Saturday, October 31, 2020

अब्दुल्लाह बिन सऊद - एक मुवाहिद जिसने तौहीद के लिए अपनी जान गंवा दी



 अब्दुल्लाह बिन सऊद - एक मुवाहिद जिसने तौहीद के लिए अपनी जान गंवा दी

नजद के इलाके दिरियाह के अंदर अहले तौहीद की एक छोटी से इमारत क़ायम थी, उस वक़्त तुर्की हुकूमत का नशा सातवे आसमान पर था, हालांकि यूरोप कि तरफ से उसे बुरी तरह शिकस्त मिल रही थी लेकिन ये नशा सिर्फ कमजोर अहले तौहीद अरबों पर उतारा जा रहा था,
दीरियाह की इमारत टर्कों के दायरा इख्तियार से बहुत दूर क़ायम थी, तुर्कियों को उनसे कोई खतरा नहीं था, तुर्क उस वक़्त इराक़ के इलाके और हिजाज़ की इलाके में थे,
1818 में मुशरिक बिदती तुर्क ज़ालिमाओ ने अहले तौहीद मुवाहिद आल ए सऊद की पहली हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी, पहले अमान देकर किले से नीचे बुलवाया, फिर गद्दारी करके आल ए सऊद और शहर के तमाम नुमायां मर्दों को गिरफ्तार कर लिया, उस वक़्त दीरियाह के हाकिम अब्दुल्लाह बिन सऊद थे, तकरीबन 1200 अहले तौहीद मुवाहिडीन को गिरफ्तार करके तुर्क ज़ालिम फौज इस्तांबुल ले गई और उन मासूम मुवाहिडीन को फांसी दे दी, बल्कि उनमें जो नुमायां से उन्हें तोप से उड़ा दिया,
ये सारा ज़ुल्म सिर्फ अहले तौहीद होने की वजह से किया था तुर्क ज़ालिम हुकूमत ने, और इस खबर के आम होने पर ईरान के शिया सफावी क़ातिल हुकूमत ने तुर्की हुकूमत के नाम मुबारकबाद का खत भेजा था,
फिरकापरस्ती और कौमपरस्ती के दलदल में तुर्क ज़माने से धंसे हुए हैं,
उर्दुगान ने भी बयान दिया था के अरब वहाबियों का दीन इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है, जबकि ये ईरानी सहाबा दुश्मन राफ्जियों को अपना भाई कहता है
नोट: चंद ही सालों के बाद आल ए सऊद ने अपनी हुकूमत बहाल कर ली, और धीरे धीरे पूरे जज़ीरा ए अरब पर तौहीद का झंडा लहरा कर टर्कों के सारे खुराफात मज़ारात और दरगाहों को मिटा दिया,
और दूसरी तरफ तुर्क अपने शर्क वा खुराफात के साथ दुनिया से रुखसत हो गए
आज एक बार फिर शर्क वा खुराफात के दिलदादे सर उठा रहें हैं मगर अल्लाह ताला अहले तौहीद का हामी हमेशा रहा है, और रहेगा, रहेगा नाम अल्लाह का ...
साभार: मौलाना अजमल मंजूर मदनी
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi

Friday, October 30, 2020

जंग ए आज़ादी 1857 में वहाबियों का हिस्सा

 


जंग ए आज़ादी 1857 में वहाबियों का हिस्सा


ख्वाजा हसन निजामी लिखते हैं

" दौरान ए हंगामा में एक जमात वाहबियान टोंक से अाई और शिकायत की के नवाब ने कुछ माली इमदाद नहीं की, वहाबी और कई मकामात से भी आए थे, बख्त खान खुद भी वहाबी थे, बख्त खान ने सरफराज अली को पेशवाए मुजाहीदीन मुकर्रर किया था, और वही उनकी सरपरस्ती करते थे, बख्त खान के आते ही वहाबियों की कसीर तादाद आकर शामिल हो गई थी, उन वहाबियों ने एक ऐलान छपवा कर शाए करवाया था जिसमें तमाम मुसलमानों को जिहाद के लिए मुसलाह हो कर जिहाद में आने की दावत दी गई थी, और लिखा था के अगर वो नहीं आएंगे तो उनके अयाल वा अतफाल बर्बाद हो जाएंगे, ये ऐलान बहादुर शाह के ऐलान से ज़्यादा फसीह नहीं था, वहाबी मुल्क के मुख्तलिफ हिस्सों मसलन जयपुर, भोपाल, झांसी, हिसार से आए थे, मगर जिन मकामात से वह आए थे तफसीलन ना याद रख सका अलबत्ता मिर्ज़ा मुगल के दफ्तर में तफसील मौजूद थीं "

