Thursday, October 22, 2020

मुहब्बत नामा .....!!!

 


मुहब्बत नामा .....!!!


मैं मुहब्बत कर बैठा।

मैं एक आम और बेबस वा लाचार इंसान हूं, ना अपनी मर्ज़ी से इस दुनिया में आया ना अपनी मर्ज़ी से इस दुनिया से जाऊंगा मगर इस आने जाने के दरमियान वाले वक़्त में मुझे मेरी मर्ज़ी की ज़िन्दगी जीने का इख्तियार दे दिया गया है,

मुझे इख्तियार है कि मुझे इस दुनिया में जिस तरह चाहूं जी सकता हूं, मुझे दो रास्ते दिखा दिए गए एक अच्छाई का और एक बुराई का , मुझे समझा दिया गया के बुराई के रास्ते पर चलने का ये नुकसान है और अच्छाई के रास्ते पर चलने का ये फायदा,

मगर मुझे एक चीज से मना कर दिया गया के दुनिया में किसी चीज की मुहब्बत में गिरफ्तार मत होना वरना दुनिया तुम्हारे लिए सजा बन जाएगी,

मगर क्या करूं मैं ठहरा आदम का बेटा नाफरमानी मेरी घुट्टी में है, जन्नत में आदम को सब चीजों का इख्तियार दे दिया गया, खाओ पियो जहां मर्ज़ी फिरो मगर खबरदार इस दरख़्त के पास मत जाना वरना रुसवा हो जाओगे,

हाय रे किस्मत ! इंसान की फितरत कुछ ऐसी बनाई गई है के जिस काम से उसको मना करो वही काम वो लाजमी करता है और वही फितरत बनाने वाला आदम को मना कर रहा था उस ख़ास किस्म के दरख़्त के पास जाने से , मगर फितरत कब बदलती है रही सही कसर शैतान ने पूरी कर दी और वह काम हो गया जिसके नतीजे में ये ज़मीन आबाद है, मगर यहां भी मुझे मना किया गया पर मैंने वहीं किया, मैं मुहब्बत कर बैठा।

मगर नहीं ! इसमें मेरा तो कुसूर नहीं था, मुहब्बत की तो नहीं जाती वह तो हो जाती है बस मुझे भी हो गई, मुझे दुनिया के बाद हूरें देने का वादा किया गया मगर उनके इंतज़ार का हौसला कहां था दुनिया की हूर से प्यार कर बैठा , मैंने कभी हूर देखी नहीं मगर अपनी मुहब्बत को हमेशा यही यकीन दिलाता हूं के तुम हूर से ज़्यादा खूबसूरत हो, और वह पगली मेरी मुहब्बत में शरशार ये भी नहीं पूछ पाती के तुमने हूर देखी भी है ??

बात सिर्फ मेरी मुहब्बत की नहीं है ये एक अलग ही जज्बा है जो सब पर अपना जादू चलाता है, ये मुहब्बत की जादूगरी है , इंसान अपना नहीं होता उसका हो जाता है, ये बहुत मीठा अहसास है जिस किसी को मुहब्बत हो जाती है वह बादलों में उड़ता है, ज़मीन पर पाओं नहीं पड़ते, मुहब्बत अपना असर लाज़मी छोड़ती है कभी तो ये एक दम से हो जाती है और कभी हल्की मगर मुसलसल बरसती बारिश की तरह इंसान पर असरंदाज होकर उसको अपने बस में कर लेती है,

आपको जिसके बेगैर अपनी ज़िन्दगी गुजारनी मुश्किल लगे समझो आपको उससे मुहब्बत है, वह कोई भी हो सकता है, मर्द का परेशानी में और औरत का आटा गूंधते वक़्त किसी को सोचना उससे मुहब्बत की निशानी है,

मुहब्बत एक पाकीज़ा जज़्बा है ये उसी पर अपना असर छोड़ता है जिसको उसकी हर्मत का ख्याल होता है, मुहब्बत तो वह खुशबू है जो छुपाई नहीं छुपती और अपनी महक से हर उस शख्स को महकाती है जो उसके साए में अपनी ज़िन्दगी बसर करने आता है,

फी ज़माना मुहब्बत के माने बदल चुके हैं अब मुहब्बत सिर्फ ख्वाहिशात की तकमील का नाम बन चुकी है, मुहब्बत की बातें सिर्फ किताबों में रह गई है, ज़माने के साथ हर चीज के रंग ढंग बदल जाते हैं, यही मामला मुहब्बत के साथ हुआ है,

आज की नई नसल ने इस पाकीज़ा जज्बे पे बदनामी का दाग़ लगा कर उसको मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा, मैं ये नहीं कहता कि आज की मुहब्बत सबको बदनाम कर देती है, मगर आज की अक्सरियत मुहब्बत को बदनाम कर रही है, जैसा कि किसी शायर ने क्या खूब कहा है आज कि मुहब्बत के बारे में

