Friday, July 31, 2020

KYA HAJJ KA TARQ QAYAMAT KI NISHANI HAI





हज का तर्क कयामत की निशानी है, इस हदीस को दूसरी हदीस की रोशनी में देखना चाहिए

हज़रत अबू सईद खुद्री की इसी हदीस की शुरुआत में ये अल्फ़ाज़ है. "ليحجن البيت وليعتمرن بعد خروج يأجوج ومأجوج " के याजूज वा माजूज के बाद भी हज्ज वा उमराह जारी रहेगा,गोया ये मुतलक नहीं है बल्कि बिल्कुल आखिरी ज़माने की बात है

फिर इसी बाब में इसी हदीस से पहले इमाम बुखारी ने हज़रत अबू हुरैरा की हदीस ज़िक्र की है
يخرب الكعبة ذو السويقتين من الحبشة. البخاری رقم الحدیث: 1591۔

और हब्शा का जुल्सुविकितीन नामी शख्स खाना काबा को गिरा देगा,

मतलब करीब कयामत में काबा मुन्हदम कर दिया जाएगा फिर हज़्ज वा तवाफ बंद हो जाएगा, इसी लिए हाफ़िज़ इब्न हज़र रहमतुल्लाह ने सुरः माईदा आयात 97 से इस्तादलाल किया है की

" काबा की बका कयामत आने की दलील है "
مادامت موجودة فالدين قائم. الفتح 3/ 574۔

नोट : किसी एक टुकड़े को लेकर फैसला नहीं किया जाता है बल्कि मसले से मुतालिक तमाम शराई नुसूस को देखने के बाद ही हुकम लगाया जाता है वरना लोग कुछ का कुछ समझ बैठते हैं

Thursday, July 30, 2020

FITNA E DAJJAL KA MATLAB (PART I)





फितना ए दज्जाल से क्या मतलब है ?? (किश्त 1)

अरबी ज़बान में दज्जाल के मतलब होते हैं फरेब के किसी शय्य (Element) को हकीकत में कोई और पर्दा डाल देना, इससे लफ्ज़ ए दज्जाल बना है यानी बहुत बड़ा धोखेबाज, जब ये किसी इंसान के लिए इस्तेमाल होगा तब उसके माने होंगे बहरूपिए के,

ये लफ्ज़ क़ुरआन मजीद में कहीं नहीं आया, ना फित्ना ए दज्जाल का आया है, हा हदीस में फित्न ए दज्जाल का ज़िक्र बहुत बार आया है, उसके आने का , उसकी खूबियों का, उसके हालात का, खास तौर पर नबी ए करीम मुहम्मद सल्ललाहो अलैहि वसल्लम की हिदायत है

" जब इंसान सुरह कहाफ पड़ता रहेगा वो फितन ए दज्जाल से महफूज़ रहेगा " ( मुस्लिम)
" जो इंसान सुरह कहाफ की शुरूआती आयात पढ़ता रहेगा वो फित्न ए दज्जाल से महफूज़ रहेगा " (अबू दाऊद)
" जो इंसान सुरह कहाफ की आखिरी आयात पड़ता रहेगा वो फित्न ए दज्जाल से महफूज़ रहेगा " (सुनं निसाई)

मुहम्मद सल्लालाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:- " के सुरह कहाफ इंसान को फित्न ए दज्जाल से महफूज़ रखने में मुफीद है"

क़ुरआन की रोशनी में जब हम देखते हैं तब हमें पता चलता है सबसे बड़ा द्जाल ये दुनिया और दुनिया की ज़िन्दगी है, इसलिए के इस दुनिया ने आखिरत (Day Of Judgement) में पर्दा डाल दिया है,

"क़ुरआन बार बार कहता है कि ये दुनिया का सामान सिवाए धोके के कुछ और कुछ नहीं " (क़ुरआन)

जिस इंसान ने अपनी पूरी महनत, ताकत, दुनिया में लगा दी और आखिरत से गाफिल रहा वो समझो के दज्जाल के फित्ने में गिरफ्तार हो गया, और उसके लिए दुनिया अज़ाब ए इलाही की वजह बन गई,

खास तौर पर दुनिया की चमक बढ़ती जा रही है, दुनिया में जितना मटेरियल चमक दमक है, नजर को लुभाने वाली चमक है, ये चमक जितनी बढ़ेगी दज्जलियत उतनी ही बढ़ती चली जाएगी

काफ़िर जो हकीकत में काफ़िर हैं चाहे नाम उसका मुस्लिम हो ,उसकी पहचान ये है कि उसकी सारी मेहनत, कोशिश, दुनिया के लिए है, दुनिया का आराम हासिल करने के लिए है

ये ही वजह है कि जब हम सुराए कहाफ़ पर गौर करते है, और हमारे नबी ने भी सुरह कहाफ की शुरुआती और आख़िरी आयात पड़ने को कहा है,

" और जो चीज़ ज़मीन पर है उसको हमने उसके लिए ज़ीनत (शोभा) बनाया है ताकि लोगों को आजमाएं की उनमें से बेहतर अमल करने वाला कौन है, और जो कुछ उस ज़मीन पर है उसे तो हम एक चटियल मैदान बना देने वाले हैं " (सुराह कहाफ 7-8)

यानी दुनिया की सजावट, चमक दमक, आज जो मगरिब में अपने चरम पर पहुंच चुका है, आप अंदाजा कीजिए वहां ज़िन्दगी कितनी दिलकश है कितनी चमक दमक है, इस क़दर वह ऊंची ऊंची इमारतें है, आदमी सब भूल जाता है
फ़रमाया

" ताकि हम आजमाएं कौन अच्छे अमल करता है," किया तुम दुनिया ही के अंदर गुम हो जाते हो, मगन हो जाते हो और हमें भूल जाते हो ? दुनिया से मुहब्बत करते हो ? बस ये इम्तेहान का एक पीरियड है, और इस पीरियड में ही इंसान की कामयाबी और नाकामयाबी है, दुनिया में रहते हुए दुनिया से दिल ना लगाना, दुनिया से मुहब्बत ना करना, इसे सिर्फ ज़िन्दगी गुजारने का जरिया समझना, असल महबूब, मकसूद अल्लाह हो जाए, आखिर त की ज़िन्दगी असल मकसूद हो

फिर फ़रमाया:

" आज तुम इस ज़मीन पर को देख रहे हो कल हम इसे चटियल मैदान बना देंगे " जैसे कोई फसल काट दी जाए

सूरह कहाफ आयत 8

फिर अल्लाह आगे फरमाता है:-" ए नबी, इनसे कहिए क्या हम तुमको बताएं के अपने अमल के ऐतबार से, अपनी मेहनत के ऐतबार से, अपनी कोशिश के ऐतबार से सबसे ज़्यादा धोखे में कौन है ? जिनकी भाग दौड़, महनत दुनिया ही की ज़िन्दगी में गुम हो कर रह जाए ? कह दीजिए, क्या हम तुम्हे उनकी खबर दें, जो अपने अमालों के लिहाज से सबसे बढ़कर नुकसान उठाने वाले हैं?

ये वो लोग है जिनकी पूरी कोशिश दुनिया ही की ज़िन्दगी में बर्बाद हो कर रही, और वह अपने आपको यही समझते रहे की वह अच्छे काम कर रहें हैं"

( सुरह कहाफ 103-104)

लेकिन इंसान ये समझ रहा है कि मैंने बहुत कामयाबी पा ली, मैंने फला फैक्ट्री बना ली, मेरी पूंजी पहले से बहुत ज़्यादा हो गई ?

