जंग ए आज़ादी 1857 में वहाबियों का हिस्सा
ख्वाजा हसन निजामी लिखते हैं
" दौरान ए हंगामा में एक जमात वाहबियान टोंक से अाई और शिकायत की के नवाब ने कुछ माली इमदाद नहीं की, वहाबी और कई मकामात से भी आए थे, बख्त खान खुद भी वहाबी थे, बख्त खान ने सरफराज अली को पेशवाए मुजाहीदीन मुकर्रर किया था, और वही उनकी सरपरस्ती करते थे, बख्त खान के आते ही वहाबियों की कसीर तादाद आकर शामिल हो गई थी, उन वहाबियों ने एक ऐलान छपवा कर शाए करवाया था जिसमें तमाम मुसलमानों को जिहाद के लिए मुसलाह हो कर जिहाद में आने की दावत दी गई थी, और लिखा था के अगर वो नहीं आएंगे तो उनके अयाल वा अतफाल बर्बाद हो जाएंगे, ये ऐलान बहादुर शाह के ऐलान से ज़्यादा फसीह नहीं था, वहाबी मुल्क के मुख्तलिफ हिस्सों मसलन जयपुर, भोपाल, झांसी, हिसार से आए थे, मगर जिन मकामात से वह आए थे तफसीलन ना याद रख सका अलबत्ता मिर्ज़ा मुगल के दफ्तर में तफसील मौजूद थीं "
(बहादुर शाह का मुकद्दमा पेज 263)
साभार: Umair Salafi Al Hindi
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