फितना इंकार ए हदीस और उसकी शुरुआत
उन्होने कहा ऐ हज़रत अबू बक्र ! जो जकात हम मुहम्मद की हयात के वक़्त देते थे, चुकीं अब वो हमारे बीच नहीं है इसलिए अब हम जकात नहीं देंगे, हज़रत अबू बक्र और उनके बीच कुछ बात चीत हुई हज़रत अबू बक्र ने कहा तुमको जकात देना ही होगा,
कुछ सहाबा किराम ने मशवरा दिया की अरबों में मुरतद होने यानी दीन छोड़ने की शुरुआत चारों तरफ तेजी से फैल गई है , इन लोगों ने तो सिर्फ जकात ना देने की बात की है लिहाज़ा इनसे ज़्यादा शख्ती ना किया जाए इससे बाक़ी काबायेल में अफरा तफरी मच सकती है जो इस्लाम अभी तक काबूलें हुए हैं,
हज़रत अबू बक्र ने कहा
" वल्लाही ! अगर ये मुहम्मद सल्लालहो अलैहि वसल्लम के दौर में एक रस्सी दिया करते थे, मैं उसके एवज इनके जिहाद (किताल) करूंगा "
जब ये बात इनकार ए हदीस ए रसूल ने सुना तो कहने लगे :- "अब हम नमाज़ का भी इनकार करते हैं "
तारीख गवाह है हज़रत अबू बक्र ने इन मुरताद्दीन ए इस्लाम की जम कर सर कोबी की यहां तक कि कोई फितना बाक़ी ना रहा,
आज हमारे दौर में एडवांस मुरतद मौजूद हैं जो जकात और नमाज़ का इनकार तो दूर पूरी हदीस का इनकार करते हैं,
इन लोगों का क्या होना चाहिए ???