अल्लाह बेनियाज है
हमने कहा के तुम पीराने पीर की नियाज़ दिलवाते हो, बुजुर्गों के नाम की नियाज़ दिलवाते हो, अल्लाह के नाम की नियाज़ क्यूं नहीं लगवाते ??
बोले : हम अल्लाह के नाम की नियाज़ इसलिए नहीं दिलवाते क्यूंकि अल्लाह बेनियाज है
"الله الصمد"
सब नियाजमंद हैं, अल्लाह बेनियाज है, उस नियाज़ की क्या ज़रूरत ??
हद है जीहालत की,
अर्ज़ है के उर्दू में जुमेरात की नियाज़, ग्यारवीं की नियाज़, और बुजुर्गों कि नियाज़ का अलग मतलब है, और सूरह इखलास में
"الصمد"
का तर्जुमा " बेनियाज है" किया जाता है इसका मतलब है " बे परवाह होना, किसी भी हाजत से मुबर्रा होना"
"الله الصمد"
" अल्लाह बेनियाज है " यानी उसे किसी काम के करने में किसी दूसरे की कोई हाजत नहीं ,
" अल्लाह बेनियाज है" यानी वह बाकमाल है, बे ऐब है,
" अल्लाह बेनियाज है" यानी वह अल्लाह ऐसा है के वह किसी का मोहताज नहीं लेकिन उसकी मदद और तौफीक के बगैर किसी का कोई काम नहीं हो सकता ,
"अल्लाह बेनियाज है " यानी वह बेपरवाह है अगर अव्वल से लेकर आखिर तक के सारे जिन्नात और इंसान उसकी इबादत करने वाले बन जाएं तो इससे उसकी बादशाहत में कोई इज़ाफ़ा नहीं होगा , और अगर अव्वल से लेकर आखिर तक के सारे जिन्न वा इंसान इसकी नाफरमानी पर उतर आएं तो इससे उसकी बादशाहत में ज़र्रा बराबर भी कमी नहीं आएगी, उसकी शान पर ज़र्रा बराबर भी फर्क नहीं पड़ेगा , उसकी शान ये है के वह हर चीज से बेनियाज है,
قال النبی صلی اللہ علیہ وسلم : قال اللہ عزوجل :
يَا عِبَادِي، إِنَّكُمْ لَنْ تَبْلُغُوا ضَرِّي فَتَضُرُّونِي، وَلَنْ تَبْلُغُوا نَفْعِي فَتَنْفَعُونِي. يَا عِبَادِي، لَوْ أَنَّ أَوَّلَكُمْ وَآخِرَكُمْ، وَإِنْسَكُمْ وَجِنَّكُمْ، كَانُوا عَلَى أَتْقَى قَلْبِ رَجُلٍ وَاحِدٍ مِنْكُمْ، مَا زَادَ ذَلِكَ فِي مُلْكِي شَيْئًا. يَا عِبَادِي، لَوْ أَنَّ أَوَّلَكُمْ وَآخِرَكُمْ، وَإِنْسَكُمْ وَجِنَّكُمْ، كَانُوا عَلَى أَفْجَرِ قَلْبِ رَجُلٍ وَاحِدٍ، مَا نَقَصَ ذَلِكَ مِنْ مُلْكِي شَيْئًا (مسلم ، رقم الحدیث : 2577)
नबी ए अकरम मुहम्मद (sws) ने फरमाया के अल्लाह ताला इरशाद फरमाते है:-" मेरे बंदों ! तुम कभी मुझे नुकसान पहुंचाने की ताकत नहीं रखोगे के मुझे नुकसान पहुंचा सको , ना कभी मुझे फायदा पहुंचाने के काबिल होगे के मुझे फायदा पहुंचा सको ,
मेरे बंदों ! अगर तुम्हारे पहले वाले और तुम्हारे बाद वाले और तुम्हारे इंसान वा जिन्न सब मिलकर तुम में से एक निहायत ही मुत्तकी इंसान के दिल के मुताबिक हो जाएं तो इससे मेरी बादशाहत में को इज़ाफ़ा नहीं हो सकता,
मेरे बंदों ! अगर तुम्हारे पहले वाले और तुम्हारे बाद वाले और तुम्हारे इंसान वा जिन्न सब मिलकर तुम में से एक फाजिर इंसान के दिल के मुताबिक हो जाएं तो इससे मेरी बादशाहत में कोई कमी नहीं होगी "
साभार: शेख कमालुद्दीन सनाबिली
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
ब्लॉग: islamicleaks.com