(बहादुर शाह का मुकद्दमा पेज 263)

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog:Islamicleaks.com

Thursday, October 29, 2020

मर्द सायबान होते हैं,

 


मर्द सायबान होते हैं,


मर्द बूरे नहीं होते, सायबान होते हैं

अगर औरत के सब्र से आब ए ज़मज़म के चश्में फूटते हैं, तो मर्द के सब्र और हौसले कि भी कर्बला की मिट्टी गवाह है,

मर्द अगर झूठा और बेवफा है, तो मैंने औरत को भी मुनाफिकत के उस दर्जे पर देखा है जहां वह मर्द से ज़्यादा जहन्नम की हकदार ठहरी है,

अगर मर्द को अल्लाह ने कुछ वूजुहात की वजह से औरतों पर बरतर ठहराया है, तो औरत के क़दमों तले जन्नत उतारी है,

अगर मर्द ज़ालिम है तो औरत भी हसद और बूगज के ऐसे ऐसे मरहले तय कर जाती है के अक्ल दंग रह जाए,

अगर अल्लाह ने मर्द को अपनी बीवी बच्चों के नान वा नफके का ज़िम्मेदार करार दिया है तो औरत पर भी उसका घर शौहर के सुकून और औलाद की अच्छी तरबियत पर जिहाद के अजर की खुशखबरी सुनाई है,

अगर औरत के कुछ ख्वाब होते हैं तो एक पुरसुकून ज़िन्दगी मर्द का भी हक है,

मर्द बूरे नहीं होते, वह चाहे बाप के रूप में हों ता भाई या फिर हमसफ़र के रूप में या फिर औलाद के रूप में, मर्द अपने हर रूप में सायबान होते हैं,

औरत से ज़्यादा मर्द तकलीफ, मुसीबतें, दुख , परेशानियां झेलता है जो के एक कड़वा सच है, और याद रहे सबसे ज़्यादा सख्त धूप और आंधीयों का सामना सायबान को करना पड़ता है,

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साभार: बहन शबाना रमज़ी
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog:islamicleaks.com 

Wednesday, October 28, 2020

मायूसी के अंधेरे में उम्मीद का चिराग़

 


मायूसी के अंधेरे में उम्मीद का चिराग़


ज़िन्दगी भी अजीब है, कभी कभी ये इतनी खूबसूरत लगती है के जी चाहता है के हमारा नाता हमेशा के लिए ज़िन्दगी से जुड़ा रहे, कभी भी ये नाता ना टूटे, और कभी जब ज़िन्दगी हमारी उम्मीदें पूरी करने में नाकाम रहती है तो दिल करता है के ये ज़िन्दगी जल्द खतम हो जाए,

मगर ये हकीकत है के दुख और दर्द में वक़्त तावील तर तवील होता है, इसी तवील सफर से इंसान हार कर मायूसी का शिकार हो जाता है, इंसान खुद भी समझ नहीं पाता के आखिर इस सूरतेहाल से कैसे निपटा जाए,

इंसान की फितरत ऐसी है के उसे ज़िन्दगी में सब कुछ अपने मुताबिक चाहिए, लेकिन सब उसकी मर्ज़ी और मंशा के मुताबिक नहीं होता है तो वह नाउम्मीद और मायूस हो जाता है, साथ ही उसे एहसास सताता है के अब मजीद नहीं जीना, इंसान बुनियादी तौर पर बेसब्रा होता है, उसे अगर कुछ हासिल करना हो तो वह उसके लिए बहुत कोशिश वा मशक्कत करता है, दुआएं मांगता है, महनत करता है, मगर जब उसकी मंशा के मुताबिक उसको फल नहीं मिलता तो वह थक जाता है और उसी थकन में वह मायूसी के अंधेरों में अपना वजूद, अपनी उम्मीद और अपना यकीन खो बैठता है, उसे ज़िन्दगी बेरंग लगना शुरू हो जाती है, दूसरे अल्फ़ाज़ में उसकी ज़िन्दगी में दिलचस्पी खतम हो जाती है, मगर याद रखें के कुछ भी हमेशा के लिए नहीं होता है,

