तूने देखे हैं कहां जान से जाने वाले।
फिर कहानी में वहीं मोड़ है आने वाला
मार देते हैं मुझे लोग ज़माने वाले।
मेरे गांव में तो बस एक यही खामी है
लौट कर आते नहीं शहर को जाने वाले।
उसके लहजे में मुकय्यद है बला की ठंडक
और अल्फ़ाज़ सभी दिल जलाने वाले।
तू हकीकत के तनाज़िर में कभी मिल मुझसे
ख्वाब होते हैं फकत नींद में आने वाले।
रहज़न का तो कोई खौफ नहीं था हमको
रास्ता भूल गए राह बताने वाले।