Tuesday, October 27, 2020

मुंकरीन ए हदीस और ईरानी साजिश का बदबूदार अफसाना:

 


मुंकरीन ए हदीस और ईरानी साजिश का बदबूदार अफसाना:


मूंकरीन ए हदीस अपने यहूदी , सालीबी उस्ताद की तकलीद में बोलते आए हैं कि

" वफात ए नबवी के सैकड़ों बरस बाद कुछ ईरानियों ने इधर उधर की सुनी सुनाई अटकल पच्चू बातों को जमा करके उन्हें सही हदीस का नाम दे दिया"

जिनकी बुनियाद पर मैं बोल सकता हूं कि क़ुरआन कि ये आयात

" बड़ा बोल है जो उनके मुंह से निकल रहा है वह सरापा झूट बक रहें हैं " ( क़ुरआन अल काहफ)

मूंकरीन के इस बोल का खुलासा ये है के हदीस ए रसूल का ज़ख़ीरा दरहकीकत ईरानियों की साजिश और किस्सा गोइयान , वाज़ों और दास्तान सराओं की मनगढ़ंत हिकायत का मजमुआ है

मुनकर ए हदीस के इस दावे का पर्दा फाश करने से पहले में आपसे पूछना चाहता हूं के इस अजमी साजिश और दास्तान की गड़त का पता आपने किस तरह लगाया ??

आपने किस जरिए से मालूमात हासिल किया ??

और आपके पुरशोर दावा की क्या दलील है ??

मुनकर हदीस पर हैरत होती है के दावा तो करते हैं इस कदर ज़ोर शोर से और ऐसे ऊंचे हंगामे के साथ, और दलील के नाम पर एक हरफ नहीं, क्या इसी का नाम तदबबुर फिल क़ुरआन है ??

मुनकर हदीस फरमाते हैं

" वफात ए नबवी के सैकड़ों बरस बाद कुछ ईरानियों ने इधर उधर की सुनी सुनाई अटकल पच्चू बातों को जमा करके उन्हें सही हदीस का नाम दे दिया"

मैं कहता हूं आइए मैं सबसे पहले यही देख लें के उन मजमुआ ए हदीस को जमा करने वाले ईरानी है भी या नहीं ??

सन् वार तरतीब के लिहाज से दौर ए अव्वल के रावाह हदीस में सर फेहरिस्त इब्न शाहब ज़ुहरी, सईद बिन मुसय्यब, उर्वाह बिन ज़ुबैर,और उमर बिन अब्दुल अज़ीज़, के नाम नामी आते हैं, ये सब के सब मुअज्जिज अरबी खानदान कुराईश से ताल्लुक रखते हैं, और उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ को तो इस्लामी तारीख के पांचवे खलीफा राशिद की हैसियत से मारूफ हैं,

इसी तरह दौर ए अव्वल मुद्व्वीन ए हदीस में सर फेहरिस्त इमाम मालिक हैं, फिर इमाम शाफई, और उनके बाद इमाम अहमद बिन हम्बल हैं, इन तीनों एम्मा के माजमुआ ए हदीस पूरी उम्मत में मकबूल है,

ये तीनों खालिस अरबी नसल से हैं इमाम मालिक कबीला जी सबाह से, इमाम शाफई कुराईश की सबसे मुअज्जिज शाख बनू हाशिम से , और इमाम अहमद कबीला बनू शैबा से ,

ये भी बतला दूं के बनू शाईबा वही हैं जिनकी शमशीर ने खुर्शीद इस्लाम के तुलु होने से पहले ही खुशरू परवेज़ की ईरानी फौज को जिफार की जंग में इब्रतनाक शिकस्त दी थी, और जिन्होने हज़रत अबू बक्र के दौर में ईरानी साजिश के तहत बरपा किए गए हंगामा इर्टेदाद के दौरान ना सिर्फ साबित कदमी का सबूत दिया था बल्कि मश्रीकी अरब से इस फ़ितने को कुचलने में फैसलाकुन रोल अदा करके अरबी इस्लामी खिलाफत को नुमाया ताकत अता किया था,

और फिर जिसके शह पर मुसन्ना बिन हारिसा शैबानी की शमशीर ने कारवां ए हिजाज़ के लिए फतह ईरान का दरवाजा खोल दिया था,

आखिर आप बता सकते हैं के है ये कैसी ईरानी साजिश थी जिसको बागडोर अरबों के हाथ में थी ??

जिसका सरपरस्त अरबी खलीफा था और जिसको कामयाबी से हमकीनार करने के लिए ऐसी ऐसी नुमायां तरीन अरबी शख्सियतों ने अपनी ज़िंदगियां खपा दी जिनमें से बाज़ बाज़ अफ़राद के कबीलों की ईरान दुश्मनी दशकों तक आलम में मारूफ थी ??

क्या कोई इंसान जिसका दिमागी तवाजुन सही हो एक लम्हा के लिए भी ऐसे बदबूदार अफसाना को मानने के लिए तैयार हो सकता है ??

दौर अव्वल के बाद दौर सानी के जामिइन हदीस पर निगाह डालें, उनमें सर फेहरिस्त इमाम बुखारी है जिनका मस्कन बुखारा था , बुखारा ईरान में नहीं बल्कि मावरनाहर (तुर्किस्तान) में वाक़ए है, दूसरे और तीसरे बुजुर्ग इमाम मुस्लिम और इमाम निसाई है इन दोनों का ताल्लुक नेशापुर के इलाके से था और नेशापुर ईरान का नहीं बल्कि खुरासान का जुज़ है, अगर उस पर ईरान का इक्तेदार रहा भी है तो अजनबी इक्तेदार की हैसियत से ,

चौथे और पांच वे बुजुर्ग इमाम अबू दावूद और इमाम तिरमिज़ी थे, इमाम अबू दावूद का ताल्लुक सजिस्तान (इराक़) से , इमाम तिरमिज़ी का ताल्लुक तिर्मिज (तुर्किस्तान) से रहा है,

छटे बुजुर्ग के बारे में इख्तेलाफ है, एक तबका इब्न माजा की सुनन को सिहाह सित्ता में शुमार करके उसे इस्तानाद का ये मकाम देता है,

दूसरा तबका सुनने दारीमी या मोत्ता इमाम मालिक को सिहा सित्ता में शुमार करता है, इमाम इब्न माजा यकीनन ईरानी है, लेकिन इनकी तस्नीफ सबसे नीचे दर्जे कि है, हत्ता के अक्सर मुहद्दिसीन इस लायक इस्तेनाद मानने को तैयार नहीं,

आखिर में ज़िक्र दोनों हजरात अरबी है, इमाम मुस्लिम, तिरमिज़ी , अबू दावूद और निसाई भी अरबी है,

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com