वक़्त की एक खूबसूरती ये है के ये कभी भी एक जैसा नहीं रहता, मुश्किल हो तो आसानी भी मिल ही जाती है, हालात चाहे कितने भी कठिन हों, मुश्किलात के बादल चाहे कितने ही काले क्यूं ना हों, आसानी की सुबह का सूरज ज़रूर तुलू होता है, ना दुख सदा रहता है और ना सुख, ऐसे ही कामयाबी और नाकामी भी हमेशा नहीं है, इसलिए सबसे ज़रूरी बात ये है के इंसान को कभी भी मायूस नहीं होना चाहिए बल्कि मुश्किलात के आने पर, मायूसी के अंधेरों में भी उम्मीद और यकीन का चिराग जलाते रहना चाहिए, क्यूंकि अगर इंसान मायूसी के अंधेरे में उम्मीद का चिराग जलाता है तो उसकी रोशनी इंसान के वजूद को मुनव्वर कर देती है, उसी रोशनी से इंसान बातिनि और ज़ाहिरी तरीके से मजीद मजबूत हो जाता है, वह समझ जाता है के है नाकामियां और मुश्किल वक़्त सब आरज़ी है, वह उस हकीकत से रूबरू हो जाता है के ये जवाल, ये मुश्किलात सब इंसान कि हिम्मत को जांचने के लिए कुदरत ने पैमाने बनाए हुए हैं, क्यूंकि ये भी हकीकत है के इंसान अपनी फतह और कामयाबी से इतना मजबूत नहीं होता जितना वो अपने जवाल और नाकामी से मजबूत होता है,

हकीकत में मुश्किल और नपसंदीदा हालात में इंसान को अपनी खुद की पहचान होती है, और इसी अमल में उस अपने वजूद का अद्राक होता है, इंसान अपनी छुपी हुई खूबियों को जांचने के लिए मजीद मजबूत होता जाता है, उसे अपने से वाबस्ता रिश्तों की पहचान भी होती जाती है, वह आसानी से जान लेता है के कौन उसके साथ मुख्लिस है और कौन नहीं, इंसान के लिए मुश्किल वक़्त गुजारना बहुत मुश्किल होता है, और उस वक़्त को मजीद मुश्किल इंसान के अपने मनफी खयालात बनाते हैं, इंसान हकीकत में अपने खयालात के जरिए ही यरगमाल बन जाता है, और वह समझता है कि वो ज़िन्दगी की दौड़ से बाहर हो गया है, उसके दीगर साथी बहुत आगे निकल चुके हैं और वह सबसे पीछे और सब कुछ हार गया है,

मनफी खयालात सूरतेहाल को मजीद पेचीदा कर देती है और इंसान की सोच को मजीद उलझा देते है, इसलिए अगर मुश्किल हालात आ जाएं तो सबसे पहले अपने खयालात को काबू में रखें, यही कोशिश करनी चाहिए के जो कुछ ज़िन्दगी में बेहतर हासिल किया उसको याद रखा जाए, ताकि ये महसूस किया जा सके के ज़िन्दगी आप पर कितनी महरबान रही है, और इसी सोच से उम्मीद पैदा होगी के इस बार भी ज़िन्दगी मेहरबानी ही करेगी, साथ में ये सोच भी मजबूत रखनी चाहिए कि

" हर तूफ़ान आपकी ज़िन्दगी को तबाह करने के लिए नहीं आता, कुछ तूफ़ान आपके रास्ते साफ करने के लिए भी आते हैं "

उम्मीद के साथ साथ यकीन भी होना चाहिए के जिस रब ने इस दुनिया में भेजा है वह कभी भी हमसे गाफिल नहीं होता, रब ने क़ुरआन में भी इंसान से कुछ वादे किए है, और बेशक उसके सब वादे सच हैं क़ुरआन में है के

