Thursday, May 13, 2021

मायूसकुन बातें बिल्कुल नहीं करनी चाहिए

 



मायूसकुन बातें बिल्कुल नहीं करनी चाहिए , कुछ लोगों को लगता है के मुसलमानों में बहादुरी की कमी है, किसान ने आज जैसा उधम मचाया है राजधानी में , मुसलमान कभी क्यूं नहीं करते ??


तो जनाब बात सुनिए ! मुसलमान के पास भी हिम्मत वा हौसला की कमी नहीं है वह भी जिगरा रखता है, लेकिन मुसलमानों के आंदोलन और किसानों के आंदोलन में फर्क ये है के किसान आंदोलन कर रहा है तो वह किसान है ( अगरचे उन्हें खालिस्तान से जोड़ने की कोशिश की गई लेकिन मीडिया नाकाम रही ), लेकिन मुसलमान आंदोलन करता है तो एक मिनट में उसे मजहबी रंग दे दिया जाता है,
मुसलमान के पास उनसे ज़्यादा जिगरा है,

उन्हें पता है के हम पर गोली नहीं चलेगी तब उन्होनें ये उधम मचाया है, और मुसलमान को पता होता है के सीधे हमारे सीने पर गोलियां चलाई जाएंगी, इसके बावजूद वह सड़कों पर उतरता है,

उनकी झड़प सिर्फ पुलिस वालों के साथ है, जबकि मुसलमानों के आंदोलन को क्यूंकि मजहबी रंग दे दिया जाता है इस लिए वो एक वक्त पुलिस की भी झड़प झेलते हैं और हिन्दू भगवा परस्तों से भी टक्कर लेते हैं, ये ज़्यादा जिगर वाला काम है,

दिल्ली दंगे में जाफराबाद ,सीलमपुर, मुस्तफाबाद, में हमने देखा के मुसलमानों को दोनों महाजों पर मोर्चा संभालना पड़ा ,

दंगाइयों से भी टक्कर ली और पुलिस (जोकि एक किस्म की दंगाई है ) से भी खुद की हिफाज़त की, ऐसे ऐसे लोग जिन्हें बेदीन कहा जाता था , बेवड़े टाइप के लोग , उन्होंने तीन तीन रात जाग कर जाफराबाद के बॉर्डर पर मोर्चा संभाला था , होम मिनिस्ट्री ने तीन दिन में दंगे पर कंट्रोल कर लिया वरना इन दंगाइयों का इरादा लंबा था ,

मुसलमानों ने जान, माल, कारोबार, खोया बहुत कुछ लेकिन आगे के लिए ये एहसास दिला दिया के दिल्ली में जमुनापार के इलाकों में दंगा करने से पहले उन दंगाइयों को अपनी जान भी हथेली पर रखनी पड़ेगी,

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