Monday, December 7, 2020

KUFR KUFR KHELTE RAHEN

 





कुफ्र , कुफ्र खेलते रहें,

आप यही कर सकते हैं, लेकिन गलती तुम्हारी नहीं है, बदकिस्मती से आप लोग जानते ही नहीं के " बहिस्ती ज़ेवर" और " अरवाह सलासा" जैसी तीसरे दर्जे की मस्लकी किताबें पढ़ने वालों को इल्म वा शाऊर जैसे बड़े मौजूआत पर फतवे नहीं देना चाहिए !! वरना यही होता है के सीरत उन नबी सल्ललाहू अलैहि वसल्लम वसल्लम के आलमी मुकाबले में चोटी की किताब उलेमा वा मुफक्किरीन के दरमियान बेहतरीन मुकाम हासिल करने वाली सीरत की मेयारी किताब " अर रहीक उल मकतूम" खुमार ए जुहद के देसी आस्ताने पर " गैर मेयारी" ठहरती है और गिरते मसलक को बचाने की मुकद्दस मार्केटिंग में आप कुफ्र कुफ्र खेलते हैं,
वैसे आप खुश हो सकते हैं , आपका फतवा कल्चर बदतर मकाम ए बुलंद तक पहुंच गया है जहां आप अपने जाहिल भक्तों पर बसूरत ए फतवा ये पाबंदी लगाने में कामयाब हो चलें हैं के इन बेचारों को कौन कौन सी मुकद्दस मसलकी किताबें पढ़नी चाहिए और उन्हें क्या नहीं पढ़ना चाहिए,
मिल्लत की बदकिस्मती है , अकेले तकलीद का मसलकी जबर क्या कम था के अब फतवा के जरिए आम लोगों के पढ़ने पढ़ाने पर पाबंदी लगाई जा रही है ताके बेचारे तकलीदी पापाईयत और मठाधेसियत की मसलकी दुकान के जाहिल मुहरे बनें रहें , मसलक का बिजनेस वा कारोबार चलता रहे,
सुधार जाओ अभी वक़्त है,