" हर मुश्किल के बाद आसानी है "

फिर फरमाया के

" इंसान की ताकत से ज़्यादा उस पर बोझ नहीं डाला जाता "

इसलिए इंसान जब उम्मीद और यकीन का दामन थाम लेता है तो ये एहसास उसके वजूद में घर कर जाता है के उम्मीद और यकीन ही वह वाहिद सहारे है जिनके जरिए वह अपने मुश्किल और नपसंदीदा हालात से बाहर हो सकता है,

हकीकत में उम्मीद और यकीन का चिराग बहुत ही खूबसूरत और कीमती चीज है, यकीन जानिए ये चिराग़ ऐसा है के जो किसी भी मुर्दा वजूद और बेजान ख्वाहिशात के अंदर एक नई रूह फूंक देता है, इस चिराग़ की रोशनी इतनी खूबसूरत और मोत्मर है के इंसान उसकी खुशबू से खुद को पुरनूर महसूस करता है, क्यूंकि उसकी रोशनी अपने अंदर एक ख़ास जादुई ताकत रखती है और उसी जादुई ताकत के जरिए इंसान कि सब परेशानी और मायूसी खतम हो जाती है, इसलिए मुश्किल हालत को अपने रवैए से और मुश्किल ना बनाएं, बल्कि उम्मीद और यकीन को थामकर रखेंगे तो हर मुश्किल सफर बा आसानी कर सकेंगे

साभार: Umair Shaukat
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com 

Tuesday, October 27, 2020

मुंकरीन ए हदीस और ईरानी साजिश का बदबूदार अफसाना:

 


मुंकरीन ए हदीस और ईरानी साजिश का बदबूदार अफसाना:


मूंकरीन ए हदीस अपने यहूदी , सालीबी उस्ताद की तकलीद में बोलते आए हैं कि

" वफात ए नबवी के सैकड़ों बरस बाद कुछ ईरानियों ने इधर उधर की सुनी सुनाई अटकल पच्चू बातों को जमा करके उन्हें सही हदीस का नाम दे दिया"

जिनकी बुनियाद पर मैं बोल सकता हूं कि क़ुरआन कि ये आयात

" बड़ा बोल है जो उनके मुंह से निकल रहा है वह सरापा झूट बक रहें हैं " ( क़ुरआन अल काहफ)

मूंकरीन के इस बोल का खुलासा ये है के हदीस ए रसूल का ज़ख़ीरा दरहकीकत ईरानियों की साजिश और किस्सा गोइयान , वाज़ों और दास्तान सराओं की मनगढ़ंत हिकायत का मजमुआ है

मुनकर ए हदीस के इस दावे का पर्दा फाश करने से पहले में आपसे पूछना चाहता हूं के इस अजमी साजिश और दास्तान की गड़त का पता आपने किस तरह लगाया ??

आपने किस जरिए से मालूमात हासिल किया ??

और आपके पुरशोर दावा की क्या दलील है ??

मुनकर हदीस पर हैरत होती है के दावा तो करते हैं इस कदर ज़ोर शोर से और ऐसे ऊंचे हंगामे के साथ, और दलील के नाम पर एक हरफ नहीं, क्या इसी का नाम तदबबुर फिल क़ुरआन है ??

मुनकर हदीस फरमाते हैं

" वफात ए नबवी के सैकड़ों बरस बाद कुछ ईरानियों ने इधर उधर की सुनी सुनाई अटकल पच्चू बातों को जमा करके उन्हें सही हदीस का नाम दे दिया"

मैं कहता हूं आइए मैं सबसे पहले यही देख लें के उन मजमुआ ए हदीस को जमा करने वाले ईरानी है भी या नहीं ??

