Sunday, May 30, 2021

दिल छू लेने वाली तहरीर : ज़रूर पढ़ें और दूसरों को शेयर करें,




 दिल छू लेने वाली तहरीर : ज़रूर पढ़ें और दूसरों को शेयर करें,


" मैं किसी दीनदार से शादी करूंगी "

"इसकी मत मारी गई है, बेवकूफ़ लड़की, इसीलिए इसे एमएससी कराई थी के ये इस किस्म की बात करेगी " खैरुन्निसा परवीन का ग़ुस्सा भड़का हुआ था

"ताज्जुब तो मुझे भी हो रहा है , दुनिया की तल्ख हकीकतों से नावाकिफ ये नादान लड़की आखिर किसी दीनदार के साथ दुश्वारियों को कैसे झेल पायेगी," बाप अमीन उल हसन के चेहरे पर फिक्र की गहरी लकीरें फैलती जा रही थी,

सुनिए हिबा के अब्बू , मैं तो समझा कर थक चुकी हूं, उल्टे मुझे समझाने लग जा रही है, अल्लाह और रसूल के क्या क्या हवाले पेश करने लगी है, ऐसे में भला उससे क्या कोई माकूल बात की जा सकती है ?? आप ही इसे समझाइए,

खैरुनिसा परवीन , तू घबरा मत मैं इसे समझाता हूं वह मेरी बेटी है, तालीम याफ़्ता है, समझ जाएगी,

खैरुन्नीसा परवीन और अमीन उल हसन बिस्तर पर दराज़ हो गए और दोनों इसी फिक्र में गरक थे के आखिर उनकी बेटी हिबा का क्या होगा ,

रिश्ता इंजिनियर लड़के का आया था वह खलीज में किसी इंटरनेशनल कंपनी में नौकरी करता था , उसके पास फ़ैमिली वीज़ा था , तनख्वाह बहुत अच्छी थी और बड़े खानदान से ताल्लुक रखता था , हर एक को रिश्ता पसंद था, अमीन उल हसन तो इस रिश्ते से ज़्यादा ही खुश थे,

"खैरूं निसा तेरी बेटी राज करेगी राज, लड़के के पास फ़ैमिली वीज़ा है, अरे इधर उसका निकाह हुआ और उधर वो उड़ जाएगी तेरी हिबा , शहर में चार कमरे का फ्लैट लेकर रहता है वह, कंपनी की तरफ से बेहतरीन गाड़ी मिली हुई है , उसके नीचे कितने सौ नौकर काम करते हैं, खुशकिस्मत है तेरी हिबा , देख माशा अल्लाह क्या रिश्ता आया है, तस्वीर देखी है तूने लड़के की ??? अरे प्रिंस लगता है माशा अल्लाह, अरब शहजादे से कम नहीं!!

खैरुं निसा परवीन भी हां में हां मिला रही थी, अमीन उल हसन से कह रही थी:

" बस जी !! अब अल्लाह के लिए जल्दी जल्दी तैयारी शुरू कर दीजिए और अल्लाह से दुआ कीजिए कि इस रिश्ते को किसी की नजर ना लगे मैंने तो तस्वीर हिबा के कमरे में रख दी है किसी वक्त देख ही लेगी वह भी, बहुत खुशनसीब है हमारी गुड़िया"

दूसरे दिन मां ने उससे उस तस्वीर के बारे में पूछा था और उसके जवाब से हैरत में ही पड़ गई,

हिबा : अम्मी !! मुझे लड़के में कोई कमी नज़र नहीं आती सिवाए इसके के मैं किसी दीनदार परहेज़गार लड़के से शादी करना चाहती हूं,

खैरुन निसा परवीन : ये तू क्या बकवास कर रही है, तेरे अब्बू इस रिश्ते से कितने खुश हैं, तुम्हे कुछ पता है, दीन दार से शादी करेगी बेवकूफ़ लड़की !! पहले ये तो जानना चाहिए था कि ये लड़का क्या करता है, इंजिनियर है, खलीज में नौकरी करता है, लाखों महीना कमाता है, कितने सौ नौकर इसके अंदर काम करते हैं, फ़ैमिली वीज़ा है इसके पास , चार कमरे का फ्लैट लेकर रहता है, बेहतरीन गाड़ी है ,और .....