" मुहब्बत हो चुकी पूरी
चलो कपड़े पहनते हैं "

ये अशआर तर्जुमानी है आज की नसल की मुहब्बत की, हमें ज़रूरत है अपनी नई नसल को उसकी हकीकत बताने की वरना ये समाज तबाही के उस दहाने पर पहुंच जाएगा जहां खून के रिश्ते एक दूसरे से नजरें मिलाने के काबिल नहीं रहते, मगरिब से अाई मॉडर्न लहर ने हमारे ज़हनों को उस रास्ते पर डाल दिया है जो सिर्फ और सिर्फ तबाही का रास्ता है,

बात सिर्फ लड़के और लड़की की मुहबबत की नहीं है, दुनिया की किसी चीज की मुहब्बत में भी जब इंसान गिरफ्तार होता है तो वह अपने हकीकी मकसद से भटक जाता है, मुहब्बत का मकसद ये नहीं के जो चाहा उसको हर हाल में अपना बनाना ही बनाना है बल्कि इसका मकसद तो ये है कि अपने आपको नफी करके उसकी रजा में खुश रहा जाए,

हर शक्श को इख्तियार हासिल है के वह मुहब्बत करे मगर मुहब्बत की शराएत के मुताबिक और मुहब्बत की सबसे पहली शर्त है इज्ज़त देना, आप चाहे जिससे भी मुहब्बत करते हो जब तक आप उसको इज्ज़त नहीं देंगे आप मुहब्बत की पहली सीढ़ी भी नहीं चढ़ पाएंगे, अगर किसी के दिल में अपने लिए मुहब्बत पैदा करना चाहते हैं तो सबसे पहले उसे इज़्ज़त देना सीखना पड़ेगा।

हमारे समाज कि यही सबसे बड़ी खराबी है के आप सबसे मुहब्बत का दावा तो करते हैं मगर जब इज़्ज़त देने की बात आती है तो आप खुद को दूसरों से अफजल करार देकर उसे इज्ज़त देने से इंकार कर देते हैं, इस दुनिया में मुहब्बत इतनी ज़रूरी नहीं जितना इज्ज़त देना ज़रूरी है, अगर आप मुहब्बत करके खुद को कामयाब इंसान समझते हैं और इज्ज़त देना नहीं जानते तो आप दुनिया के नाकाम तारीन इंसान हैं,

एक अच्छा मर्द हमेशा औरत को मुहब्बत से ज़्यादा इज्ज़त देता है और यकीनन औरत को मुहब्बत से ज़्यादा इज्ज़त की जरूरत होती है, मुहब्बत का इज़हार हर वक़्त नहीं किया जाता ये तो ख़ास ख़ास मौकों पर किया जाता है जबकि इज्जत हर वक़्त दी जाती है, इज्जत की जरूरत तो हर वक़्त महसूस कि जाती है, मुहब्बत के बेगैर औरत आधी ज़रूर होती है मगर इज्ज़त के बेगैर औरत औरत नहीं रहती, इसलिए औरत को भी मर्द की इज्ज़त का पासदार होना चाहिए तब ही मुहब्बत अपनी हकीकी मंज़िल को पहुंचती है,

यहां हमें इस बात का भी ख्याल रखना होगा के अगर अपनी सच्ची मुहब्बत को उसके हकीकी अंजाम तक पहुंचाना चाहते हों तो उस जात से लाज़िमी मुहब्बत करो जिसने तुम्हे अपनी मुहब्बत से रोशनाश करवाया है,

अगर तुम दुन्यावी मुहब्बत में गुम होकर अपने रब से मुहब्बत भूल जाओगे तो तुम्हे कभी दुनिया कि मुहब्बत में सुकून नहीं मिलेगा, दुनिया की मुहब्बत से रब नहीं मिलता मगर रब की मुहब्बत से दुनिया और आख़िरत दोनों मिल जाती है,

अगर समाज को महकता हुआ समाज बनाना है तो हमें इस समाज में पाकीज़ा मुहब्बत के बीज बोने होंगे, हमें दूसरों को मानना होगा, उसको सुनना होगा, सराहना होगा, उनको तस्लीम करना होगा ये असल मुहब्बत होगी,

ये वाली मुहब्बत वो मुहब्बत नहीं जो एक लड़का और लड़की के दरमियान होती है, इस मुहब्बत को इंसानियत कहते हैं, हमें इंसानियत की बेल को परवान चढ़ाना है, मुहब्बत के फूल खुदबखुद खिल जाएंगे, और अगर मेरी राय मुहब्बत के बारे में जाननी है तो मैं इतना कहूंगा के

मुहब्बत का सफर करके, बहुत दिल पे जबर करके।
बस इतना जान पाएं हैं, मुहब्बत मार देती है।

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com