर जूस पीने और कुछ होटलों पर खाना खाने के बाद ही एक दूसरे को अपना सब कुछ सौंप देते हैं, यहां शुरुआत हमेशा दोस्ती की आड़ में होती है क्यूंकि यहां दोनों ही समझते हैं कि दोस्ती करने में कोई हर्ज नहीं है,
लेकिन एक हकीकत ये है कि दो मुखालिफ जिंस अच्छे दोस्त भी हो तो भी ज़िन्दगी के किसी ना किसी मोड़ पर एक दूसरे को कशिश करते है ,
यहां पर कुछ लोग मजबूत होते है और अपने आप पर काबू रखते हुए साफ रिश्ता रखकर आगे चलते हैं मगर ये तादाद आटे में नमक के बराबर है,
ज़्यादातर जोड़े जिस्मानी ताल्लुकात में मुब्तिला हो जाते हैं, यूनिवर्सिटी लेवल पर यहां कोई किसी के साथ ज़बरदस्ती नहीं करता यहां सब कुछ दोनों फरीकों की बाहिमी रजामंदी से होता है,
आप हिन्दुस्तान की कई बड़े शहरों के रेस्टुरेंट, गेस्ट हाऊस , और होटल का अगर रात के किसी पहर विजिट करने तो मालूम होगा यहां पर मौजूद नौजवान जोडों में से 80% से भी ज़्यादा का ताल्लुक शहर की मुख्तलिफ यूनिवर्सिटियों मेडिकल कॉलेज से होगा ,
आप मुख्तलिफ पिज़्ज़ा शॉप, जूस कॉर्नर का दौरा करें तो आपको यहां यूनिवर्सिटी की क्लासेज बंक करके डेट पर आने वाले नौजवान जोडों का एक जमावडा मिलेगा ,
और 50 रुपए वाला जूस का ग्लास आपको 200 रुपए का मिलता है, 30 मिनट तक कोई पूछने नहीं आता , 30 मिनट बाद आपको एक और ऑर्डर करना पड़ता है,
यहां अंदर कुर्सियों की जगह सोफे लगे होते हैं यानी के पूरा माहौल बना होता है, आप जो मर्ज़ी चाहे कर सकते है तो ये कहना के यूनिवर्सिटी लेवल पर लड़कियों को जिंसी ज़ियादती या दरिंदगी का निशाना बनाया जाता है सरासर गलत है, यहां नौजवान कपल शादी शुदा जोडों की तरह ज़िन्दगी बसर करते हैं और पूरी क्लास बल्कि कभी कभी पूरे डिपार्टमेंट को खबर होती है के कौनसी वाली किसकी है और कैसा वाला किसका ??
आप अगर इन बड़े शहरों के शॉपिग माल का दौरा करेंगे तो तो मालूम होगा कि नौजवान जोड़े एक दूसरे के हाथ में हाथ डाल कर या कमर या कंधे पर हाथ रखकर खरीदारी करने निकले होंगे , जिनमें ज़्यादातर का ताल्लुक शहर की मुख्तलिफ यूनिवर्सिटियों से होगा,
पार्क में जाएं तो बहुत सारी तितलियां कुछ परवानों के साथ चिपक कर या ये कह लें के उनको गोद में बैठी मिलेगी आपको,
आप यूनिवर्सिटियों का दौरा करें तो आपको रात को गर्ल हॉस्टल और ब्वॉयज हॉस्टल से बहुत सारे लड़के और लड़कियां गैर हाजिर मिलेंगे उन सबके घरों में आप कॉल करें तो मालूम होगा के वह तो यूनिवर्सिटी में हैं,
आप मुख्तलिफ होटल और गेस्ट हाउस का दौरा करें तो आपको उन में से ज़्यादातर यहां पर मिलेंगे,
और जिन लड़कों या लड़कियों का ताल्लुक शहर से है वह भी परेशानी कि बात नहीं है ,