हिबा : अम्मी !! ये सब ठीक है, लेकिन इसके चेहरे से दीन दारी तो नहीं झलक रही ?? मुझे दीनदार लड़का चाहिए ,

खैरून निसा : तेरा दिमाग़ खिसक गया है क्या ?? ये क्या दीनदार दीनदार की रट लगा रखी है, इसको छोड़ कर तू दस हजार पंद्रह हज़ार वाले किसी दीनदार से बंधना चाहती है, क्या करेगा कोई दीनदार तेरे लिए , पागल कहीं की, किसी ने तुम्हे उल्टा सीधा समझा दिया है ??

हिबा : अम्मी ! किसी ने कुछ नहीं समझाया, मैं सिर्फ दीन दार से शादी करना चाहती हूं के वह अपना हक भी जानता है और बीवी का भी , वह हुकूक मांगता है तो हुकूक अदा भी करता है, वह ईमानदार होता है, वह बदनजर नहीं होता , वह मुहब्बत सिर्फ मुझसे करेगा और रोज़ी तो बहरहाल लिखी हुई है वह तो जितनी मिलनी होगी मिलकर रहेगी ,

खैरू निशा : तेरे बाप को कितना सदमा लगेगा जब वो ये सब सुनेंगे, कैसा अच्छा भला रिश्ता आया था , अरे ऐसे रिश्ते अब मिलते कहां हैं, बेवकूफ़ लड़की कहीं की,

हिबा : अम्मी ! ये अच्छा रिश्ता कितने पैसों में तय होगा ?? लाखों कमाने वाला कितने लाख की मांग करेगा , ये भी मालूम है ना ??

खारुल निशा: ये तेरा मसला है या तेरे मां बाप का मसला है ?? शादी में तो आज के ज़माने में पैसे खर्च तो होते ही हैं,इसमें ऐसी कौनसी नई बात है ?? तू ज़्यादा दलीलें मत बघार समझी,

हिबा : अम्मी आजके ज़माना में भी अच्छे दीनदार बेगैर कुछ लिए शादी करते हैं, सुन्नत के मुताबिक शादी होती है, मेरे लिए आप कोई दीनदार लड़का तलाश कीजिए , सोचिए ना ये दुनिया कितने दिनों की है आज या कल सबको मर जाना है, मैं किसी तकवा परस्त इन्सान के साथ जीना चाहती हूं ताकि मेरी आखिरत तबाह ना हो जो हमेशा की ज़िन्दगी है,

अमीनुल हसन ने सुबह नाश्ते के बाद जब हिबा को आवाज़ दी तो हिबा ने पहले से ही अपना ज़ेहन बना लिया के उसे किस तरह बाप को कायल करना है,

अमीनुल हसन : बेटा ! हम लोगों ने तुम्हारे लिए एक रिश्ता देखा है, हम सब लोगों को लड़का पसंद है, आपकी अम्मी बता रहीं थीं के आप ......

हिबा : अब्बू ! मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है लेकिन अगर आप मेरी खुशी चाहते हैं तो मेरे लिए कोई दीनदार लड़का देखिए , मैं जानती हूं के ये सुनकर आपको अच्छा ना लगेगा लेकिन मैं आपसे फिर भी यही गुज़ारिश करूंगी,

अमीनुल हसन : लेकिन बेटा ! दीनदार लोगों मे भी तो बुरे लोग होते हैं?? अगर कोई बिदाती मिल गया तो ?? ना दुनिया मिलेगी ना आखिरत, खासारा ही खसारा है, हम आपका बुरा नहीं चाह सकते,

हिबा : आप सही कह रहें है अब्बू ! लेकिन हर जगह शराह देखी जाती है, हो सकता है कुछ दीन दार बुरे हो लेकिन ज़्यादातर तो अच्छे होते हैं और फिर क्या ज़रूरी है कि मेरी किस्मत में कोई बुरा ही हो, आप अल्लाह पर भरोसा तो कीजिए , मेरी दुनिया बनाने के चक्कर में मेरी आखिरत तो किसी बेदीन के हवाले मत कीजिए,

