Thursday, December 24, 2020

ALLAH PAR BHAROSA - EK SABAK




अल्लाह पर भरोसा : एक सबक अमूज़ वाकया


इमाम जहबी रहमतुल्लाह अलैह अपनी किताब " सीर अलाम उन नुबुला " में एक वाकया ज़िक्र किया है के हातिमुल आसिम जिनका शुमार बड़े नेक लोगों में से था, एक साल उनका हज का शौक हुआ मगर उनके पास हज के लिए माली ताकत नहीं थी, और शरई तौर पर इस तरह हज करना जायज नहीं बल्के अगर अहले ओ अयाल राज़ी ना हों और उनके अखराजात का बंदोबस्त ना हो तो ऐसी सूरत में हज वाजिब ही नहीं होता,

चुनांच जब हज का मौसम आया तो उनकी एक बेटी जो कि नेक थी उन्हें रोता हुआ देख कर पूछने लगी:

अब्बू जान आप क्यों रो रहे हैं ??

बाप: हज का मौसम आ गया है,

बेटी: आप हज करने क्यूं नहीं जाते ?

बाप: पैसों का मसला है,

बेटी: अल्लाह ताला इंतजाम कर देगा

बाप: आप लोगों के घरेलू अखराजात का क्या होगा ?

बेटी: अल्लाह ताला उसका भी इंतजाम कर देगा

बाप: लेकिन ये मामला आपकी वालिदा पर मुंहासिर है ,

बेटी मां के पास गई और सारा माजरा सुनाया, आखिर कार मां और बच्चे सब राज़ी हो कर बाप से कहने लगे:

" आप हज को जाएं अल्लाह ताला ज़रूर हमारी रोज़ी रोटी का इंतजाम करेगा"

चुनंचे बच्चों के तीन दिन के अखराजात का इंतजाम करके हातिम हज पर चले गए, उनके पास भी ज़रूरत भर अखराजात नहीं थे, वह हज काफिले के पीछे पीछे चल रहे थे , अभी थोड़ी ही दूर गए थे के हज काफिले के अमीर को किसी बिच्छू ने डंक मार दिया , लोग इलाज और रुकिया के लिए किसी शक्श को तलाश करने लगे उनकी नजर हातिम पर पड़ी चुनांचे उन्हाेंने रूकिया किया और फौरन अमीर सहाब शिफायाब हो गए,

अमीर सहाब ने कहा कि उनके सफर खर्च का सारा जिम्मा मेरे ऊपर है,

हातिम कहने लगे:- ऐ अल्लाह ! ये तूने मेरा बंदोबस्त कर दिया, अब मेरे बच्चों का भी बंदोबस्त करके मुझे दिखा दे,

तीन दिन गुजर गए घर में जो खर्च था वह खत्म हो गया अब भूख उनको काटने लगी, चुनांचे घर वालों ने बेटी को मलामत करना शुरू कर दिया और वह बेटी उनकी मलामत पर हंस रही थी, घर वालों ने कहा तुम हंस रही हो और भूक की वजह से हमारा बुरा हाल है,

बेटी ने उन लोगों से पूछा :- अच्छा ये बताओ हमारे अब्बा रिज्क देने वाले हैं या रिज़्क खाने वाले ??

घरवालों ने जवाब दिया :- रिज़्क खाने वाले हैं और रिज़्क देने वाला तो अल्लाह ही हैं,

बेटी ने जवाब दिया :- ठीक है रिज़्क खाने वाला चला गया है मगर रिज़्क देने वाला अभी बाकी है,

अभी ये बातें हो ही रहीं थीं के इतने में दरवाज़ा खटखटाने कि आवाज़ आने लगी,

पूछा दरवाज़े पर कौन ??

जवाब आया अमीर उल मोमिनिन आप लोगों से पानी तलब कर रहें हैं, बेटी ने मस्कीजा पानी से भर दिया, जब खलीफा ने पानी पीया तो उसे पानी में ऐसी मिठास महसूस हुई जो इससे पहले कभी ना महसूस कि थी,

खलीफा ने पूछा : पानी कहां से लाए हो?

उन लोगों ने जवाब दिया:- हातिम के घर से ,

कहा उनको बुलाओ ताकि मैं उन्हें इसका बदला दूं ,

लोगों ने कहा :- वह तो हज पर गए हुए हैं,

खलीफा ने अपनी पेटी जोकि शानदार कपड़े की थी और कीमती जवाहारात से भरी थी उसे निकाल कर देते हुए कहा ये ले जाओ और उनके घरवालों को दे दो,

खलीफा ने अपने वजीरों से कहा :- कौन है जो मुझसे मुहब्बत करता है (यानी वह भी अपनी पेटी निकाल कर दे दे )
चूनाचे सारे वजीरों और ताजिरों ने अपनी अपनी पेटी निकाल कर दे दी, इतने में बहुत सारी पेटियां जमा हो गई, एक ताज़िर ने एक खतीर रकम देकर सारी पेटियो को खरीद लिया जिससे उनका घर सोने से भर गया और ज़िन्दगी भर के लिए उनके अखराजात के लिए काफी हो गया, फिर इस ताजिर ने सारी पेटियों को उन्हें वापस कर दिया,

घर वाले इस पैसे से खाने पीने की चीजें खरीद कर खुश थे जबकि बेटी रो रही थी,

मां ने बेटी से कहा: बेटी तुम्हारा मामला तो अजीब है, पहले जब हम भूख से रो रहे थे तब तुम हंस रही थी, अभी अल्लाह ने हमें खुश हाल कर दिया है तुम फिर क्यूं रो रही हो ??

बेटी ने जवाब दिया :-

" ये मखलूक जो अपने लिए किसी नफा वा नुकसान के मालिक नहीं ( उसका इशारा खलीफा की तरफ था) उसने हमारे ऊपर एक नजर करम करके हमें ज़िन्दगी भर के लिए मालदार कर दिया, फिर उस जात के बारे में सोचें जिसके हाथ में सारी बादशाहत है "

( सीर अलाम उन नुबुला 11/ 487)

तहरीर: शाहिद सनाबिली
हिन्दी तर्जुमा : Umair Salafi Al Hindi

ब्लॉग: islamicleaks