अल्लाह हमेशा हमारा सेकंड ऑप्शन क्यूं होता है !!
हम अल्लाह से तब रूजू करते हैं जब दुनिया हमें रद कर चुकी होती है, तमाम दरवाजों से धुत्कारे जाने के बाद हम अल्लाह के दर पर दस्तक देते हैं, अल्लाह हमेशा हमारा सेकंड ऑप्शन क्यूं होता है ??
हमारी अव्वलीन तरजीह हमेशा दुनिया ही क्यूं होती है ??
और हैरत की बात है कि हमें इस बात पर शर्मिंदगी ही नहीं होती, हमें लगता है के तरबियत के रद्दोबदल से कोई फर्क नहीं पड़ता , ये कितनी बड़ी भूल है, तरबियत ही तो असल उसूल है,
कौन पहले आता है, कौन बाद में , जब ये बुनियादी उसूल ही नजरअंदाज कर दिया तो आप अल्लाह के लिए कैसे ज़रूरी होंगे ??
Umair Salafi Al Hindi