अमीनुल हसन लाजवाब हो गए थे उन्हे अपनी बेटी की बात में जान नज़र आ रही थी,वह कोई कमसिन और गंवार लड़की भी नहीं थी, ऊंची तालीम हासिल किए हुए थी, 23 साल की उमर को पहुंच चुकी थी वह अपनी पसंद और नापसन्द का इज़हार कर सकती थी लेकिन उन्हें समाज और खानदान के लोगों का ताना सता रहा था , वह जानते थे के लोग मज़ाक उड़ाएंगे , बातें बनायाएंगे और उन्हें सबकी बातें सुननी पड़ेगी,

खैरुल निसा को उन्होंने अब खुद ही कायल करना शुरू कर दिया और इस तलाश वा जुस्तुजु में लग गए के कोई अच्छा परहेज़गार दीनदार मिले तो अपनी बेटी की शादी कर दें, अल्लाह का करना देखिए के उन्हीं दिनों शहर में दीनी जलसा हो रहा था, एक नौजवान आलिम ए दीन कुरआन वा सुन्नत के दलील की रोशनी में धुआधार तकरीर कर रहा था , अमीनुल हसन की आंखों में उम्मीद की रोशनी झिलमिलाने लगीं,

छह महीने के अंदर शादी हो गई, लडके एक दीनी स्कूल का टीचर था वहीं कोई 10000 की तनख्वाह थी, शादी बड़े ही सादा अंदाज़ में बगैर किसी सलामी के हुई ,

हिबा को ऐसा लग रहा था जैसे उसके पाओं ज़मीन पर हों ही नहीं वैसे भी उसका शौहर शेरवानी में बहुत हसीन लग रहे थे लेकिन दूसरी तरफ खानदान के लोग मज़े ज़रूर ले रहे थे , चलिए अमीन साहब पैसे बचाने के लिए आपने अच्छा कदम उठाया , दीनदारी के पर्दे में ये हरकत आसानी से छुप जाएगी,

शहर के एक बड़ी हस्ती का ये तंज़ था :-" मुबारक हो अमीन बाबू !नहीं भी तो 25-30 लाख की बचत हो गई, वैसे शादी के बाद इसी पैसे से लड़के को कोई बिजनेस करवा दीजिएगा,"

दो महीने बाद हिबा ससुराल से अपने मायके आई थी, वह ऐसे खुश थी के जैसे उसे अपनी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा खजाना हाथ लग गया हो, मां को इस बात की खुशी थी के बेटी खुश है, ये अलग बात है के उसके अंदर में खलिश अब भी मौजूद थी, बाप बेटी के दरमियान बातें हो रही थी तभी हिबा के फोन की घंटी बजी , उधर से उसके शौहर थे,
वह मोबाइल फोन लेकर कमरे में चली गई,कुछ देर बाद जब वो बाहर आई तो उसका चेहरा खिल रहा था , उसकी आंखें आंसुओं से तर थी और वह कह रही थी

" अब्बू ! वह आपके दामाद ने मदीना के एक तहकीकी इदारे में नौकरी के लिए अर्जी दी थी, वह मंजूर हो गई है, डेढ़ लाख तनख्वाह के साथ रिहाइश फ्री दी जाएगी और फ़ैमिली वीज़ा भी है, हम लोग अगले 6 महीने के अंदर इंशा अल्लाह मदीना शरीफ के अंदर होंगे "

खैरूल निसा अमीनुल हसन को देख रही थी और दोनों मारे खुशी के रोए जा रहे थे,

लेकिन अम्मी ! याद रखें दुनिया मकसद नहीं है, जो अल्लाह से डर कर नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालाहु अलैहि वसल्लम के बताए हुए तरीके पर ज़िन्दगी गुजारते हैं दुनिया उनके कदम चूम लेती है, अल्लाह ताला का फरमान है,

ومن یتق اللہ یجعلہ مخرجا ویرزقہ من حیث لا یحتسب

" जो अल्लाह से डर कर ज़िन्दगी गुजारे अल्लाह उसके लिए रास्ता निकाल देता है और ऐसे तरीके से रोज़ी देता है जिसका उसको गुमान भी नहीं होता "

मगर जो दुनिया ही हो अपना नस्बुल ऐन बना ले वह आखिरत की नेमतों से महरूम होता है और दुनियावी ज़िन्दगी भी परेशान कुन होती है,

मनकूल

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com

Saturday, May 29, 2021

अल्लाह हमेशा हमारा सेकंड ऑप्शन क्यूं होता है !!

