और शर्मिंदगी तो तब होती है जब हम किसी शख्स को सोचते सोचते नमाज़ गलत पढ़ लेते हैं और चौथी रकत के बजाए दूसरी तीसरी रकत में सलाम फेर लेते हैं, सना के बाद सुरह पड़ना भूल जाते हैं, और उस सख्स को ज़्यादा से ज़्यादा वक्त देने के लिए , नमाज़ जल्दी पढ़ने लगते हैं,
और फिर ...
जब वही सख्स हमारे दिल के टुकड़े टुकड़े कर देता है, हमारी हर लम्हे की मुहब्बत, चाहत, इंतजार, आंसू, सबको धुत्कार कर आगे चला जाता है, फिर हम यकीन नहीं कर पाते , उसके पीछे भागते हैं, अपनी इज़्ज़त नफस को उसकी एक तवज्जोह के लिए उसके कदमों में निछावर कर देते हैं, और फिर ये ख्वाहिश करते हैं के वह हमारी इस मुहब्बत को अपने सर का ताज बना ले ,
लेकिन हम ये भूल जाते हैं के कदमों में डाली गई चीज़ सर का ताज नहीं पैरों की धूल बना करती है, जब वह सख्स हमें धोका देता है तो हम सीधा सजदे में जा गिरते हैं,
फिर हमारी ज़बान से माफी के लिए दुआ के अल्फ़ाज़ नहीं निकलते,
निकलते हैं तो बस सिर्फ दर्द भरी कराह, ज़ख्मी दिल का खून, आंसुओं की सूरत आंखों से बहने लगता है, सांस गले में कहीं आंसुओं के गोले के साथ अटक जाती है, उस लम्हे दिल चाहता है दुनिया यही रुक जाए, हर तरफ अंधेरा हो जाए, हमारा दम यहीं निकल जाए लेकिन ऐसा नहीं होता ,
यहां सिर्फ तकलीफ होती है, सिर्फ आंसू होते हैं, सिर्फ दर्द होता है, सिर्फ ग़म होता है, सिर्फ अंधेरा होता है, सिर्फ दिल पर लगी जरबें होती है,
हां यहां सिर्फ शर्मिंदगी होती है !!!
जानते हो सच क्या है ?? सच ये है के सच्ची मुहब्बत बस अल्लाह की है,
साभार : Umair Salafi Al Hindi
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