कसूर सफेदपोश बुड्ढे का नहीं मनहज वा निसाब (सिलेबस) का है
कयादत की भांग पी कर जब कोई हर्जा सरायी करता है तो उसके मुंह से बदबूदार झाग समेत ऐसे अल्फ़ाज़ भी निकल जाते हैं जो झाग से भी मकरूह और नागवार होते हैं,
जबसे फकीह उल नुसूस के बाब में अहले राय का जहूर हुआ तब से सबील उल मोमिनीन से एराज़ शुरू हुआ अहलुल राय कौन हैं ??
यही निरी हनाफियत के ठेकेदार लोग, जिसमे जा बजा हदीस ए रसूल अल्लाह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तकद्दुस को पामाल किया जाता है और दूर अज्कार ताविलात से उन्हें नाकाबिल ए अमल बना दिया जाता है, जहां सरीह नुसूस के मुक़ाबिल में मुफ्तियों की गुंजालिक इबारतों को तरजीह दी जाती है, जहां चंद सहाबा किराम को गैर फकीह जानकर उनकी रिवायतों को नाकाबिल ए हुज्जत क़रार दिया जाता है, हद तो ये है के उन अहले राय के अन्दर अक्वाल इमाम की तरजीह के वास्ते नुसूस शरिअह को मंसूख करने की भी जुर्रत पाई जाती है !
सलमान नकवी नदवी कि परवरिश भी उसी माहौल में हुई, जहां दिलों में हदीस से पहले फिकह की अजमत पढ़ाई जाती है, तकलीद के वजूब पर लम्बी लम्बी बहेसें होती हैं लेकिन इत्तेबा ए सुन्नत और फहम सहाबा पर कोई चर्चा नहीं होता, सात सालों तक फिकाह वा फतवा पढ़ाने के बाद आखिरी साल दौरा हदीस के नाम पर शताब्दी एक्सप्रेस की रफ्तार से नॉन स्टॉप कुतुब सित्ता का दौरा करा दिया जाता है,
उनका दिल इतना तंग होता है कि पूरे मुल्क के सामने तलाक़ जैसे मसले में शरियत को छोड़कर मसलक बचाने में जुट जाते हैं,
यहां तक कि पार्लियामेंट में उनका एक मौलवी जज्बात में फरीक मुखालिफ को सिर्फ इस बिना पर दहशतगर्द का लक़ब दे डालता है के उसने तलाक को शरई नुसूस के मुताबिक समझा है, हलाला जैसे गन्दे धंधे पर ये लोग खामोश हैं क्योंकि उनके पास इसके इलावा शौहर बीवी को दोबारा मिलाने का कोई रास्ता नहीं,
जब उनके मदरसे में सहाबा और उनसे मरवी हदीस की इतनी इज़्ज़त अफजाई हो रही हो तो भला उनके परवरदाह मौलवी को ये कहने में क्या परेशानी हो सकती है कि हजरत अबू हुरैरा राजियाल्लाह ताला अनहु ने हदीस को छुपाया था ??
कसूर इस सफेदपोश बुड्ढे का नहीं कसूर उसके मंहज और निसाब का है, इसके इलावा बुड्ढा कयादत के नशे में चूर भी है, ऐसी सूरत में मुंह से कब क्या निकल जाए कुछ भरोसा नहीं, खैर कयादत का नशा एक उमूमी ऐब है जो किसी के अंदर भी पाया जा सकता है लेकिन नशे की हालत में आदमी अकसर अपने दिल की तर्जुमानी कर रहा होता है लिहाज़ा जब तक उनके मनहज में दुरुस्तगी ना आए शातमीन सहाबा की खेप तैयार होती रहेगी....
وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ الْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصْلِهِ جَهَنَّمَ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا۔
साभार: Umair Salafi Al Hindi
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