आपको शहर में ऐसे बहुत सारे होटल मिलेंगे जो सुबह 8 बजे से एक घंटे या दो घंटे के लिए नौजवान जोडों को कमरे किराए पर देते हैं,ऐसा मालूम होता है सारे होटल बने ही इसी काम के लिए हैं, और सोने पर सुहागा के इन सारे होटलों को बड़े बड़े पुलिस अफसरान , ब्यूरोक्रेट या फिर सियासतदां की पुस्त पनाही हासिल होती है,
हर हफ्ते या महीने की बुनियाद पर भारी रकम की सूरत में भत्ता वसूल किया जाता है और यही वजह है के सब काम आसानी से हो रहा है,
अगर मीडिया का दबाव या फिर कोई बड़ी मुखबिरी हो भी तो इन होटल वालों को पहले से ही आगाह कर दिया जाता है
मैंने अपनी आंखों से बहुत सी ऐसी लड़कियों को हिजाब में यूनिवर्सिटी आते देखा है और फिर एक तरफ ठहर कर ये हिजाब अपने पर्स में डालकर पर्स से एक छोटा सा बारीक दुपट्टा गले में डाल कर अपनी अपनी क्लासेज में जाते देखा है ,
फिर जब छुट्टी के वक़्त बाप या भाई के आने का वक़्त होता है तो फिर से वहीं हिजाब पर्स से निकाल कर पहन लिया जाता है,
मुझे आज तक ये समझ नहीं आया के ये टाइट और ऊपर से छोटी छोटी बारीक शर्ट पहनने का आखिर मकसद क्या होता है,
आ बैल मुझे मार ??
इतनी छोटी छोटी सी शर्ट पहनना और फिर चलते हुए बार बार पीछे से अपनी शर्ट को दुरुस्त करना .. कैसा अमल है ??
क्या ज़रूरत है, या तो पहने ना , पहन लिया तो बस ठीक है,क्यूंकि आपका जिस्म आपकी मर्ज़ी,
फिर मर्द क्यूं ना कहें मेरी आंख मेरी मर्ज़ी ??
लेकिन ये सब फैशन है,
यहां पर फकरे कसना जुर्म नहीं क्यूंकि खुल्लम खुल्ला दावत दी जाती है फकरे कसने की,
म्यूज़िक कंसर्ट, कल्चरल फेस्टिवल, और एनुअल डिनर के नाम पर रक्स वा नाच, मुजरे की महफिलों से कम नहीं,
म्यूज़िक कंसर्ट पर जिस्म के साथ जिस्म लगे होते हैं और नाच गाने उरूज़ पर कंधे से कंधे जड़े होते हैं, नशे का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल भी यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट ही करते है , इन नशे का आपने कभी नाम तक ना सुना होगा वह नशा यूनिवर्सिटी लेवल पर आपको नजर आती है,
लड़कों के साथ साथ लड़कियां भी नशे कि आदी है और ये भी किसी फ़ैशन कि तरह परवान चढ़ रहा है,लड़कियों के हॉस्टल में ये नशा इंतजामिया के जरिए से ही फरोख्त की जाती है और बहुत से गिरोह अपने दलाल इन स्टूडेंट में से ही चुनते हैं,
पहले नशे का आदी बनाया जाता है फिर फिर जिस्म फरोश के मकसद के लिए इन लड़कियों का इस्तेमाल किया जाता है,
दोनों एक दूसरे को गलत कह रहें हैं लड़कियों के मुताबिक मर्द हजरात अपनी नज़रों की हिफाज़त करें और मर्दों के मुताबिक लड़कियां अपने जिस्म की हिफाज़त करें,
मगर दोनों में से कोई भी अपनी इसलाह करने के लिए तैयार नहीं कोई भी अपनी गलती तस्लीम करने पर आमादा नहीं है,
ये अस्पतालों और कचरे के ढेर में मिलने वाले अजन्मे बच्चे तवायफ के नहीं बल्कि इन तालीम याफ़्ता अफ़राद के है जो कहते हैं की:
" हमारी आपस ने अंडरस्टैंडिंग थी"