और इंसान से सोचे कि ये सारी हमारी कामयाबी है, हालाकि असल ऐतबार से, आखिर त के ऐतबार से ये वो लोग है जो अपनी मेहनत के ऐतबार से सबसे ज़्यादा धोखे में है,

क़ुरआन मजीद के मुताबिक ये दुनिया और उसकी चमक दमक सबसे बड़ा दज्जाल है, इंसानी जिंदगी का असल दज्जाल ये दुनिया है, हमारा असल घर ये दुनिया नहीं है, जब इंसान इस दुनिया में ही गुम हो जाए और वह भूल जाए के " हम सब अल्लाह के है और उसकी तरफ वापस पलट कर जाने वाले हैं "
( सूरः बकरा आयत 156)

जब इंसान दुनिया का आशिक़ हो जाए तब दुनिया दज्जाल बन जाती है, दुनिया दार उल इम्तेहान है...
जारी.....

Wednesday, July 29, 2020

JAMHOORIYAT ( REAL FACE OF DEMOCRACY)







अगर लोगों को लगता है कि हमने 1947 में आजादी पा ली तो ऐसे लोग सिर्फ गुमान में जी रहें हैं, दरअसल वो आजादी नहीं एक गुलामी से दूसरी गुलामी की तरफ पलायन था,

और वो गुलामी थी लोकतंत्र की गुलामी जिसे यहूदियों लाबी कंट्रोल करती है, 1947 से पहले भारत एक सुपर पॉवर था अमेरिकन डॉलर भारतीय रुपया से बहुत कमजोर था, अरब मुल्क दरिद्रता में जी रहे थे, दुबई, यूएई बंजर रेगिस्तान के इलावा कुछ नहीं था,

फिर ऐसा क्या हुआ कि इन 70 सालों में भारत जैसा सुपर पॉवर देश भीकारी बन गया, आज वर्ल्ड बैंक के कर्जों का मोहताज है, बात बात पर वर्ल्ड बैंक से पैकेज मांगता रहता है,

क्या आपको पता है वर्ल्ड बैंक जो कर्ज देता है उस पर मोटा ब्याज यानी सूद वसूलता है, और इस ब्याज की वसूली सरकार जनता पर कर लगाकर करती है, यही वजह है कि भारत जैसा सुपर पॉवर देश आज बिखारी मुल्कों में आ चुका है,

हकीकत यही है लोकतंत्र, ग्रेट ब्रिटेन के पतन के बाद जिन जिन मुल्कों ने लोकतंत्र को अपनाया वो बिखरी होते चले गए, और जिन्होने इसे ठुकराया वो कामयाब होते चले गए, ब्रिटेन में आज भी बड़े फैसलों में महारानी से मशवरा होता है,

दरअसल लोकतंत्र को चलाने के लिए खून और पैसा चाहिए ,कंगाल विपक्ष यहूदी लाबी से पैसा लेता है और चुनाव लड़ता है, जब वो जीत जाता है तो यहूदी लाबी को सूद समेत वो कर्ज चुकाता है,

दूसरी जगह है पेपर करंसी जिसे पूरा यहूदी लाबी कंट्रोल करती है, पेपर करंसी को छपने के एवज में 35% मूल्य का गोल्ड भारत को गिरवी रखना पड़ता है, और उसके बदले में कागज के टुकड़े छापने की अनुमति मिलना ये एक आर्थिक गुलामी है,

उदाहरण के तौर पर समझिए अगर यहूदी लाबी चाहे तो किसी भी देश को चुटकियों में प्रतिबंध लगा कर बर्बाद कर सकती है फिर आपके ये कागज के टुकड़े सिर्फ हवा खाने के लिए ही रह जाएंगे,
मौजूदा सूरत ए हाल को देखते हुए यही बेहतर है कि भारत को 100-100 साल के लिए कांग्रेस और बीजेपी को लीज ले लेना चाहिए,

Tuesday, July 28, 2020

EK SE ZYADA SHADIYAN (MONOGAMY TO POLYGAMY)





एक से ज़्यादा शादियां (From Monogamy To Polygamy)

एक औरत का दर्द भरा खत पढ़ें और अपनी राय दें,

" लाख बार सोचा के ये खत लिखूं या ना लिखूं क्यूंकि मुझे डर है कि मेरी ये बातें कुछ औरतें पसंद ना करें बल्कि शायद वो मुझे पागल समझें लेकिन फिर भी जो मुझे हक सच लगा बाकायदा होश ओ हवाश में लिख रही हूं, मेरी इन बातों को शायद वह औरतें अच्छी तरह समझ पाएंगी जो मेरी तरह कुंवारी घरों में बैठी बैठी बुढापे की सरहदों को छू रही हैं

बहरहाल मै अपना मुख्तसर किस्सा लिखती हूं शायद मेरा ये दर्द दिल किसी बहिन कि ज़िन्दगी संवारने का जरिया बन जाए और मुझे उसकी बरकत से उम्महातुल मोमिनीन की पड़ोस में जन्नत उल फ़िरदौस में ठिकाना मिल जाए,

मेरी उमर 20 साल हो गई तो में भी आम लड़कियों किं तरह अपनी शादी के सुहाने सपने देखा करती और सुहाने सुहाने खयालात की दुनिया मगन रहती के मेरा शौहर ऐसा ऐसा होगा, हम मिल जुल कर ऐसे रहेंगे, हमारे बच्चे होंगे और हम उनकी ऐसी ऐसी अच्छी परवरिश करेंगे वगेरह वगेरह

और में उन लड़कियों में से थी जो ज़्यादा शादियां करने वाले मर्द को ना पसंद करती हैं और अल्लाह ताला के इस हुकम की शदीद मुखालिफत करती हैं क्यूंकि मैं इसे ज़ुल्म समझती थी, अगर मुझे किसी मर्द के बारे में पता चलता के वह दूसरी शादी करना चाहता है तो में उनकी इतनी मुखालिफत करती के उसकी नानी याद आ जाती और मैं उसे बेतहाशा बद्दुआएं देने लगती और इस सिलसिले में मेरी अपने भईयों और चाचाओं से भी अक्सर बहेस रहती वह मुझे ज़्यादा शादियों की अहमियत के बारे में बताते, क़ुरआन वा हदीस की रोशनी में और मौजूदा दौर के हालात के ऐतबार से समझाने की बहुत कोशिश करते मगर मुझे कुछ समझ ना आती बल्कि में उन्हें भी चुप करवा देती,

इस तरह दिन, हफ्ते, महीने, साल गुजरते गए मेरी उमर 30 साल से ज़्यादा होने लगी और इंतजार करते करते मेरे सर पर चांदी चमकने लगी लेकिन मेरे ख्वाबों का शहजादा ना आया !!!

या अल्लाह! में क्या करूं? जी चाहता है घर से बाहर निकल कर आवाज़ें लगाऊं की मुझे शौहर की तलाश है,

जवानी की शुरुआत से लेकर अब तक मैंने नफस वा शैतान का किस तरह मुकाबला किया इस बेहूदगी और बेहयाई के माहौल में कैसे बचती रही मैं उसे सिर्फ अल्लाह का फजल और मां बाप की दुवाएं ही समझती हूं वरना......

अगर्चे घर वाले भाई वगेरह सब मेरी ज़रूरियात का खयाल रखते, हर तरह की दिल जोई करते, मेरे साथ हस्ते खेलते मजबूरन मुझे भी उनके साथ हसी मज़ाक में शरीक होना पड़ता लेकिन मेरी वह हसी खोखली होती,

मुझे वह हदीस याद आती जिसका मतलब कुछ यूं है के बैगैर शादी के औरत हो या मर्द, मिस्कीन होते हैं और वक़ाई मैं नेमतों भरे घर में मिसकीन थी,

खुशी या घमी की तकरीब में रिश्तेदार अज़ीज़ ओ अकारीब जमा होते तो जी चाहता के उनको चीख चीख कर बताऊं के मुझे शौहर चाहिए लेकिन फिर सोचती के लोग क्या कहेंगे के ये कैसी बेशर्म लड़की है, बस खामोशी और सब्र के सिवा कुछ भी चारा नहीं था,

जब में अपनी हम जोलियों और सहेलियों के बारे में सोचती के वह तो अपने घरों में अपने शौहरों और बच्चों के साथ खुश ओ खुर्रम ज़िन्दगी बसर कर रहीं हैं तो मुझे अपनी इस खिलाफ ए फितरत ज़िन्दगी पर घुस्सा आता,

