Wednesday, October 21, 2020

ज़िन्दगी क्या है ....???

 



ज़िन्दगी क्या है ....???


ज़िन्दगी गुलज़ार नहीं, ज़िन्दगी को फिर क्या कहें ??

वफा का पैकर, एक कहानी, एक दास्तान, एक धीमी रोशनी, एक करिश्मा, एक नेमत, एक धुवां , एक राज़, एक जान, एक फूंक, एक नशा, एक आह या सिर्फ एक तमाशा !!

इंसान की पैदाइश से लेकर उसकी मौत तक का नाम ज़िन्दगी है, जिस दौरान उसकी ज़िन्दगी में मुख्तलिफ वाकयात रोनुमा होते हैं जिसमें हज़ारों खुशियों समेत हज़ारों गम भी शामिल होते हैं, इसी ज़िन्दगी के दौरान वह बहुत से इरादे और फैसले भी करता है, उन पर अमल भी करता है और कभी कभी फैसला करने के बावजूद उनसे भी पीछे हट जाता है,

इंसान खताओं का पुतला है और दर्द ए दिल इंसान भी, वह इतना तजुर्बे कार भी होता है के अपनी ज़िन्दगी में सामने वाले शख्स की परेशानियों को लम्हों में परख लेता है और कभी कभी वह दुनिया से बेगाना रह कर ही अपनी ज़िन्दगी बसर कर लेता है, जैसे जैसे उमर बढ़ती है इंसान को ये अंदाजा हो ही जाता है के ज़िन्दगी इतनी अच्छी नहीं जितनी उसे लगती थी, बहुत ही ऐसे लोग होते हैं जो परेशानियों से लड़ते लड़ते ही ज़िन्दगी गुज़ार देते हैं जबकि कुछ ऐसे भी होते हैं जो गम सहते सहते इस दहलीज पर आ जाते हैं जहां वक़्त से पहले ही उनकी ताकत जवाब दे जाती है, वो गम तो क्या एक छोटा सा गम भी बर्दाश्त करने के काबिल नहीं रहते,

एक तरफ जहां वह बहुत बड़े फैसले साज होते हैं पर उनकी ज़िन्दगी में एक ऐसा भी वक़्त आता है जब वह एक छोटा सा फैसला करने के लिए 10 बार नहीं बल्कि हज़ार बार भी सोचते हैं, वह डरते हैं और खौफ खाते हैं, ज़िन्दगी उन्हें वक़्त से पहले ही थका देती है और ऐसी थकन जो ना किसी दवा , ना किसी की तसल्ली और ना ही रातों कि नींदों से जाती है, बचपन से जवानी, अधेड़ उमरी और फिर बुढापा इंसान को सब कुछ सिखा देता है , सब कुछ जो शायद वह कभी भी सीखना भी नहीं चाहता था, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनको मुख्तलिफ किस्म के सबक सीखने के लिए बुढ़ापे की जरूरत नहीं होती बल्कि दुनिया उन्हें जवानी ही में बुढापे की दहलीज पर ले आती है, तो सही कहा है शायर ने

" इरादे बांधता हूं, सोचता हूं , तोड़ देता हूं।
कहीं ऐसा ना हो जाए, कहीं वैसा ना हो। "

ज़िन्दगी बहुत सख्त लगती है जब अपने से नीचे लोगों कि तरफ निगाह डाली जाए

ज़िन्दगी कठिन लगती है जब एक मजदूर बेगैर दिहाड़ी के घर जाता है,

ज़िन्दगी और सख्त लगती हैं जब बेटियां घर पर बैठी रिश्तों का इंतजार करती हैं,

ज़िन्दगी बहुत सख्त लगती है जब मां बाप बेटी के दहेज के लिए हाथ पैर मारते नहीं थकते।

ज़िन्दगी में उस वक़्त आह निकलती है जब बेऔलाद जोड़ा किसी नन्हे कि पैदाइश पर फिर से उम्मीद बांधता है,

ज़िन्दगी बेचैन लगती है जब बाप डर और खौफ के साथ बेटी को रुखसत करता है और वह उसी घर वापस आ जाती है, जब उसकी ज़िन्दगी मुश्किल कर दी जाती है और ज़िन्दगी थम सी जाती है।

जब नन्हे नन्हे हाथ भीख मांगते हैं और दुआ भी देते हैं, तो ज़िन्दगी गुलज़ार ही नहीं !!

" ज़िन्दगी तेरे ताक्कुब में लोग,
इतने चलते है की मर जाते हैं। "

मैं बा जात ए खुद जब आस पास लोगों को देखता हूं तो एहसास होता है के जिस ज़िन्दगी को हम कोसते है, जिसे धुत्कारते हैं, जिसके अक्सर गुज़र जाने की चाह रखते हैं वह तो कई ज़िंदगियों से बेहतर है बल्कि बहुत बेहतर।

वह सिर्फ एक तमाशा नहीं बल्कि एक इसलाह है, एक सबक है, एक किताब है और हसीन सफर भी !!

ये सोच भी ज़ेहन में आती है के जिस ज़िन्दगी के हम मालिक है ये तो बहुत सारे लोगों की ज़िंदगी से बेहतर है, मुझ समेत हम हर वक़्त ये ही क्यूं सोचते हैं के ज़िन्दगी में ये नहीं किया, वह काम क्यूं किया , ऐसा नहीं होना चाहिए था, ये गलत हुए वगेरह,

जबकि दूसरी तरफ हम में से कुछ लोग ये भी कहते हैं के ये होना ही था, और इसी लिए हो गया (हाय ये नसीब ! अब पछतावे से क्या फायदा)

" हासिल ज़िन्दगी हसरतों के सिवा कुछ नहीं।
ये किया नहीं, वो हुआ नहीं, ये मिला नहीं, वह रहा नहीं। "

तो जनाब ! ज़िन्दगी में कुछ अच्छा हो तो हमारी वाह वाह बुरा हो तो नसीब पर डाल देना ठीक नहीं बल्कि उस ज़िन्दगी को बिगाड़ने और संवारने में खुद हमारा बहुत बड़ा हाथ होता है, ज़िन्दगी वह सबक है जिसे जितना जल्दी सीख लिया जाए उतना ही बेहतर है वरना वह खुद बहुत कुछ सिखा देती है, शायर ने ठीक कहा है के

" कौन किसी का गम खाता है,
कहने को गम ख्वार है दुनिया। "

ज़िन्दगी को बेहतर और बदतर बनाने वाले हम खुद होते हैं जहां छोटी छोटी गलतियां बाज़ औकात हमारे लिए बड़े बड़े पहाड़ खड़े कर देती है जिसे पार करने के लिए हमारी पूरी उम्र लग जाती है, तो हमें चाहिए के हम मुनासिब अंदाज़ में , ज़्यादा की चाह में, खुद की जात और खानदान को दूसरों से मवा ज़ाना करने में ना निकाल दें बल्कि हम इतने ही पैर फैलाएं जितनी हमारी चादर इजाज़त देती है तो ज़िन्दगी अजीरन होगी और ना ही बेसुकून ...

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com