अस्पतालों में गैर कानूनी तौर से होने वाले अबॉर्शन उसी अंडरस्टैंडिंग के नतीजे हैं,
नॉन प्रेग्नेंसी की फरोख्त होने वाली दवाओं के खरीदार ज़्यादातर यही अंडरस्टैंडिंग वाले जोड़े है,
लेकिन अगर यहां कोई सच बोले या तो वह छोटी सोच का मालिक है वह तंग नज़र है वह देहाती गंवार है,
फिर मैं क्यूंकि ना कहूं कि हमारी यूनिवर्सिटिया कोठे और चकले हैं,
फिर मैं क्यूं ना कहूं के ये यूनिवर्सिटियां और तालीमी इदारे जिस्मों की तिजारत की मंडियां हैं,
फिर मैं क्यूं ना कहूं के यहां लड़के और लड़कियां दोनों ही जिस्मानी ताल्लुकात और ज़िना को फरोग देकर मा बाप के इज्जतों के जनाजे निकाल रहें हैं,
यूनिवर्सिटी का मतलब " इल्म की मां है"
ये कैसी मां है जो अपनी बच्चियों के सर से दुपट्टा और जिस्म से लिबास उतारने की तरबियत को परवान चढ़ा रही है,
ये कैसी मां है जो अपने बेटों को बेहयाई और ज़ीना की तालीम दे रही है?
बल्कि ये यूनिवर्सिटियां शायद तवायफ के कोठे से भी ज़्यादा गिरी हुई जगह हैं क्यूंकि एक तवायफ अपनी मजबूरी के तहत अपना जिस्म फरोख्त करती है और उसके पास आने वाले ग्राहक पैसे देकर उसका जिस्म खरीदते है ,
मगर हमारे यूनिवर्सिटियां वह कोठे और वह अड्डे हैं जहां औरत अपना जिस्म अपनी मर्ज़ी से अपनी पसंद के शक्श को खुशी खुशी पेश करती है,
और यहां जिस्म लेने वाला कोई खरीदार नहीं है वह ऐसा ग्राहक है जिसे मुफ्त में शराब वा शबाब मिल रही होती है,
और जब अपना जिस्म अपनी मर्ज़ी से पेश किया जाए और लेने वाला औरत की मर्ज़ी से उसका जिस्म ले तो फिर ना तो औरत उस जिंसी ज़्यादाती या दरिंदगी का नाम दे सकती है और ना ही मर्द इसे जिंसी ज़्यादाती और दरिंदगी का नाम दे सकता है,
यहां इस फ़ैशन को अंडरस्टैंडिंग का नाम दिया जाता है और इस सारे फसादात की जड़ ये "को एजुकेशन" है,
हमारा दीन इसी वजह से इस निज़ाम ए तालीम की मुखालिफत करता है ये निज़ाम ए तालीम हमारी नस्लों को उजाड़ रहा है, तबाह कर रहा है यही वजह है के आज के जवान पढ़े लिखे जाहिल के लकब से नवाजे जा रहें हैं,
ये यूनिवर्सिटियां तालीम, इल्म, तरबियत, तहज़ीब, अदब, शाऊर, कुछ भी नहीं दे रहीं हैं बल्कि जो थोड़ा बहुत इन सबका तनासिब मौजूद होता है वह भी खतम हो जाता है,
हमारी यूनिवर्सिटियां सिर्फ कागजों के कुछ टुकड़े दे रहीं हैं, गुलामी की सोच और सरकारी नौकरी के ख्वाब इनायत कर रहीं हैं लालच और हसद इनायत कर रहीं हैं,
हमें इस बारे में सोचना होगा , इन्फिरादी तौर पर इसलाह और कोशिश करनी होगी तब जाकर इज्तेमाई तौर पर चीजें सही हो सकती हैं,
कड़वा लिखने पर माफ़ी चाहता हूं मगर जो भी लिखा है सच लिखा है, और सच हमेशा कड़वा होता है,
अल्लाह ताला हम सबको हिदायत अता फरमाए.....आमीन
साभार:Umair Salafi Al Hindi
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