 



अल्लाह हमेशा हमारा सेकंड ऑप्शन क्यूं होता है !!


हम अल्लाह से तब रूजू करते हैं जब दुनिया हमें रद कर चुकी होती है, तमाम दरवाजों से धुत्कारे जाने के बाद हम अल्लाह के दर पर दस्तक देते हैं, अल्लाह हमेशा हमारा सेकंड ऑप्शन क्यूं होता है ??

हमारी अव्वलीन तरजीह हमेशा दुनिया ही क्यूं होती है ??

और हैरत की बात है कि हमें इस बात पर शर्मिंदगी ही नहीं होती, हमें लगता है के तरबियत के रद्दोबदल से कोई फर्क नहीं पड़ता , ये कितनी बड़ी भूल है, तरबियत ही तो असल उसूल है,

कौन पहले आता है, कौन बाद में , जब ये बुनियादी उसूल ही नजरअंदाज कर दिया तो आप अल्लाह के लिए कैसे ज़रूरी होंगे ??

Umair Salafi Al Hindi 

Friday, May 28, 2021

कड़वी हकीकत : आज ख्वाहिशात का पूरा ना होने का नाम गुरबत है।

 



कड़वी हकीकत : आज ख्वाहिशात का पूरा ना होने का नाम गुरबत है।


मेरे ख्याल में आज इतनी गुरबत नहीं जितना शोर है, आजकल हम जिसको गुरबत बोलते हैं वह दरअसल खवाहिश पूरा ना होने को बोलते हैं,

हमने तो गुरबत के वह दिन भी देखें है के स्कूल में तख्ती पर पुताई के पैसे नहीं होते थे तो मुल्तानी मिट्टी लगाया करते थे,

स्लेट पर सियाही के पैसे नहीं होते तो नील का इस्तेमाल करते थे, स्कूल के कपड़े जो लेते थे वह सिर्फ ईद पर लेते थे, अगर किसी शादी ब्याह के लिए कपड़े लेते थे तो स्कूल कलर के ही लेते थे, कपड़े अगर फट जाते तो सिलाई करके बार बार पहनते थे, जूता भी अगर फट जाता तो बार बार उस सिलाई करवा कर पहनते थे,

और जूता " स्कूल टाइम या बाटा " का नहीं प्लास्टिक का होता था, घर में मेहमान आ जाता तो पड़ोस के हर घर से किसी से घी , किसी से मिर्च, किसी से नमक मांग कर लाते थे,

आज तो माशा अल्लाह हर घर में एक एक महीने का सामान पड़ा होता है, महमान तो क्या पूरी बारात का सामान मौजूद होता है,

आज तो स्कूल के बच्चों के हफ्ते के सात दिनों के सात जोड़े प्रेस करके घर रखे होते हैं, रोज़ाना नया जोड़ा पहन कर जाते हैं, अगर आज किसी की शादी में जाना हो तो मेहंदी बारात और वालीमा के लिए अलग अलग कपड़े और जूते खरीदे जाते हैं,

हमारे दौर में एक चलता फिरता इन्सान जिसका लिबास तीन सौ तक और बुट दो सौ तक होता था और जेब खाली।होती थी,

आज कल का नौजवान जो गुरबत का रोना रो रहा है उसकी जेब मे बीस हज़ार का मोबाइल , कपड़े कमसे कम एक हजार के , जूता कम से कम पांच सौ का ,

गुरबत के दिन तो वह थे जब घर में बत्ती जलाने के लिए तेल नहीं होता था रूई को सरसों के तेल में डूबो कर जलाते थे,

आज के दौर में ख्वाहिश की गुरबत है,

अगर किसी की शादी में शामिल होने के लिए तीन जोड़े कपड़े या ईद के लिए तीन जोड़े कपड़े ना सिला सके वह समझता है में गरीब हूं,

आज ख्वाहिशात का पूरा ना होने का नाम गुरबत है।

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com 

Thursday, May 27, 2021

जब औरतें मर्द की तमाम ख्वाहिशात शादी से पहले ही पूरी कर दें तो मर्द को निकाह की क्या ज़रुरत है फिर ??

