Thursday, July 2, 2020

HAMFAR AUR LAWRENCE OF ARABIA








हैमफर और लॉरेंस ऑफ अरबिया,

दानिशमंदों की बासी कड़ी में फिर उबाल आया है, फरमाते हैं के ( आल ए सऊद और वाहबियत ) की अंधी तकलीद में लोग हैमफर और लॉरेंस ऑफ अरबिया के इंकेशाफ तक भूल जाते हैं..

बिना किसी तम्हीद के मुद्दे पर आते हैं , दुश्मन ए तौहीद की इस बकवास का मुझ समेत लाखों लोग जवाब दे चुके हैं, मगर इन क़ब्र परस्टों की जिहालत और हटधर्मी का ये आलम है के तस से मस नहीं होते, ये इनका मुवाहिदीन से बुग़ज़ नहीं है तो क्या है, ना तो हमफर की इंकेशाफ़ पर लिखी गई किताब पढ़ी और ना ही लॉरेंस ऑफ अरबिया की, और ना ही उनमें दर्ज मालूमात की तहकीक की, मगर ईमान ऐसे ले आए जैसे ये आयात ए क़ुरआनशरीफ़ हो, खैर तहकीक से इन्हें क्या लेना देना ?? इनका मकसद तो सिर्फ और सिर्फ रब की तौहीद को नीचा दिखाना है ,

सबसे पहले हमफर के नाम पर आते हैं, मुहक्किकीन वा अशाब ए इल्म ये बखूभी जानते हैं के हमफरे के इंकेशाफात नरी बकवास और झूट का पुलिंदा है, बस,

अच्छी तरह अक्ल रखने वाला शख्स भी अगर ये किताब पढ़ ले तो उसे एक थर्ड क्लास नॉवेल से ज़्यादा अहमियत ना दे, मगर क्या कीजिए ! बुगज़ ए तौहीद के मार से इस किताब के लफ्ज़ वा लफ्ज़ को वहीं मानते हैं,
सच ये है के हमफर एक फर्जी किरदार है और उसे गढ़ने वाला एक कौम परस्त और सूफी तुर्क मुसन्निफ अय्यूब साबिरी पाशा है !!

यहां ये बात वाजेह रहे के इस किताब में आल ए सऊद का कोई ज़िक्र नहीं है, इस किताब में सिर्फ शेख़ उल इस्लाम इमाम मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब के खिलाफ प्रोपगंडा किया गया है, वह भी भोंडे तरीन अंदाज़ में,

इस पूरी किताब के रद के लिए यही काफी है के हमफरे अपनी किताब में दावा करता है के वह 1713 में शेख उल इस्लाम मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब से बसरा में मिला !! बाकौल उस के उस वक़्त शेख़ एक तालिब ए इल्म थे और अरबी के इलावा फारसी और तुर्क ज़बान पर भी उबूर रखते थे, इस किताब में हमफरे ये भी कहता है के मेरे बहकाने से शेख शराब भी पीने लगे, और मेरे ही कहने से शेख ने 2 औरतों से मुता भी किया था ! इसके अलावा और भी बहुत कुछ है मगर हकीकत जानने वालों के लिए यही काफी है,

अगर ये दुश्मन ए तौहीद अक्ल से पैदल ना होते तो इस बकवास की तहकीक करके हकीकत जान जाते लेकिन कब्रपरस्त होने के लिए जाहिल होना शर्त है, अब आएं और सच देखें :

शेख उल इस्लाम मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब 1703 ईसवी में पैदा हुए और जो सन हमफरे उनकी मुलाकात की लिखता है उसमे तो उनकी उम्र 9 या 10 साल बनती है, अब बताया जाए एक 9-10 साल का बच्चा वह सब कैसे कर सकता है जो हमफरे कह रहा है ??
जबकि हमफरे की किताब से ज़ाहिर होता है कि 1713 ईसवी में शेख जवान मर्द थे जोकि सफेद झूठ है...! अब जब इस किताब की बुनियाद ही झूट है तो बाकी किताब का क्या करना, बाक़ी तो कुछ बचता ही नहीं ...!