सन् वार तरतीब के लिहाज से दौर ए अव्वल के रावाह हदीस में सर फेहरिस्त इब्न शाहब ज़ुहरी, सईद बिन मुसय्यब, उर्वाह बिन ज़ुबैर,और उमर बिन अब्दुल अज़ीज़, के नाम नामी आते हैं, ये सब के सब मुअज्जिज अरबी खानदान कुराईश से ताल्लुक रखते हैं, और उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ को तो इस्लामी तारीख के पांचवे खलीफा राशिद की हैसियत से मारूफ हैं,

इसी तरह दौर ए अव्वल मुद्व्वीन ए हदीस में सर फेहरिस्त इमाम मालिक हैं, फिर इमाम शाफई, और उनके बाद इमाम अहमद बिन हम्बल हैं, इन तीनों एम्मा के माजमुआ ए हदीस पूरी उम्मत में मकबूल है,

ये तीनों खालिस अरबी नसल से हैं इमाम मालिक कबीला जी सबाह से, इमाम शाफई कुराईश की सबसे मुअज्जिज शाख बनू हाशिम से , और इमाम अहमद कबीला बनू शैबा से ,

ये भी बतला दूं के बनू शाईबा वही हैं जिनकी शमशीर ने खुर्शीद इस्लाम के तुलु होने से पहले ही खुशरू परवेज़ की ईरानी फौज को जिफार की जंग में इब्रतनाक शिकस्त दी थी, और जिन्होने हज़रत अबू बक्र के दौर में ईरानी साजिश के तहत बरपा किए गए हंगामा इर्टेदाद के दौरान ना सिर्फ साबित कदमी का सबूत दिया था बल्कि मश्रीकी अरब से इस फ़ितने को कुचलने में फैसलाकुन रोल अदा करके अरबी इस्लामी खिलाफत को नुमाया ताकत अता किया था,

और फिर जिसके शह पर मुसन्ना बिन हारिसा शैबानी की शमशीर ने कारवां ए हिजाज़ के लिए फतह ईरान का दरवाजा खोल दिया था,

आखिर आप बता सकते हैं के है ये कैसी ईरानी साजिश थी जिसको बागडोर अरबों के हाथ में थी ??

जिसका सरपरस्त अरबी खलीफा था और जिसको कामयाबी से हमकीनार करने के लिए ऐसी ऐसी नुमायां तरीन अरबी शख्सियतों ने अपनी ज़िंदगियां खपा दी जिनमें से बाज़ बाज़ अफ़राद के कबीलों की ईरान दुश्मनी दशकों तक आलम में मारूफ थी ??

क्या कोई इंसान जिसका दिमागी तवाजुन सही हो एक लम्हा के लिए भी ऐसे बदबूदार अफसाना को मानने के लिए तैयार हो सकता है ??

दौर अव्वल के बाद दौर सानी के जामिइन हदीस पर निगाह डालें, उनमें सर फेहरिस्त इमाम बुखारी है जिनका मस्कन बुखारा था , बुखारा ईरान में नहीं बल्कि मावरनाहर (तुर्किस्तान) में वाक़ए है, दूसरे और तीसरे बुजुर्ग इमाम मुस्लिम और इमाम निसाई है इन दोनों का ताल्लुक नेशापुर के इलाके से था और नेशापुर ईरान का नहीं बल्कि खुरासान का जुज़ है, अगर उस पर ईरान का इक्तेदार रहा भी है तो अजनबी इक्तेदार की हैसियत से ,

चौथे और पांच वे बुजुर्ग इमाम अबू दावूद और इमाम तिरमिज़ी थे, इमाम अबू दावूद का ताल्लुक सजिस्तान (इराक़) से , इमाम तिरमिज़ी का ताल्लुक तिर्मिज (तुर्किस्तान) से रहा है,

छटे बुजुर्ग के बारे में इख्तेलाफ है, एक तबका इब्न माजा की सुनन को सिहाह सित्ता में शुमार करके उसे इस्तानाद का ये मकाम देता है,

दूसरा तबका सुनने दारीमी या मोत्ता इमाम मालिक को सिहा सित्ता में शुमार करता है, इमाम इब्न माजा यकीनन ईरानी है, लेकिन इनकी तस्नीफ सबसे नीचे दर्जे कि है, हत्ता के अक्सर मुहद्दिसीन इस लायक इस्तेनाद मानने को तैयार नहीं,

आखिर में ज़िक्र दोनों हजरात अरबी है, इमाम मुस्लिम, तिरमिज़ी , अबू दावूद और निसाई भी अरबी है,