घर की महफिलों में सब के साथ मिलकर खुश तो थी लेकिन मेरा दिल खून के आंसू तो रहा था, लड़के तो फिर भी अपनी शादी को जरूरत का एहसास घर वालों को दिला सकते हैं लेकिन लड़कियां अपनी फितरत शर्म ओ हया में ही घुटी दबी रहती हैं,

वह तो अल्लाह का शुक्र है के मेरे बड़े भाई की शादी एक आलिमा लड़की से हो गई जो मशा अल्लाह दीनी और दुनियावी उलूम के साथ साथ तकवा , पाकीज़गी, और दीगर सिफात हसना से मुतसफ थी,

शादी के चंद दिन बाद ही मदरसा लिल बनात शुरू कर दिया गया मैं भी बी ए के बाद फारिग थी, तो मैंने भी अपनी प्यारी भाभी के हुस्न ए सुलूक से मुतासिर होकर सबसे पहले दाखिला ले लिया, उनकी तरगीबी बातें सुनकर मेरा कुछ ध्यान बटा और तसल्ली हुई और मदरसे की पढ़ाई के साथ उन्होंने कुछ मस्नून दुआएं और अस्कार भी बताए जिसको पढ़ने से दिल को सुकून महसूस हुआ, वह तो मेरे लिए रहमत का कोई फरिश्ता ही साबित हुई

अगर वह ना होती तो ना जाने में किन गुनाहों के दलदल में धंस चुकी होती या खुद कुसी की हराम मौत मर कर जहन्नुम की किसी वादी में दर्दनाक अजाब सह रही होती,

एक दिन मेरे बड़े भाई घर आए और बताया के आज आपके रिश्ते के लिए कोई सहाब आए थे लेकिन मैंने इनकार कर दिया,

मैंने चीखते हुए कहा आखिर क्यूं ??

कहने लगे वह तो पहले ही शादी शुदा था और मुझे आपका पता था के आप कभी भी दूसरे शादी वाले मर्द को क़ुबूल नहीं करेंगी, आप तो दूसरी शादी करने वाले के शख्त खिलाफ है ,

मैंने कहा नहीं भाई नहीं ! अब वह बात नही !

जबसे मैंने भाभी जान के पास क़ुरआन वा हदीस का इल्म हासिल करना शुरू किया है, सीरत नबवी पढ़ी है तो क़ुरआन वा हदीस के नूर से मेरे दिमाग़ की गिरहैं खुलना शुरू हुईं और मुझे अल्लाह ताला के इस हुकम की हिकमतें समझ आने लगीं,

अब तो में किसी मर्द की दूसरी तो क्या तीसरी और चौथी बीवी बनने के लिए भी खामोशी से तैयार हूं..

और मैंने जो अब तक अल्लाह ताला के इस हुकम की मुखालिफत की उस पर में इस्तघाफर करती हूं

अल्लाह की कसम !

जब तक ज़्यादा शादियों करने वाला अल्लाह का हुक्म हुज़ूर सल्लालहो अलैहि वसललम और सहाबा किराम के दौर की तरह आम ना होगा निकाह आसान हो ही नहीं सकता,

जिस मर्द ने ज़िन्दगी भर एक ही शादी करने का फैसला और अज़म बना रखा है वह कभी तलाक़ शुदा, बेवा, गरीब, मिस्कीं या किसी भी ऐतबार से किसी कमी का शिकार लड़की से शादी नहीं करेगा,

एक दिन क़ुरआन पाक को तिलावत करते हुए ये आयात नजर से गुजरी

ذٰلِکَ بِاَنَّهُمْ کَرِهوْا مَا اَنْزَلَ اللّٰہُ فَاَحْبَطَ اَعْمَالَهُمْ ...

" ये ( हलाकत) इस लिए के वह लोग अल्लाह ताला के नाजिल करदह एहकामात से नाखुश हुए पस अल्लाह ताला ने भी उनके अमाल बर्बाद कर दिए "

इस पर तो मेरे रोंगटे ही खड़े हो गए मैंने तो अल्लाह ताला के इस हुकम को ना सिर्फ ना पसंद समझा बल्कि उसकी शदीद मुखालिफत करती थी,

अल्लाह ताला मुझे माफ़ फरमाए मैं इस खत के जरिए से मर्द हजरात तक ये पैग़ाम पहुंचाना चाहती हूं के अगर इंसाफ करने की नीयत और ताकत हो तो आप जरूर अल्लाह ताला के इस हुकम को ज़िंदा कीजिए,

दो, तीन, और चार शादियां को फरोग दीजिए और दुखी दिलों की दुआएं लीजिए, बाक़ी जो औरत आएंगी अपना नसीब साथ लाएगी और उससे जो औलाद होगी वो भी अपना नसीब साथ लाएगी,

राज़िक तो सिर्फ एक अल्लाह है और उसी अल्लाह ने क़ुरआन में शादियों की बरकत से घनी करने का वादा किया है, और नबी ए करीम सल्लाल्लहो अलैहि वसल्लम ने भी तंग दस्ती दूर करने का ये भी नुस्खा बताया है,

इस मौजु पर एक मिसाल ज़ेहन में आईं के एक बार हुकूमत ने फौजियों को डूबते हुए लोगों को बचाने की ऐसी ट्रेनिंग दी के हर फौजी एक वक़्त चार चार डूबते को बचा सके, !

अचानक ज़ोर दार सैलाब आ गया बेशुमार लोग सैलाब की जद में आकर डूबने लगे, हुकूमत ने फौरी एक्शन लेते हुए फौज को भेजा के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को बचाएं अब ये फौजी जो उन पानी में कूद कर बजाए चार चार आदमी को निकालने लगे,

अगर सिर्फ एक एक को निकाल पर इक्तेफा करें और बाक़ी चीखते चिल्लाते रहें बचाओ बचाओ, हमें भी बचाओ और वह बेचारों की सुनी अन सुनी कर दें और उन्हें आसानी से डूबने और मरने दें,

तो आप उन्हें क्या कहेंगे ?
हुकूमत उन्हें क्या कहेगी?
क्या हुकूमत उन्हें शाबाशी देगी ?

या दूसरी सूरत:

अगर किसी रहेम दिल फौजी को उन पर तरस आ जाए और वह किसी और डूबते को बचाने लगे तो पहले जो चिमटा हुआ है वह कहे के खबरदार अगर किसी और कि तरफ हाथ भी बढ़ाया बस मुझे ही बचाओ बाक़ी डूबते मरते रहें उनकी तरफ देखो भी मत, !

अब इसे क्या कहा जाएगा ?

कहीं इस मामले में हमारे यहां भी कुछ ऐसा नहीं ही रहा है !!!

قال الله تعالیٰ:

فَانْکِحُوْا مَا طَابَ لَکُمْ مِّنَ النِّسَآء مَثْنٰی وَ ثُلٰثَ وَ رُبٰعَ فَاِنْ خِفْتُمْ اَلَّا تَعْدِلُوْا فَوَاحِدَۃً اَوْ مَا مَلَکَتْ اَیْمَانُکُمْ....
(سورة النسا- آیت نمبر 3)

क़ुरआन करीम में ज़्यादा शादियों वाली इस आयात में बिल्कुल यही साफ नजर आ रहा है के असल हुकम तो ज़्यादा शादियों का है मजबूरन एक पर इकतेफा करना जायज है,

मसलन अगर आप अपने मुलाजिम को भेजें के जाओ गोश्त लाओ, हा अगर गोश्त ना मिले तो दाल ले आना, यानी असल हुकम तो गोश्त का ही है, मजबूरन दाल है,

इसकी दलील हुज़ूर सल्लालाहो अलैहि वसल्लम, खुलेफा ए राशिदीन और अक्सर सहाबा किराम का अमल है, इन मेसे कोई एक भी हमारे मर्दों की तरह एक वाला नहीं सब के सब ज़्यादा शादियों वाले हैं,

अगर आप अपना दीनी और दुनियावी मसरू फियत का बहाना बनाएं तो भी सहाबा कि जिंदगियों को देखें वह आपसे ज़्यादा दीनी और दुनियावी मसरू फियत वाले आदमी थे, लेकिन फिर भी उन्होंने अल्लाह ताला के इस फरमान ए आलीशान की मंशा को समझते हुए एक से ज़्यादा निकाह किए,

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर कुछ अरब औरतें प्ले कार्ड उठाए बाकायदा जुलूस की शक्ल में निकल कर मर्दों को झिंझोड़ते हुए कहा रही थी:

تزوجوا مثنی وثلاث ورباع ان کنتم رجالا ....

के ए मर्दों ! अगर तुम वाक़ई मर्द हो तो दो दो, तीन तीन, चार चार शादियां करो और बे शुमार बेनिकाही औरतों के लिए हलाल का रास्ता आसान करो,

ज़रूरी नहीं के आपकी पहली बीवी मे कोई ऐब या कमी हो तो ही आप ये कदम उठाए , इसके बेधैर भी आप रसूल अल्लाह सल्लालाहो अलैहि वसल्लम की इत्तेबा में ये अमल कर सकते है ,

हज़रत आयशा हर लिहाज से बेहतर थी फिर आपने इतने निकाह फरमाए,

और चंद बातें में उन मुसलमान बहेनो से करना चाहती हूं जिनको अल्लाह ताला ने शौहर से नवाजा है वह अल्लाह का शुक्र अदा करें के वह मुझ जैसी करोड़ों बे निकाह मीस्कीन औरतों में से नहीं है,

आपको शायद अंदाजा ही नहीं के बे निकाह रहने म कैसी कैसी मशक्कत से गुजरना पड़ता है, ठीक है आप पर भी कुछ ना कुछ मशककतें आती रहती हैं उन पर तो इंशा अल्लाह आपको अजर मिलेगा लेकिन ये खिलाफ ए फितरत बे निकाह रहना इंतेहाई खतरनाक है,

मेरी आपसे गुज़ारिश है के अगर आपके शौहर इस मुबारक सुन्नत को ज़िंदा करना चाहते हैं जिसे लोग मेरी तरह अपनी जिहालत और नादानी की वजह से गुनाह समझते हैं तो बराए महेरबनी उनके लिए हरगिज़ हरगिज़ रुकावट ना बनें,

हज़रत आयशा राजियलः को पता चल जाता था ये जो औरत हुज़ूर की खिदमत में हाज़िर हो रही है उससे आप निकाह कर सकते हैं, लेकिन वह तो कभी भी रुकावट नहीं बनी और फिर आप उन औरत से निकाह कर भी लेते,

आप भी हज़रत आयशा (राजि) के नक्स ए क़दम पर चलते हुए अगर रुकावट नहीं बनेंगी तो अल्लाह ताला उनके साथ आपका हसर फरमाएंगे,

अल्लाह से डरिए, अल्लाह से डरिए , अल्लाह से डरिए,

अल्लाह के हुकम को पूरा करने में अपने शौहर की मुआविन बनिए और करोड़ों औरतों में से अपनी ताकत के बाक़द्र कुछ तो कमी करने का जरिए बनें,

इस हुकम को बुरा समझने वाली मेरी बहनों !

खुदा ना खवस्ता अगर आपका शौहर अल्लाह को प्यारा हो जाए और आप जवानी में बेवा हो जाएं और आपसे कोई कुंवारा मर्द शादी करने को तैयार ना हो तो फिर आप पर क्या बीतेगी,

ज़रा सोचिए !

हदीस की रू से हम उस वक़्त तक मोमिन नहीं हो सकते जब तक जो अपने लिए पसंद करते हैं वो ही दूसरों के लिए ना पसंद करने लगें,

लिहाज़ा जैसे आपको अपने शौहर और बच्चों के साथ रहना पसंद है उसी तरह आप दीगर खवातीन के लिए भी ये ही पसंद कीजिए और अगर इस सिलसिले में आपको कोई कुर्बानी देना पड़े तो अल्लाह की रजा के लिए क़ुबूल कीजिए और फिर अल्लाह ताला के खजानों से दुनिया वा आखिरत की खुशियां हासिल कीजिए,

मेरी प्यारी बहनों !

ये दुनिया फानी और आरजी है और दार उल इम्तेहान है, आखिरत बाक़ी और हमेशा हमेशा के लिए दार उल इनाम है, इस इसार और कुर्बानी पर आखिरत में जो अल्लाह ताला इनाम से नवाजेंगे आप उनका अंदाजा ही नहीं लगा सकतीं,

अल्लाह ताला के दीदार की एक झलक आपको इस सिलसिले में आने वाली तमाम मुश्किलात, मशक्कत, और तकलीफों को भुला देगी,

मेरी दिल से दुआ है के अल्लाह करे के मेरी किसी बहिन को अल्लाह के इस हुकम को पूरा करने और फरोग़ देने पर कभी भी कोई तकलीफ़ ना आए बल्कि राहत ही मिलती रहे,

अल्लाह ताला तो अपने बंदों से एक मां से भी सत्तर गुना ज़्यादा मुहब्बत करते हैं, अल्लाह ताला के हर हर हुकम में उसकी तरफ से रहमतें और बरकतें मिलती रहेंगी, नबी ए करीम मुहम्मद साल्लालाहो अलैहि वसल्लम भी रह्मतुल लिल आलमीन है वह कभी भी हमें ऐसा हुकम सादिर नहीं फर्मा सकते जो ज़र्रा बराबर भी हमारे लिए मुश्किल और परेशानी का बास हो,

अल्लाह ताला हमारा हामी और नासिर हो, और अल्लाह ताला मेरी जैसी तमाम बहनों को खैर के रिश्ते अता फरमाए,

एक किताब में ज़्यादा शादियां करने के फजायेल और फायदे पढ़े वह भी आपकी खिदमत में पेश कर दूं,

1- एक से ज़्यादा शादियां करने पर नबी ए करीम मुहम्मद सल्लल्लहो अलैहि वसल्लम की कसरत ए उम्मत वाली चाहत पूरी होगी,

2- ज़्यादा बीवीओं के मिलकर रहने में दीन की महनत करना आसान हो सकता है,

3- सौकन बनकर रहने से अस्वाज ए मुताहहरात वा सहबियात की मुशाबेहत और उसकी बरकत से जन्नत में उनकी रिफाकत हमेशा हमेशा के लिए मिल सकती है, अगर इसकी वजह से खुदा ना खवास्ता कुछ परेशानी दुनिया में आ भी गई तो आखिरत की हमेशा हमेशा की ला महदुद ज़िन्दगी में अस्वाज़ ए मुतहहरात के पड़ोस वाली जन्नत की एक झलक सारी दुखों को भुला सकती है,

4- इस हलाल रिश्ते के बंद होने की वजह से बेशुमार मर्द हराम और गलत रास्तों से अपनी ख्वाहिश पूरी करने पर मजबूर है तो जब मर्दों को निकाह करके हलाल तरीके से अपनी ख्वाहिश पूरी करने पर हदीस पाक की रू से सदके का सवाल मिलेगा तो उसमे पहली बीवी जो बखुशी इजाज़त देती है उसको भी पूरा पूरा सवाब मिलेगा,

5- मेरी नौजवान लड़कियों और लड़कों के मां बाप से पुर असरार और दर्द मंदाना गुजारिश है के मेरे इस दर्द भरे खत को अपने बेटे या बेटी की तरफ से समझिए,

अल्लाह के लिए तमाम रस्म ओ रिवाज जो खुद साखता है शरीयत में जिनका कोई सबूत नहीं, अक्सर रस्म ओ रिवाज तो गैर मुस्लिम से लिए गए हैं, उन सब से तौबा कीजिए, शादी को आसान बना कर उनकी बरकात मुलाहिजा कीजिए,

ये तो नबी ए करीम मुहम्मद साहब का फरमान है, जिसका मतलब ये है के

" बा बरकत है वो निकाह जिसमें खर्च कम हो"

चुनंचे लड़की वाले लड़के वालों में लिए और लड़के वाले लड़की वालों के लिए आसानी पैदा करें ताकि निकाह में कम से कम खर्च हो,

अल्लाह पर भरोसा कीजिए और देखिए के अल्लाह ताला कैसे अपना वादा पूरा करते हुए आपके लिए काफी हो जाएगा,

ومن یتوکل علی الله فھوحسبه
अस्सलाम अलैकुम

आपकी गुमनाम बहिन

ट्रांसलेटर: UmairSalafiAlHindi

Monday, July 27, 2020

SCIENCE HAMEN KAHAN SE KAHAN LE AAYA




साइंस हमें कहां से कहां ले आयी है !!!!

पहले वो कुवें का मैला और गदला पानी पी कर 100 साल जी लेते थे,
अब RO और पुरिफायर का साफ पानी पी कर भी 40 साल में बूढ़े हो रहें हैं,

पहले वह घानी का मैला तेल खा कर और सर पर लगा कर बुढापे में भी महनत कर लेते थे,
अब डबल फिल्टर और जदीद प्लांट पर तैयार कुकिंग ऑयल और घी में पका खाना खा कर जवानी में ही हाफ रहे हैं,

पहले वह देले वाला नमक खा कर बीमार ना पड़ते थे,
अब हम आयोडीन वाला नमक खा कर हाई और लो ब्लड प्रेशर का शिकार हैं,

पहले वह नीम, बबूल, कोयला और नमक से दांत चमकाते थे और 80 साल की उम्र तक भी चबा चबा कर खाते थे,
अब कोलगेट और डॉक्टर टूथ पेस्ट वाले रोज़ डेंटिस्ट के चक्कर लगाते हैं,

पहले सिर्फ रूखी सूखी रोटी खा कर फिट रहते थे,
अब बर्गर, चिकन कड़ाही, विटामिन और फूड सप्लीमेंट खा कर भी कदम नहीं उठाया जाता,

पहले लोग पड़ना लिखना काम जानते थे मगर जाहिल नहीं थे,
अब मास्टर लेवल हो कर भी जिहालत की इंतेहा पर है,

पहले हकीम नब्ज़ पकड़ कर बीमारी बता देते थे,
अब स्पेशलिस्ट सारी जांच कराने पर भी बीमारी नहीं जान पाते हैं,

पहले वह 7-8 बच्चे पैदा करने वाली माएं, जिन्हें। शायद ही डॉक्टर मयस्सर आता था 80 साल की होने पर भी खेतों में काम करती थी,
अब डॉक्टर को देख भाल में रहते हुए भी ना वह हिम्मत ना वा ताकत रही,

पहले वह काले पीले गुड की मिठाइयां ठूस ठूस कर खाते थे,
अब मिठाई की बात करने से पहले ही सुगर की बीमारी हो जाती है,

पहले बुजुर्गों के कभी घुटने नहीं दुखते थे,
अब जवान भी कमर दर्द और घुटनों के दर्द से परेशान है,

पहले 100 वॉट के बल्ब सारी रात जलाते और 200 वाट का टी वी चला कर भी बिल 200 रुपया महीना आता,
अब 5 वाट का LED एनर्जी सवेर और 30 वाट के LED टी वी में 2000 फी महीना से कम बिल नहीं आता,

पहले खत लिख कर सब की खबर रखते थे,
अब टेलीफोन मोबाइल फोन इंटरनेट हो कर भी रिश्तेदारों को कोई खैर खबर नहीं,

पहले गरीब और कम आमदनी वाले भी पूरे कपड़े पहनते थे,
अब जितना कोई अमीर होता है उसके कपड़े उतने कम होते जाते हैं,

समझ नहीं आता कम कहां खड़े है ??
क्यूं खड़े हैं ?
क्या खोया क्या पाया ??
साइंस हमारे लिए रहमत है या जहमत ??

Sunday, July 26, 2020

MUSALMAN E HIND KE LIYE SPAIN KA EK SABAQ







मुसलमान ए हिंद के लिए उंदुलस (स्पेन) का एक सबक

क़ुरआन करीम में बार बार ये सबक दिया है के पिछली कौमों के हालात और उनके अंजाम से इब्रत हासिल की जाए, उनकी तारीख को इबरत का जरिया समझा जाए, और उन रास्तों पर चलने से बचा जाए जिन पर चल कर ये कौमें हलाकत वा बर्बादी से दो चार हुई और सफे हस्ती से मिटा दी गई,

वह कौमें तो शिर्क वा बुत परस्ती और अंबिया की ना फरमानी के इरतेकाब पर मिटा दी गई, लेकिन अगर हम खुद मुसलमानों कि 1400 साला तारीख पर सरसरी नजर डालें और दुनिया के मुख्तलिफ इलाकों में उनके उरूज और ज़ावाल की कहानी पढ़ें तो अपने मुल्क के मौजूदा हालात में बहुत कुछ सीखने को मिलता है,

जिस तरह हिंदुस्तान पर मुसलामनो ने लगभग 800 साल हुकूमत की, फिर सलब होने के बाद आज तक उनकी जो दास्तान है वह सामने है, उसी तरह उंदूलस ( मौजूदा स्पेन ) में भी तकरीबन 800 साल तक मुसलमानों ने हुकूमत की, फिर वहां मुसलमानों के इक्तेदार का खात्मा हुआ,, उसके कुछ अरसा बाद मुख्तलिफ मराहिल से गुजरते हुए एक वक़्त आया के एक एक मुसलमान से स्पेन को खाली करा लिया गया, उसकी पूरी दास्तान बहुत लंबी है,

सुकूत ए स्पेन और मुसलमानों के ज़वाल के अस्बाब पर सैकड़ों किताबें लिखी जा चुकी हैं, जवाल के अस्बाब में एक अहम सबब " तवायफ अल मुलुकी " बताया गया है, हम इसी मुलूकी के ताल्लुक से गुफ्तगू की जा रही है,

स्पेन में इस्लाम और मुसलमानों के इस्तेहकाम और इस्लामी खिलाफत के क़ायाम का सेहरा उमवियों के सर है, लेकिन तीन सदिओं तक हुकूमत करने के बाद जब उमवियों में कमजोरी का गई और आखिर 422 हिजरी में हुकूमत पर उनकी गिरफ्त ख़तम हो गई तो वहां पर मुख्तलिफ नसल के मुसलमानों के छोटी छोटी कमजोर हुकूमते कायेम हुई जिन्हें " मुलूकुल तवायफ " के नाम से याद किया जाता है,

इतिहास करो के मुताबिक तवायफ उल मुलुक का दौर स्पेन में मुसलमानों सबसे बुरा और कमजोर दौर माना जाता है,
स्पेन में उमावि हुकूमत के खात्मे के बाद 20 से ज़्यादा हुक्काम 20 से ज़्यादा शहरों और इलाकों में उमावि खिलाफत के वारिस बने, उनमें बर्बर , अरब , और सकालबा थे, हर शहेर की अलग हुकूमत थी, बल्कि बाज़ शहरों में एक से ज़्यादा उम्मीदवार थे, उनके बीच कौमी जंग वा जिदाल का लंबा सिलसिला जारी रहा, जबकि उनके मुखालिफ नसरानी बादशाह अपनी अपनी हुकूमतों और अवाम के साथ पुरसुकून वक़्त गुज़ार रहे थे, नसरानियों ने उन बादशाहों को एक दूसरे के खिलाफ वरगलाना शुरू कर दिया और इस तरह इसलाम और मुसलमानों कि इज्जत और वक़ार को ज़बरदस्त ठेस पहुंची,

बाज़ मुसलमान बादशाहों ने अपनी कमजोरी के बास नासरानियों को जिज़्या देना क़ुबूल कर लिया, और कुछ ने अपने कुछ शहर उनके हवाले कर दिए, ये लोग इसाईं फौजियों के साथ मिलकर अपने मुसलमान भईयों से लड़ाई करने से भी गुरेज नहीं करते थे,

