मर्द सायबान होते हैं,
मर्द बूरे नहीं होते, सायबान होते हैं
अगर औरत के सब्र से आब ए ज़मज़म के चश्में फूटते हैं, तो मर्द के सब्र और हौसले कि भी कर्बला की मिट्टी गवाह है,
मर्द अगर झूठा और बेवफा है, तो मैंने औरत को भी मुनाफिकत के उस दर्जे पर देखा है जहां वह मर्द से ज़्यादा जहन्नम की हकदार ठहरी है,
अगर मर्द को अल्लाह ने कुछ वूजुहात की वजह से औरतों पर बरतर ठहराया है, तो औरत के क़दमों तले जन्नत उतारी है,
अगर मर्द ज़ालिम है तो औरत भी हसद और बूगज के ऐसे ऐसे मरहले तय कर जाती है के अक्ल दंग रह जाए,
अगर अल्लाह ने मर्द को अपनी बीवी बच्चों के नान वा नफके का ज़िम्मेदार करार दिया है तो औरत पर भी उसका घर शौहर के सुकून और औलाद की अच्छी तरबियत पर जिहाद के अजर की खुशखबरी सुनाई है,
अगर औरत के कुछ ख्वाब होते हैं तो एक पुरसुकून ज़िन्दगी मर्द का भी हक है,
मर्द बूरे नहीं होते, वह चाहे बाप के रूप में हों ता भाई या फिर हमसफ़र के रूप में या फिर औलाद के रूप में, मर्द अपने हर रूप में सायबान होते हैं,
औरत से ज़्यादा मर्द तकलीफ, मुसीबतें, दुख , परेशानियां झेलता है जो के एक कड़वा सच है, और याद रहे सबसे ज़्यादा सख्त धूप और आंधीयों का सामना सायबान को करना पड़ता है,
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साभार: बहन शबाना रमज़ी
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog:islamicleaks.com