अब आते हैं लॉरेंस आफ अरबिया की किताब की तरफ, जैसा कि मैंने शुरुआत में ही कहा था के ना तो खुद इन फर्जी दानिशवरों ने कभी ये किताब पढ़ी है और ना ही उन्होंने इसकी तहकीक की तौफीक हुई,
कर्नल थोमंस एडवर्ड लॉरेंस अल मारूफ लॉरेंस आफ अरबिया की पूरी किताब में ना तो आल ए सऊद का ज़िक्र है और ना ही शेख उल इस्लाम मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब का, जबकि शेख उल इस्लाम लॉरेंस ऑफ अरबिया की पैदाइश से 96 साल पहले ही वफात पा चुके थे,

लॉरेंस ऑफ अरबिया की किताब में अगर ज़िक्र मिलता है तो शरीफ ए मक्का यानी उस्मानी सल्तनत हिजाज़ के गवर्नर हुसैन बिन अली अल हाशमी का के जिस ने लॉरेंस आफ अरबिया के साथ मिलकर हुकूमत बरतानिया की शह पर खिलाफत ए उस्मानिया से बगावत की, और ये शरीफ मक्का सूफी मजहब से था, उस ही जिंदीक के लिए अल्लामा इकबाल ने फ़रमाया था के
हाशमी बेचता है नमूस ए दीन मुस्तफा,
मिल रहा है ख़ाक ओ खून में तुर्कमान सख्त कोश,

इस्लाम से इस गद्दारी के सिले में ना सिर्फ शरीफ मक्का को हिजाज़ का बादशाह बनाया गया बल्कि उसके बेटे फैसल को शाम और अब्दुल्लाह को जॉर्डन का बादशाह भी बना दिया गया, जॉर्डन का मौजूदा बादशाह अब्दुल्लाह दोम उसी का पोता है,
जबकि शरीफ मक्का के दूसरे बेटे फैसल की बादशाहत शाम में 2 साल बाद फ्रांस के क़ब्जे ने खतम कर दी, जबकि ताज बरतानिया ने अपने इस चहेते को वहां से निकाल कर इराक़ का बादशाह बना दिया, फैसल पर इस खास इनाम वा इकराम की वजह ये है कि उसमानियों के खिलाफ बगावत का असल किरदार यही फैसल था, इस मर्दूड के लिए अल्लामा इकबाल ने फ़रमाया था के
क्या खूब अमीर फैसल को सनोसी ने पैग़ाम दिया,
तू नाम ओ नसब का हिजाजी था फिर दिल का हिजाजि बन गया ।

इस तमाम अरसे में आल ए सऊद तो अपने वतन नजद से दूर कुवैत में जिला वतनी काट रहे थे, ये वाज़ह रहे के नजद और हिजाज़ दो अलग अलग इलाके है, और उनके हाकिम भी अलग थे, नजद इन्हीं से आल ए सऊद ने 1921 में छीना, जबकि आल ए रशीद ने नजद का इलाका आल ए सऊद से 1890 में उस्मानियों की मदद से छीना था,

1921 में जब उस्मानी हर तरफ से शिकस्त का सामना कर रहे थे और नजद के आल ए रशीद ने भी 1920 में उसमानियो से बगावत कर के आजादी का ऐलान कर डाला तो तब जा कर आल ए सऊद ने नजद पर चढ़ाई की,
उसके बाद आल ए सऊद ने 1924 में हिजाज़ पर कब्ज़ा किया, जबकि शरीफ मक्का 8 साल पहले ही उसमानियो से बगावत कर चुका था, और हिजाज़ में कोई एक उस्मानी या तुर्क फौजी बाक़ी ना रहा था, और जिस वक़्त आल ए सऊद हिजाज़ में दाखिल हुए उस वक़्त खिलाफत ए उस्मानिया के टूटे हुए पूरा एक साल बीत चुका था..
मुस्तफा कमाल ने 1923 में खिलाफत का बाब बंद कर डाला था, के जिस पर अल्लामा इकबाल ने फ़रमाया था के :

चाक कर दी तुर्क नादान ने खिलाफत की कबा
सादगी मुस्लिम की देख औरों की अय्यारि भी देख,

आखिर में मेरी तमाम क़ब्रपरस्टों और दुश्मन ए तौहीद से दरख्वास्त है के जो कुछ आप पढ़ें या सुने, उस सच ना मान लिया करें, तहकीक किया करें, मुवाहीदीन की दुश्मनी और तौहीद रही से नफ़रत में अंधे मत हो जाएं...
साभार: मौलाना अजमल मंजूर मदनी
तर्जुमा: UmairSalafiAlHindi