ये नाम निहाद मुस्लिम हुक्मरान इसाई बादशाहों को जिज्या पेश करते थे जिसकी मिकदार हमेशा बढ़ती रहती थी, इसी रकम से वह तमाम मुस्लिम मुलूक उल तवायफ के खात्मे का मंसूबा बनाते थे,

क्या ये हैरत अंगेज बात नहीं के स्पेन के मुसलमानों ने ये तो पसंद कर लिया के दुश्मनों के सामने घुटने टेक दें, अपनी ज़मीन और इलाके उनके हवाले कर दें, जिल्लत वा खवारी की सुलह के बाद जीजया देना क़ुबूल कर लें, अपने भईयों के मुकाबले दुश्मनों से मदद लें, ये सब मुमकिन और आसान था, लेकिन इकतेदार की मुहब्बत और दुनिया की बंदगी से ऊपर उठ कर इस्लाम की जानिब वापसी और इत्तेफाक़ वा इत्तेहाद के साथ अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकड़ ने में उनके लिए आर थी, अंदेशे थे और रुकावटें थी,

डॉक्टर अब्दुल हलीम ओवैस लिखते हैं
" स्पेन से हमारे निकलने कि दास्तान का मुहासिल ये नहीं के दुश्मन अपनी ताकत वा तदबीर से हम पर ग़ालिब आ गया, बल्कि उसमें हमारी अपनी जात में हजीमत की दास्तान मस्मूर है, हम अपने हाथों बर्बाद हुए, हम में से एक ने दूसरे को इस तरह खा लिया जिस तरह बाज़ जानवर दूसरे को खा लेते हैं "
(अजमत रफ्ता पेज 35)

मौसूफ आगे लिखते हैं,:
" तारिख में हमारे लिए इब्रत की चीज़ खुद हमारे जवाल की दास्तान है, जब हमारा कोई अज़ू सिर्फ अपनी फिक्र में लगा रहेगा तो यकीनन तमाम आजा जवाल का शिकार हो जाएंगे "
( पेज 37-38)

अफसोस हमारे मुल्क के मुसलमान जो 130 करोड़ की आबादी में 15 फीसद है वह मुख्तलिफ टुकड़ियों में बटे हुए हैं, उनमें से कुछ मस्लकी तकसीम है , उसके इलावा सियासी ऐतबार से, लिसानी ऐतबार से, जाती बिरादरी के नाम पर भी फासले हैं, हर गिरोह के सर पर नाम नीहाद मगर मजबूत कयादत है, जो अपने मानने वालों को सिर्फ और सिर्फ ये बावर कराने की कोशिश में मसरूफ रहते हैं के तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन तुम्हारे मुखालिफ मसलक वाले हैं, मुखालिफ पार्टी वाले, मुखालिफ बिरादरी वाले हैं,

उन कयादत की तकरीरों और तहरीरों का जयेजा लीजिए और ज़मीनी सतह पर उनकी और उनके मातहतओं की सरगर्मियों पर नजर डालिए तो इस हकीकत को मानने पर कोई हर्ज ना होगा,

अभी कुछ रोज़ पहले खबर मिली है के मुल्क के शुमाल मश्रीक रियासतों में से एक रियासत में किसी मसलक के लोगों का कोई दावती प्रोग्राम होने वाला था, दूर दराज से कुछ उलेमा पहुंच चुके थे, मगर दूसरे मसलक वालों ने अपनी अददी बरतरी और ताकत के बल बूते पर प्रशासन से शिकायत करके उस प्रोग्राम को खतम करा दिया और उस। कार खैर का सवाब लूट लिया,

गौर करें के अगर मुल्क की अक्सरियत से ये शिकायत है के वह 85 फीसद होने की वजह से हम 15 फीसद मुसलमानों को सता रहें हैं और ज़ुल्म वा ज्यादती का निशाना बना रहें हैं तो क्या हम भी अपने कलमा गो भईयों के साथ महज इस वजह से ज़ुल्म वा ज्यादती नहीं कर रहें हैं के वह तादाद में हमसे बहुत कम हैं ???

स्पेन के मुसलमान और उनकी कयादतें अपनी छोटी छोटी हुकूमतों और इलाकों को बचाने के लिए इसाइयों से मदद लेते थे, उसकी भारी कीमत जिज्या की शक्ल में पेश करते थे, इसाइयों से मदद लेकर दूसरी मुस्लिम हुकूमतों और इलाकों पर हमले करते थे, बल्कि कभी कभी उन्हें खुद अपने मुखालिफ मुसलमानों पर हमले कि तर्गीब देते और उनकी मदद करते, मुसलमानों की कमजोरियों से उन्हें आगाह करते, लेकिन इन सब के बावजूद बारी बारी सबका नंबर आया और सब इब्रतनाक अंजाम से दो चार हुए,

स्पेन के तवायफ उल मुलुकी के मामले को सामने रखिए और अपने मुल्क के मुसलमानों कि गिरोह बंदियों का इससे मावज़ाना कीजिए तो मामला कहीं ज़्यादा खतरनाक नजर आता है,

अक्सर जमातों और गिरोहों का एक दूसरे के साथ लगभग वहीं मामला है को स्पेन के मुलुकुल तवायफ का आपस में था, दूसरों की जासूसी करना, उनके राज और उनकी कमजोरी से हुकूमतों को आगाह करना, उनकी मसाजीद और मदरसों पर हमले तक के लिए माहौल बनाना और इस काम में बेदरेग पैसा लगाना, उनको मुल्क का गद्दार बल्कि दहशतगर्द बना कर पेश करना वगेरह वगेरह,

तमाम तर तकाज़ों और ज़रूरतों के बावजूद मसलकी और गिरोही हिसार से बाहर निकल कर एक उम्मत का नमूना पेश करने के लिए कोई माकूल कोशिश दिखाई नहीं देती, इन नाज़ुक हालात में भी हमारी कयादातें या तो मंज़र नामे से गायब हैं या नमूदार होती है तो गीरोही ज़रूरतों और गीरोही चादरों में लिपटी होती हैं, माशा अल्लाह,

हमारी मस्लकी और तबकाती मुलूकुल तवायफ का हाल तो ये है के गैर मुस्लिमों और बुत परस्तों से इजहार एकता में बड़ी फराख दिली का मुजाहिरा करते हैं लेकिन जैसे ही मामला अपने कलमा गो भईयों और जमातों से इष्तराक और तावुन की बात आती है उनकी रगें फड़क उठती है, और उनको ऐसा महसूस होने लगता है के ये तो कुफ्र और ईमान के माबैन इस्तराक और तकारीब की बात है, और ऐसा क्यूं कर मुमकिन है,

मैं बड़े ही अदब के साथ एक अल्लाह, एक रसूल, एक क़ुरआन और एक दीन पर ईमान रखने वाले तमाम अहले वतन से गुज़ारिश करता हूं के मुल्क के मौजूदा हालात में अपनी अपनी रवीश पर नजर सानी करें, इस नाज़ुक वक़्त में मसलक और गिरोह के तहफ्फुज से कहीं ज्यादा दीन और ईमान के तहफ्फुज को फिक्र करें, आपसी इख्तेलफात को एक दायरे में हल करने की कोशिश करें, इख्तेलाफ को इत्तेफाक़ पर ग़ालिब ना आने दें, नौजवान नसल से मेरी खास तौर पर गुज़ारिश है के इफ्तेराक और इंतेशार की शिकार मिल्लत की कश्ती को डूबने से बचाने के लिए आगे आएं, मस्लकी और गिरोह गेम खेलने वालों को कायेल करें के वह अपनी सलाहतें उममत की फलाह वा बहबूद की खातिर अच्छे कामों में इस्तेमाल करें,
साभार: असद आजमी
हिंदी तर्जुमा : UmairSalafiAlHindi

