Friday, October 16, 2020

इस्लाम- साइंसी नजरिए के पश ए मंज़र में

 


इस्लाम- साइंसी नजरिए के पश ए मंज़र में

इस्लामी शरीयत का एक छोटा तालिब ए इल्म भी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है के इस्लाम अल्लाह का नाजिल करदा एक अफ़ाकी दीन है, ज़माना नुबुव्वत ही में
ٱلۡیَوۡمَ أَكۡمَلۡتُ لَكُمۡ دِینَكُمۡ وَأَتۡمَمۡتُ عَلَیۡكُمۡ نِعۡمَتِی وَرَضِیتُ لَكُمُ ٱلۡإِسۡلَـٰمَ دِینࣰاۚ"(مائدہ: ٣)
"आज मैंने तुम्हारे दीन को मुकम्मल कर दिया है और अपनी नेमत तुम पर पूरी कर दी है और तुम्हारे लिए दीन ए इस्लाम पर राज़ी हो गया हूं,"
के जरिए इस पर मोहर लग चुकी है और अब ये अपनी इसी शक्ल में रहती दुनिया तक, तमाम इंसानों के लिए राह ए निजात है, वफात ए नबवी के बाद अब इसमें किसी भी किस्म की कमी वा ज़्यादाती का इमकान नहीं,
जदीद मसाइल के हल के लिए अब सही इजतेहाद वा इस्तंबात ही सिर्फ एक रास्ता है, साइंस की तरक्की से इसमें किसी तरह की कमी वा ज़्यादाती होने वाली नहीं है,
और रहा मामला साइंस का तो ये एक ताजुरबाती इल्म है उसकी 2 साखें हैं
1- इल्मी
2- नज़रयाती
साइंस की जो तहकीकात इल्मी है उन पर भरोसा वा एतमाद किया जा सकता है लेकिन इतना एतमाद भी नहीं के शरई कवानीन के लिए उसको ख़ास तस्लीम कर लिया जाए,
नज़रयाती साइंस में परिवर्तन एक मुसल्लम हकीकत है इस्लामी नुक्ता ए नजर से साइंसी नजरियात को हम तीन किस्मों में बांट सकते हैं,
1- साइंस की वह तहकीकात वा नजरियात जो इस्लामी तालिमात के मुताबिक है, साइंस की अक्सर वा बेशतर तहकीकात इसी जन-जाती की हैं, इस तरह के नजरियात के बारे में इस्लामी नुक्ता ए नजर से कहा जाएगा के इन तहकीकात में साइंस हक को पहुंच गई है, और इस्लाम की हक्कानियत को साबित करने के लिए साइंस की इन तहकीकात को तईद के तौर पर ज़िक्र किया जा सकता है,
2- साइंस की वह तहकीकात जो इस्लामी तालिमात के खिलाफ हैं दरहकीकत उनकी तादाद बहुत कम है लेकिन उसके वजूद का इनकार नहीं किया जा सकता, जैसे साइंस के मुताबिक अक्ल वा फहम् का महल दिमाग़ है, जबकि किताब वा सुन्नत में अक्ल वा फह्म का महल दिल की तरफ किया गया है जैसे
’’وَلَقَدۡ ذَرَأۡنَا لِجَهَنَّمَ كَثِیرࣰا مِّنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِۖ لَهُمۡ قُلُوبࣱ لَّا یَفۡقَهُونَ بِهَا‘‘، (اعراف: ١٧٩)
लेकिन जब जदीद दौर के कुछ साइंटिस्ट है जो दिल को खुशी वा गम और अक्ल वा फहम् का मुहल और दिमाग़ को दिल का गुलाम तस्लीम करते हैं (इस्लाम और साइंस, प्रोफेसर ताहिर क़ादरी)
इसी तरह साइंस जिंस में चार महीनों के बाद रूह फूंके जाने का मुनकर है, वह जिंस को जिरोशीमा की शक्ल से ही त-हायात मानती है लेकिन किताब वा सुन्नत में बेशुमार मकामात पर इसका ज़िक्र है के जीरोशीमा ( नुतफा) 40-40 दिन के वकफे से अलका, मुसघा, के मरहलों से गुजरकर चार माह में मुकम्मल इंसानी शक्ल इख्तियार कर जाता है, फिर उनमें रूह फूंकी जाती है,
इसी तरह डार्विन ने अपनी तहकीक में इंसानों को बंदरों की तरक्की याफ़्ता शक्ल करार दिया है जबकि किताब वा सुन्नत के ऐतबार से अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम की तखलीक फरमाकर उन दोनों से इंसानी नसल को फैलाया, अल्लाह का इरशाद है
: یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ ٱتَّقُوا۟ رَبَّكُمُ ٱلَّذِی خَلَقَكُم مِّن نَّفۡسࣲ وَ ٰ⁠حِدَةࣲ وَخَلَقَ مِنۡهَا زَوۡجَهَا وَبَثَّ مِنۡهُمَا رِجَالࣰا كَثِیرࣰا وَنِسَاۤءࣰۚ ﴾ [النساء ١]
तो क्या साइंस के गुलाम मुनकर ए हदीस साइंस की इन तहकीकात को तस्लीम करेंगे ??
इस्लामी नुक्ता ए नजर से हम इन तहकीकात को हरगिज़ तस्लीम नहीं करेंगे, इसलिए हम कहेंगे के साइंस अभी अपनी इन तहकीकात में हक तक नहीं पहुंची है और उसे इन मसाइल में अपनी तहकीक जारी रखनी चाहिए, उम्मीद है मुस्तकबिल करीब में इंशा अल्लाह ज़रूर हक तक रसाई हासिल होगी,
3- तीसरी किस्म उन तहकीकात की है जिनके बारे में इस्लाम खामोश है, हिमायत या मुखालिफत दोनों में कोई रहनुमाई नहीं करता,
इस किस्म कि तहकीकात के बारे में इस्लामी नुक्ता ए नजर से हमारा भी कोई हिम्मती फैसला नहीं होगा बल्कि परिवर्तन के अंदेशे के साथ हम उन्हें तस्लीम करेंगे, जैसा कि अभी हालिया दिनों में आलिमी इदारा सेहत WHO और अमेरिकी डॉक्टरों ने मलेरिया की मशहूर दवा Hydroxy choloroquine को कोविड के मरीजों के लिए इंतेहाई अहम बताया था, जिसकी वजह से अमेरिकी सदर डोनाल्ड ट्रंप ने हिन्दुस्तान से इंपोर्ट किया,
फिर कुछ ही दिनों बाद उन्ही डॉक्टर्स ने उसी दवा को हानिकारक और मर्ज को बढ़ाने वाला बता कर उसकी सप्लाई पर रोक लगाने की मांग की,
इससे साफ पता चलता है कि साइंसी तहकीकात क़ुरआन वा हदीस की तालिमात की तरह अटल नहीं है, यही मेडिकल साइंस जो आज मर्ज को संक्रामक (Contagious) वा गैर संक्रामक में तकसीम करती है हो सकता है कि कुछ दिनों बाद वह इस तकसीम से रूजू कर ले , जो की साइंस की दुनिया में होता रहता है,
तो साइंस की इस तकसीम से फख्र करके क़ुरआन वा सुन्नत की तालिमात की तावील करना कल हमारी जग हसाई की वजह बन सकती है,
साभार: डॉक्टर अब्दुल बारी फताहुल्लह मदनी के लेख का एक अंश
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi