फ़िज़ूल सवालात के जरिए दूसरों कि ज़िन्दगी तबाह वा बर्बाद मत कीजिए
एक नौजवान ने दूसरे से पूछा :
आप कहां काम करते हैं ?? उसने जवाब दिया :-" फलां दुकान में "
फिर पूछा : अच्छा ! दुकान वाला आपको कितनी तनख्वाह देता है ?? उसने जवाब दिया 500
नौजवान ने बड़ी हैरत से पूछा : 500 बस ?? इतने में तुम्हारा गुज़र बसर होता है, यकीनन वो दुकान वाला इस लायक नहीं के आप उसके पास इतनी तनख्वाह में काम करें,"
उसी दिन से उसे अपने काम से नफरत होने लगी, वह दुकान वाले से तनख्वाह बढ़ाने कि दरख्वास्त करने लगा , दुकान वाले ने तनख्वाह बढ़ाने से इंकार कर दिया तो उसने काम करना ही छोड़ दिया , पहले जो कुछ कमाता था अब उससे भी हाथ धोकर के बैठ गया और बेकारी की ज़िन्दगी गुजारने लगा ,
एक खातून के बच्चा पैदा हुआ , उसकी सहेली उसे मुबारकबाद देने के मौके पर उससे पूछ बैठी :- तुम्हारे शौहर ने बच्चे की विलादत के मौके पर तुम्हारे लिए क्या तोहफा पेश किया ??
उस खातून ने जवाब दिया :- कुछ भी नहीं !!
उसकी सहेली बड़ी हैरत से कहने लगी:- कितनी अजीब बात है !! क्या उसके नजदीक तुम्हारी कोई अहमियत ही नहीं, "
उसकी सहेली अल्फ़ाज़ का ये बारूद उस पर डालकर चलती बनी,
जुहर के वक़्त उसका शौहर घर आया तो देखा बीवी बहुत नाराज़ बैठी है, दोनों में कहासुनी हुई और मामला तलाक तक पहुंच गया ,
ये तबाही कहां से शुरू हुई ? उसकी सहेली की उसी बात से,
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बयान किया जाता है के एक बाप था, बड़ी सुकून और इत्मीनान भरी ज़िन्दगी गुज़ार रहा था किसी ने उससे कह दिया :- क्या तुम्हारा बड़ा बेटा तुम्हारी खैरियत पूछने नहीं आता ??कितनी अजीब बात !! आखिर उसके पास क्या मजबूरी है,
फिर क्या था उस बाप के दिल में बातें घर कर गईं, और उसी दिन से उसकी पुरसुकून वाली ज़िन्दगी घारत हो गई,
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हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में कई बार ऐसे सवालात पूछे जाते हैं जो देखने में बड़े मासूम से लगते हैं मगर वह हकीकत में ज़िन्दगी को तबाह वा बर्बाद कर देते हैं,
मिसाल के तौर पर,
आपके पास ये क्यूं नहीं है ?
आप वह फलां चीज क्यूं नहीं खरीद लेते ??
आप ये अजियत भरी ज़िन्दगी कैसे झेल रहें हैं ??
आप इस बन्दे को कैसे अपनी ज़िन्दगी में बर्दाश्त कर रहें हैं ??
हम इस तरह के सवालात नादानी में या बतौर तफ़रीह कर बैठते हैं, लेकिन शायद हमें नहीं मालूम होता के ये सवालात मुखातिब के दिल में कितना गहरा ज़ख्म दे जाते हैं,
इस तहरीर या पैगाम का खुलासा येे हैं के किसी की ज़िन्दगी तबाह करने का सबब ना बनो,
एक और नसीहत!!
जब किसी के घर में दाखिल हो तो एक अंधे की तरह और जब वहां से निकलो तो एक गूंगे की तरह,
इस तरह के नसीहती पैगामात भेजते हुए मुझे अपने बारे में हरगिज़ ये दावा नहीं होता के मैं बहुत पाक वा साफ हूं, इसलिए इन पैग़ामात का सबसे पहला मुखातिब मैं अपने आप ही को समझता हूं,
इस पैगाम का एक ही उंवान है :-" दूसरों की ज़िन्दगी तबाह वा बर्बाद मत कीजिए"
अरबी से मनकूल
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com