मर्द जब रोता है !!
मैंने कहीं सुना था के मर्द जब रोता है तो वो मगरमच्छ के आंसू होते है, लेकिन मुझे लगता है के मर्द जब रोता है तो वो कुर्ब की इंतेहा पर होता है, कुछ तो उसने ज़रूर खोया होगा जिसे उसने बहुत संभाल कर रखा होगा,
कोई तो ऐसा ख्वाब होगा जो उसकी आंखों से टूट कर बिखरा होगा ,
कोई तो ऐसा दुख होगा जो दिल के टुकड़े टुकड़े करके रूह तक को लहूलुहान कर गया होगा,
कौन कहता है मर्द को दर्द नहीं होता, मर्द मजबूर नहीं होता,
कसूर औरत का नहीं होता, कभी कभी मर्द की तबाही में औरत का ही हाथ होता है, मर्द भी इंसान होता है फरिश्ता नहीं !!
कभी दुख से तड़पते मर्द की सुर्ख अंगारों सी दहकती आंखों में ज़रूर झांकना, और देखना मर्द दुख में कितना तन्हा होता है,
साभार: Umair Salafi Al Hindi
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