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com 

Monday, October 26, 2020

खो गए जाने कहां लोग पुराने वाले




खो गए जाने कहां लोग पुराने वाले

तूने देखे हैं कहां जान से जाने वाले।

फिर कहानी में वहीं मोड़ है आने वाला
मार देते हैं मुझे लोग ज़माने वाले।

मेरे गांव में तो बस एक यही खामी है
लौट कर आते नहीं शहर को जाने वाले।

उसके लहजे में मुकय्यद है बला की ठंडक
और अल्फ़ाज़ सभी दिल जलाने वाले।

तू हकीकत के तनाज़िर में कभी मिल मुझसे
ख्वाब होते हैं फकत नींद में आने वाले।

रहज़न का तो कोई खौफ नहीं था हमको

रास्ता भूल गए राह बताने वाले। 

Sunday, October 25, 2020

मुनकरीन ए हदीस कहते है के दीन में फिरके मुहम्मद (sws) की हदीस और फारामीन की वजह से हुए,

 


मुनकरीन ए हदीस कहते है के दीन में फिरके मुहम्मद (sws) की हदीस और फारामीन की वजह से हुए,


उनका अपना हाल देखें तो दर्जनों फिरको में बटे हुए है, बल्कि हर मूंकर अपनी जात में एक अलग फिरका है,

कोई नमाज़ को उठक बैठक कहता है, और तीन और कोई पांच नमाज़ का कायल,

किसी के नजदीक कुत्ता खाना हलाल, किसी के नजदीक मेंडक,

और तो और खतम नुबुव्वत का इनकार, कादयानियों से प्यार, नए नए नबियों के क़दमों में पड़े सख्शियत परस्त फिरके बाज़, फिर भी कहते हैं की हम फिरका नहीं

यही तो हैं जिनसे बच कर रहने का हमें हुकम दिया गया है۔

اِنَّ الَّذِيۡنَ فَرَّقُوۡا دِيۡنَهُمۡ وَكَانُوۡا شِيَـعًا لَّسۡتَ مِنۡهُمۡ فِىۡ شَىۡءٍ‌ ؕ اِنَّمَاۤ اَمۡرُهُمۡ اِلَى اللّٰهِ ثُمَّ يُنَـبِّـئُـهُمۡ بِمَا كَانُوۡا يَفۡعَلُوۡنَ ۞

" बेशक वह लोग जिन्होंने अपने दीन को जुदा जुदा कर लिया और कई गिरोह बन गए, तो किसी चीज में भी उनसे नहीं, उनका मामला तो अल्लाह ही के हवाले है, फिर वह उन्हें बताएगा जो कुछ वह किया करते थे"

(क़ुरआन अल अनाम आयात 159)

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog:islamicleaks.com 

Saturday, October 24, 2020

उस्मानी हुकूमत और मूवाहेदा लोज़ान (Treaty Of Laussane)

 



उस्मानी हुकूमत और मूवाहेदा लोज़ान (Treaty Of Laussane)