 



जब औरतें मर्द की तमाम ख्वाहिशात शादी से पहले ही पूरी कर दें तो मर्द को निकाह की क्या ज़रुरत है फिर ??


और जब मर्द औरत के पाक दामन को दागदार करेंगे तो उनके हिस्से में पाकदामन औरतें कैसे आएंगी ??

घर से बाहर निकलते ही आपका दो किस्म की औरतों से सामना होता है,

पहली किस्म : उन औरतों की है जो अज़ीज़ मिस्र की बीवी ( जुलैखा ) वाली बीमारी का शिकार है, खूब बन संवरकर परफ्यूम लगाए बे पर्दा, जो अपनी ज़बान ए हाल से कह रही होती हैं
”ﻫﻴﺖ ﻟﻚ ”
तर्जुमा: " क़रीब आओ , जल्दी आओ "

दूसरी किस्म: दूसरी औरत जो सतर वा हिजाब की पाबंद और मजबूरी में घर से बाहर निकलती हैं, जो अपनी ज़बान ए हाल से कह रही होती है,

"ﺣﺘﻰ ﻳﺼﺪﺭ ﺍﻟﺮﻋﺎﺀ ﻭﺃﺑﻮﻧﺎ ﺷﻴﺦ ﻛﺒﻴﺮ"

(क़ुरआन सुरह कसस आयत 23)

तर्जुमा : " जब तक चरवाहे वापस ना लौट जाएं, और हमारे वालिद बहुत बूढ़े हैं "

पहली किस्म की औरतों से आप वही मामला करें जो सैय्यदना युसूफ अलैहि सलाम ने किया था, यानी कहें,

" माज़ अल्लाह " ( अल्लाह की पनाह)

और दूसरी किस्म की औरतों से आप वही मामला करें जो सैय्यदना मूसा अलैहिस्सलाम ने किया था, यानी अदब वा एहतेराम से उनकी मदद करें और अपने काम में मशगूल हो जाएं, और अल्लाह का फरमान

: ”ﻓﺴﻘﻰ ﻟﻬﻤﺎ ﺛﻢ ﺗﻮﻟﻰ ﺇﻟﻰ ﺍﻟﻈﻞ ”

याद करें, क्यूंकि युसूफ अलैहिस्सलाम अपनी इफ्फत वा पाकदामनी की बिना पर अज़ीज़ ए मिस्र बन गए थे, और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के हुस्न ता आमिल की बिना पर अल्लाह ने उन्हें नेक बीवी और पुर अमन रिहाइश अता की थी,

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का पूरा वाकया

"और जब वो मदयन के कुँए पर पहुँचा, उसने देखा कि बहुत से लोग अपने जानवरों को पानी पिला रहे हैं और उनसे अलग एक तरफ़ दो औरतें अपने जानवरों को रोक रही हैं। मूसा ने इन औरतों से पूछा, “तुम्हें क्या परेशानी है?” उन्होंने कहा, “हम अपने जानवरों को पानी नहीं पिला सकतीं, जब तक ये चरवाहे अपने जानवर न निकाल ले जाएँ और हमारे बाप एक बहुत बूढ़े आदमी हैं।, ये सुनकर मूसा ने उनके जानवरों को पानी पिला दिया, फिर एक साए की जगह जा बैठा और बोला, “परवरदिगार, जो भलाई भी तू मुझपर उतार दे मैं उसका मोहताज हूँ।”

(क़ुरआन सुरह कसस आयत 23-24)

साभार : Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com

Wednesday, May 26, 2021

एक बात मुझे समझ नहीं आती के लोग मायूस कैसे हो जाते है,




 एक बात मुझे समझ नहीं आती के लोग मायूस कैसे हो जाते है,


एक मुसलमान जो अल्लाह पर ईमान रखता हो वह तो कभी मायूस नहीं होता, तो आप कैसे मायूस हो जाते हैं ??

कैसे क्या वो आपके दिल में नहीं होता, क्या आपको उस रहमान पर यकीन नहीं जिसने हमें पैदा किया जो सत्तर माओं से ज़्यादा प्यार करता है,

इतना प्यार, इतना प्यार के ज़मीन और आसमान में उस जितना प्यार कोई कर ही नहीं सकता , तो आप कैसे मायूस हो जाते हो, वह हमें कैसे तन्हा छोड़ सकता है जो हमारी सरगोशीयों को भी सुनता है वह सब कुछ जानता है वह सब बातें जो कभी हमने खुद से भी नहीं कही होती वह भी जानता है,

वह जो कुछ जानता है हम नहीं जानते ,
वह इंसान से बेहतर लेकर बेहतरीन चीज़ नवाज़ता है,
तुम उससे जितनी उम्मीद रखोगे वह उससे बढ़कर तुम्हे नवाजेगा, तुम बस मायूस ना होना चाहे क्या कुछ ना हो जाए , तुम्हे उससे अच्छे की उम्मीद रखनी है, बस वह है ना सब अच्छा अच्छा कर देगा ,

वह अपने प्यारे बन्दे पर ही आजमाइश डालता है, अल्लाह हमें अपने प्यारे बंदों में शामिल फरमाए और अल्लाह हमें हर आजमाइश में सुरखुरू करे..... आमीन

बकलम: बहन सहर फातिमा
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com 

Tuesday, May 25, 2021

हां यहां सिर्फ शर्मिंदगी होती है !!!

 



और शर्मिंदगी तो तब होती है जब हम किसी शख्स को सोचते सोचते नमाज़ गलत पढ़ लेते हैं और चौथी रकत के बजाए दूसरी तीसरी रकत में सलाम फेर लेते हैं, सना के बाद सुरह पड़ना भूल जाते हैं, और उस सख्स को ज़्यादा से ज़्यादा वक्त देने के लिए , नमाज़ जल्दी पढ़ने लगते हैं,


और फिर ...

जब वही सख्स हमारे दिल के टुकड़े टुकड़े कर देता है, हमारी हर लम्हे की मुहब्बत, चाहत, इंतजार, आंसू, सबको धुत्कार कर आगे चला जाता है, फिर हम यकीन नहीं कर पाते , उसके पीछे भागते हैं, अपनी इज़्ज़त नफस को उसकी एक तवज्जोह के लिए उसके कदमों में निछावर कर देते हैं, और फिर ये ख्वाहिश करते हैं के वह हमारी इस मुहब्बत को अपने सर का ताज बना ले ,

लेकिन हम ये भूल जाते हैं के कदमों में डाली गई चीज़ सर का ताज नहीं पैरों की धूल बना करती है, जब वह सख्स हमें धोका देता है तो हम सीधा सजदे में जा गिरते हैं,

फिर हमारी ज़बान से माफी के लिए दुआ के अल्फ़ाज़ नहीं निकलते,

निकलते हैं तो बस सिर्फ दर्द भरी कराह, ज़ख्मी दिल का खून, आंसुओं की सूरत आंखों से बहने लगता है, सांस गले में कहीं आंसुओं के गोले के साथ अटक जाती है, उस लम्हे दिल चाहता है दुनिया यही रुक जाए, हर तरफ अंधेरा हो जाए, हमारा दम यहीं निकल जाए लेकिन ऐसा नहीं होता ,

यहां सिर्फ तकलीफ होती है, सिर्फ आंसू होते हैं, सिर्फ दर्द होता है, सिर्फ ग़म होता है, सिर्फ अंधेरा होता है, सिर्फ दिल पर लगी जरबें होती है,

हां यहां सिर्फ शर्मिंदगी होती है !!!

जानते हो सच क्या है ?? सच ये है के सच्ची मुहब्बत बस अल्लाह की है,

साभार : Umair Salafi Al Hindi
BLog: Islamicleaks.com

Monday, May 24, 2021

हज़रत अय्यूब ने सब्र क्यूं किया ??

 




हज़रत अय्यूब ने सब्र क्यूं किया ??

हज़रत मरयम अपने बच्चे को लेकर लोगों के सामने क्यूं गई ??
हज़रत इब्राहीम आग से क्यूं नहीं डरे ??
हज़रत यूनुस हालात के सामने सुरंगों क्यूं नहीं हुए ??
हज़रत याकूब मायूस क्यूं नहीं हुए ?
हमारे नबी हज़रत मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम और उसके यार ए गार , गार ए सूर में गमगीन क्यूं नहीं हुए ??

इन सबकी वजह सिर्फ एक थी ??

ये सब अल्लाह पर भरोसा और एत्माद रखते थे !!

Umair Salafi Al Hindi

Sunday, May 23, 2021

बेटी, जिसने जरनैल बाप का ज़ख्म लम्हों में भर दिया, जनरल भी कौन ??

 



बेटी, जिसने जरनैल बाप का ज़ख्म लम्हों में भर दिया, जनरल भी कौन ??


हज़रत इकरमा बिन अबू जहल और हज़रत खालिद बिन वलीद आपस में चचाजाद भाई थे, कबीला कुरैश की एक शाख बनी मखजूम से ताल्लुक था, दोनों का नाम इस्लामी तारीख़ के दस अज़ीम जरनलों में दर्ज है, गज़वा ए खंदक के दौरान ये दोनों मुसलमान नहीं थे लेकिन बहादुरी का ये आलम था के सिर्फ इन्हीं दो ने अपने घोंडों पर सवार होकर खंदक उबूर करके मुसलमानों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी, बेपनाह जिहानत , बहादुरी और फन ए हरब वा ज़रब में कमाल महारत रखने के बावजूद मक्की दौर में खालिद बिन वलीद ने मुश्रिकीन मक्का के घटिया मंसूबों और हरकतों से हमेशा किनारा कशी अख्तियार किए रखी, आप गज़वा बदर में भी मुश्रीकीन ए मक्का के लश्कर में शामिल नहीं थे,

गज़वा ए उहुद में शरीक हुए तो तारीख़ ने गवाही दी के मुसलमानों को जो नुकसान पहुंचा वजह सिर्फ खालिद बिन वलीद थे, दूसरे पहलू को फिल वक्त रहने दें के मुसलमानों ने मौका कैसे दिया ,यहां मकसद मौका से फायदा उठाने का बयान है,

खालिद बिन वलीद और इकरमा बिन अबू जहल दोनों ही पहले इस्लाम लाने वाले लोगों में शामिल नहीं थे, खालिद बिन वालिद की तबीयत शहजादों वाली थी, रईस थे और खर्च भी खुलकर करते थे, कभी कोई जंग हारी नहीं तो माल ए गनीमत से भी काफी हिस्सा पाया , इस्लामी तारीख़ में से हज़रत उमर फारूख और खालिद बिन वलीद को मनफी करें तो इस्लाम वापस हिजाज़ के मजाफात तक नज़र आने लगेगा,

दौर सिद्दीकी वा फारुकी में रोम वा फारस ज़मीन बोस हुए , खालिद बिन वलीद के आन ड्यूटी आखिरी अय्याम रोम के मुहाज़ पर गुज़रे, तारीख़ ए इस्लाम की खूंरेज जंग यरमूक है जिसकी फतह में रीड़ की हड्डी खालिद बिन वलीद और उनका कमांडर दस्ता था, उसी जंग में अबू जहल का बेटा हज़रत इकरमा बिन अबू जहल अपने बेटे अब्दुर्रहमान के साथ शहीद हुए , खालिद बिन वलीद के एक जानू हज़रत इकरमा बिन अबू जहल का सर था और दूसरे जानूं पर अब्दुर्रहमान का सर था और इस आलम मे खालिद ने आवाज़ लगाई के ,

" जाए !! कोई जाकर उमर को बताए के बनू मखजूम ने इस्लाम पर क्या निछावर किया है "

तारीख़ ए इस्लाम में उलेमा की तरफ से खालिद बिन वलीद की उमर फारूख के हाथों माजूली की दर्जनों तावीलात की जाती है, ये जाती चपकलिश ना थी, ये हसद का जज्बा नहीं था , ये सिर्फ डिसिप्लिन का मामला था,