Saturday, July 25, 2020

ILM KI JUNG







काश कोई मेरी कौम को बताए के जंग तो अभी भी जारी है, मगर मैदान ए जंग बदल चुका है, अब ये इल्म का मैदान , टेक्नोलॉजी की दुनिया और इजादात की दौड़ है जहां कौमों की फतह वा शिकस्त का हकीकी फैसला होता है, अब दुनिया तलवार से इल्म के दौर में दाखिल हो चुकी है, अब इल्म की ताकत ही फौजी ताकत बनती है, इल्म की ताकत की मुआशी ताकत बनती है, इल्म की ताकत ही वह टेक्नोलॉजी देती है जो एक कौम को दूसरी कौम से आगे बढ़ाती है, इल्म की ताकत की वह आविष्कार करती है जो एक कौम को दूसरे से ज़्यादा तरक्की की राह पर डालती है,
काश मजीद शिकस्तों , जिल्लतों, और रुसवाइयों से पहले हमारी कौम इस हकीकत को समझ ले
UmairSalafiAlHindi
IslamicLeaks

Friday, July 24, 2020

CHHATRI







छतरी पास होने का मतलब ये थोड़ी होता है के बारिश को ही रोक लेगी,
छतरी तो इंसान को बारिश में खड़ा होने का सहारा देती है ।।
बिल्कुल इसी तरह तो ऐतमाद हुआ करता है जो इंसान को कामयाबी तो नहीं दिया करता,
हां मगर कामयाबी हासिल करने के लिए डटे रहने का मौका जरूर देता है ।।

UmairSalafiAlHindi

Thursday, July 23, 2020

KHWARIJI JAHANNUM KE KUTTE HAIN







जहेन्नुम के कुत्ते ( डॉग्स Of Hellfire ) Part -2


हज़रत अबू सईद खुदरी रिवायत करते हैं कि मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम माल तकसीम कर रहे थे के अब्दुल्लाह बिन खुवैसिरह तमिमी आया और कहने लगा ,अल्लाह के रसूल ! इंसाफ करें,

आपने फ़रमाया :-" तुम्हारा बुरा हो अगर में ही इंसाफ ना करूं तो फिर कौन इंसाफ करेगा ??

हज़रत उमर ने दरख्वास्त किया की अल्लाह के रसूल ! मुझे इजाज़त दें तो में इसका सफाया कर दूं, अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया

" इसे जाने दो, क्यूंकि इसके कुछ साथी होंगे जिनके नमाज़ और रोज़े के सामने तुम में से एक शख्स अपने नमाज़ वा रोज को हकीर समझेगा , वो दीन से ऐसे पार हो जायेगे जैसे तीर शिकार से पार हो जाता है, उस तीर के पर को देखा जाए तो उसमें कुछ नहीं मिलेगा, फिर उसकी नोक को देखा जाए तो उसमें कुछ नहीं मिलेगा, फिर उसकी लकड़ी को देखा जाए तो उसमें कुछ नहीं मिलेगा, वह तीर गोबर और खून से सबकत कर गया होगा, उनको पहचान ये होगी के उन में से एक ऐसा शख़्स होगा जिसका एक हाथ औरत के पिस्तान के मानिंद जुंबिश कर रहा होगा, वह मुसलमानों में तफ्रीक के दौर में निकलेगा "

हज़रत अबू सईद खुदरी ने कहा : " मैं शहादत देता हूं के हज़रत अली ने उनका सफाया किया और मैं उनके साथ था, और उस शख्स को उसी सिफत पर लाया गया जो मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम ने बयान किया, और उसी के बारे में ये आयात उतरी,

" उन मुनाफ़िक़ों में से कुछ मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम को सदकात के बारे में इलज़ाम देते हैं " (बुखारी 6933)

दूसरी हदीस में है में :- " आखिर ज़माने में कुछ बेवकूफ नौजवान पैदा होंगे जो बातें तो नबी ए अकरम मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम की करेंगे लेकिन उनका ईमान उनकी हंस्ली की हड्डी से नीचे नहीं उतरेगा, वह दीन से ऐसे पार हो जाएंगे जैसे तीर शिकार से पार हो जाता है, तुम उन्हें जिस जगह पाओ उन्हें क़त्ल करो क्योंकि जो उन्हें क़त्ल करेगा, कयामत के रोज़ उस सवाब मिलेगा " ( बुखारी 6930)

एक और हदीस में है के :- " उस तीर में शिकार के खून कोई निशान वा असर नहीं होगा, यानी दीन, क़ुरआन वा ईमान का उनके दिल में कोई असर नहीं होगा " ( बुखारी 6931)

हज़रत सहल बिन हनीफ ने कहा के मैंने खरजियों के बारे में मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम को फरमाए सुना और आपने अपना हाथ इराक़ की जानिब बढ़ा दिया के वहां से कुछ लोग निकलेंगे जो क़ुरआन पढ़ेंगे जबकि वह उनकी हंसली की हड्डी से नीचे नहीं उतरेगा, वह इस्लाम से ऐसे पार हो जाएंगे जैसे तीर शिकार से पार हो जाता है " ( बुखारी 6934)

इन हदीसो से को बातें साबित होती है वह ये हैं,
1- इस्लाम में खरीजियों की एक जमात नमूदार होगी,
2- वह इस्लाम के जाहिरी अमल को तशद्दुद के साथ अपनाएगी और मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम की बातें ही पेश करेगी, फिर भी क़ुरआन वा ईमान का उनके दिल पर कोई असर ना होगा,
3- वह दीन कि बातें करेगी और ज़ाहिरी आमल वा तिलावत क़ुरआन की पाबंद इसलिए रहेगी ताकि अहले ईमान उनके फरेब में आ जाएं
4- ये इस्लाम में तफर्रका के दौर में उभरेंगे,
चुनांचे ये हज़रत अली और हज़रत मुआविया की बाहिमी लड़ाईय्यों के ज़माने में नमूदार हुए, और हज़रत अली ने उनसे लड़ाइयां की, उन्होंने इराक़ के नजदीक " हररा " को अपना ठिकाना बनाया..
कुछ रिवायतों में ये भी है के मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के :- " ये इस उम्मत के कुत्ते होंगे और अगर में उन्हें पा गया तो उनका सफाया ऐसे ही करूंगा जैसे कौम ए आद का सफाया कर दिया गया और ये आगे भी बराबर पैदा होते रहेंगे "

Wednesday, July 22, 2020

HAZRAT UMAR BIN AL KHATTAB KI AAKHIRI KHWAHISH







हज़रत उमर फारूक की आखिरी ख्वाहिश

जब अबू लुलू ने आपको नमाज़ ए फज्र में जख्मी कर दिया ,कड़ी जरब लगने की वजह से आप बेहोश होकर गिर पड़े, अबू लुलु दूसरों को खंजर मारते हुए भाग खड़ा हुआ, आखिर में पकड़ा गया तो अपने आपको खंजर मार कर हलाक कर लिया,

उस वक़्त हज़रत उमर फारूख को उठाकर घर लाया गया, थोड़ी देर में आपको होश आ गया तो बेटे से पूछा
" मैं तेरे बाप की हैसियत से कैसा था "

तो उनके बेटे हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर ने जवाब दिया
" आप हमारे लिए बेहतरीन बाप थे "

हज़रत उमर ने फ़रमाया के उम्मुल मोमीनीन हज़रत आयशा के पास जाओ और कहो के उमर चाहते हैं के आप उन्हें नबी ए करीम मुहम्मद सल्लल्लाहों अलैहि वसल्लम के पाईनाते ( पैरों के नीचे ) दफन होने के जगह दे दें "

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर गए तो देखा कि हजरत आयशा रो रहीं थीं
अर्ज़ किया के हज़रत उमर फारूख की ये ख्वाहिश है के नबी ए अकरम मुहम्मद सल्ललाहों अलैहि वसल्लम के पैतियाने दफन किए जाएं,

हज़रत आयशा ने जवाब दिया के :-" वो जगह तो मैंने अपने लिए रखी थी लेकिन हज़रत उमर की ख्वाहिश की बुनियाद पर मैं वह जगह उन्हें देती हूं "
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर वापस आए और हज़रत आयशा की इजाज़त दिए जाने कि खबर उन्हें सुनाई,

हज़रत उमर फारूख ने कहा :-" मेरे इंतकाल के बाद वो दोबारा हज़रत आयशा से इजाज़त तलब करना और कहना के उमर फारूख ने यहां दफन किए जाने की ख्वाहिश ज़ाहिर की थी, उनकी इजाज़त मिलने पर ही मुझे उस जगह दफन करना, हो सकता है कि मेरा पास वा लिहाज़ करते हुए उन्होंने इजाज़त फरमा दी हो, हज़रत आयशा के घर जाओ तब अमीर उल मॉमिनीन कह कर इजाज़त ना तलब करना ...... "

हज़रत उमर फारूक की अमानत वा दियानत की ये इतनी बड़ी दलील है कि उन्होंने बाद मर्ज अपने आपको अमीर उल मॉमिनीन कहने से रोक दिया के अब वो हकीकत में अमीर उल मॉमिनीन नहीं रह गए थे
अल्लाह ताला आपका मुकाम बुलंद तर बुलंद रखे और जन्नत उल फ़िरदौस में जगह नसीब फरमाए
आज के हुक्मरान भी अगर इस सादगी, हक पसंदी, और हमदर्दी अख्तियार करें तो अहद फारूखी की झलक अहले इस्लाम में फिर आ सकती है

Tuesday, July 21, 2020

FITNA INKAAR E HADITH AUR USKI SHURUAAT





फितना इंकार ए हदीस और उसकी शुरुआत

उन्होने कहा ऐ हज़रत अबू बक्र ! जो जकात हम मुहम्मद की हयात के वक़्त देते थे, चुकीं अब वो हमारे बीच नहीं है इसलिए अब हम जकात नहीं देंगे, हज़रत अबू बक्र और उनके बीच कुछ बात चीत हुई हज़रत अबू बक्र ने कहा तुमको जकात देना ही होगा,

कुछ सहाबा किराम ने मशवरा दिया की अरबों में मुरतद होने यानी दीन छोड़ने की शुरुआत चारों तरफ तेजी से फैल गई है , इन लोगों ने तो सिर्फ जकात ना देने की बात की है लिहाज़ा इनसे ज़्यादा शख्ती ना किया जाए इससे बाक़ी काबायेल में अफरा तफरी मच सकती है जो इस्लाम अभी तक काबूलें हुए हैं,

हज़रत अबू बक्र ने कहा

" वल्लाही ! अगर ये मुहम्मद सल्लालहो अलैहि वसल्लम के दौर में एक रस्सी दिया करते थे, मैं उसके एवज इनके जिहाद (किताल) करूंगा "
जब ये बात इनकार ए हदीस ए रसूल ने सुना तो कहने लगे :- "अब हम नमाज़ का भी इनकार करते हैं "
तारीख गवाह है हज़रत अबू बक्र ने इन मुरताद्दीन ए इस्लाम की जम कर सर कोबी की यहां तक कि कोई फितना बाक़ी ना रहा,
आज हमारे दौर में एडवांस मुरतद मौजूद हैं जो जकात और नमाज़ का इनकार तो दूर पूरी हदीस का इनकार करते हैं,
इन लोगों का क्या होना चाहिए ???

Monday, July 20, 2020

KAUN KAHTA HAI KI MARD NAHIN ROTE HAIN !







कौन कहता है मर्द नहीं रोते? असली मर्द तो अपने रब के सामने रोते हैं!
__________________________________
وقال عبد الله بن شداد، " سمعت نشيج عمر، وأنا في آخر الصفوف يقرأ: {إنما أشكو بثي وحزني إلى الله} [يوسف: ٨٦] " 

अब्दुल्लाह बिन शद्दाद ताबई कहते हैं कि मैंने नमाज़ पढ़ते हुए उमर رضیﷲ عنه के रोने की आवाज़ सुनी जबकि मै आखिरी सफ़ में था, और वो ये आयत पढ़ रहे थे "(याकूब AS ने कहा) बेशक मैं अपनी परेशानियों और गमों की शिकायत सिर्फ़ अल्लाह से करता हूं।" (Surah Yusuf : 86)
( صحیح البخاری قبل رقم : 716 ، ذکرہ تعلیقا و وصله سعید بن منصور باسند حسن


Sunday, July 19, 2020

MAA KA DARD





"उसकी मां ने तकलीफ़ उठाकर उसे पेट में रखा, और तकलीफ़ उठाकर ही उसे जन्म दिया "
(क़ुरआन सुरह अहकाफ 15)

UmairSalafiAlHindi

Saturday, July 18, 2020

QAUM KE RAHBAR KAISE PAIDA HONGE AUR HAMARA HAAL







कौम के रहबर कैसे पैदा होंगे ? और हमारा हाल

और जब इमरान की बीवी ने कहा :-" ऐ मेरे अल्लाह ! मैं उस बच्चे (लड़का) को जो मेरे पेट में है तेरी नज़र करती हुं, वह तेरे दीन के काम के लिए कुर्बान होगा, मेरी इस नज़र को कुबूल कर तू सुनने वाला और जानने वाला है,

फिर जब वो बच्ची (लड़की) उसके यहां पैदा हुई तो उसने कहा :-" मालिक मेरे यहां तो लड़की पैदा हो गई है ! "
हालांकि उसने जो पैदा किया था अल्लाह को उसकी खबर थी,

" और लड़का लड़की की तरह नहीं होता, खैर मैंने इसका नाम मरयम रखा दिया है, और में इसे और इसकी आगे की नसल को धुत्कारे हुए शैतान के फितने से तेरी पनाह में देती हूं "
आखिरकार उसके रब ने उस लड़की को कुबूल कर लिया...

(क़ुरआन सूर आल ए इमरान आयत 35-37)

जब हज़रत इमरान की बीवी हामिला थीं तो उसने मन्नत की थी के जो औलाद पैदा होगी मैं उसे तेरे दीन के लिए कुर्बान कर दूंगी, लेकिन उनके यहां लड़की पैदा हो गई,

लेकिन उन्होंने अल्लाह से शिकायत नहीं की बल्कि अल्लाह की मर्ज़ी को कुबूल किया, और अल्लाह ने उस लड़की मरयम को इज्जत बक्शी ,

इस बात से ये बातें सामने आती है के नज़र और मन्नत मांगना इस्लाम में जायज है, लेकिन वही। मन्नत काबिल ए कुबूल है जो अल्लाह की रजा के लिए हो,
हम अपने बच्चे के मुस्तकबिल के लिए प्लांनिंग कर सकते हैं, सिर्फ अल्लाह की रजा के लिए,

यानी ऐसी मन्नत या नज़र जो अल्लाह की रजा के लिए हो उससे अल्लाह कुबूल करता है, और उसमे बरकत देता है, जैसे इमरान की बेटी मरयम के पेट से ईसा को पैदा किया जो नबी थे,
हम शिकायत करते हैं कि कौम में कोई रहबर पैदा क्यूं नहीं होता ?? जो कौम को राह ए रास्त पर के आए,

तो इसका जवाब है कि हमारी कौम में ऐसा औरतें ही नहीं नहीं जो ऐसे बेटे पैदा कर सके, क्यूंकि उनमें दीन की समझ शून्य होती है, हम शादी के लिए दीन दारी को नहीं बल्कि खूबसूरती और खानदान को तरजीह देने लगे हैं,
जब हमारी बीवियां हामीला होती है तो हम उनका दिल बहलाने के लिए मूवी थ्रिएटर , पब्लिक पार्क, रेस्टोरेंट, तो के जाते हैं, लेकिन उन्हें इतनी तौफीक नहीं मिलती के रब के सामने उस बच्चे के लिए दुआ कर सके,
फिर जैसा बुओ के वैसा ही काटोगे,