तुर्की में जब हुकूमत खत्म करने की कोशिश जारी थी, उस वक़्त भी सबसे ज़्यादा दर्द हिन्दुस्तानियों के सीने में उठ रहा था , किस तरह अलीगढ़ यूनिवर्सिटी को ज़बरदस्ती बंद करवाया गया, अदालतों पर ताले डाले गए, इलेक्शन का बॉयकॉट किया गया,
मुहम्मद अली जौहर कि कयादत में वफद ने कैसे इंगलिश्तान , इटली और फ्रांस के दौरे किए, हिन्दुस्तान में तोड़ फोड की गई, हज़ारों की तादाद में हिन्दू मुसलमानों ने गिरफ्तारी दी, गांधी ,आज़ाद, जौहर वगेरह ने गिरफ्तारियां दी,
आखिर में हुकूमत का खात्मा खुद तुर्कियों के हाथो अंजाम पाया,
बेगानी शादी के दीवाने ठंडे होकर जेलों में बैठ गए,
हमारी अवाम को शायद समझ नहीं है के " उर्तुगुल जैसे ड्रामे के जरिए उनकी ऐसी ज़ेहन शाज़ी की जाती है के उनके दिमाग नकारा होकर सोचने समझने कि सलाहियत छोड़ जाते हैं,
नतीजे के तौर पर तुर्की, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर एक झूट फैलाया जा रहा है जिसे हम मूवाहेदा लोज़ान के तौर पर जानते हैं,
तुर्की के नकारा दिमाग़ सोचते हैं के 2023 में लोज़ान के खात्मे के बाद तुर्की एक अज़ीम सल्तनत के तौर पर उबरेगा और हिन्दुस्तान वा पाकिस्तान के नकारा दिमाग़ उस झूट को सच तस्लीम करके सोशल मीडिया पर हर तरफ फैलाना दीनी फारीजा समझ कर अंजाम देते हैं,
किताब या इल्म नामी किसी भी शए से कोसों दूर , मजहबी जमातों से ताल्लुक रखने वाले फातिरुल अक्ल अफ़राद इस झूट पर बिना सोचे समझे ईमान ले आते हैं के 2023 में मूवाहेदा लोज़ान एक्सपायर होने के बाद खिलाफत या हुकूमत की तर्ज पर एक सुपर पॉवर तुर्क हुकूमत कायम होगी,
मूवाहेदा लोज़ान ने जो तेल निकालने की पाबंदी आयद की है , उसके खत्म होते ही तुर्की तेल निकाल कर दुनिया भर को बेचकर सुपर पॉवर बन जाएगा,
मूवाहेदा लोज़ान की एक शर्त सेक्युलर निज़ाम का निफाज़ भी है, लिहाज़ा तुर्की सेक्युलरिज्म खत्म करके इस्लामी रियासत बन जाएगा जहां शराब खानो, क्लब, और न्यूड बीचेज (Nude Beaches) पर पाबंदी लगा दी जाएगी,
तुर्की अबनाय बास्फोरस (Strait Of Bosphorus) से गुजरने वाले जहाज़ों से भारी फीस वसूल करके अमीर तरीन होता जाएगा,
इस ज़हनी बीमार कौम को खुदा भी आकर नहीं समझा सकता के मूवाहेदा लोज़ान के पहले सफे से आखिरी सफे तक कहीं मामूली सा ज़िक्र भी नहीं है के मूवाहेदा लोज़ान कभी खत्म होगा,
मूवाहेदा सिर्फ एक ही सूरत में खत्म हो सकता है जब तुर्की मूवाहेदा लोज़ान से पीछे हटे और दूसरे फरीक बमबारी करके पूरे तुर्की को कब्रस्तान बना डालें,
अगर उर्दुगान ने कभी ये सोचा के वह मूवाहेदा लोज़ान से इन्हेराफ़ करेगा तो तुर्की पर वैसी ही जंग मुसल्लत हो सकती है जैसे हिटलर की मुवाहेदा वर्सा की खिलाफवर्जी करने पर जर्मनी पर मुसल्लत हुई थी,
ये बात तय है कि मुवाहेदे सिर्फ जंग की सूरत में खत्म होते हैं, मूवाहेदा लोज़ान भी एक अमन मूवाहेदा है जिसका खात्मा सिर्फ जंग की सूरत में हो सकता है,
मूवाहेदा सेवरे (Treaty Of Sevres) से जब तुर्की ने इंहेराफ किया तो उसके बाद के हालात सबको मालूम है , निहायत कलील अरसे में तुर्की को मूवाहेदा लोज़ान पर दस्तखत करने पड़े थे,
