Wednesday, December 23, 2020

SAR ZAMEEN E ARAB KA EK AZEEM MUJAAHID

 



सर ज़मीन ए अरब का एक अज़ीम मुजाहिद!

वह अपनी क्लास का सबसे अकलमंद तालिब ए इल्म था, उस्तादों का मंजूर ए नज़र था वह हर बार क्लास में पहली पोजिशन लेता,
सानविया से फरागत के बाद उसे अरमको में 2500 सऊदी रियाल पर जॉब मिली, अब उसके पास नौकरी भी थी और गाड़ी भी, उनके हम उमर नौजवानों में यही कामयाबी थी,
लेकिन 18 साल का समीर सुवेलीम की ज़िन्दगी में कोई खला थी कोई बेचैनी थी और कोई कमी थी,
ये वो दौर था जब अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत यूनियन के खिलाफ मजाहिमत शुरू हो चुकी थी, एक दिन सब कुछ छोड़ छाड़ कर समीर सुवेलीम ने अफ़ग़ानिस्तान का रुख करने का इरादा बांधा चंद दिन बाद वह पेशावर कैंप में था,
सन 1988 से लेकर 1993 तक वह अफ़ग़ानिस्तान में जारी मुजाहिमत का ना सिर्फ हिस्सा रहा बल्कि खोस्त, जलालाबाद और फतह काबुल में अरब मुजाहीदीन की कयादत की,
इस दौरान ये अरब जवान एक मजबूत आसाब का मालिक कमांडर के तौर पर सामने आ चुका था,
इन पांच सालों में ये रूसी, अंग्रेज़ी, और पश्तो जबानें भी सीख चुका था अरब और गैर अरब मुजाहीदीन के दरमियान ये एक पुल का भी किरदार अदा कर रह थे,
1993 में मुजाहीदीन कयादत की तरफ से उन्हें एक छोटा सा दस्ता देकर ताजिकिस्तान के बर्फसारों पर रहते हुए मौसम कि शिद्दत के बावजूद गोरिल्ला कार्यवाही से रूसी फौजियों की नाक में दम करता रहा, इस दौरान उनकी दो उंगलियां भी राह ए खुदा में कट गईं, ये 2 साल तक ताजिकिस्तान का महाज़ संभाले रहा, ताजिकिस्तान की आज़ादी के बाद ये वापस अफ़ग़ानिस्तान लौटा,
1995 में सिर्फ 8 मुजाहिद साथियों के साथ इन्होने चेचन्या का रुख किया यहां से समीर सुवेलीम का अफसानों किरदार शुरू होता है सिर्फ 8 मुजाहिद के साथ चेचन्या पहुंचे इस बहादुर अरब मुजाहिद ने अगले एक साल के दौरान सैकड़ों मकामी नौजवानों को तरबियत दे कर गोरिल्ला जंग में उतारा था यहां इनका नाम कमांडर खत्ताब पड़ा,
गोरिल्ला जंग में पहली बार ऐसा हुआ था के रूसी इंटेलिजेंस के चीफ सर पकड़ कर बैठ गई थी के अफ़ग़ान मुहाज़ से पिटने के बाद ये कौनसा नया मुहाज खुल गया,
कमांडर खत्ताब अपने चंद साथियों समेत कभी सोवियत फौजियों के काफिले पर हमला करता कभी उनकी छावनियों पर हमला करता और कभी उनके हेलीकॉप्टर गिराता,
16 अप्रैल 1996 को खत्ताब ने गोरिल्ला जंग की सब से बड़ी कार्यवाही कर डाली, 50 मुजाहिद साथियों के साथ अबू खत्ताब एंबुश लगाए बैठा था के रूसी फ़ौज का काफिला वहां से गुज़रा खत्ताब और साथियों ने हल्ला बोल दिया उस कार्यवाही में 223 फौजी मारे गए थे जिनमें 26 फौजी अफसर थे, जबकि 50 गाडियां मुकम्मल तबाह हुई थी, खत्ताब ने इस कार्यवाही की वीडियो भी जारी कर दी,
22 दिसम्बर 1997 को खत्ताब ने अपने 100 साथियों समेत रूसी सरजमीन के अंदर दाखिल होकर रूसी फौज का हैडक्वाटर पर हमला किया जिसमें 300 गाडियां तबाह हुईं जबकि दर्जनों फौजी हलाक हुए,
खत्ताब और उसके साथियों ने कई हेलीकॉप्टर को गिराया और उन हेलीकॉप्टरों को गिराते हुए ये उसकी वीडियो बनाते थे,
1996 में रूसी फौज चेचन्या से निकल गई ,इस दौरान खत्ताब पूरे चेचन्या में हीरो बन चुके थे नई कायम हुकूमत ने खत्ताब की शुजाअत वा बहादुरी को सराहते हुए उन्हें कई अवॉर्ड दिए उन्हें जनरल का एजाजी खिताब दिया,
जंग खतम होने के बाद खत्ताब ने दावत वा तबलीग़ और तौहीद की तरवीज का काम शुरू कर दिया,
पूरे मुल्क में मदारिस और दीनी तालीमी इदारो का जाल बिछाया,
उन्होंने मुख्तलिफ तरबियती सेंटर कायम किए जहां उम्मात ए मुसलमां के जवानों की तालीम के साथ साथ उन्हें तरबियत दी जाती,
2002 में रूसी इंटेलिजेंस, एक गद्दार के जरिए खत्ताब को ज़हर देकर शहीद करने में कामयाब हुई, बाद ने पता चला ये गद्दार डबल एजेंट था,
अरब का ये नौजवान 18 साल की उम्र में घर और वतन से चला था पूरे 15 साल ये मुख्तलिफ महाजों पर ये लड़ता रहा और आखिर में सिर्फ 33 साल की उम्र में जाम ए शहादत नोश की, सऊदी अरब के एक गांव अरार में पैदा हुए उम्मत के इस बहादुर बेटे ने अपने रब से किया अपना अहद पूरा किया
तहरीर: फ़िरदौस जमाल
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks