Sunday, May 23, 2021

बेटी, जिसने जरनैल बाप का ज़ख्म लम्हों में भर दिया, जनरल भी कौन ??

 



बेटी, जिसने जरनैल बाप का ज़ख्म लम्हों में भर दिया, जनरल भी कौन ??


हज़रत इकरमा बिन अबू जहल और हज़रत खालिद बिन वलीद आपस में चचाजाद भाई थे, कबीला कुरैश की एक शाख बनी मखजूम से ताल्लुक था, दोनों का नाम इस्लामी तारीख़ के दस अज़ीम जरनलों में दर्ज है, गज़वा ए खंदक के दौरान ये दोनों मुसलमान नहीं थे लेकिन बहादुरी का ये आलम था के सिर्फ इन्हीं दो ने अपने घोंडों पर सवार होकर खंदक उबूर करके मुसलमानों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी, बेपनाह जिहानत , बहादुरी और फन ए हरब वा ज़रब में कमाल महारत रखने के बावजूद मक्की दौर में खालिद बिन वलीद ने मुश्रिकीन मक्का के घटिया मंसूबों और हरकतों से हमेशा किनारा कशी अख्तियार किए रखी, आप गज़वा बदर में भी मुश्रीकीन ए मक्का के लश्कर में शामिल नहीं थे,

गज़वा ए उहुद में शरीक हुए तो तारीख़ ने गवाही दी के मुसलमानों को जो नुकसान पहुंचा वजह सिर्फ खालिद बिन वलीद थे, दूसरे पहलू को फिल वक्त रहने दें के मुसलमानों ने मौका कैसे दिया ,यहां मकसद मौका से फायदा उठाने का बयान है,

खालिद बिन वलीद और इकरमा बिन अबू जहल दोनों ही पहले इस्लाम लाने वाले लोगों में शामिल नहीं थे, खालिद बिन वालिद की तबीयत शहजादों वाली थी, रईस थे और खर्च भी खुलकर करते थे, कभी कोई जंग हारी नहीं तो माल ए गनीमत से भी काफी हिस्सा पाया , इस्लामी तारीख़ में से हज़रत उमर फारूख और खालिद बिन वलीद को मनफी करें तो इस्लाम वापस हिजाज़ के मजाफात तक नज़र आने लगेगा,

दौर सिद्दीकी वा फारुकी में रोम वा फारस ज़मीन बोस हुए , खालिद बिन वलीद के आन ड्यूटी आखिरी अय्याम रोम के मुहाज़ पर गुज़रे, तारीख़ ए इस्लाम की खूंरेज जंग यरमूक है जिसकी फतह में रीड़ की हड्डी खालिद बिन वलीद और उनका कमांडर दस्ता था, उसी जंग में अबू जहल का बेटा हज़रत इकरमा बिन अबू जहल अपने बेटे अब्दुर्रहमान के साथ शहीद हुए , खालिद बिन वलीद के एक जानू हज़रत इकरमा बिन अबू जहल का सर था और दूसरे जानूं पर अब्दुर्रहमान का सर था और इस आलम मे खालिद ने आवाज़ लगाई के ,

" जाए !! कोई जाकर उमर को बताए के बनू मखजूम ने इस्लाम पर क्या निछावर किया है "

तारीख़ ए इस्लाम में उलेमा की तरफ से खालिद बिन वलीद की उमर फारूख के हाथों माजूली की दर्जनों तावीलात की जाती है, ये जाती चपकलिश ना थी, ये हसद का जज्बा नहीं था , ये सिर्फ डिसिप्लिन का मामला था,

हज़रत खालिद बिन वलीद और उमर फारूक की तर्ज़ ए जिन्दगी मे ज़मीन आसमान का फर्क था, खालिद का अंदाज़ शाहाना और रईसाना था जबकि हज़रत उमर का फकीराना रखते थे,

खालिद बिन वलीद की ज़िन्दगी में एक खला था, वो नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालहू अलैहि वसल्लम की मक्की दौर की सोहबत से महरूम रहे और जब दामन रिसालत से रिश्ता जोड़ा तो घोड़े के पीठ ही उनका घर करार पाई, एक बिजली थी या कोई चिंघाड़ !! जिस तरफ गिरती या कड़कता कुफ्र के अंधेरे छंटते ही जाते !!!

उनकी माजुली भी दरअसल हुकम ए रब्बी था, यरमूक शायद उनकी आखिरी जंगों में से थी, जंग ए यरमूक बहुत ये लोगों के लिए एक अज़ीम पैगाम रखती है के दीन ए इस्लाम में माजी को घसीट कर हाल और मुस्तकबिल पर नहीं थोपा जा सकता , आपको शायद हैरत हो के मदीना तय्यबा से हज़ारों कोस दूर लड़ी गई इस जंग में हज़रत अबू सूफियान अपनी बीवी हज़रत हिंदा के साथ शरीक थे, अबू सुफ्यान की आंखें उसी रूमी मुहिम के दौरान तीर लगने से शहीद हुई, जंग ए यरमूक के तीसरे या चौथे दिन जब मुस्लिम लश्कर पस्पाई पर मायल था तो मुजाहिदीन पस्पा होते होते खवातीन के खेमों तक पहुंच गए ,

फलक ने अजीब मंज़र देखा के एक औरत एक लकड़ी हाथ में लिए मुसलमान सिपाही को मारने दौड़ रही है और बा आवाज़ बुलंद डांट रही है के

"जब काफ़िर थे तो बहुत बहादुर बनते थे आज मुसलमान होकर बुजदिली दिखा रहे हो,"

उस औरत का नाम हिन्दा था और जिस सिपाही को वह गैरत दिला रही थीं उसे तारीख़ अबू सूफियान के नाम से जानती है, यरमूक में अबू जहल का पोता और बेटा इस्लाम के लिए शहीद हुआ,

मंज़र बदलता है !! एक बूढ़ा शख्स बिस्तर ए मर्ग पर बेचैनी से करवटें लेते रो रहा है, देख भाल पर लगी बेटी सवाल करती है,

" बाबा जान! क्या मौत का खौफ है ??"

बूढ़ा शख्स एक दम मुस्कुराने लगता है! नहीं बेटा , क्या तूने मेरे जिस्म पर कोई ऐसा मकाम देखा जहां ज़ख़्म का कोई निशान ना हो ??

" नहीं बाबा जान ! आपका तो पूरा बदन छलनी है" बेटी ने जवाब दिया ,

" मैं इस लिए रों रहा हूं के घोड़े की पीठ मेरा घर था और तलवार मेरा जेवर लेकिन मौत मेरी तरफ ऐसे बड़ रही है जैसे किसी बूढ़े ऊंट की तरफ बढ़ती है "

बाबा जान ! आप जानते हैं आपको सैफुल्लाह का लकब किसने दिया था ?? बेटी सवाल करती है,

बूढ़े की आंखों में चमक और ख़ुशी लौट आती है, उसके चेहरे से उदासी पल भर में बोरिया लपेटे रुखसत हो जाती है, हां जानता हूं बेटा!!

"तो किसकी मजाल के वह अल्लाह की तलवार को मैदान में तोड़ सके !! नबी ए करीम मुहम्मद सल्लाल्लहू अलैहि वसल्लम की खबर है, आपको ज़र करना नामुमकिन था" बेटी ने कहा

बिस्तर मर्ग पर पड़ा जरनल मुस्कुराते चेहरे पर दाइमी सुकून लिए आंखें मूंद लेता है,

बेटियां कितनी जहीन होती हैं !! कितना दूर तक देखती हैं, बेटियों के पास कैसे कैसे मरहम होते हैं के गहरे तरीन घाव भी पल भर में भर जाते हैं , ऐसा होता है जरनल

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com