मूवाहेदा लोज़ान तो सिर्फ एक सदी पुराना है, तुर्की तो सफवी ईरानी सल्तनत और हुकूमत उस्मानी के दरमियान होने वाले 1639 ईसवी के मुवाहेदे को ना सिर्फ तस्लीम करता है बल्कि उस पर अमल पैरा भी है,
असल में मूवाहेदा लोज़ान के मंसूख होने का झूट तुर्की की मौजूदा हुकूमत की तरफ से फैलाया गया है, नरेंद्र मोदी की तरह तुर्क हुकूमत ने भी नए तुर्की का ख्वाब देख रखा है जो तुर्की की 100वे सालगिरह पर पूरा हो जाएगा, अलबत्ता नरेंद्र मोदी की तरह उन्हें भी मालूम नहीं के पूरा कैसे होगा,
सिर्फ यही नहीं एक हज़ार साल पहले 1071ईसवी में टर्कों ने बाजिंटिनी सल्तनत को बहुत बुरी शिकस्त दी थी लिहाज़ा 2071 ईसवी के लिए भी, हज़ार साला फतह के जश्न के तौर पर उर्दुगान ने कुछ टारगेट्स सेट करके अपने हामियों को पकड़ा दिए हैं,
मूवाहेदा लोज़ान तुर्की के तेल निकालने पर कोई पाबंदी आयद नहीं करता ये भी सिर्फ एक झूट ही है के तुर्की तेल निकाल रहा, तुर्की के पास वह वसायेल नहीं के वह खुद तेल निकाल सके, लेकिन छोटे पैमाने पर तुर्की कई सालों से तेल निकाल रहा है,
हकीकत ये है के इराक़, शाम और जॉर्डन जैसे तेल और कुदरती वसायेल से माला माल इलाके फ्रांस और ब्रिटेन ने अपने कब्जे में ले लिए थे जिन्हें बाद में आज़ाद मुल्क बना दिया गया,
उर्तगुरुल देखने वाले समझते हैं के 2023ईसवी में तुर्की दोबारा शाम और इराक़ , और यूरोप में थ्रेस (Thrace) और इटली वा यूनान (Greece) के कुछ टापू पर कब्ज़ा कर लेगा,
मूवाहेदा लोज़ान में तुर्की के असलहा बनाने पर भी कोई पाबंदी नहीं है,
मूवाहेदा लोज़ान में तुर्की को बावर काराया गया है के वह तुर्की में मौजूद गैर मुस्लिमो/गैर टर्कों को मुकम्मल सियासी, मजहबी, और समाजी आजादी फराहाम करेगा, बाद में तुर्की ने आइनी (Constitution) तौर पर ये तय कर दिया के रियासत का कोई मजहब नहीं होगा और हर सख्स को हर किस्म की मजहबी वा सियासी आज़ादी हासिल होगी,
इसलिए अक्सर लोगों का ख्याल ये है के मूवाहेदा लोज़ान से निकलने के बाद तुर्की पाबंद नहीं होगा के वह हर फर्द को आज़ादी दे, लिहाज़ा वहां उर्दुगान (ऊर्तगुरुल) की सरपरस्ती में इस्लाम नाफिज करके सबकी आज़ादी छीन ली जाएगी और शराब वा ज़िना वगेरह पर पाबंदी लगा दी जाएगी,
लेकिन मुजाहीदीन का उत्तगुरुल देखना सिर्फ इसलिए बर्बाद चला जाएगा क्यूंकि तुर्क रियासत का वजूद मूवाहेदा लोज़ान से जुड़ा है, अगर तुर्की मूवाहेदा लोज़ान को खत्म करेगा तो गोया वह अपने ही हाथों से तुर्क रियासत खत्म कर देगा, दुनिया तुर्की को सिर्फ एक जम्हूरी रियासत (Democratic State) के तौर पर सिर्फ उस वक़्त तक तस्लीम करेगी जब तक तुर्की इस मुवाहेदे पर पाबंद रहेगा,
क्या लॉर्ड कर्ज़न या अस्मत अनुनो (ismet inonu) ने ख्वाब में आकर उर्तुग्रुल देखने वालों को बताया के
" हम सिर्फ 100 साल के लिए सेक्युलरिज्म लाना चाहते हैं , 2023 में मूवाहेदा लोज़ान खतम हो जाएगा और तुम उर्तुग्रुल की कयादत में खिलाफत कायम कर लेना ??"
मूवाहेदा लोज़ान की ना तो कोई एक्सपायरी डेट है ना ही कोई सिक्रेट है, ये मूवाहेदा हमेशा हमेशा के लिए है, उर्दुगान या कोई हिन्दुस्तानी या पाकिस्तानी भक्त उठ कर तुर्की को दोबारा यूरोप का मर्द ए बीमार नहीं बना सकेगा,
साभार: Umair Salafi Al Hindi