हज़रत खालिद बिन वलीद और उमर फारूक की तर्ज़ ए जिन्दगी मे ज़मीन आसमान का फर्क था, खालिद का अंदाज़ शाहाना और रईसाना था जबकि हज़रत उमर का फकीराना रखते थे,

खालिद बिन वलीद की ज़िन्दगी में एक खला था, वो नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालहू अलैहि वसल्लम की मक्की दौर की सोहबत से महरूम रहे और जब दामन रिसालत से रिश्ता जोड़ा तो घोड़े के पीठ ही उनका घर करार पाई, एक बिजली थी या कोई चिंघाड़ !! जिस तरफ गिरती या कड़कता कुफ्र के अंधेरे छंटते ही जाते !!!

उनकी माजुली भी दरअसल हुकम ए रब्बी था, यरमूक शायद उनकी आखिरी जंगों में से थी, जंग ए यरमूक बहुत ये लोगों के लिए एक अज़ीम पैगाम रखती है के दीन ए इस्लाम में माजी को घसीट कर हाल और मुस्तकबिल पर नहीं थोपा जा सकता , आपको शायद हैरत हो के मदीना तय्यबा से हज़ारों कोस दूर लड़ी गई इस जंग में हज़रत अबू सूफियान अपनी बीवी हज़रत हिंदा के साथ शरीक थे, अबू सुफ्यान की आंखें उसी रूमी मुहिम के दौरान तीर लगने से शहीद हुई, जंग ए यरमूक के तीसरे या चौथे दिन जब मुस्लिम लश्कर पस्पाई पर मायल था तो मुजाहिदीन पस्पा होते होते खवातीन के खेमों तक पहुंच गए ,

फलक ने अजीब मंज़र देखा के एक औरत एक लकड़ी हाथ में लिए मुसलमान सिपाही को मारने दौड़ रही है और बा आवाज़ बुलंद डांट रही है के

"जब काफ़िर थे तो बहुत बहादुर बनते थे आज मुसलमान होकर बुजदिली दिखा रहे हो,"

उस औरत का नाम हिन्दा था और जिस सिपाही को वह गैरत दिला रही थीं उसे तारीख़ अबू सूफियान के नाम से जानती है, यरमूक में अबू जहल का पोता और बेटा इस्लाम के लिए शहीद हुआ,

मंज़र बदलता है !! एक बूढ़ा शख्स बिस्तर ए मर्ग पर बेचैनी से करवटें लेते रो रहा है, देख भाल पर लगी बेटी सवाल करती है,

" बाबा जान! क्या मौत का खौफ है ??"

बूढ़ा शख्स एक दम मुस्कुराने लगता है! नहीं बेटा , क्या तूने मेरे जिस्म पर कोई ऐसा मकाम देखा जहां ज़ख़्म का कोई निशान ना हो ??

" नहीं बाबा जान ! आपका तो पूरा बदन छलनी है" बेटी ने जवाब दिया ,

" मैं इस लिए रों रहा हूं के घोड़े की पीठ मेरा घर था और तलवार मेरा जेवर लेकिन मौत मेरी तरफ ऐसे बड़ रही है जैसे किसी बूढ़े ऊंट की तरफ बढ़ती है "

बाबा जान ! आप जानते हैं आपको सैफुल्लाह का लकब किसने दिया था ?? बेटी सवाल करती है,

बूढ़े की आंखों में चमक और ख़ुशी लौट आती है, उसके चेहरे से उदासी पल भर में बोरिया लपेटे रुखसत हो जाती है, हां जानता हूं बेटा!!

"तो किसकी मजाल के वह अल्लाह की तलवार को मैदान में तोड़ सके !! नबी ए करीम मुहम्मद सल्लाल्लहू अलैहि वसल्लम की खबर है, आपको ज़र करना नामुमकिन था" बेटी ने कहा

बिस्तर मर्ग पर पड़ा जरनल मुस्कुराते चेहरे पर दाइमी सुकून लिए आंखें मूंद लेता है,

बेटियां कितनी जहीन होती हैं !! कितना दूर तक देखती हैं, बेटियों के पास कैसे कैसे मरहम होते हैं के गहरे तरीन घाव भी पल भर में भर जाते हैं , ऐसा होता है जरनल

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com